Wednesday, 9 January 2013

अब दरिन्दों को भी सताने लगा फांसी का फंदा


 Published on 9 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
अपराधियों में भय पैदा करना बहुत जरूरी है। कानून का भय न होने के ही हम नकारात्मक नतीजे देख रहे हैं। जब इन दरिन्दों को सजा का खौफ होने लगेगा तभी इनके सुधरने का चांस बनता है। भय का ताजा उदाहरण हमारे सामने आ गया है। वसंत विहार गैंगरेप के दरिन्दों को अब अपनी जान की चिन्ता सताने लगी है। इसका अन्दाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि रविवार को दो आरोपियों ने अदालत में सरकारी गवाह बनने की इच्छा जाहिर की है। दरअसल पाठकों को बता दें कि सरकारी गवाह बनने का मतलब और फायदा क्या होता है? कानूनन जो कोई सरकारी गवाह बनता है उसे सजा से छुटकारा मिल जाता है। सरकारी गवाह बनने वाला व्यक्ति अगर जेल में होता है तो ट्रायल की अवधि के दौरान उसे जेल में बिताया गया समय ही उसके लिए सजा होती है। अगर किसी को जमानत मिल गई है तो जमानत से पहले जेल में बिताया गया समय को ही उसकी सजा मान लिया जाता है और बदले में वह अपने साथी अपराधियों के खिलाफ गवाही देकर पुलिस को जुर्म साबित करने में मदद करता है। सरकारी गवाह बनना किसी भी आरोपी की सोची-समझी चाल होती है ताकि सजा के वक्त अदालत उस पर नरमी बरते। सरकारी गवाह बने आरोपियों को अमूमन कम सजा होती है। रविवार को साकेत कोर्ट स्थित महानगर दंडाधिकारी ज्योति कलेर के समक्ष पेशी के दौरान चार में से दो आरोपियों पवन गुप्ता और विनय शर्मा ने खुद को सरकारी गवाह बनाने की इच्छा जाहिर की। सरकारी गवाह बनने की बात कहने वाले दोनों आरोपियों ने गिरफ्तारी के बाद अदालत में पेशी के दारन खुद को फांसी दिए जाने की मांग की थी। कानून के जानकारों का मानना है कि इन दोनों आरोपियों को गवाह बनाने की जरूरत दिल्ली पुलिस को नहीं है क्योंकि पुलिस के पास पर्याप्त सबूत हैं और इन सबूतों के आधार पर उन्हें केस साबित करने में ज्यादा मुश्किल नहीं होनी चाहिए। अदालत ने चारों को 19 जनवरी तक न्यायिक हिरासत में जेल भेज दिया। दो अन्य आरोपियों ने मुकदमे के लिए कोर्ट से कानूनी सहायता उपलब्ध कराने का आग्रह किया है। किसी भी दुष्कर्म में आरोपी को तभी सरकारी गवाह बनाया जाता है जब पुलिस या जांच एजेंसी के पास साक्ष्य कम हों या न हों। पुलिस के पास मृतका का खुद दिया बयान है, उसके दोस्त के रूप में चश्मदीद गवाह भी मौजूद है, पुलिस अधिकारी, डाक्टर, फोरेंसिक रिपोर्ट इत्यादि वह सब गवाही व साक्ष्य मौजूद हैं जो आरोपियों को सजा दिलवाने के लिए अदालत में पर्याप्त साबित होंगे। इन परिस्थितियों में हमें नहीं लगता कि पुलिस इन दोनों को सरकारी गवाह  बनाने के लिए हामी भरेगी। फांसी का फंदा, मौत का खौफ अब इन आरोपियों को सताने लगा है और उससे बचने के लिए यह हथकंडा अपनाया गया है। यह दरिन्दगी तभी रुकेगी जब फांसी के फंदे पर इन्हें लटकाया जाएगा।

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