Thursday, 10 January 2013

आसाराम कहां का संत है? यह तो खतरनाक बहरूपिया है


 Published on 10 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
दिल्ली में दरिंदगी और उसके बाद उपजे जनाकोश पर बेतुके बयानों का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है। आंध्र पदेश के कांग्रेस अध्यक्ष बोरसा सत्यनारायण, राष्ट्रपति के पुत्र अभिजीत मुखर्जी और मध्य पदेश के भाजपा मंत्री कैलाश विजय वर्गीय सहित आधा दर्जन से ज्यादा नेताओं की जुबान मर्यादा भूल चुकी है। इस कड़ी में अब अपने आप को अध्यात्मिक गुरू कहने वाले आसाराम बापू का भी नाम जुड़ गया है। कहना होगा कि इस बार तो उन्होंने हद ही मचा दी और लक्ष्मण रेखा लांघ दी है। अब सुनिए कि अपने आप को संत कहने वाला बहरूपिया क्या कहता है ः जब युवती नशे में चूर छह लोगों के चंगुल में फंस गई थी तो उसे भगवान का नाम लेकर किसी एक का हाथ पकड़ कर कहना चाहिए था कि मैं आपको अपना भाई मानती हूं, इसके बाद उनके पैर पकड़ती तो उसके साथ ऐसा हादसा नहीं होता। गलती एक तरफ से नहीं होती है। अगर युवती धार्मिक पवृत्ति की होती तो वह उस बस में चढ़ती ही नहीं। आसाराम बापू के इस ओछे बयान की चौतरफा आलोचना होना स्वाभाविक ही था। उनके बयान को लेकर लोगों में जबरदस्त आकोश है। आसाराम बापू के बयान से पीड़ित लड़की के पिता बहुत आहत हैं, बलिया में उन्होंने बातचीत में कहा कि आसाराम बापू संत नहीं हैं, बहरूपिया हैं, अगर उनकी खुद की बेटी होती तो उन्हें दरिंदगी के दर्द का अहसास होता। मेरी बेटी ने समर्पण करना नहीं सीखा था। उसने अंतिम सांस तक बहादुरी के साथ दरिंदों से लड़कर जान दी है। इसका मुझे गर्व है। आसाराम बापू को इस तरह की टिप्पणी नहीं करनी चाहिए। उनके बयान से हम बेहद दुखी हैं। संत की एक मर्यादा होती है जिसका उन्होंने उल्लंघन किया है। हमें अपनी बेटी गंवाने का मलाल नहीं है। वह सम्मान के साथ जीना चाहती थी और उसने अपनी कुर्बानी दी। आसाराम बापू का बयान न केवल गैर जिम्मेदाराना है बल्कि हमारी राय में तो उस मानसिकता को भी उजागर करता है जिसका शिकार अकसर महिलाओं को होना पड़ता है, उनसे पहले भाजपा के कुछ नेता और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पमुख मोहन भागवत भी महिलाओं को संस्कृति और पारिवारिक जिम्मेदारी का पाठ पढ़ा चुके हैं। जनता दल (यू) के नेता शरद यादव ने बलात्कार और यौन उत्पीड़न की घटनाओं की जो व्याख्या की है उसने तो उन्हें खाप पंचायतों के करीब ही लाकर खड़ा कर दिया है। दरअसल यह वह सोच है जो महिलाओं की आत्मनिर्भरता और उनकी स्वतंत्र सोच को स्वीकार नहीं कर पा रही है। यह स्थिति तो तब है जब भारत की तीस फीसदी से भी कम महिलाएं किसी रोजगार से जुड़ी हुई हैं। दिल्ली की घटना को लेकर कटाक्ष करने वाले चीन में यह आंकड़ा 70 फीसदी से ऊपर है। अपने आप को संत कहलाने वाले आसाराम हमेशा से विवादों में रहे हैं। सन् 2008 में उनके आश्रम से दो युवाओं की रहस्यमयी मौत से कभी पर्दा नहीं उठा। 2009 में उनके एक अनुयायी राजू कंडयोक ने उन पर यौन शोषण के आरोप लगाए। महिन्द्र चावला कमिशन के समक्ष पेश हुए आश्रम के एक कर्मी ने आसाराम के बेटे नारायण साई पर आरोप लगाया कि वह मृत शवों पर तांत्रिक पकिया करता है। आसाराम पर मोटेरा में 67,000 वर्ग किलोमीटर जमीन दबोचने के आरोप लगे। हम तो मानते हैं कि वह संत के कपड़े पहने हुए एक खतरनाक बहरूपिया हैं जिसका जल्द से जल्द पर्दाफाश होना चाहिए। यह कहां का संत है?






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