Sunday 6 January 2013

दामिनी के दोस्त का सनसनीखेज इंटरव्यू ः व्यवस्था पर उठे गम्भीर सवाल


 Published on 6 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
दिल्ली पुलिस ने जो चार्जशीट गैंगरेप केस में दाखिल की है उसमें हालांकि पूरी घटना का तो जिक्र है जो 16 दिसम्बर को उस अभागी छात्रा के साथ घटी पर  पुलिस ने यह भी लिखा है कि आरोपियों ने चलती चार्टर्ड बस में फिजियोथेरेपिस्ट युवती से न केवल सामूहिक दुष्कर्म ही किया बल्कि दरिन्दगी की हदें भी पार कर दीं। कुछ तथ्य इतने वीभत्स हैं कि उनको लिखा नहीं जा सकता। हमने हर आरोपी की भूमिका का विस्तार से वर्णन किया है। उस बेचारी बच्ची के साथ क्या कुछ हुआ होगा, सोचकर भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं। एक मनुष्य दूसरे मनुष्य से ऐसा बहशियाना बर्ताव कर सकता है, कल्पना भी नहीं की जा सकती। पूरे घटनाक्रम का चश्मदीद (एकमात्र) गवाह युवती का दोस्त घटना के बाद पहली बार शुक्रवार रात को जी न्यूज पर पूरी खौफनाक दास्तान सुनाने आया। एंकर सुधीर चौधरी ने बड़ी समझदारी और परिपक्वता से इस इंटरव्यू को सम्भाला। जिस तरीके से इस अत्यंत नाजुक विषय को सुधीर ने हैंडल किया है मैं उनकी भी तारीफ करना चाहता हूं। युवती के दोस्त ने राजधानी में पुलिस, प्रशासन, अस्पताल, पब्लिक सबकी पोल खोलकर रख दी। सबसे दुखद पहलू तो यह है कि वह लड़की जीना चाहती थी। मेरी दोस्त चाहती थी कि इन दरिन्दों को जिन्दा जला दिया जाए। बातचीत के दौरान उस लड़के ने घटनाक्रम पर पुलिस-अस्पताल व समाज के रवैये को लेकर कई सवाल खड़े किए। उसने बताया कि मुझे और मेरी दोस्त को मरा समझकर दरिन्दों ने फ्लाइओवर के नीचे बिना कपड़ों के फेंक दिया। इसके बाद जब उन्होंने यह देखा कि इनमें अभी थोड़ी जान बची है तो दरिन्दों ने हमें बस से कुचलने की भी कोशिश की, लेकिन हम दोनों उससे बच गए। हमारे कपड़े तक उतार लिए थे ताकि उनके कुकर्म का कोई सबूत न रहे। हम बिना कपड़ों के ढाई घंटे तक सड़क पर पड़े रहे। इस दौरान तीन पीसीआर वैन तो आईं लेकिन सभी इस विवाद में उलझी रहीं कि यह ज्यूरिसडिक्शन किस थाने की बनती है? हम राहगीरों से मदद मांगते रहे लेकिन किसी ने हमें शरीर ढकने के लिए कपड़ा तक नहीं दिया, उठाकर अस्पताल ले जाना तो बहुत दूर की बात थी। शायद उन्हें डर था कि वे रुकेंगे तो पुलिस-अदालतों के चक्कर में फंस जाएंगे। लड़के के मुताबिक वह बार-बार पुलिस वालों के सामने चिल्ला रहा था कि एम्बुलेंस बुलाओ हमें अस्पताल लेकर चलो। इसके उलटे, पुलिस वाले यह तय नहीं कर पा रहे थे कि यह केस किस थाने का है? आखिर मैंने अपनी मित्र को एक पीसीआर वैन में डाला और वह हमें किसी नामी प्राइवेट अस्पताल की बजाय सफदरजंग (सरकारी) अस्पताल में ले गए। किसी भी पुलिस वाले ने खून से लथपथ लड़की को उठाने में मदद नहीं की। इस बीच लड़के ने कई बार पुलिस वालों को उन्हें कपड़े देने की बात कही लेकिन कपड़े नहीं दिए गए। सफदरजंग अस्पताल में उसका इलाज करना तो दूर रहा, उसे तन ढकने के लिए कम्बल तक नहीं दिया गया। डाक्टरों और सफाई कर्मियों से उसने कई बार कहा कि मुझे कम्बल या और कोई कपड़ा दे दें। मुझे ठंड लग रही है। मगर सब उसे टालते रहे। करीब डेढ़ घंटे तक वह बिना कपड़ों के ही पड़ा रहा। ऐसा नहीं था कि उसे डाक्टर देख नहीं रहे थे, मगर कोई उसकी मदद नहीं कर रहा था। बाद में