Tuesday 18 December 2012

अमेरिका में क्यों होता है बार-बार शूटआउट?

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published From Delhi

  Published on 18 December, 2012
 अनिल नरेन्द्र
दुनियाभर में जब भी मां-बाप अपने बच्चों को स्कूल भेजते हैं तो इस विश्वास के साथ कि स्कूल में तो कम से कम बच्चा पूरी तरह सुरक्षित है पर जब स्कूल में ही कोई बड़ा हादसा हो जाए तो उनके दुख का अनुमान लगाना मुश्किल हो जाता है। जब अमेरिका के पूर्वोत्तर प्रांत कनेक्टिकट के एक प्राइमरी स्कूल में मां-बाप ने अपने बच्चों को भेजा होगा तो शायद ही उन्होंने कभी सोचा होगा कि उस दिन अनर्थ हो जाएगा। वह बच्चे कभी भी स्कूल से नहीं लौटेंगे। सोच कर ही खौफ हो जाता है। कनेक्टिकट के न्यू टाउन स्थित सैंडी हूक एलीमेंट्री स्कूल के किडरगार्टन क्लास रूम में अमेरिकी समय के मुताबिक सुबह नौ बजे एक अज्ञात हमलावर घुसा और अंधाधुंध फायरिंग शुरू कर दी। इस गोलीबारी में 27 लोग मारे गए जिनमें 20 बच्चे हैं। अमेरिका के इतिहास में इसे अब तक की सबसे बड़ी सामूहिक हत्याओं में से एक माना जा रहा है। इस घटना से समूचा अमेरिका सहमा हुआ है और दुख में डूबा हुआ है। मारे गए लोगों के शोक में अमेरिकी राष्ट्र ध्वज को आधा झुका दिया गया। हमलावर के पास नौ एमएम की दो गन थीं। स्कूल में उस समय करीब 700 बच्चे थे। हमलावर युवक की मां स्कूल में टीचर थी। उस सिरफिरे ने क्लास रूम में घुसकर पहले मां को मारा फिर 18 बच्चों को भून दिया। बाद में उसने 7 अन्य लोगों की भी हत्या कर दी और फिर खुद को भी गोली मार ली। युवक किसी बात से मां पर नाराज था। हमलावर 24 साल का था। मरने वालों में स्कूल की प्रिंसिपल भी शामिल है। व्हाइट हाउस में एक प्रेस कांफ्रेंस में वीडियो से बात करते हुए राष्ट्रपति बराक ओबामा भी रो पड़े। उन्होंने कहा कि इस घटना से देश को काफी धक्का लगा है और ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए कदम उठाने होंगे। हमारा दिल मारे गए बच्चों के मां-बाप, उनके दादा-दादी, उनके भाई-बहनों के लिए टूट गया है। हम शोक व्यक्त करते हैं कि समय से पहले उनका बचपन छिन गया। इन लोगों का दर्द कुछ भी कहने से कम नहीं हो सकता। बड़े दुख और चिन्ता का विषय यह है कि अमेरिका में इस प्रकार की यह पहली घटना नहीं है। हमलावर का नाम एडम लांजा बताया गया है। गोलीबारी की बढ़ती घटनाओं के मद्देनजर छात्रों व अध्यापकों सहित स्टाफ की सुरक्षा के लिए अमेरिकी स्कूल कई तरह के कड़े सुरक्षा मानक अपना रहे हैं। बावजूद इसके स्कूलों को ऐसी घटनाओं को रोकने में नाकामी ही हाथ लगी है। प्राथमिक शिक्षा देने वाले करीब 94 फीसद अमेरिकी स्कूल पढ़ाई के दिनों में मुख्य दरवाजों पर ताला जड़ देते हैं ताकि कोई बिना अनुमति के परिसर में न घुस सके। स्कूलों में निगरानी के लिए सुरक्षा कैमरे भी लगाए गए हैं। पब्लिक स्कूलों में सुरक्षा गार्डों की संख्या बढ़ा दी गई है। यही नहीं हथियारों के बढ़ते इस्तेमाल के मद्देनजर देशभर में मैटल डिटैक्टर लगा दिए गए हैं। तमाम सुरक्षा मानक अपनाने के बाद भी अमेरिकी स्कूलों में शूटआउट की घटनाएं हो ही रही हैं। 10 फरवरी 2012 को न्यू हैम्पशायर के 14 वर्षीय किशोर हंटर मैक ने वालपोल प्राथमिक स्कूल के कैफेटेरिया में खुद को गोली मार ली थी। इसके दो हफ्ते बाद 17 वर्षीय टी ने लेन ने आहायो के कारडन हाई स्कूल में ताबड़तोड़ गोलियां चलाईं, जिसमें दो की मौत हुई, तीन घायल हुए। 16 अप्रैल 2007 को 27 साल के एयूंग ज्यूई को ने स्टूडेंट्स जमेट्री में 32 लोगों को मौत की नींद सुला दिया। इस घटना की जितनी निन्दा की जाए कम है। हम प्रभावित मां-बाप को बताना चाहते हैं कि उनके दुख में हम भी शरीक हैं।



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