Saturday, 26 January 2013

जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों को लागू करना ही दामिनी को सच्ची श्रद्धांजलि होगी


 Published on 26 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
पूरे देश को नींद से जगाने वाली, उद्वेलित आंदोलित करने वाली 16 दिसम्बर की उस गैंगरेप घटना को भविष्य में कैसे रोका जाए, वर्तमान कानूनों में क्या-क्या कमियां हैं और इनसे जुड़े मुद्दों पर सुझाव देने के लिए जस्टिस वर्मा कमेटी ने अपनी रिपोर्ट दे दी है। जस्टिस वर्मा के आगे टास्क यह था कि वह बलात्कार जैसे मामलों में कानूनी सुधार पर नागरिकों और तमाम सरकारी-गैर सरकारी संस्थाओं-विभागों के सुझावों पर अपनी सिफारिश सरकार को सौंपे। कमेटी ने 630 पन्नों की रिपोर्ट दी है और कमेटी के पास 80 हजार से ज्यादा सुझाव आए। कमेटी को यह काम दो महीने में करना था। आमतौर पर ऐसे कार्यों के निष्पादन में समय सीमा बढ़ाने की भी परम्परा है पर जस्टिस वर्मा ने यह काम महज 29 दिनों में कर दिखाया। वह इसके लिए बधाई के पात्र हैं। जस्टिस वर्मा समिति ने महिलाओं के प्रति अपराध रोकने के लिए अपनी जो तमाम सिफारिशें दी हैं वे केवल यही नहीं बतातीं कि कितना कुछ करने की जरूरत है बल्कि यह जाहिर करती हैं कि कितना कुछ दशकों से लम्बित है। यह स्पष्ट है कि इस समिति की सिफारिशों को पूरा करने के लिए पुलिस, कानून, चुनाव और न्यायिक प्रक्रिया में सुधार करना होगा। यही नहीं अपराध के राजनीतिकरण से लेकर पुलिस और न्यायिक सुधारों तक जिस तरह कमेटी ने महिला सुरक्षा के लिए जरूरी दरकारों की एक बड़ी तस्वीर खींची है, वह मौजूदा स्थिति का एक सम्यक मूल्यांकन है। मसलन कमेटी को लगता है कि कानून बनाने वाले संसद और विधानसभा के सदस्यों पर किसी तरह का दाग न हो। इसके लिए कमेटी चुनाव सुधार की भी मांग करती है। मोटे तौर पर कमेटी ने जवाबदेह चारों तंत्र के लिए सुझाव दिए हैं। पुलिस ः नेताओं के हाथों का खिलौना न बने। दुष्कर्म के केस दर्ज करने में नाकामी या देरी करने वालों पर कार्रवाई हो। कानून का पालन करने वाली एजेंसियां नेताओं के हाथों का खिलौना न बनें। पुलिस के ढांचे और काम करने के तरीके पर सुधार हो। सरकार ः जल्द से जल्द कानून में संशोधन करे। बच्चों की तस्करी के मामले में डाटा बेस बनाए। जन प्रतिनिधित्व कानून में  बदलाव किया जाए। सशस्त्र सेना विशेष अधिकार अधिनियम की समीक्षा हो। अदालत ः तेज सुनवाई और जल्द फैसले के लिए जजों की संख्या बढ़े। लेकिन सुनिश्चित किया जाए कि गुणवत्ता से समझौता न हो। महिला अपराधों के लिए अलग से फास्ट ट्रैक कोर्ट बने। जन प्रतिनिधि ः चुनाव लड़ने से पहले हलफनामे की जांच करे। हाई कोर्ट के रजिस्ट्रार के प्रमाण पत्र के बाद ही नेताओं को चुनाव लड़ने दिया जाए। कमेटी के सुझावों पर संसद में  बहस हो, सुझावों को लागू कराया जाए। 