Thursday 24 January 2013

क्या कल्याण सिंह अपना पुराना करिश्मा दोहरा पाएंगे?


 Published on 24 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
उत्तर पदेश के पूर्व मुख्यमंत्री व दिग्गज माने जाने वाले नेता श्री कल्याण सिंह एक बार फिर भारतीय जनता पार्टी की शरण में आ गए हैं। सोमवार को जनकांति पार्टी (राष्ट्रवादी) का औपचारिक रूप से विलय की घोषणा लखनऊ की अटल शंखनाद रैली में कल्याण के बेटे राजवीर सिंह ने की। हालांकि दल बदल कानून के कारण कल्याण सिंह खुद अभी भाजपा की सदस्यता नहीं ले सके हैं। रैली के बाद पत्रकारों से बातचीत में कल्याण सिंह ने कहा कि मैं अभी भाजपा की सदस्यता नहीं ले रहा हूं। मुझे ऐसा करने के लिए पहले लोकसभा की सदस्यता से इस्तीफा देना होगा। इससे उपचुनाव की स्थिति बनेगी जो गैर जरूरी है क्योंकि 2014 में आम चुनाव हैं। भाजपा के साथ आए कल्याण सिंह ने जय श्रीराम के साथ जय हनुमान का भी नारा लगाया, भारत माता की जय का नारा लगाते हुए वे बेहद भावुक हो गए और कहा कि मेरी अर्थी भी भाजपा के झंडे में लिपट कर जाए। वरिष्ठ भाजपा नेता कल्याण सिंह पर उत्तर पदेश में पार्टी के कल्याण की उम्मीदें लगाए हुए हैं। कल्याण सिंह की दूसरी बार भाजपा में वापसी के पीछे कुछ हद तक केन्द्र में भाजपा के संतुलन का समीकरण भी काम कर रहा है। एक तरह से यह भाजपा में पधानमंत्री पद के दावेदारों की पेशबंदी है। जिन्हें कल्याण सिंह के कंधों की दरकार है। पार्टी सूत्रों का कहना है कि कल्याण सिंह के आने से भाजपा की उत्तर पदेश में लोकसभा सीटें बढ़ेंगी। केन्द्र में सरकार बनाने का मौका मिलने पर उत्तर पदेश के भाजपा नेता पधानमंत्री पद के लिए दावा मजबूती से पेश कर सकेंगे। दूसरी ओर कल्याण सिंह का उद्देश्य अपने बेटे राजवीर सिंह को राजनीति में स्थापित करना भी है। सोमवार को राजवीर ने मंच से भाजपा रैली को सम्बोधित भी किया। 2014 के लोकसभा चुनाव में उत्तर पदेश का विशेष महत्व होगा। 2004 के चुनाव में उत्तर पदेश की वजह से ही भाजपा पिटी। भाजपा के एक राष्ट्रीय नेता का कहना है कि गुजरात में जितनी लोकसभा सीटें हैं भाजपा उत्तर पदेश में उससे ज्यादा सीटें जीतने की स्थिति में अभी भी है। कल्याण सिंह के आने से इसमें इजाफा होगा। रैली में राजनाथ सिंह ने कहा कि पार्टी ने कम से कम 50 सीटें जीतने का लक्ष्य रखा है। अगर हम उत्तर पदेश में 50 से अधिक सीटें जीत गए तो केन्द्र में राजग की सरकार बनने से कोई नहीं रोक सकता। जवाब में कल्याण सिंह ने कहा कि हम तो पहले ही साठ सीटें जीत चुके हैं। उनका इशारा 1998 की ओर था। क्या भाजपा कल्याण सिंह को वापस ला कर अयोध्या मुद्दे को फिर से उभारना चाहती है? अयोध्या विवाद के इतिहास के अकेले नेता कल्याण सिंह हैं जिन्हें सुपीम कोर्ट ने विवादित ढांचा गिरने के बाद शपथ पत्र पर अमल न कर पाने का दोषी ठहराया था और उन्हें सजा भी दी थी। सवाल यह है कि अपनी दूसरी पारी में क्या कल्याण सिंह अपना पुराना करिश्मा दोहरा पाएंगे? वह दो बार मुख्यमंत्री रह चुके हैं। 10 बार यूपी के विधायक रह चुके हैं। भाजपा से नाराज होकर कल्याण सिंह ने 1999 में अपने 77वें जन्मदिन पर राष्ट्रीय कांति पार्टी बनाई। फिर कुछ समय तक वह मुलायम सिंह यादव से भी जुड़े। 2002 का विधानसभा चुनाव भाजपा और कल्याण ने अलग-अलग लड़ा था। यही वह चुनाव था जहां से भाजपा का यूपी में ग्राफ गिरना शुरू हुआ था। सीटों की संख्या 177 से घटकर 88 हो गई। पदेश की 403 सीटों में से 72 पर कल्याण सिंह की जनकांति पार्टी ने दावेदारी ठोंकी थी। इन्हीं सीटों पर भाजपा को सबसे अधिक नुकसान हुआ था।




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