Thursday, 3 January 2013

एक चिंगारी भी तख्ता पलट के लिए काफी होती है


 Published on 3 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
17 दिसम्बर, 2010 से पहले तक दुनिया में कोई तारिक अल तैयब मुहम्मद बजूजी को कोई नहीं जानता था। बजूजी ट्यूनिशिया के शहर सिदी बाउजिद में फल बेचता था। पुलिस के उत्पीड़न और भ्रष्टाचार से परेशान होकर उसने आग लगा ली या यूं कहें कि ट्यूनिशिया में कांति को आग लगा दी। बजूजी चार जनवरी 2011 को यह दुनिया छोड़ गया लेकिन इसके बाद ट्यूनिशिया के राष्ट्रपति जैनुल आबदीन बेन अली दस दिन भी सत्ता में नहीं टिक पाए। उनके 23 साल के शासन का अंत 14 जनवरी 2011 को हो गया। राष्ट्रपति बेन अली ही नहीं बजूजी की मौत ने मिस्र, बहरीन, लीबिया, यमन, अल्जीरिया सहित पूरे अरब क्षेत्र में विरोध का वसंत शुरू कर दिया। भारत में एक बिल्कुल निम्नवर्गीय बिटिया की मौत ने भी शायद ऐसी चिंगारी लगा दी कि शासकों को देश की जनता की आवाज के सामने झुकना पड़े। अनामिका, दामिनी या जो कुछ नाम उस अभागी का रहा हो ने भारत को तो हिलाया ही साथ-साथ सभ्य दुनिया को हिला कर रख दिया है। संयुक्त राष्ट्र संघ से लेकर तमाम विदेशी मीडिया में यह मामला छाया रहा। संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार उच्चायुक्त नवी पिल्लै ने दिल्ली सामूहिक बलात्कार की पीड़िता की मौत पर दुख जताते हुए भारत सरकार से आग्रह किया कि ऐसी घटनाओं को रोकने के लिए देश की कानून व्यवस्था को मजबूत बनाया जाए। ब्रिटिश अखबार द डेली मेल ने अनामिका के शव को स्ट्रैचर पर लेते हुए अस्पताल कर्मियों की फोटो लगाई है। साथ में एक बैनर वाली फोटो लगाई है जिसमें सोनिया, मनमोहन और शीला दीक्षित से इस्तीफा देने को कहा गया है। न्यूयार्प टाइम्स ने शीर्षक लगाया है विक्टम ऑफ गैंगरेप इन इंडिया डाइज दैट ग्लोवनाइज्ड इंडिया। भारत में गैंगरेप पीड़िता की मौत जिसने भारत को हिला दिया। अखबार ने लिखा है कि पीड़िता ने शांतिपूर्वक आखिरी सांस ली। उसकी मौत उन खतरों के पति चेतावनी है जिसका सामना भारत में महिलाएं कर रही हैं। वाशिंगटन पोस्ट ने विशेषज्ञों के हवाले से लिखा कि इस घटना से आम तौर पर उदासीन रहने वाले भारतीयों को झकझोर दिया। इस घटना के पति जनाकोश, बदलती जीवन शैली, सोशल मीडिया के उपयोग और मुखर मध्य वर्ग के कारण भी बढ़ा। इन्ही कारणों के चलते पिछले साल भ्रष्टाचार के खिलाफ आंदोलन को सफलता मिली थी। दिल्ली में 23 वर्षीय अनामिका की घटना ने आम भारतीयों का ही नहीं देश का भी सिर नीचा किया है। पड़ोसी चीन के मीडिया को लेकर भारत के समाज और सिस्टम पर एक तरह से ताना कसा है। अखबार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है कि इस तरह की घटनाओं से भारतीय लोकतांत्रिक पणाली और राष्ट्र की अक्षमता को दिखाता है। रिपोर्ट में चीनी विश्लेषक के हवाले से लिखा है कि भारत आर्थिक विकास में चीन से करीब एक दशक पीछे है और सामाजिक क्षेत्र और विकास में तीन दशक पीछे चल रहा है। चीन के अखबार ग्लोबल टाइम्स ने लिखा है भारत में महिलाओं का उत्पीड़न चौंकाने वाला है। नई दिल्ली में 2011 में बलात्कार के 572 मामले हुए और पिछले 40 सालों में इनकी संख्या में सात गुना बढ़ोतरी हुई है। कभी-कभी शासक जनता के बीच उबल रहा ज्वालामुखी को पहचानने से भूल कर जाता है। एक छोटी सी चिंगारी ऐसी आग भड़का सकती है जिससे बहुत दूरगामी परिणाम होते हैं।




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