Saturday 19 January 2013

हर आम-ओ-खास क्या पुलिस सुरक्षा का हकदार है?


 Published on 19 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
वैसे देखा जाए तो सुप्रीम कोर्ट को यह सवाल पूछने की जरूरत नहीं पड़नी चाहिए थी पर जब सरकार-प्रशासन इतना लापरवाह हो जाए तो पब्लिक सेफ्टी के लिए माननीय अदालत को पूछना ही पड़ा कि सांसदों और विधायकों सहित तमाम ऐसे व्यक्तियों को भी पुलिस सुरक्षा क्यों दी जा रही है जिनकी सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है? न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने कहा कि संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों या ऐसे व्यक्तियों  जिनकी जिन्दगी को खतरा हो, को  पुलिस सुरक्षा प्रदान की जानी चाहिए। न्यायाधीशों ने कहा, `राष्ट्रपति, उपराष्ट्रपति, प्रधानमंत्री, लोकसभा अध्यक्ष, प्रधान न्यायाधीश, संवैधानिक पदों पर आसीन व्यक्तियों और राज्यों में ऐसे ही समकक्ष पदों पर आसीन व्यक्तियों को सुरक्षा प्रदान की जा सकती है। लेकिन हर आम और खास व्यक्ति को लाल बत्ती की गाड़ी और सुरक्षा क्यों?' स्थिति यह है कि मुखिया और सरपंच भी लाल बत्ती की गाड़ी लेकर घूम रहे हैं। न्यायाधीशों ने राज्यों में लाल बत्तियों की गाड़ियों के दुरुपयोग को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान यह आदेश दिए। न्यायाधीशों ने कहा कि आखिर सरकार इस व्यवस्था को खत्म करने के  बारे में कोई फैसला करके यह स्पष्ट क्यों नहीं करती कि लाल बत्ती कौन इस्तेमाल कर सकता है? दिल्ली पुलिस बृहस्पतिवार को उस समय सुप्रीम कोर्ट में हंसी की पात्र बन गई जब उसने दलील दी कि सरकार में उच्च पदों पर आसीन व्यक्तियों को स्पष्ट खतरे के कारण नहीं बल्कि निडर और निष्पक्ष होकर निर्णय करने की सुविधा देने के लिए प्रदान की जाती है। दिल्ली पुलिस ने न्यायालय में दाखिल आठ पेज के हल्फनामे में यह  बात कही। बेतुकी  इस दलील पर जजों ने पुलिस को आड़े हाथों लेते हुए सवाल किया, `सुरक्षा के कारण हमारे फैसले कैसे निडर हो सकते हैं?' क्या यही अधिकारी की समझ का स्तर है? यह निश्चित ही आईपीएस अधिकारी होगा और उसने आईपीसी और सीआरपीसी ही पढ़ी होगी। सुप्रीम कोर्ट को इस मामले में इसलिए दखल देना पड़ा क्योंकि केंद्र और राज्य सरकारें सुरक्षा कारणों से कम और राजनीतिक कारणों से ज्यादा मनमानी करने पर तुली हुई हैं। विधायकों-सांसदों को तो छोड़िए रसूखदार नेताओं यहां तक कि बैड कैरेक्टर तक के लोगों को सुरक्षा मिली हुई है। दरअसल आज यह एक तरह का स्टेटस सिम्बल बन गया है। मैंने तो ऐसे नजारे भी देखे हैं कि साइकिल नेता चला रहा है और पीछे बन्दूकधारी पीएसओ बैठा है और यह सब आम जनता की सुरक्षा की कीमत पर हो रहा है। दुनिया में शायद ही कोई ऐसा मुल्क हो जहां नेताओं को ऐसी सुरक्षा प्रदान की जाती हो? इससे इंकार नहीं  किया जा सकता कि महत्वपूर्ण पदों पर बैठे लोगों को सुरक्षा मिलनी ही चाहिए, लेकिन यह काम आम आदमी की सुरक्षा की कीमत पर बिल्कुल भी नहीं हो सकता। दुर्भाग्य से इस समय यही स्थिति है। यदि पंच से लेकर प्रधानमंत्री तक सभी महत्वपूर्ण पदों वाले लोग खुद को विशिष्ट समझने लगेंगे और इस नाते सरकारी सुरक्षा चाहेंगे तो आम आदमी की सुरक्षा का बेड़ा गर्प होना तय है। चाहिए तो यह कि केंद्र और राज्य सरकारें सुप्रीम कोर्ट की ओर से उठाए गए सवालों पर गम्भीरता से विचार करें और विशिष्ट व्यक्ति कौन है, इसकी पहले परिभाषा तय करें और प्रेट परसेप्शन अनुसार सुरक्षा प्रदान करें।

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