Friday, 18 January 2013

पाकिस्तान में मौलाना कादरी, ज्यूडिशियरी और पाक सेना की असल नीयत क्या है?



    Published on 18 January, 2013   
अनिल नरेन्द्र
 पाकिस्तान के अंदरूनी हालात, समीकरण इतनी तेजी से बदल रहे हैं कि समझना मुश्किल हो रहा है कि इस पड़ोसी देश में आखिर हो क्या रहा है? एक तरफ भारत से भारतीय जवानों के सिर कलम करने की घटना के बाद दोनों देशों में तनाव बना हुआ है और भविष्य को लेकर चिन्ता बनी हुई है वहीं रातोंरात पाकिस्तान की सियासत में एक मौलवी का राष्ट्रीय सीन पर आना और एक भूचाल की तरह पूरे देश को हिला देना, रही-सही कसर पाकिस्तान के सुप्रीम  कोर्ट ने पूरी कर दी है। अब तो यह सवाल पूछा जा रहा है कि क्या पाकिस्तान में उसी तरह की क्रांति होगी जैसी अरब देशों में हुई है? पाकिस्तान क्या `अरब बसंत' का नया पता है? मंगलवार को राजधानी इस्लामाबाद में सूफी धर्मावलंबियों ने धार्मिक नेता ताहिर उल कादरी के नेतृत्व में सरकार के इस्तीफे की मांग को लेकर जबरदस्त प्रदर्शन किया। पाकिस्तान की सड़कों पर एक क्रांतिकारी उबाल देखने को मिल रहा है। रातोंरात कनाडा से आठ साल बाद आए मौलाना ताहिर उल कादरी के पीछे लाखों पाकिस्तानी कैसे लग गए यह अपने आप में एक रहस्य का विषय है। यह मौलाना जो हमें आयतुल्ला खुमैनी की याद दिलाते हैं पिछले आठ सालों से कनाडा में रहते थे। पढ़े-लिखे, विद्वान, दोनों सुन्नियों और शियाओं से अपील करने वाले यह मौलाना किस मकसद से पाकिस्तान आए और क्या गुल खिलाएंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा पर फिलहाल उन्हें ऐसे समय भारी जन समर्थन मिल रहा है जब पाकिस्तान की न्यायपालिका और चुनी हुई सरकार में टकराव चरम सीमा पर है। ठीक उसी समय पाकिस्तान के सुप्रीम कोर्ट ने प्रधानमंत्री राजा परवेज अशरफ की 24 घंटे के भीतर गिरफ्तारी का आदेश दिया। अशरफ रेंटल पावर प्रोजेक्ट में करोड़ों रुपए के घोटाले के मुख्य आरोपी हैं। शीर्ष अदालत ने कई पूर्व मंत्रियों और पावर प्रोजेक्ट से जुड़े अधिकारियों की भी गिरफ्तारी का आदेश दिया है। दिलचस्प यह है कि इसे महज इत्तिफाक कहें कि जब पाकिस्तान में यह सब कुछ हो रहा है वहां सड़कों पर क्रांतिकारी उबाल है। मौलाना कादरी के इस्लामाबाद मार्च को वहां की अवाम का भारी समर्थन मिल रहा है। पाकिस्तान की शीर्ष अदालत जिस तरह से कड़े तेवर के साथ राष्ट्रहित की सर्वोच्चता को आगे रखते हुए कानून और संविधान की मदद से बड़े फैसले ले रही है। उसमें भविष्य के लिए बदलाव के बीज अवश्य हैं। पिछले साल जून में जब तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को प्रधानमंत्री पद के लिए अयोग्य करार दिया गया था और सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को मानने के लिए गिलानी को मजबूर होना पड़ा था, तभी यह लग गया था कि पाकिस्तान में आई यह न्यायिक सक्रियता मुल्क के बड़े बदलाव की सम्भावना को सम्भव बना रही है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा प्रधानमंत्री को तुरन्त गिरफ्तार करने के आदेश से पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के नेतृत्व में चल रही सरकार के सामने गम्भीर राजनीतिक दुविधा खड़ी हो गई है कि वह सुप्रीम कोर्ट के आदेश का पालन करे या अवहेलना? यदि पालन करती है तो सात महीने के अंतराल पर दूसरा प्रधानमंत्री