Tuesday 22 January 2013

राहुल गांधी ने अपने स्वर्गीय पिता राजीव की याद ताजा कर दी


 Published on 22 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
नया पद सम्भालने के बाद राहुल गांधी ने जो जयपुर कांग्रेस चिंतन शिविर में भाषण दिया। उसमें मुझे स्वर्गीय राजीव गांधी के भाषण और स्टाइल की झलक नजर आई। राजीव ने भी इसी तरह सत्ता के दलालों पर सीधा हमला करते हुए कहा था कि सरकार जो गरीबों के लिए पैसा खर्चती है उसमें मुश्किल से 15 पैसे ही उस व्यक्ति तक पहुंचता है जिसके लिए दिया जाता है। बेटे राहुल आगे बढ़ गए और कहा कि हम यह पक्का करेंगे कि पूरा पैसा जिस आदमी के लिए भेजा है उस तक पहुंचे। राहुल का भाषण बेहद भावुक था और वह कार्यकर्ताओं के दिलों को छूने वाली भाषा में बोला गया था। उन्होंने दरअसल कांग्रेस संगठन में आई कमजोरियों को एक-एक कर गिनाया और इन्हें दूर करने का प्लान भी बताया। राहुल ने पिछले वर्षों में खुद गांव-गांव जाकर जनता के दुख-दर्द को समझा है इसलिए जनता की समस्याओं को समझने में भी उन्हें कोई दिक्कत नहीं है। यह भाषण संगठन संबंधित कांग्रेसी कार्यकर्ताओं के गिरते मनोबल से उबारने के लिए था और इसने काफी हद तक कांग्रेस कार्यकर्ताओं में एक नया जोश व उम्मीद जरूर भरी है। जिस तरीके से राहुल का स्वागत हुआ उससे लगा मानो कांग्रेस पार्टी ने सन 2014 का चुनाव ही जीत लिया हो। राहुल गांधी के कांग्रेस में नई जिम्मेदारी सम्भालने से पार्टी में हर तरफ खुशी का माहौल है लेकिन मां सोनिया गांधी को एक डर परेशान करने लगा। उन्हें डर है कि सत्ता के उस स्याह पहलू का जिसे सोनिया  ने अपने कई करीबियों को खोकर देखा है और महसूस किया है। कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने देश को बताया कि मेरे उपाध्यक्ष बनने के बाद कल रात मां मेरे कमरे में आईं, पास बैठीं और रो पड़ीं क्योंकि वह समझती हैं कि सत्ता जहर की तरह है। राहुल के भाषण में इतनी भावुकता थी कि मंच पर मौजूद उनकी मां सोनिया गांधी, प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और कई कांग्रेसी नेताओं की आंखों में आंसू आ गए। राहुल ने संगठन में आई कमियों की तो बात की पर उनकी बनाई हुई यूपीए सरकार की जन विरोधी नीतियों पर एक शब्द नहीं कहा। न तो उन्होंने महंगाई कैसे दूर होगी, भ्रष्टाचार पर अंकुश कैसे लगेगा, देश में  बिगड़ती कानून व्यवस्था कैसे चुस्त-दुरुस्त होगी, इन पर एक शब्द कहा। आखिर यह सरकार भी तो कांग्रेस की है और राहुल गांधी हमेशा से इस स्थिति में रहे हैं कि वह सीधा प्रधानमंत्री से बात कर उनकी नीतियों को प्रभावित कर सकते थे। फिर आज तक उन्होंने क्यों नहीं किया? आगे कैसे करेंगे? राहुल ने कहा कि हमें 40-50 ऐसे नेता तैयार करने हैं जो जरूरत पड़ने पर पीएम या सीएम बन सकें। ऐसे नेताओं की तो लम्बी कतार पहले से ही कांग्रेस में मौजूद है। जरूरत तो ऐसे नेताओं की है जो कार्यकर्ता की भावनाओं को उन तक सही तरीके से पहुंचा सकें। आज चाहे वह कांग्रेस पार्टी हो या भाजपा हो जन समर्थन और जनता से जुड़े नेता उनमें कम रह गए हैं, सत्ता के दलाल ज्यादा नजर आते हैं। इन सत्ता के दलालों को राहुल कैसे दूर रखेंगे। यह देखना होगा। राहुल को अपनी योजनाओं को प्रभावी ढंग से लागू करने का अवसर भी 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले मिलने वाला है। अब से लोकसभा चुनाव (2014) के बीच 9 विधानसभा चुनाव होने हैं। इनमें कई राज्य महत्वपूर्ण हैं जैसे राजस्थान, मध्य प्रदेश, दिल्ली इत्यादि। देखना यह होगा कि क्या इनमें कांग्रेस की कारगुजारी और रिजल्ट पहले से बेहतर आता है? राहुल के हाथों चुनावी कमान तो पहले भी रही पर बिहार, उत्तर प्रदेश में कांग्रेस का क्या हाल हुआ, यह किसी से छिपा नहीं। क्या राहुल गांधी के साथ कांग्रेस के रणनीतिकारों, के बीच चेंज भी होगा? क्योंकि आज कांग्रेस की सबसे बड़ी मुश्किल यह है कि नेतागण न तो कार्यकर्ताओं की परवाह करते हैं और चूंकि वह कार्यकर्ताओं से कटे हुए हैं इसलिए जनता की सही भावनाओं का उन्हें पता नहीं चल पाता। राहुल को इस स्थिति को बदलना होगा। कार्यकर्ताओं से जहां तक सम्भव हो सके सीधा सम्पर्प बनाना होगा, कार्यकर्ताओं की बातें उन तक बिना नमक मिर्च के पहुंचे यह सुनिश्चित करना होगा। वैसे तो जयपुर के चिंता शिविर में बहुत कुछ हुआ है और आने वाले दिनों में इन पर चर्चा भी करूंगा पर यह जरूर कहना चाहूंगा कि जयपुर कांग्रेस के इस चिंता शिविर में दो बातें साफ उभर कर आई हैं। पहला कि कांग्रेस ने 2014 के चुनाव को जीतने का लक्ष्य तय कर लिया है और दूसरा कि राहुल गांधी 2014 में पार्टी को सत्ता में लाने की पूरी जिम्मेदरी खुद सम्भालेंगे। आज तक बेशक राहुल गांधी हमेशा से नम्बर दो पर थे पर पहली बार उन्होंने सार्वजनिक रूप से पद सम्भाला है। इस मामले में कांग्रेस ने लीड ले ली है। प्रमुख विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी तो दल-दल में फंसी पड़ी है न तो पार्टी के प्रमुख पर विवाद खत्म हो रहा है और 2014 में कौन पार्टी का नेतृत्व करेगा यह तो दूर की बात है। कम से कम कांग्रेस ने 2014 पर अपना फोकस कर लिया है।

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