Published on 30 January, 2013
मुंबई पर 2008 में हुए हमले की साजिश में शामिल रहे डेविड कोलमैन हेडली को अमेरिका की एक अदालत ने 35 साल कैद की सजा सुनाई है। अमेरिकी जांच एजेंसी फेडरल ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन (एफबीआई) ने पाकिस्तानी मूल के 52 वर्षीय अमेरिकी नागरिक हेडली को मुंबई हमले की साजिश रचने और उसे अंजाम देने में उसकी संलिप्तता के आरोपों में अक्तूबर 2009 में गिरफ्तार किया था। 52 वर्षीय हेडली ने अमेरिकी जांच एजेंसी से एक समझौता किया था जिसके चलते वह मौत की सजा से बच निकलने में कामयाब रहा। इस सजा में पेरौल का कोई प्रावधान नहीं है और दोषी को अपनी सजा की कम से कम 85 फीसदी सजा पूरी करनी होगी। शिकागो के जज ने खचाखच भरी अदालत कक्ष में सजा सुनाते हुए कहा कि हेडली एक आतंकवादी है, उसने अपराध को अंजाम दिया, अपराध में सहयोग किया और इस सहयोग के बाद में इनाम भी पाया। अमेरिकी डिस्ट्रिक्ट जज हेरी लेनेनवेबर ने कहा इससे कोई फर्प नहीं पड़ता कि मैं क्या करता हूं। इससे आतंकवादी रुकेंगे नहीं। 35 साल की सजा सही नहीं है पर मैं 35 साल की सजा दिए जाने के सरकार के प्रस्ताव को स्वीकार करता हूं और 35 साल की सजा सुनाता हूं। जज ने कहा कि मौत की सजा सुनाना अधिक आसान होता, आप इसी के हकदार हैं। हेडली को मौत की सजा न सुनाए जाने पर विवाद छिड़ गया है। तमाम लोग उसके जुर्म की संगीनी देखते हुए इस सजा को अपर्याप्त मान रहे हैं। यहां तक कि फैसला सुनाने वाले जज लेनेनवेबर ने भी यही कहा। माना जा रहा है कि चूंकि हेडली ने एफबीआई के साथ सहयोग किया इसलिए अभियोजन पक्ष ने अदालत से उसकी मौत की सजा की मांग नहीं की। लेकिन हेडली को आजीवन कारावास भी न देना लोगों के गले नहीं उतर रहा है। सजा का ऐलान होते वक्त अदालत में मौजूद पीड़ितों व उनके परिजनों ने भी कहा कि उनकी जुटाई सूचनाओं के आधार पर मुंबई में जिस तरह बर्बर कत्लेआम किया गया उसे देखते हुए हेडली को जीने का कोई अधिकार नहीं है। गौरतलब है कि 26 नवम्बर 2008 को मुंबई पर हुए आतंकी हमले में 166 लोग मारे गए थे जिनमें छह अमेरिकी नागरिक भी शामिल थे। हेडली ने अक्तूबर 2009 में शिकागो में गिरफ्तार होने के बाद यह कबूल किया था कि उसने 2006-08 के बीच मुंबई की कई बार यात्रा की, हमले के ठिकानों की टोह ली व जानकारियां जुटा कर उन्हें लश्कर-ए-तैयबा तक पहुंचाया। पिछले हफ्ते आतंकवाद के प्रसार में हेडली के सहयोगी रहे तहव्वुर हुसैन राणा को भी अदालत ने 14 साल की सजा सुनाई थी। भारत हेडली के प्रत्यार्पण करने की मांग कर रहा है। कठिनाई इसमें यह आ रही है कि अमेरिकी कानून के अनुसार किसी अपराध के लिए एक बार सजा होने के बाद आरोपी का दूसरे देश में प्रत्यर्पण नहीं हो सकता। हालांकि जानकारों के अनुसार हेडली ने पुष्कर और दिल्ली आदि जगहों की भी रेकी की थी और अमेरिकी अदालत ने इसके लिए उसे सजा नहीं दी, इसलिए भारत प्रत्यर्पण की मांग जारी रख सकता है। अमेरिका ने हेडली को भारत भेजने की मांग को खारिज कर दिया है। अमेरिकी विदेश विभाग की प्रवक्ता विक्टोरिया नूलैंड ने कहा है कि हेडली के खिलाफ अमेरिका में सुनवाई हुई है। उसे यहीं दोषी ठहराया गया है और वह सजा भी अमेरिका में ही भुगतेगा। हमारे अनुसार न्याय हो चुका है और यह आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में अमेरिका और भारत सहयोग का एक बहुत ही सकारात्मक उदाहरण है। उन्होंने कहा कि अमेरिकी व भारतीय अधिकारियों के बीच बेहतरीन सहयोग व तालमेल के कारण ही डेविड हेडली के खिलाफ जांच व अभियोग आगे बढ़ पाए हैं। मुंबई में 26/11 मामले में विशेष अधिवक्ता उज्जवल निकम की प्रतिक्रिया थी कि हेडली को इस मामले में सरकारी गवाह बना देना चाहिए ताकि गुनाहगारों को सजा मिल सके। निकम ने बताया कि यह अहम है कि हेडली की सजा को लेकर किए गए समझौते में स्वीकार किया था कि वह 26/11 आतंकी हमले में अमेरिका की ओर से गवाही देगा। अब पाकिस्तान को हेडली को 26/11 मामले में अभियुक्त बनाना चाहिए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान को उसे सरकारी गवाह बनाना चाहिए और वीडियो लिंक के जरिए उसका बयान दर्ज करना चाहिए। पाकिस्तान हमेशा कहता आया है कि लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद के खिलाफ उसके पास सबूत नहीं हैं परन्तु अजमल कसाब ने अपने बयान में सईद का नाम लिया था। हेडली ने 26/11 की साजिश में अहम भूमिका निभाई और कबूल भी की है। हेडली का साक्ष्य बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि दुनियाभर में भय पैदा करने के इरादे से मुंबई में नरसंहार की योजना लश्कर-ए-तैयबा की साजिश को पूरा करने के लिए हेडली ने उसके प्रमुख नेताओं से बात की होगी। बहरहाल बेहतर होगा कि हेडली के प्रत्यर्पण की मांग के साथ-साथ हम अमेरिका की न्यायिक प्रक्रिया की तत्परता पर भी गौर करें। चुस्त अभियोजन और समयबद्ध अदालती सुनवाई के अभाव में हेडली जैसों के प्रत्यर्पण से क्या हासिल होगा?
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