Published on 5 December, 2012
गुजरात विधानसभा चुनाव का जितना महत्व इस बार है उतना शायद पहले कभी नहीं हुआ। पूरे देश की नजरें इस पर टिकी हुई हैं। असल में बीजेपी खासकर नरेन्द्र मोदी समर्थकों ने इसे इस रूप में प्रोजेक्ट किया है कि गुजरात की सियासत से ज्यादा यह राष्ट्रीय राजनीति के लिए महत्वपूर्ण है। इसलिए गुजरात विधानसभा चुनाव इस बार कांग्रेस के लिए कम नरेन्द्र मोदी के लिए बड़ी चुनौती बन गए हैं। गुजरात में जैसे मोदी के लिए आसान लड़ाई मानी जा रही थी वैसी है नहीं। इस बात का भाजपा के शीर्ष नेतृत्व और खुद पार्टी को भी आभास हो चुका है। पार्टी को कांग्रेस से इतना डर नहीं जितना अन्दर से। उसे पूर्व मुख्यमंत्री केशुभाई पटेल से भी इतना डर नहीं पर जब संघ के अपेक्षित स्वयंसेवक केशुभाई के साथ खड़े हो जाएं तो यह जरूर मोदी के लिए चिन्ता का सबब बन जाता है। इसीलिए केंद्रीय भाजपा नेतृत्व ने अब दो मुखी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। एक तो गुजरात को सामान्य विधानसभा तक सीमित न करना बल्कि इसका राष्ट्रीय महत्व का दावा करना। अब तक पार्टी के नेता और खुद नरेन्द्र मोदी इशारे-इशारे में यह बात करते थे पर अब नेता खुलकर नरेन्द्र मोदी को भावी प्रधानमंत्री के रूप में प्रोजेक्ट करने लगे हैं। गुजरात विधानसभा चुनावों पर नजर रखने वाले राजनीतिक विश्लेषकों की मानें तो केशुभाई की पार्टी गुजरात परिवर्तन पार्टी (जीपीपी) की तरफ से सबसे अधिक चुनौती सौराष्ट्र क्षेत्र से मिल रही है। सौराष्ट्र क्षेत्र में पड़ने वाली 45 सीटों में से कम से कम 17-18 सीटों पर जीपीपी के प्रत्याशियों द्वारा अब तक जिस तरह की चुनौती पेश की जा रही है वह मोदी के लिए काफी चिन्ताजनक है। गुजरात चुनाव में संघ की भूमिका को भी कम करके नहीं आंका जा सकता। उल्लेखनीय है कि इस बार संघ भी मोदी का विरोध कर रही है और केशुभाई की गुप्त मदद कर रही है। सौराष्ट्र क्षेत्र की 17-18 सीटें ओबीसी, एससी/एसटी बाहुल्य हैं। पार्टी सूत्रों के अनुसार यदि पार्टी को सौराष्ट्र क्षेत्र में झटका लगता है तो यह न सिर्प मोदी बल्कि भाजपा के लिए भी एक गहरा सदमा होगा। नरेन्द्र मोदी समर्थकों द्वारा उन्हें भावी पीएम प्रोजेक्ट करने के पीछे एक और कारण भी हो सकता है। इससे मोदी को अपनी असफलताओं पर पर्दा डालने में कामयाबी मिलेगी। अब स्थानीय मुद्दों को दरकिनार कर वह अपने मतदाताओं का यह समझाने में लगे हैं कि उनकी जीत पीएम की कुर्सी तक ले जाएगी जिससे राज्य को काफी फायदा होगा। नरेन्द्र मोदी को पीएम प्रोजेक्ट करने से राज्य में कांग्रेस को भले ही कोई लाभ न हो पर केंद्रीय राजनीति में उसे फायदा हो सकता है, क्योंकि अल्पसंख्यक मतदाताओं का ध्रुवीकरण उसके पक्ष में होगा। गुजरात विधानसभा में भाजपा अपने बूते पर 1995 में सत्ता में आई थी। तब से वह लगातार सारे चुनाव जीत रही है। कांग्रेस गुजरात में इस बार सम्भल कर चल रही है। पिछले विधानसभा चुनाव में सोनिया गांधी ने अपनी सभाओं में नरेन्द्र मोदी को मौत का सौदागर कह दिया था। इसकी तीखी प्रतिक्रिया हुई थी और मोदी का परचम फिर लहर गया था। वैसे इस बार भी कांग्रेस ने वैसी ही चूक कर दी है। निलम्बित आईपीएस अफसर संजीव भट्ट की पत्नी श्वेता भट्ट को पार्टी ने मणिनगर में मोदी के मुकाबले उतारा है। इसकी पूरे राज्य में प्रतिक्रिया हो रही है। श्वेता भट्ट अगर अपनी जमानत बचा लें तो बहुत बड़ी बात होगी पर उन्हें मोदी के मुकाबले उतारने से दूसरे इलाकों में भी नुकसान का खतरा है। कांग्रेस को लग रहा था कि भाजपा की अंदरूनी फूट के कारण चुनाव में नरेन्द्र मोदी अकेले पड़ जाएंगे। केशुभाई पटेल भाजपा के जनाधार पर सेंध लगाएंगे। इस नाते भी कांग्रेस को सफलता की उम्मीद है। लेकिन गुजरात में उसने मुख्यमंत्री पद का अपना कोई उम्मीदवार घोषित न कर एक तरह से अपनी हार पहले से ही मान ली है। मोदी ने इस मुद्दे पर कांग्रेस की घेराबंदी के लिए कहा था कि कांग्रेस पिछले दरवाजे से सोनिया के राजनीतिक सलाहकार अहमद पटेल को सूबे का मुख्यमंत्री बनाने के चक्कर में है। ऐसा कर मोदी ने फिर हिन्दू कार्ड खेलने की कोशिश की। नरेन्द्र मोदी अपनी चुनावी सभाओं में सीधे सोनिया गांधी और केंद्र सरकार को ही निशाना बना रहे हैं। श्री नरेन्द्र मोदी अपने राजनीतिक जीवन का यह सबसे महत्वपूर्ण चुनाव लड़ रहे हैं, यह कहना गलत नहीं होगा।
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