Wednesday 12 December 2012

कर्नाटक में बुरी फंसी भाजपा ः इधर पुंआ तो उधर खाई


 Published on 12 December, 2012
अनिल नरेन्द्र
दक्षिण भारत में भाजपा को पहली बार सत्ता का सुख दिलाने वाले कद्दावर लिंगायत नेता बीएस येदियुरप्पा के अंतत पार्टी से बगावत कर नई पार्टी के ऐलान के बाद कर्नाटक की भाजपा सरकार पर अस्थिरता के बादल मंडराने लगे हैं। आज एक बार फिर कर्नाटक में भाजपा अपने को दोराहे पर खड़ा पा रही है। आज जब पूरे देश में संभावित सियासी तस्वीर की बात हो रही है और भाजपा केन्द्र में सत्ता में आने का सपना देख रही है, ऐसे समय में कर्नाटक में उसकी सरकार के भविष्य को ही लेकर अटकले लगने लगी हैं। रविवार को येदियुरप्पा की कर्नाटक जनता पार्टी की रैली में बीजेपी के 13 विधायकों के शामिल होने के बाद खलबली मच गई। 224 सदस्यों वाली विधानसभा में भाजपा के 118 सदस्य हैं जबकि कांग्रेस के 71, जेडीएस के 26 और 7 निर्दलीय विधायक और दो पद रिक्त हैं। भाजपा से 13 विधायकों के निकल जाने के बाद उसकी संख्या 105 ही रह जाएगी। यह बहुमत के आंकड़े से काफी कम है। जहां कर्नाटक में भाजपा की दुविधा यह है कि बागी अपने ऊपर कार्रवाई करने की पार्टी नेतृत्व को खुली चुनौती दे रहे हैं वहीं पार्टी को यह पता है कि यदि अनुशासन का डंडा चलाया तो सरकार का गिरना तय है। पार्टी के एक वरिष्ठ नेता के अनुसार चूंकि कर्नाटक विधानसभा के चुनाव अपैल माह में हो सकते हैं ऐसे में यदि विधायकों के खिलाफ पार्टी कोई कार्रवाई करती है तो यह आग में घी डालने जैसा ही होगा। यही नहीं अनुशासनात्मक कार्रवाई करने पर बागियों की संख्या भी बढ़ेगी और उनकी ताकत भी। यदि पार्टी कोई कार्रवाई नहीं करती है तो इसका संदेश न सिर्प कर्नाटक बल्कि पूरे देश में पार्टी कार्यकर्ताओं के बीच गलत जाएगा। दिलचस्प बात यह है कि कर्नाटक ऐसा राज्य है जिसने दक्षिण भारत की राजनीति में भाजपा की पभावी पैठ की सम्भावना को जमीन दी थी पर भ्रष्टाचार और भितरघात ने पार्टी की इस संभावना को कुमलाहकर रख दिया। कर्नाटक में भाजपा एक तरह से उसी तरह की क्षेत्रवादी अस्मिता की राजनीति से जूझ रही है जिस तरह आंध्र पदेश में कांग्रेस। भाजपा की कठिनाई यह है कि कर्नाटक में येदियुरप्पा को साथ लेकर चलने की दरकार तो उसे समझ में आती है पर इसकी अब कोई गुंजाइश नहीं बची है। केन्द्र में भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यूपीए सरकार को घेरने को लेकर कर्नाटक की स्थिति पहले ही पार्टी को काफी नुकसान पहुंचा चुकी है। दूसरी ओर येदियुरप्पा के बगावती तेवरों के साथ मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार कितने दिन और अपनी सरकार चला सकते हैं? अगले कुछ दिन कर्नाटक की राजनीति में काफी दिलचस्प हो सकते हैं। इस बीच संभव है कि मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार खुद ही विधानसभा भंग करने की सिफारिश कर दें, क्योंकि ऐसी कयासबाजी चल रही है। यह अहम फैसला किसी भी समय लिया जा सकता है। अगर शेट्टार विधानसभा भंग कर देते हैं तो एक ओर पार्टी और सरकार पूरी तरह अगले छह महीने में होने वाले चुनाव पर फोकस कर सकेगी और किसी भी समय सरकार के गिरने का खतरा भी टल जाएगा। इसके उलट येदियुरप्पा की अगुवाई वाली कर्नाटक जनता पार्टी (कजपा) अब सीधे भाजपा के खिलाफ मोर्चा खोलकर राज्य में समर्थन और संगठन के लिए अपनी जमीन को मजबूत करना चाहेगी। हालांकि भाजपा नेतृत्व अब भी डैमेज कंट्रोल करना चाहेगा और उम्मीद करेगा कि कुछ और समय निकल जाए।

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