Published on 21 December, 2012
देश को हिलाकर रख देने वाली गैंगरेप की घटना के बाद जागी सरकार ने राजधानी में ऐसी घटनाएं रोकने के लिए उठाए गए कुछ कदमों की घोषणा की है। लेकिन इन कदमों के पीछे दीर्घकालीन सोच की बजाय आम जनता का आक्रोश शांत करने की जल्दबाजी ज्यादा दिखती है। इनमें निजी बसों में संचालन को पारदर्शी बनाने से लेकर दिल्ली में पीसीआर की संख्या बढ़ाने और उन्हें जीपीएस से सुसज्जित करने जैसे उपाय शामिल हैं। गृह मंत्रालय और दिल्ली पुलिस के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ लम्बे विचार-विमर्श के बाद बुधवार को गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने संसद में इन कदमों का ऐलान किया। सरकार फायर फाइटिंग करती ज्यादा दिख रही बनिस्पत गम्भीरता से इस संवेदनशील मुद्दे को कारगर ढंग से सुलझाने में। चूंकि इस घटना में इस्तेमाल बस में काले शीशे और पर्दे लगे थे, इसलिए दिल्ली में निजी बसों और व्यावसायिक वाहनों में काले शीशों व पर्दे लगाने पर रोक लगा दी गई है। नियमानुसार घटना के वक्त इस बस को मालिक के पास होना चाहिए था, लेकिन यह ड्राइवर के पास थी, इसलिए ऐसी तमाम बसों का गलत इस्तेमाल रोकने की जिम्मेदारी अब मालिकों पर डाल दी गई है। चलती बस में हो रहे अपराध को रोकने में पीसीआर वैन की नाकामी को देखते हुए रात में ऐसी बसों में लाइट जलाए रखने के निर्देश भी जारी किए गए हैं। तात्कालिक उपायों से जरा-सा आगे बढ़ते हुए शिंदे ने कहा कि राजधानी में चलने वाली सभी बसों के चालकों और हेल्परों का दिल्ली पुलिस सत्यापन करेगी। इसके बिना चलने वाली बसों को जब्त कर लिया जाएगा। सड़कों पर दिल्ली पुलिस की उपस्थिति बढ़ाने के लिए उसके बेड़े में पीसीआर वैन की संख्या बढ़ाई जाएगी। इन उपायों से असंतुष्ट भाजपा के वरिष्ठ नेता वेंकैया नायडू ने जानना चाहा कि सरकार ने दुष्कर्मियों को मौत की सजा दिलाने के लिए क्या कदम उठाए हैं? संसद के दोनों सदनों में दुष्कर्मियों को मौत की सजा देने की मांग की गई थी। इसके जवाब में शिंदे ने गत चार दिसम्बर को लोकसभा में पेश अपराध कानून संशोधन विधेयक का हवाला दिया। दुख तो इस बात का है कि लोकसभा में पेश आपराधिक कानून संशोधन विधेयक 2012 में भी बलात्कारियों को मौत की सजा देने का प्रावधान नहीं किया गया है। इसमें अधिकतम आजीवन कारावास की सजा का प्रावधान है, वह भी जब एसिड से हमला किया गया हो या रविवार की रात वाली पीड़िता की तरह मार-मार कर अधमरा कर दिया गया हो। जब-जब बलात्कार की घटना होती है, तब-तब बलात्कारियों को मौत की सजा देने की मांग होती रही है और सरकार की तरफ से भी बयान आते हैं कि सरकार कठोर से कठोर कदम उठाएगी, लेकिन पिछले कई बार से जब भी आपराधिक कानून में संशोधन हुए हैं, उनके नट-बोल्ट ही कसे गए हैं पर अंग्रेजों के जमाने के इंडियन पिनल कोड 1860 में आमूलचूल परिवर्तन नहीं किया गया है। गत चार दिसम्बर को लोकसभा में गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे द्वारा इसके लिए क्रिमिनल लॉ अमेंडमेंट बिल 2012 में अपराधियों को कड़ी सजा देने का प्रावधान तो किया गया है लेकिन मौत की सजा देने का साहस शिंदे भी नहीं जुटा पाए। हमें दुख से कहना पड़ता है कि सरकार फायर फाइटिंग ज्यादा कर रही है बनिस्पत इस अत्यंत गम्भीर समस्या को कारगर ढंग से निपटाने के।
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