Tuesday 22 January 2013

जनरल बिक्रम सिंह का शहीद परिवारों के घर जाना सराहनीय है


 Published on 22 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
हम थल सेना अध्यक्ष जनरल बिक्रम सिंह को इस बात की बधाई देना चाहते हैं कि वह हाल में हुए दो शहीद लांस नायक हेमराज और लांस नायक सुधाकर सिंह के घर पर उनके परिजनों से मिलने गए। यह पहली बार हुआ है कि आर्मी चीफ खुद चलकर किसी लांस नायक के घर पर गया हो। इससे जाहिर होता है कि जिस तरीके से पाकिस्तान ने इन शहीदों के साथ बर्ताव किया उसका सेना प्रमुख जनरल सिंह को कितना दुख व रोष है। यह सेना के बाकी जवानों के मनोबल को बढ़ाने के लिए भी एक तरह से जरूरी था। मेंढर सैक्टर की इस घटना ने न केवल प्रभावित राजपूत रेजिमेंट को ही हिलाकर रख दिया है बल्कि पूरे देश में इसका व्यापक रोष है। दो देशों की सेनाओं में लड़ाई होती है, जंग होती है, एक-दूसरे के सैनिकों को मारना लड़ाई में होता है पर दुश्मन के सैनिकों का सिर कलम करना आज के युग में स्वीकार्य नहीं है। आज से दो सौ साल पहले होता होगा। आज नहीं! जनरल सिंह ने शहीदों के परिजनों के लिए नौकरी का प्रबंध किया है और शहीद लांस नायक सुधाकर सिंह के परिवार को अब तक लगभग 65 लाख रुपए की मदद की जा चुकी है। सेना द्वारा 44 लाख रुपए, रक्षा राज्यमंत्री जितेन्द्र सिंह द्वारा पांच लाख रुपए तथा मध्य प्रदेश सरकार 15 लाख रुपए शामिल हैं। इसी तरह लांस नायक हेमराज के परिवार को भी आर्थिक मदद की गई है। मध्य प्रदेश के जुझारू मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने शहीद जवान की अर्थी को कंधा दिया, शहीद की पत्नी के लिए शासकीय नौकरी एवं परिवार के लिए उसी गांव में एक भूखंड तथा शहीद सुधाकर की याद में गांव में ही एक स्मारक बनाने की घोषणा भी की है। लगभग इसी प्रकार की कई सुविधाएं उत्तर प्रदेश सरकार ने भी शहीद हेमराज के परिवार को दी हैं। ऐसा नहीं कि राज्य सरकारें अपनी ओर से शहीदों की मदद नहीं है करतीं पर जब थल सेना अध्यक्ष खुद चलकर सेना की स्थापित परम्पराओं को तोड़कर उनके घरों में पहुंच रहा हो तो राज्य सरकारें भी ज्यादा सक्रिय हो गई हैं। इन कदमों का हमारे बहादुर जवानों के मनोबल पर भारी असर पड़ेगा। उन्हें यह तो लगेगा कि चलो हम अगर मारे भी जाते हैं तो पीछे हमारे परिवार को भीख तो नहीं मांगनी पड़ेगी। हमें दुख तो इस बात का है कि पूर्व आर्मी चीफ कभी भी इस प्रकार के केसों में शहीदों के घर नहीं गए। लांस नायक हेमराज की शहादत ने महाराष्ट्र के कालेगांववासियों को 12 साल पुरानी कहानी याद दिला दी है। छोटे से गांव का सपूत भाऊ साहब तलेकर भी हेमराज की तरह शहीद हुआ था। पाकिस्तानी फौज ने घात लगाकर हमला किया और भाऊ साहब तलेकर का सिर अपने साथ ले गए। अब इस परिवार के पास कुछ है तो बेटे की यादें और मातम। जब हेमराज और सुधाकर के साथ हुई वारदात की खबर टीवी पर आई तो परिवार बर्दाश्त नहीं कर सका और फूट-फूटकर रो पड़े। यह बात 27 फरवरी 2000 की है इस घटना में भी पाक सेना ने हमारी सीमा में घात लगाकर, घुसकर हमला किया। ग्रेनेड से हमला किया। छह भारतीय सैनिक शहीद हुए। भाऊ साहब ने जवाबी हमला किया और उनके भी पांच सैनिक मार गिराए। फिर अपनी जान गंवा दी। हमलावरों में इलियास कश्मीरी भी था। उसी ने भाऊ साहब का सिर काटा था और साथ ले गया था। मुशर्रफ ने इसी कश्मीरी को पांच लाख रुपए का इनाम भी दिया। उस वक्त पाक फौज का हिस्सा रहा कश्मीरी आज कुख्यात आतंकी है। भाऊ साहब की बहन मीनाक्षी कहती हैं, ताबूत लाया गया तो मां ने बेटे का चेहरा देखने की जिद की। सेना वालों से कहा, कैसे मानें कि इसमें उन्हीं का बेटा है। उन्हें समझाया गया कि इसका आई कार्ड और घड़ी पास ही मिली थी। हमारा मन तब भी नहीं मान रहा था। उन्होंने ताबूत सहित शव का अंतिम संस्कार कर दिया। उन्हें सेना ने करीब 12 लाख रुपए दिए थे। उन पैसों से मीनाक्षी की शादी की, घर ठीक करा लिया। गांव के बुजुर्ग विट्ठल सदाशिव कहते हैं कि 12 साल में तलेकर परिवार का सुख-दुख पूछने सेना का कोई भी आदमी नहीं आया। दुख तो इस बात  का है कि क्या शहीदों के परिवार की सुध सिर्प भूख हड़ताल करने के बाद ही ली जाएगी? हेमराज के परिवार ने गुस्सा दिखाया तो सेना और सरकार उनके घर पहुंच गई।

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