16 दिसम्बर को सामूहिक घटना के बाद केंद्रीय गृह सचिव आरके सिंह द्वारा दिल्ली पुलिस आयुक्त नीरज कुमार की तारीफ करना भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश जेएस वर्मा को रास नहीं आया। उन्होंने कहा कि जब माफी मांगे जाने की उम्मीद थी उस समय सीपी की पीठ  थपथपाना सुनकर काफी हैरत हुई। दामिनी की कुर्बानी व्यर्थ नहीं जाएगी, यह संकल्प हमारी युवा पीढ़ी ने लिया है और वह आज तक उस पर डटे हुए हैं। वर्मा कमेटी ने भी माना है कि दुष्कर्म के कानून में सुधार का श्रेय युवाओं को जाता है। युवाओं की सजगता के कारण ही सरकार को पहल करनी पड़ी। युवा देश की उम्मीद हैं, उन्हेंने पुरानी पीढ़ी को सिखाया है। युवाओं को उकसाने की कोशिश हुई लेकिन फिर भी वह शांत रहे। 16 दिसम्बर के इस अत्यंत बर्बर कांड के बाद देशभर में उपजे रोष के साथ ही आरोपियों को फांसी की सजा की मांग करने वालों को वर्मा कमेटी द्वारा इसका विरोध करने से निराशा हुई होगी। कमेटी ने आरोपी को मौत की सजा की सिफारिश नहीं की है। इसी के साथ यह सवाल भी चर्चा में आ गया है कि ऐसी सिफारिश क्यों नहीं की गई? कुछ लोग दुराचारियों के रासायनिक बंध्याकरण के पक्ष में थे। वर्मा कमेटी ने बलात्कार के लिए 20 साल तक के कारावास की सिफारिश की है। कमेटी का सुझाव है कि फांसी लगने से तो खेल खत्म हो जाता है अगर गैंगरेप के लिए ताउम्र कारावास की सजा हो तो वह बेहतर विकल्प होगा। कानूनी और वुमेन आर्गेनाइजेशंस से जुड़े जानकारों का भी मानना है कि इसके पीछे चार बड़े कारण लगते हैं। इसी के साथ जानकार यह भी मानते हैं कि सारी दुनिया में फांसी की सजा पर बहस छिड़ी हुई है। कई देशों ने तो इस पर पाबंदी भी लगा दी है। जो चार बड़ी दिक्कतें सामने आती हैं वे हैं ः एक तो यह कि फांसी की सजा डर तो पैदा करती है। लेकिन वहशी लोगों को रेप के बाद महिला का मर्डर करने के लिए भी उकसा सकती है। सबूत मिटाने के लिए मर्डर कर सकते हैं। दूसरी गौरतलब चीज यह है कि फांसी का प्रावधान अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर बढ़ती हलचल के विपरीत है। एक और बड़ी वजह है मिसयूज का डर। रेप के गलत आरोप लगाकर कानून का मिसयूज करने की कोशिश हो सकती है। नाबालिग लड़कियों के कथित प्रेम विवाह के मामलों में अपहरण और रेप का केस दर्ज होता है। ऐसे मामलों में भी इतनी बड़ी सजा दूसरे सवाल भी पैदा कर सकती है, रेप-कम-मर्डर के रेयरेस्ट ऑफ रेयर रेप मामलों में तो मौत की सजा अब भी दी जा सकती है। एक बड़ा मुद्दा यह भी है कि इतनी बड़ी संख्या में मामले राष्ट्रपति के पास दया याचिका के रूप में जाएंगे, तो कौन उन्हें देखे-सम्भालेगा? कौन कितनी जल्द फैसला कर पाएगा? लिहाजा अब सरकार को वे सभी कदम उठाने होंगे जिनसे महानगरों के साथ दूरदराज के इलाकों की महिलाओं की सुरक्षा भी सुनिश्चित की जा सके। इसके लिए सरकार को सभी दलों के साथ मिलकर आम सहमति बनानी चाहिए ताकि संसद में कानून में जरूरी संशोधन किए जा सकें। जस्टिस वर्मा कमेटी की सिफारिशों को लागू करना ही दामिनी को असल श्रद्धांजलि होगी।

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