Friday 4 January 2013

पीड़िता का नाम उजागर होना चाहिए ः थरूर सही कह रहे हैं


 Published on 4 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
अपनी-अपनी राय हो सकती है। श्री शशि थरूर (केंद्रीय मानव संसाधन विकास राज्यमंत्री) ने सुझाव दिया है कि गैंगरेप की शिकार युवती की मौत के बाद उसका नाम उजागर होना चाहिए और साथ ही उसको सम्मानित भी करना चाहिए। थरूर ने अपने ट्विट में हैरानी जाहिर करते हुए कहा कि युवती का नाम छिपाए रखने का आखिर क्या मकसद है। यदि युवती के माता-पिता को ऐतराज न हो तो उसका नाम और पहचान उजागर की जानी चाहिए ताकि उसे सम्मान दिया जा सके। संशोधित किए जा रहे दुष्कर्म संबंधी कानून का नाम भी उसके नाम पर रखा जाना चाहिए। वह एक इंसान थी, जिसका एक नाम था, न सिर्प एक सिम्बल। इस टिप्पणी पर भाजपा ने सधी प्रतिक्रिया दी है वहीं कांग्रेस बचाव की मुद्रा में है, जबकि अन्ना हजारे से जुड़ी सामाजिक कार्यकर्ता किरण बेदी ने थरूर के सुझाव का समर्थन किया है। किरण बेदी ने ट्विट किया, मैं दुष्कर्म के नए कानून का नाम उस लड़की के नाम पर रखने की शशि थरूर की मांग का समर्थन करती हूं। अमेरिका में ब्रैडी, मैगन, कार्ली या जेसिका कानून जैसे कई उदाहरण हैं। भाजपा प्रवक्ता शाहनवाज हुसैन ने कहा कि यह समय कड़े कानून लाने का है, न कि पीड़िता की पहचान को गुप्त रखने या सार्वजनिक करने पर चर्चा का। भारतीय दंड संहिता की धारा 228-ए के तहत पीड़िता का नाम प्रकाशित या प्रसारित करना अपराध है। पीड़िता की पहचान प्रकाशित करने को लेकर दो अंग्रेजी अखबारों के खिलाफ पुलिस ने केस दर्ज किया है। बुधवार को जब पीड़िता के भाई और पिता से यह बात बलिया स्थित उनके पैतृक गांव में पूछी गई तो पिता और भाई दोनों ने कहा कि हमें कोई आपत्ति नहीं है। लड़की के पिता और भाई ने कहा कि अगर  बलात्कार के खिलाफ देश में जो सख्त कानून बनाने की बात की जा रही है, उसका नाम उनकी बेटी के नाम पर रखा जाता है तो उन्हें कोई आपत्ति नहीं होगी। अगर ऐसा होता है तो यह उसके प्रति सम्मान होगा। सुप्रीम कोर्ट के दिशानिर्देश के मुताबिक दुष्कर्म पीड़ित महिला का नाम सार्वजनिक नहीं किया जा सकता। इस बीच केंद्रीय गृह मंत्रालय ने स्पष्ट कर दिया है कि प्रस्तावित कानून को किसी व्यक्ति विशेष का नाम देने की कोई परम्परा नहीं है। भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में किसी व्यक्ति का नाम शामिल करने का प्रावधान नहीं है। इसलिए सरकार का यह सिलसिला शुरू करने का कोई इरादा नहीं रखती। जैसा मैंने कहा कि अपनी-अपनी राय हो सकती है, हमारी राय में तो उसका नाम अब सार्वजनिक होना चाहिए। उसकी कुर्बानी को यादगार बनाने के लिए नाम जरूरी है। कानून में पीड़िता का नाम इसलिए बचाकर रखा गया है ताकि उसका जीना दुभर न हो जाए और समाज में उसकी और बेइज्जती न हो। यह ठीक भी है पर इस केस में या ऐसे ही केसों में जब पीड़िता अपने प्राण त्याग चुकी हो तो उसका केस व्यर्थ हो जाता है। आज उस पीड़िता के नाम पर स्कूल, अस्पताल, फ्लाइओवर इत्यादि-इत्यादि बनाने के सुझाव आ रहे हैं और अगर नाम ही नहीं होगा तो किसके नाम पर यह सब समर्पित होगा? नया कानून उसके नाम पर बनाना है या नहीं यह फैसला सरकार को करना है पर उस अभागी का नाम उसकी याद के लिए जरूरी है।

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