Friday 11 January 2013

बंद करो यह अमन की आशा और भाईचारे की बात


 Published on 11 January, 2013
अनिल नरेन्द्र
हम तो पाकिस्तान की तरफ अमन-शांति का हाथ बढ़ाए नहीं थकते और हर बार जवाब में हमें बर्बरता, अमानवीय व्यवहार पाकिस्तान की ओर से रिटर्न तोहफे के रूप में मिलता है। वह भारत हमारे मेहमान बनकर आते हैं और हमारे घर में ही हमें गाली देकर चले जाते हैं। आखिर यह सिलसिला कब तक चलेगा? यह अमन की आशा जैसे बेतुके एकतरफा प्रोग्राम कब तक बर्दाश्त होंगे? एक बार फिर पाकिस्तान की बर्बरता व कूरता का चेहरा बेनकाब हुआ है। पाकिस्तान के करीब 15 सैनिक मंगलवार को भारतीय सीमा स्थित पुंछ के मेंढर सैक्टर में करीब सौ मीटर तक अंदर घुस आए। उन्होंने यहां भारतीय गश्ती दल पर हमला बोला और दो भारतीय जवानों की गला काटकर हत्या कर दी। उन्होंने इनके शव क्षत-विक्षत कर दिए। एक सैनिक का सिर भी हमलावर अपने साथ ले गए। कारगिल हमले (1999) के बाद यह सम्भवत पहला मौका है जब पाक सेना ने इस तरह से भारतीय सीमा में घुसपैठ की है। अभी हाल ही में कैप्टन कालिया से किया गया अमानवीय, बर्बर व्यवहार की बात उनके पिता ने उठाई थी। पाकिस्तान ने तब भी खंडन किया था और अब भी वही कर रहे हैं। हर बार वह कह देते हैं कि यह पाक सेना का कृत्य नहीं है। हो सकता है कि कुछ `नॉन स्टेट एक्टरों' ने ऐसा किया होगा। हम सवाल पूछना चाहते हैं कि अगर यह नॉन स्टेट एक्टर हैं तो यह किसकी जमीन से ऑपरेट कर रहे हैं? इन्हें एलओसी या बार्डर तक पहुंचाता कौन है? अगर वह पाकिस्तान में मौजूद हैं तो उन्हें गिरफ्तार कर हमें क्यों नहीं सौंप दिया जाता। सबसे दुखद पहलू यह है कि वह जानते हैं कि भारत में किसी भी जवाबी, सख्त कार्रवाई करने का दम नहीं है। हम नई दिल्ली स्थित पाक उच्चायुक्त को बुलाकर निंदा प्रस्ताव थमा देंगे और बात रफöदफा हो जाएगी। इस बार भी देखना यही होगा। चाहे मामला 26/11 दोषियों का हो चाहे लश्कर-ए-तैयबा के बढ़ते प्रभाव का हो। हर बात से पाकिस्तान इंकार कर देता है। मैंने बहुत पहले एक अंग्रेजी (हॉलीवुड) की फिल्म देखी थी। फिल्म का नाम था डर्टी इंजन। इस फिल्म में अमेरिकी सेना ने एक प्लान बनाया कि उन कैदियों को जो खूनी हों, दरिन्दे, मुजरिम हों जो या तो फांसी के फंदे पर  लटकाने वालो हों या उन बलात्कारी, मर्डर चार्ज पर आजीवन कारावास की सजा भुगत रहे हैं उनको एकत्र करके उन्हें बुलाया। उन्हें अमेरिकी सेना कमांडर ने एक प्रपोजल दिया। आप या तो यहीं फांसी पर लटकोगे या जेल में ही सड़ जाओगे। अगर आप तैयार हो तो हम आपको ट्रैनिंग देकर दुश्मन (जर्मनी) में उतार देते हैं। आपका काम है ज्यादा से ज्यादा जर्मन अफसरों को मारना। अगर आप इस मिशन में कामयाब हो जाते हो और जिन्दा बचकर वापस आ जाते हो तो आपकी बाकी सजा जो भी हो उसे माफ कर दिया जाएगा। वह सभी तैयार हो जाते हैं। क्या हम भी ऐसा कुछ कर सकते हैं। हम भी इन खूनी दरिन्दों को, बलात्कारियों को एलओसी के उस पार भेजें और इन नॉन स्टेट एक्टरों का काम तमाम करवाएं। हां, पर ऐसा काम करने के लिए जिगर चाहिए, गट्स चाहिए जो हमें इस सरकार में नजर नहीं आता। हम उन बहादुर शहीद जवानों को अपनी श्रद्धांजलि देते हुए उम्मीद करते हैं कि उनसे इस जानवरीय बर्ताव के कसूरवारों को जरूर टांगेंगे।

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