Saturday 12 January 2013

लांस नायक हेमराज व लांस नायक सुधाकर सिंह जैसे बहादुर कभी मरते नहीं


 Published on 12 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र 
तिरंगे में लिपटा घर लौटा शेरगढ़ का शेर। लांस नायक हेमराज के कोसी कलां (मथुरा) स्थित गांव ने अपने शहीद को यही नाम दिया। खबर आने के बाद से ही दहाड़ें मारती मां मीना देवी बेटे का शव घर पहुंचते दहाड़ उठी। पहले मेरे बेटे का सिर लाओ। सेना के जवानों को दो घंटे तक दहाड़ें मारती मीना देवी को शांत करने में लगे। अन्त में सेना के जवानों ने हेमराज का शव चिता पर लिटाया तो गांव के बाकी लोग भी आ गए और मीना देवी की आवाज बन गए। सभी ने नारे लगाए कि शहीद का सिर चाहिए। साहब, एक बार आदेश दे दो, फिर देखो हम उनका क्या हाल करते हैं। उन्होंने हमारे दो साथियों को बेरहमी से मारा है, हम उनकी पूरी बटालियन को मौत की नींद सुलाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं। बस एक बार आदेश देकर देखो...। गुस्से से भरे ये उद्गार सीमा पर तैनात 13 राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट के जवानों के हैं। वे बार-बार अपने अधिकारियों से यही गुहार लगा रहे हैं। बदले की आग में इस कदर झुलस रहे हैं कि उन्होंने दो दिन से खाना तक नहीं खाया। वे भूख हड़ताल पर हैं और यही कह रहे हैं कि जब तक बदला नहीं ले लेंगे तब तक अन्न का एक भी दाना नहीं खाएंगे। 13 राजपूताना राइफल्स रेजिमेंट के जवानों का कहना है कि हम अपने साथियों की शहादत यूं ही जाया नहीं होने देंगे। हम बदला जरूर लेंगे। कमोबेश पूरे देश का यही मूड है। इन पाकिस्तानी दरिन्दों को न तो जिनेवा समझौते की परवाह है और न ही इनकी मानसिकता उन्नीसवीं शताब्दी से बाहर निकली है। उन्नीसवीं शताब्दी में कबीलों की लड़ाई में अपने दुश्मन के सिर को ट्रॉफी मानकर ले जाने वाले हेड हंटर्स (सिर काटने वाले) आज भी पाकिस्तानी सेना में जिन्दा हैं। नियम, कानून, इंसानियत में विश्वास रखने वाली भारतीय सेना से ठीक विपरीत पाकिस्तानी सेना एक बार नहीं, कई बार ऐसी दरिन्दगी का परिचय दे चुकी है। वर्ष 1999 में कारगिल से पहले पाकिस्तान सेना के जवानों ने ठीक इसी हालत में सेना की सोलह कोर के क्षेत्राधिकार में नियंत्रण रेखा पार कर कुछ जवानों पर घात लगाकर हमले कर उनके सिर काट लिए थे। पिछले बारह वर्षों में जम्मू-कश्मीर में सिर काट कर ले जाने का यह ऐसा दूसरा मामला है। कारगिल युद्ध के दौरान कैप्टन सौरभ कालिया के शरीर को क्षत-विक्षत करने वाली पाकिस्तानी सेना ने कुपवाड़ा में नियंत्रण रेखा पर भारतीय सेना के कुछ जवानों को यातनाएं देकर मारा था। शहीद लांस नायक हेमराज और लांस नायक सुधाकर सिंह की बर्बर हत्या के पीछे पाकिस्तानी सेना का हाथ है। केंद्रीय गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने बताया कि इस बर्बर हत्या के कुछ दिन पहले लश्कर-ए-तैयबा के संस्थापक खूंखार आतंकवादी सरगना हाफिज सईद ने नियंत्रण रेखा का दौरा भी किया था। उसने कुछ लोगों से वहां बात भी की थी। पुंछ के मेंढर सेक्टर में भारत-पाक सीमा पर इस बर्बर हत्या को पाकिस्तान स्पेशल कमांडो फोर्स ने अंजाम दिया। भारतीय सेना के जवानों को जिस तरह निशाना बनाया गया, इससे साफ है कि इसकी योजना काफी पहले बनी होगी। सूत्रों के अनुसार हमला करने वाली पाकिस्तान की 29 बलूच रेजिमेंट में अफगानिस्तान के कुछ आतंकवादियों को शामिल कर उन्हें इस तरह के छापामार युद्ध के लिए विशेष ट्रेनिंग दी गई। भारतीय सेना की 25 डिवीजन के डिप्टी जनरल ऑफिसर कमांडिंग (जीओसी) ब्रिगेडियर जेके तिवारी ने बुधवार को राजौरी में शहीदों को श्रद्धांजलि अर्पित करने के बाद पत्रकारों को  बताया कि जब हमला हुआ, उस समय दोनों जवान आठ सदस्यीय पेट्रोलिंग पार्टी के साथ जा रहे थे। काली यूनिफार्म पहने पाकिस्तानी सैनिकों  ने 600 मीटर भारतीय क्षेत्र में घुसकर घने कोहरे में नाका लगाया। पार्टी के पास आते ही उन्होंने आगे चल रहे दो जवानों पर गोलीबारी कर उन्हें शहीद कर दिया। 25 मिनट तक गोली चली। गोलीबारी में मौका पाकर पाकिस्तानी सैनिकों ने दोनों जवानों के सिर काट दिए। सुधाकर सिंह का सिर गायब था, उसकी तलाश जारी है। जब बुधवार की सुबह शहीद हेमराज का शव गांव शेरगढ़ पहुंचा तो हेमराज की शहादत पर हर गांव वाले का सीना फख्र से चौड़ा था। सौ से अधिक महिलाओं से घिरी हेमराज की पत्नी धर्मवती से जब पूछा गया कि बेटा क्या करेगा तो वह ठिठकीं, फिर बोलीं सीमा पर जाएगा और देश की रक्षा करेगा। मेरा लाल प्रिन्स अब सेना में जाएगा, अभी सात साल का है, बड़ा होकर जरूर जाएगा। अब वही दुश्मनों को सबक सिखाएगा। हम हेमराज के परिजनों के दुख में साथ हैं। उनके जज्बे को सलाम करते हैं। हेमराज और सुधाकर सिंह जैसे बहादुर कभी मरते नहीं, यह अमर हो जाते हैं। आज सारा देश उनकी शहादत को सलाम करता है। 

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