Saturday 12 January 2013

आइए मिलिए मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन विधायक ओवैसी से


 Published on 12 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
आज हम आपका परिचय मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन के विधायक अकबरुद्दीन ओवैसी से करवाते हैं। आंध्र प्रदेश विधानसभा में अपनी पार्टी के नेता सदन 42 वर्षीय ओवैसी पर चार मीनार इलाके में स्थित भाग्यलक्ष्मी मंदिर के विवाद को लेकर भड़काऊ भाषण देने का आरोप है। इसे लेकर उसके खिलाफ निर्मल के अलावा हैदराबाद और अन्य जगहों पर रिपोर्ट भी दर्ज हुई। दरअसल हैदराबाद में ओल्ड सिटी में करीब 40 साल से भी ज्यादा से ओवैसी परिवार का राजनीतिक दबदबा बना हुआ है। सलाउद्दीन ओवैसी द्वारा शुरू की गई मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन पार्टी ने हैदराबाद ओल्ड सिटी को अपना गढ़ बना रखा है। सलाउद्दीन ओवैसी की राजनीतिक विरासत को उनके दोनों  बेटे असउद्दीन और अकबरुद्दीन ओवैसी सम्भाल रहे हैं। खास बात यह है कि हैदराबाद के पुराने शहर से एमआईएम हमेशा कम से कम सात मुस्लिम विधायकों को विधानसभा भेजती रही है, लेकिन सांसद सिर्प ओवैसी परिवार के होते हैं। अकबरुद्दीन का यह भड़काऊ भाषण मैंने सुना और मेरे रौंगटे खड़े हो गए। मैं इन जनाब को पहचानता नहीं था, इसलिए मैंने पहले सोचा कि शायद यह पाकिस्तान में लश्कर-ए-तैयबा का वक्ता भारत के खिलाफ जहर उगल रहा है पर जब मुझे पता चला कि नहीं यह तो हमारा भाई हिन्दुस्तानी है और यह भाषण भी हैदराबाद का है तो मैं भौंचक्का रह गया। मैं उसके भाषण के बारे में कुछ भी बताना जरूरी नहीं समझता। समझ नहीं आता कि इस तरह का भड़काऊ, बेतुका भाषण उन्होंने दिया क्यों? वोट बैंक की राजनीति का स्तर किस हद तक गिर चुका है इस भाषण से पता चलता है। तालियों और नारों के साथ इस भाषण का स्वागत किया जाना भी आश्चर्य का विषय है। यानि इस कदर भाई-भाई में दुश्मनी पैदा की जा रही है और सद्भावना में जहर घोला जा रहा है। करीब एक पखवाड़े पहले ओवैसी ने अपने भाषण में भारतीय राष्ट्र राज्य, इसकी प्रशासन व्यवस्था, यहां तक कि इसकी न्याय प्रणाली को जिस तरह खुलेआम चुनौती दी थी, तभी अगर आंध्र सरकार व पुलिस प्रशासन इनके खिलाफ कार्रवाई कर लेता तो मामला यहां तक न बिगड़ता। लेकिन सरकार ने गिरफ्तारी तो दूर गैर जमानती धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज करने के बावजूद पुलिस ओवैसी को  बचाने का रास्ता देती रही। समय-समय पर सोशल मीडिया से नाराजगी जताने वाली सरकार को भी ख्याल नहीं आया कि ओवैसी का राष्ट्र विरोधी भाषण यू-ट्यूब व फेसबुक पर खुलेआम देखा, सुना जा रहा है। इस मामले में उतनी ही निन्दनीय उन स्वघोषित सैक्यूलर पार्टियों व उनके नेताओं की चुप्पी भी है जो सांप्रदायिक खतरे की आहट पाते ही मुखर हो उठते हैं। ऐसे लोगों का यह रवैया एक बार फिर साबित करता है सांप्रदायिकता के खिलाफ उनका कथित अभियान न सिर्प नकली है बल्कि वे सिर्प उन्हीं मामलों में आवाज उठाते हैं जो उनकी वोट बैंक की राजनीति में फिट बैठते हैं। ओवैसी का अपराध इसलिए भी स्वीकार्य नहीं है क्योंकि वह एक जन प्रतिनिधि हैं। ऐसे में यह जरूरी है कि भड़काऊ भाषण पर लगी धाराओं के अनुसार सजा तो वह भुगतें ही साथ-साथ उनकी विधानसभा सदस्यता भी सांप्रदायिक आग भड़काने के लिए खत्म की जाए। दूरदर्शिता बरतते हुए अगर आंध्र सरकार तत्काल कार्रवाई करती तो बिगड़ते माहौल से शायद बचा जा सकता था।

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