मैंने एक लड़के से मोबाइल फोन लेकर अपने रिलेटिव को फोन किया। मैंने उन्हें यह नहीं बताया कि हमारे साथ क्या हुआ है मैंने केवल इतना कहा कि मेरा एक्सीडेंट हो गया है ताकि वह घबराएं न और अविलम्ब पहुंच जाएं। अगर पुलिस हमें पास के किसी अच्छे प्राइवेट अस्पताल जैसे अपोलो, फोर्टिस में ले जाती तो शायद मेरी मित्र आज जिन्दा होती पर बजाय इसके पुलिस हमें सफदरजंग अस्पताल ले गई। इस प्रक्रिया में करीब ढाई घंटे का वक्त लग गया। हमें जहां फेंका गया था वहां से सफदरजंग अस्पताल बहुत दूर था, फिर भी पीसीआर हमें वहां ले गई। युवक के अनुसार वह वारदात की रात से ही स्ट्रेचर पर था। 16 से 21 दिसम्बर तक वह थाने में ही रहा। इस दौरान भी पुलिस ने उसका उपचार नहीं कराया। लड़के के मुताबिक पुलिस की ओर से उसे आदेश मिले थे कि वह किसी से इस केस के बारे में सम्पर्प न करे वरना केस कमजोर होगा। अभागी लड़की के दोस्त के इस सनसनीखेज बयान से दिल्ली पुलिस, सफदरजंग अस्पताल व जनता सभी एक्सपोज हो गए हैं। इस बयान ने तो पुलिस के दावों पर ही सवालिया निशान लगा दिए हैं। तीन-तीन पीसीआर वैन दोनों घायलों के पास खड़ी रहीं, लेकिन पुलिस वाले उन्हें किसी अस्पताल में ले जाने के बजाय थाना तय करने में ही बहस करते रहे। अब तक पुलिस कमिशनर और बाकी मातहत अफसर दावा करते रहे थे कि वारदात की खबर मिलने पर पुलिस ने बिना देरी किए दोनों घायलों को तुरन्त अस्पताल पहुंचाया था। अफसरों ने तो यहां तक दावा किया था कि अगर उन्हें जल्दी अस्पताल न ले जाते तो उस रात दोनों जीवित न बचते। लड़की के दोस्त ने यह जानकारी दी है कि पुलिस ने उसे मीडिया से बात न करने की हिदायत दी थी। पुलिस के दावों के उलट युवक ने बताया कि उन दोनों को फ्लाइओवर के नीचे फेंके जाने के ढाई घंटे बाद उन्हें अस्पताल ले जाया गया था। पीसीआर वैनों ने बेशकीमती वक्त इस बहस में गुजार दिया कि केस किस थाने का है। लड़की बुरी तरह जख्मी हालत में सड़क किनारे झाड़ियों में पड़ी रही। उस दौरान उसका बहुत ज्यादा खून बह रहा था। आखिरकार मैंने ही अपनी दोस्त को किसी तरह पीसीआर वैन में लिटाया। दूसरी सीट पर मैं बैठा। युवक ने बताया कि पब्लिक के लोग भी हमारी मदद नहीं कर रहे थे। कारों और बाइक पर वहां से गुजर रहे लोग कुछ देर तक रुककर हमारी जख्मी हालत देखते और वहां से चले जा रहे थे। अब लोग कैंडल मार्च निकाल रहे हैं, लेकिन उस वक्त हमारी मदद कोई नहीं कर रहा था। युवक ने लोगों से अपील करते हुए कहा कि जो मुहिम शुरू हुई है वह जारी रहनी चाहिए। इस मुहिम की वजह से उसके मामले पर काफी फर्प पड़ा है। हालांकि इसके साथ-साथ लोगों को एक-दूसरे की मदद भी करनी चाहिए। सच्चाई दिखाने की कीमत भी जी न्यूज को भुगतनी पड़ेगी। इंटरव्यू प्रसारित होने के कुछ ही देर बाद पुलिस ने जी न्यूज चैनल के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया। यह मामला धारा 228(ए) के तहत दर्ज किया गया है, जो दुष्कर्म जैसे मामलों में पीड़िता की पहचान उजागर करने से जुड़ी है। पुलिस ने जीपीएस रिकार्ड्स का हवाला देकर यह आरोप गलत बताया है कि पीसीआर देर से पहुंची थी। साथ ही कहा कि अस्पताल 24 मिनट में पहुंचा दिया  गया था। दामिनी के दोस्त का यह सनसनीखेज इंटरव्यू जरूर रंग लाएगा और उम्मीद करते हैं कि व्यवस्था में भी सुधार होगा।

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