Published on 15 January, 2013
अनिल नरेन्द्र
दिल्ली में 23 वर्षीया फिजियोथैरेपिस्ट छात्रा के दुराचार के बाद
जब आरोपी गिरफ्तारी हुए तो कहा गया कि छात्रा पर सबसे जघन्य कुकृत्य करने वाला आरोपी
17 साल का है। उसके बारे में बताया गया है कि वह साढे 17 साल का है और दोषी पाए जाने
पर भी वह 18 साल का होते ही छूट जाएगा। उसे न तो नाबालिगों के साथ स्पेशल होम में रखा
जाएगा और न ही उसे जेल भेजा जा सकता है। जैसे-जैसे दिल्ली गैंगरेप के तथ्य उजागर हो
रहे हैं यह मांग जोर पकड़ती जा रही है कम से कम महिला अपराधों में नाबालिग की उम्र
सीमा को घटा दिया जाना चाहिए। दरअसल इस जघन्य मामले में पकड़े गए कथित नाबालिग ने ही
सबसे ज्यादा बर्बरता दिखाई थी। वैसे अभी इसकी वास्तविक उम्र को लेकर तहकीकात व टैस्ट
चल रहे हैं। इसी माहौल में हुई राज्य पुलिस महानिदेशकों एवं गृह सचिवों की बैठक में कई राज्यों ने सुझाव दिया कि बाल अपराधी
की श्रेणी में आने की आयु सीमा 18 से घटाकर 16 वर्ष कर दी जाए। केंद्रीय महिला एवं
बाल कल्याण मंत्री कृष्णा तीरथ भी इस मांग की पैरोकारी कर रही हैं। कानून के जानकारों
के बीच जरूर इस मुद्दे पर दो राय हैं। जाहिर है, यह एक संवेदनशील मामला है। अभी देश
में 18 साल से कम उम्र के बच्चों को नाबालिग माना जाता है। गौरतलब है कि 1986 तक जेजे
(जुवनाइल जस्टिस) एक्ट में उम्र की सीमा 16 वर्ष थी। बच्चों के अधिकार को लेकर संयुक्त
राष्ट्र में 1992 में एक अधिवेशन हुआ और अंतर्राष्ट्रीय मानक के अनुसार नाबालिग की
उम्र 18 साल कर दी गई। दिल्ली हाई कोर्ट में इसी संबंध में एक याचिका दाखिल की गई है।
याचिका में जुवनाइल जस्टिस एक्ट के कुछ प्रावधानों को निरस्त करार देने की गुहार लगाई
गई है। याचिका सुप्रीम कोर्ट की महिला वकील श्वेता कपूर ने लगाई है। याचिका में कहा
गया है कि जेजे एक्ट की धारा-16(1) और 16 के सम सैक्शन 2 को निरस्त किया जाना चाहिए।
याचिका में कहा गया है कि इस प्रावधान में विरोधाभास है, ऐसे में इसे निरस्त किया जाना
चाहिए। याचिका में कहा गया कि गैंगरेप में कथाकथित बालक ने जो अपराध किया है उससे यह
दिखता है कि वह नाबालिग नहीं है बल्कि उससे समाज को प्रोटैक्शन की जरूरत है। धारा-16
के तहत प्रावधान है कि चाहे अपराध कितना भी गम्भीर क्यों न हो यानी मामला फांसी या
उम्रकैद का ही क्यों न हो, लेकिन नाबालिग आरोपी को ज्यादा से ज्यादा तीन साल तक डिटेशन
में रखा जा सकता है। यह भी प्रावधान है कि जुवनाइल को 18 साल की उम्र तक ही स्पेशल
होम में रखा जा सकता है। याचिका में कहा गया है कि कई मामलों में ऐसे नाबालिग जो
16 से 18 साल के बीच हैं, उन्होंने जघन्य कृत्य किया है और यह दर्शाता है कि जेजे एक्ट
के कुछ प्रावधानों को खत्म करने की जरूरत है। 16 से 18 साल के बीच के जुवनाइल जो गम्भीर
व जघन्य अपराध में लिप्त हैं उन्हें जुवनाइल होने का लाभ नहीं मिलना चाहिए। एक आदमी
जो 17 साल 364 दिन का है उसे उस व्यक्ति से कैसे अलग रखा जा सकता है जो इससे एक दिन
ज्यादा यानी पूरे 18 साल का है? बहरहाल यह पूरी बहस चूंकि दिल्ली की एक ऐसी घटना से
जुड़ी है जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया, तो समाधान का एक विकल्प यह जरूर हो सकता
है कि ऐसे मामलों में उम्र सीमा को लेकर एक अपवादित कानून व्याख्या हो। इससे बाल अधिकारों
का ही हनन नहीं होगा और लोगों को चिन्ता और मांग का व्यावहारिक हल भी निकल जाएगा।
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