अदालत की बलि चढ़ेगा। पिछले साल जून में तत्कालीन प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी को सुप्रीम कोर्ट के दबाव में इस्तीफा देना पड़ा था। इस बार तो सुप्रीम कोर्ट एक कदम और आगे बढ़ गया है और अदालत ने राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी के खिलाफ कार्रवाई करने का आदेश दिया है। यह आदेश पहले भी दिया गया था पर गिलानी ने यह कहते हुए मना किया था कि संवैधानिक रूप से राष्ट्रपति पद प्रधानमंत्री से बड़ा पद होता है। इसलिए वह उनके खिलाफ कार्रवाई के लिए अधिकृत नहीं हैं। आज जरदारी सरकार के खिलाफ पाक की अवाम, पाक सेना, पाक की ज्यूडिशियरी व मौलाना कादरी सभी एकजुट हो गए हैं। अब बात करते हैं मौलाना कादरी की। डॉ. कादरी तहरीक मिनहाज-उल-कुरान नामक पार्टी के प्रमुख हैं। वह लोकप्रिय बरेलवी समुदाय के मुखिया हैं। इस्लामी कानून में डाक्ट्रेट के डिग्री होल्डर कादरी पाकिस्तान और कनाडा की दोहरी सदस्यता लिए हुए हैं। वे 2005 में कनाडा चले गए थे। इससे पहले वह पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली के सदस्य थे, इस्तीफा देकर चले गए थे। अब सात-आठ साल बाद अचानक पाकिस्तान लौटे और रातोंरात अवाम के लीडर बन गए? मौलाना कादरी को इतना जन समर्थन कैसे मिल रहा है? क्या जो बातें यह आज कह रहे हैं उसी पर आगे भी कायम रहेंगे या इनका कोई हिडन एजेंडा है? परोक्ष रूप से तो पाक सेना और ज्यूडिशियरी ने कादरी की तारीफ की है। क्या यह पाक सेना के प्लांट हैं या फिर किसी विदेशी ताकत के? भारतीय कूटनीतिक विशेषज्ञों का मानना है कि पाकिस्तान के ताजा हालात देश को एक बार फिर सैन्य शासन की ओर ले जा रहे हैं। डॉ. कादरी की पांच प्रमुख मांगे हैं। पहली ः संसद और चारों विधानसभाओं को फौरन भंग किया जाए, दूसरी ः भ्रष्टाचार जड़ से खत्म होने तक चुनाव न हों, तीसरा ः चुनाव आयोग को भी भंग किया जाए, चौथी ः पार्टियों और सेना से सलाह कर अंतरिम सरकार बने और पांचवीं ः लोकतांत्रिक तानाशाही रोकने के लिए नए नियम बनें। एक पाकिस्तानी पत्रकार का विश्लेषण है कि कादरी का इसी समय आंदोलन करने के पीछे मकसद है कि पाकिस्तान में चुनाव टालना और अंतरिम सरकार सेना को देना। कादरी समझते हैं कि यह समय इसलिए उपयुक्त है क्योंकि सरकार भ्रष्टाचार के दल-दल में फंसी हुई है। खुद राष्ट्रपति जरदारी पर भ्रष्टाचार के मुकदमे चल रहे हैं। वैसे भी संसद का कार्यकाल समाप्त होने वाला है और नए चुनाव होंगे। सम्भव है कि मई-जून में होने वाले आम चुनाव टल जाएं। यह भी सम्भव है कि सेना के समर्थन से कामचलाऊ सरकार बन जाए और कादरी और बड़ी ताकत बनकर उभरें। भारत को पांव पूंक-पूंककर रखने होंगे। पाकिस्तान में अस्थिरता भारत के हक में नहीं है। पाकिस्तान में अस्थिरता होगी तो वहां से भारत विरोधी गतिविधियों को ही बढ़ावा मिलेगा। पाकिस्तानी सेना भारत के साथ संबंध सुधारने में कोई दिलचस्पी नहीं रखती। खतरा यह भी है कि इस अस्थिरता का फायदा कहीं ये जेहादी गुट न उठा लें। पाकिस्तान का एटमी जखीरा सुरक्षित हाथों में रहे यह चिन्ता सिर्प भारत को ही नहीं अमेरिका व पश्चिमी देशों को भी  है। कुल मिलाकर आने वाले कुछ दिन न केवल पाकिस्तान के लिए ही चुनौतीपूर्ण हैं बल्कि भारत सहित पूरी दुनिया के लिए भी हैं।



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