Wednesday 23 January 2013

आतंक न तो रंग देखता है, न मजहब, समाज को इस तरह बांटने का प्रयास निंदनीय है


 Published on 23 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
आमतौर पर गृहमंत्री का पद सम्भालने के बाद श्री सुशील कुमार शिंदे ने संतुलित बयान दिए हैं और विवादास्पद बयानों से बचे रहे पर अब उन्होंने सारी कसर पूरी कर दी है। कांग्रेस के चिन्तन शिविर के आखिरी दिन गृहमंत्री शिंदे ने कांग्रेस कार्य समिति की खुली बैठक में कह दिया कि भाजपा और संघ के शिविरों में हिन्दू आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। समझौता एक्सप्रेस, मक्का मस्जिद और मालेगांव के धमाकों के पीछे संघ का हाथ होने के सुबूत मिले हैं। शिंदे के इस बयान ने राजनीतिक माहौल ही बदल दिया है और सियासत में एक नया विवाद पैदा कर दिया है। गृहमंत्री का बयान इसलिए भी गम्भीर है क्योंकि यह भारत के गृहमंत्री ने दिया है। शिंदे बिना कांग्रेस हाई कमान की मर्जी से ऐसा बयान दे ही नहीं सकते थे। पिछले कुछ सालों से कांग्रेस की वोट बैंक की राजनीति उसकी रणनीति का हिस्सा बन गया है। अल्पसंख्यक वोट बैंक को किसी भी कीमत पर अपनी ओर रिझाने के लिए कांग्रेस किसी भी हद तक जा रही है। उसे इस बात की भी परवाह नहीं कि उसकी कथनी का देश के दुश्मन अनुचित लाभ उठाएंगे। हुआ भी यही। दुनिया के मोस्ट वांटेड आतंकवादी लिस्ट में अव्वल नम्बर के लश्कर-ए-तैयबा के प्रमुख हाफिज सईद ने शिंदे के बयान पर अविलम्ब रिएक्ट करते हुए कहाöभारत हमेशा पाकिस्तानी संगठनों के खिलाफ आतंकवाद फैलाने का दुप्रचार करता रहा है, लेकिन अब वह बेनकाब हो गया है। जख्म पर नमक छिड़कने की कसर कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह ने पूरी कर दी। दिग्वजिय सिंह ने हाफिज सईद को हाफिज सईद साहब कहकर पूरी कर दी। यह बहुत दुख की बात है कि कांग्रेस पार्टी अब आतंकवाद को मजहब और रंग के हिसाब से चिन्हित करने में लगी है। आतंकवाद का न तो कोई रंग होता है और न ही मजहब। हमने तो यह कभी नहीं कहा कि यह मुस्लिम आतंकवादी हैं, हिन्दू आतंकवादी हैं, सिख आतंकवादी हैं, ईसाई आतंकवादी हैं या यहूदी आतंकवादी हैं। न ही हमने कभी यह कहा कि यह लाल रंग का आतंकी है, हरे रंग का है या भगवे रंग का। जब कोई आतंकवादी किसी सार्वजनिक स्थान पर बम मारता है तो वह नहीं सोचता कि उस बम के टुकड़े किसी बच्चे, महिला, बुजुर्ग या फिर हिन्दू, सिख, मुसलमान, ईसाई को लगेंगे? वह तो अपने उद्देश्य के लिए हिंसा के माध्यम से अपना उद्देश्य प्राप्त करता है। जयपुर चिन्तन शिविर में दिया गया शिंदे का बयान इसलिए ज्यादा गम्भीर बन जाता है क्योंकि उन्होंने जो कुछ कहा वह भारत के गृहमंत्री की हैसियत से कहा और यह भी दावा किया कि उनके पास इसके सुबूत हैं। सवाल यह है कि यदि शिंदे के पास इस आशय के सुबूत हैं तो वह इस कथित खुलासे के लिए जयपुर चिन्तन शिविर का इंतजार क्यों कर रहे थे? जब पर्याप्त सुबूत हैं तो इनके आधार पर अपेक्षित कार्रवाई क्यों नहीं की? यदि वाकई उनके पास राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ और भारतीय जनता पार्टी के आतंकवाद को बढ़ावा देने के पुख्ता प्रमाण हैं तो उन्हें आवश्यक कार्रवाई करने से किसने रोका है? भले ही दिग्विजय सिंह शिंदे के बयान का समर्थन कर रहे हों और अन्य कांग्रेस नेता भी उनकी पीठ थपथपा रहे हों लेकिन यह मान लेना सही नहीं होगा कि शिंदे ने जो कुछ कहा वह वास्तव में सही है। यदि यह सब सही है कि कांग्रेस के नेताओं को सिर्प बयानबाजी करने के स्थान पर ठोस कार्रवाई करते हुए दिखना चाहिए इसलिए और भी क्योंकि केंद्र में उनके दल के नेतृत्व वाली सरकार है। अब यदि इस तरह से समाज को बांटने वाले बयानों के आधार पर विपक्ष की घेराबंदी की जाएगी अथवा आगामी लोकसभा चुनावों के लिए माहौल तैयार किया जाएगा तो ऐसा लगता है कि इस बयान का मकसद मूल मुद्दों से आम जनता का ध्यान हटाना है। एक ऐसे समय पर जब सीमा पर तनाव के कारण भारत को न केवल गम्भीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है बल्कि देश के भीतर आतंकवाद और नक्सलवाद के खतरे कहीं अधिक रूप धारण करते जा रहे हैं गृहमंत्री के स्तर पर ऐसे बयानों का औचित्य हमारी समझ से तो बाहर है। इसका हमें तो एकमात्र उद्देश्य केवल अपने राजनीतिक विरोधियों को कठघरे में खड़ा करने के अलावा दूसरा नजर नहीं आ रहा। राजनीति का स्तर इस हद तक गिर जाना जहां से भारत विरोधी लाभ उठा सकें चिन्तन तो इस पर होना जरूरी हो गया है। राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप की सभी लक्ष्मण रेखाएं मिटती जा रही हैं। यह न तो देश के लिए अच्छा है, न राजनीतिक पार्टियों के लिए और न ही जनता के लिए। समाज को इस तरह से बांटना कभी भी सही नहीं ठहराया जा सकता।

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