Published on 13 January, 2013
अनिल नरेन्द्र
देश की जनता में हा-हाकार मचा हुआ है, लोग सड़कों पर उतरे हुए हैं, सेना में विद्रोह की स्थिति बनी हुई है और यह यूपीए सरकार और कांग्रेस की सेहत पर कोई असर नहीं पड़ रहा। दिल्ली गैंगरेप केस के खिलाफ आज भी जनता जंतर-मंतर पर बैठी हुई है। अदालतें सख्त रवैया अख्तियार किए हुए हैं। कमरतोड़ महंगाई के चलते सरकार नई डोज देने को तैयार है। रही-सही कसर पुंछ के मेंढर सेक्टर में दो भारतीय सेना के जवानों के पाकिस्तानी सेना द्वारा सिर कलम किए जाने से पूरी हो गई है। दुख की बात तो यह है कि यूपीए सरकार और उनके थिंक टैंक को लगता है कि देशभर में जो भी आंदोलन हो रहे हैं उनके पीछे उन शक्तियों का हाथ है जो इस सरकार और कांग्रेस पार्टी को कमजोर करना चाहती हैं और सारे आंदोलन सियासी हैं। सरकार को यह विपक्ष की सोची-समझी चाल लग रही है उसे बदनाम करने के लिए। पार्टी के थिंक टैंक का यह मानना है कि भले ही दिखने में ऐसा लग रहा हो जैसे यह आम आदमी का गुस्सा है और बिना किसी के बुलावे पर सड़क पर आ रहा है, लेकिन ऐसा नहीं, इन सबके पीछे एक सोची-समझी रणनीति बनाकर देशी और विदेशी शक्तियां सरकार और कांग्रेस पार्टी के खिलाफ करवा रही हैं। एक वरिष्ठ कांग्रेसी रणनीतिकार का कहना है कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व इस बात से भलीभांति परिचित है कि यह सब एक ही जंजीर की कड़ियां हैं जो अलग-अलग तरह से कांग्रेस विरोध के नाम पर सामने आ रही हैं। उन्होंने बताया कि पहले अन्ना हजारे, फिर बाबा रामदेव के आंदोलन हुए, इसके बाद केजरीवाल भ्रष्टाचार का झुनझुना बजाकर सड़क पर उतर आए। इसी के समानांतर पहले कर्नाटक में फिर उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश और अब महाराष्ट्र में सांप्रदायिकता की आंच जलाई जा रही है। देश की जनता को परखा जा रहा है कि वह क्या चाहती है। कुछ विदेशी शक्तियां देश की आंतरिक शक्तियों के साथ मिलकर यह खेल खेल रही हैं। उन्होंने इस बात का भी इशारा किया कि जल्द ही केंद्र और राज्य सरकारें इस बात की पड़ताल और सबूत इकट्ठा करेंगी। वह मशहूर कहावत याद आती हैöरोम जल रहा है और नीरो सो रहा है। यह कहावत आज सरकार और कांग्रेस पार्टी पर फिट बैठती है। मामले चाहे बलात्कारों और हत्याओं के हों, चाहे महंगाई का हो, चाहे कानून व्यवस्था का या देश की साख का, हर मोर्चे पर सरकार फेल होती नजर आ रही है। बच्चियों से बलात्कारों का मामला थम ही नहीं रहा। जनता के आक्रोश को समझने के बजाय उसे राजनीतिक रंग दिया जा रहा है। साल शुरू होते ही जनता को इस सरकार ने महंगाई की एक और खुराक बतौर नए साल के तोहफे के रूप में दे दी है। सीएनजी के दामों में 1.55 रुपए और एनसीआर में 1.80 रुपए प्रति किलो का इजाफा हो चुका है। रेल बजट पेश होने के पूर्व करीब डेढ़ महीने पहले सरकार ने बुधवार को अचानक दूसरे दर्जे से लेकर वातानुकूलित दर्जे तक के यात्री किराये में इजाफे का ऐलान कर दिया है। सफाई यह दी जा रही है कि 10 साल बाद यह किराये बढ़ाए जा रहे हैं। यह बात तो हमें समझ आती है पर आम आदमी जिस दूसरे दर्जे से सफर करता है उसमें इजाफे से बचने की कोशिश होनी चाहिए थी। बेशक यह प्रथम श्रेणी के यात्रियों से कवर कर लिया जाता। साल 2012 के जाते-जाते दिल्ली के वसंत विहार में दुष्कर्म की घटना से कांग्रेस के सियासी सरोकारों की नींद टूटनी चाहिए। सड़कों पर इस घटना के खिलाफ उतरी भीड़ न तो किसी सियासी पार्टी से संबंध रखती है और न ही किसी विदेशी ताकत के इशारे से। आज पूरे देश में खासकर महिलाओं में इतनी असुरक्षा की भावना है कि जनता को समझ नहीं आ रहा कि वह अपना गुस्सा प्रकट करे तो कैसे? इसीलिए वह सड़कों पर उतर आई है कि शायद अब तो यह सरकार चेते। अगर महंगाई ने आम आदमी की कमर तोड़ दी है तो इसमें विदेशी हाथ कहां से आ गया? दुख तो इस बात का है कि आज यह यूपीए सरकार न तो देश के अन्दर सुरक्षा का माहौल पैदा कर पा रही है और न ही सीमा पर। सरकार सोचती है कि कैश सब्सिडी के बहाने जनता के घर पैसे पहुंचाकर सारे पाप ढक जाएंगे तो इसमें हमें संदेह है। समय रहते अगर यह सरकार और कांग्रेस पार्टी न चेती तो कुछ भी हो सकता है। जनता के सब्र की अब और परीक्षा न ले, यही इसके लिए बेहतर होगा।
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