Friday 11 January 2013

16 दिसम्बर का हादसा ऑटो व डीटीसी बसें न मिलने के कारण हुआ

  
 Published on 11 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
16 दिसम्बर की रात को वसंत विहार में जो गैंगरेप का हादसा हुआ उसका एक प्रमुख कारण था दिल्ली में इन ऑटो वालों की मनमानी और तानाशाही और पब्लिक ट्रांसपोर्ट जिसमें बसें प्रमुख है, का फेल्यिर। वह अभागी लड़की अनामिका अपने मित्र के साथ इन ऑटो वालों से गिड़गिड़ाती रही कि हमें अमुक स्थान पर ले चलो पर एक भी ऑटो वाला तैयार नहीं हुआ। रात को अकसर यही देखा गया कि अव्वल तो ऑटो वाला जहां आप जाना चाहते हैं वहां जाने को तैयार नहीं होता और अगर तैयार होता भी है तो इतने अनाप-शनाप पैसे मांग लेते हैं कि आप उसके लिए तैयार हो ही नहीं सकते। रहा सवाल बसों का तो सरकार और प्रशासन दावा भले ही कुछ करे पर रात 10 बजे के बाद इक्का-दुक्का ही बस मिलती है। सबसे दुखद पहलू यह है कि न तो इन ऑटो वालों पर कोई लगाम कसी जा रही है और न ही  बसों के क्षेत्र में कुछ ठोस किया जा रहा है। परिवहन नियमों को ताक पर रखकर तमाम रूटों पर चलना आज अधिकतर ऑटो चालकों की रोजमर्रा की आदतों में शुमार हो गया है। ऐसे में मुसाफिरों को बेहद दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है। आलम यह है कि हजारों ऑटो ऐसे हैं जिनके मीटर खराब पड़े हैं। ऐसे में चालकों द्वारा यात्रियों से मुंहमांगा किराया वसूला जाता है। इतना ही नहीं कई चालक तो शाम से ही नाइट चार्ज वसूलना शुरू कर देते हैं। कार्रवाई के अभाव में ऐसे चालकों के हौसले बुलंद होते जा रहे हैं। जब यात्रियों द्वारा परेशान होने पर ऐसे ऑटो चालकों की शिकायत हैल्पलाइन नम्बर पर की जाती है तो मामले को लेकर कोई संतोषजनक जवाब नहीं मिलता है। यातायात पुलिस भी ऐसे ऑटो चालकों को लेकर गम्भीर नजर नहीं आती। गैंगरेप के बाद हुई किरकिरी से परेशान डीटीसी ने जहां आनन-फानन में अपनी डैड प़ड़ी जीरो बस सेवा को न केवल जिन्दा कर उसमें होमगार्ड जवान तैनात कर दिए हैं। वहीं रात्रि 10 बजे तक चलने वाली बसों की ओर कोई ध्यान नहीं दिया गया है। लेट नाइट की बसें आज भी लोगों को समय पर नहीं मिलतीं और यह बात महिलाओं को ज्यादा अखरती है। उन्होंने केवल बस के इंतजार में स्टैंड पर खड़ा रहना पड़ता है बल्कि अकेला होने पर मनचलों की छींटाकशी भी झेलनी पड़ती है। अधिकांश सरकारी और निजी संस्थानों में कार्यरत महिलाकर्मी सुबह सात से 10 बजे के बीच घर से निकलती हैं और जिनकी ड्यूटी सायं छह बजे से 10 बजे के बीच होती है, को बसों के लिए घंटों स्टाप पर इंतजार करने के लिए मजबूर होना पड़ता है। भुगतभोगी महिलाओं का कहना है कि किसी रूट की बसें जहां लगातार आ जाती हैं वहीं कई एक रूटों पर तो घंटों तक बसों के दर्शन नहीं होते। ऐसे में डीटीसी बस नहीं मिलने पर उन्हें मजबूरन निजी बसों से गंतव्य तक जाना पड़ता है। ऐसे में कब किसी महिला के साथ क्या अनहोनी हो जाए, कुछ कहा नहीं जा सकता। दिल्ली के अधिकांश रूटों पर बसों की यही समस्या है। सरकार, प्रशासन और अदालतों को इस मूल समस्या पर ध्यान देना होगा। अगर यह सिलसिला यूं ही चलता रहा तो न केवल महिला विरोधी अपराध बल्कि अन्य किस्म के अपराध रुकने से रहे। पता नहीं दिल्ली सरकार का परिवहन विभाग कब जागेगा?

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