Published on 22 December, 2012
अनिल नरेन्द्र
लोकसभा चुनाव का सेमीफाइनल माने जा रहे गुजरात विधानसभा चुनाव मुकाबले में नरेन्द्र मोदी हीरो बनकर उभरे हैं। बेशक गुजरात विधानसभा चुनाव में 2007 के मुकाबले में भाजपा को 2 सीटें कम मिली हों पर इससे नरेन्द्र मोदी की छवि को कोई नुकसान नहीं होने वाला। श्री नरेन्द्र मोदी के राजनीतिक जीवन में यह सबसे कड़ा मुकाबला था। वह सारी दुनिया के सूडो सैक्यूलिस्ट से तो लड़ ही रहे थे पर इस बार उनकी लड़ाई अन्दर से भी थी। केशुभाई पटेल, राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ, कांग्रेस सभी ने मिलकर मोदी को ठिकाने लगाने का जो प्लान बनाया वह औंधे मुंह गिरा और मोदी ने सबको पछाड़कर साबित कर दिया कि हिन्दुत्व और विकास यह दोनों साथ-साथ चल सकते हैं। मोदी पर सबसे बड़ा आरोप हिन्दू कट्टरवादी होने का लगता था और अल्पसंख्यक विरोधी। इस चुनाव ने इसे भी गलत साबित कर दिया। आलम यह रहा कि धर्मनिरपेक्षता की पैरोकार कांग्रेस को ज्यादातर मुस्लिम बहुल सीटों पर भी मात खानी पड़ी। गुजरात विधानसभा की लगभग डेढ़ दर्जन सीटें मुस्लिम बहुल हैं, जहां मुस्लिम आबादी 12 से 20 फीसद तक है। कांग्रेस के दिग्गज नेता अहमद पटेल के गृह जनपद भरुच की पांचों सीटें भाजपा ने जीत लीं। अल्पसंख्यकों का विश्वास जीतने के लिए मोदी ने राज्य में सद्भावना उपवास के साथ कई यात्राएं की थीं। विकास को मुद्दा बनाते हुए उन्हें साथ चलने का न्यौता दिया था। हालांकि उन्होंने किसी मुस्लिम को चुनाव में टिकट नहीं दिया। कांग्रेस ने चार अल्पसंख्यकों को टिकट दिया दो जीते। गुजरात के मुसलमानों ने मोदी का ट्रेक रिकार्ड भी देखा। गोधरा कांड को छोड़ दें तो गुजरात में कभी सांप्रदायिक दंगा नहीं हुआ। न ही किसी छात्रा का इस तरह से गैंगरेप हुआ जैसा देश की राजधानी दिल्ली में हुआ। गुजरात के मुस्लिम देश के अन्य राज्यों के मुकाबले सबसे ज्यादा आर्थिक दृष्टि से सम्पन्न हैं। उन्होंने कहा होगा कि ठीक है नरेन्द्र मोदी बेशक हिटलर हों, तानाशाह हों पर हम उनकी छत्रछाया में सुरक्षित तो हैं, हम अपने परिवार का पालन-पोषण अच्छे से कर सकते हैं। मोदी की जीत में महिलाओं का विशेष योगदान रहा है। मोदी के शासनकाल में 13 फीसद महिलाओं के मतदान दर में वृद्धि हुई है। युवाओं को मोदी इसलिए भा गए क्योंकि उन्हें ऐसा शासक चाहिए जो दबंग हो दब्बू नहीं। कांग्रेस को लगा था कि केशुभाई पटेल के चुनाव में कूदने से लड़ाई त्रिकोणीय हो जाएगी और भाजपा का वोट शेयर घटेगा। वोट शेयर तो घटा है पर लड़ाई से मोदी का कोई ज्यादा नुकसान नहीं हुआ। उन्हें दो सीटें कम मिलीं। मोदी ने अन्य पिछड़ी जातियों पर खास फोकस किया। दक्षिण गुजरात की जनजातियों के लिए कुछ असरदार अधिकारियों के माध्यम से विकास परियोजनाओं को लागू कराकर पहले से ही पैठ बना ली। कांग्रेस ने अपने पिछले चुनाव से सबक सीखे हैं। उदाहरण के तौर पर इस बार राहुल गांधी को आगे नहीं किया। बिहार और उत्तर प्रदेश के कटु अनुभव से सीख ली और लड़ाई मोदी बनाम राहुल नहीं होने दी। पर टिकट बंटवारा दिल्ली से राहुल मंडली ने किया और नरहरि अमीन, रावल और सागर रायक्का जैसे दिग्गजों को टिकट न देकर नाराज कर लिया और यह अपने समर्थकों के साथ मिलकर कांग्रेस उम्मीदवारों को ही हरवाने में जुट गए। कांग्रेस बार-बार एक गलती दोहराती आ रही है। इस बार भी कांग्रेस अपनी पार्टी के किसी ऐसे नेता को प्रोजैक्ट नहीं कर सकी जो मुख्यमंत्री पद के लिए विश्वसनीय हो और जनता को स्वीकार्य हो। दूसरी तरफ भाजपा के घोषित उम्मीदवार न सिर्प ताकतवर थे बल्कि भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रचारित थे। कांग्रेस ने न तो सुरक्षा मामले में और न ही आर्थिक विकास पर मतदाताओं में मोदी के खिलाफ माहौल बनाने में आक्रामक रुख अख्तियार किया। लगता है कि गुजरात में तमाम रणनीति बनाने के बावजूद कांग्रेस हार मानकर चल रही थी। वह इस कहावत पर ज्यादा ध्यान दे रही कि हारा हुआ वोट प्रतिशत गिनता है जीता हुआ विजयी सीटें गिनता है। हमारी राय में अगर एक लाइन में इस चुनाव का निष्कर्ष निकाला जाए तो हम कहेंगे कि भाजपा हारी नरेन्द्र मोदी जीते।
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