Sunday, 20 January 2013

डीजल नियंत्रणमुक्त फैसला जन घातक है जिसके दूरगामी दुप्रभाव होंगे


 Published on 20 January, 2013
 अनिल नरेन्द्र
आर्थिक सुधारों के नाम पर मनमोहन सिंह की यूपीए सरकार भारत की गरीब जनता की कमर तोड़ने पर तुल गई है। पहले से ही दो वक्त की रोटी जुटाने में किसान, मजदूर, छोटे तबके के लोगों को जीने के लिए पेट काटने पर मजबूर होना पड़ रहा है। रही-सही कसर इस सरकार ने डीजल की कीमत को नियंत्रणमुक्त करने का फैसला लिया है। 51 पैसे प्रति लीटर तो बढ़ भी गया है डीजल और अब हर महीने बढ़ता ही रहेगा। डीजल की कीमत बढ़ने से महंगाई बढ़ेगी और हर वस्तु महंगी होगी। इस फैसले का चौतरफा विरोध होना स्वाभाविक ही है। चाहे विपक्षी दल हों या इस सरकार के समर्थक दल,  सभी खुलकर विरोध कर रहे हैं। भाजपा का कहना है कि यह जन विरोधी निर्णय है। चाहिए तो यह था कि सरकार इस कदम को उठाने से पहले तेल क्षेत्र में जरूरी सुधार करती। डीजल के मूल्य बढ़ाने के लिए समय भी सही नहीं है क्योंकि लोग पहले ही महंगाई से जूझ रहे हैं। माकपा महासचिव प्रकाश करात ने कहा कि डीजल के दाम नियंत्रणमुक्त करने से आम आदमी पर अतिरिक्त बोझ पड़ेगा, जो पहले ही रोजमर्रा की चीजों के दाम बढ़ने से मुश्किल में है। भाकपा के सचिव डी. राजा ने कहा कि सरकार की इस दलील को स्वीकार नहीं किया जा सकता कि वित्तीय घाटे को कम करने के लिए यह फैसला किया गया है क्योंकि जो भी घाटा है वह इस सरकार की अर्थव्यवस्था के कुप्रबंधन के कारण हुआ है। यूपीए-2 के संकटमोचक बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी जैसे समर्थक दल भी डीजल की कीमतों को बाजार के हवाले करने के सरकार के फैसले का विरोध कर रहे हैं। मायावती ने कहा कि डीजल और रसोई गैस महंगी कर सरकार जनता पर बोझ बढ़ा रही है, सरकार न सिर्प डीजल की कीमत बढ़ाने का अधिकार तेल कम्पनियों को दे रही है बल्कि समय-समय पर उन्हें डीजल की कीमतें बढ़ाने की पूरी छूट भी दे रही है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए हालांकि अभी ऐसे फैसले की उम्मीद नहीं थी लेकिन सरकार ने निर्वाचन आयोग के सामने यह दलील रखते हुए इसकी मंजूरी प्राप्त कर ली कि यह निर्णय आचार संहिता लागू होने से पहले ही लिया जा चुका था और उनकी घोषणा अब की जा रही है। सवाल यह है कि सरकार को यह फैसला लेने में जल्दी क्या थी? इस फैसले को लागू करने के पीछे सरकार तर्प भले ही कुछ भी दे लेकिन सच यह है कि यह फैसला सरकार की दूरगामी सियासी सोच का नतीजा है। पूर्वोत्तर के तीन राज्यों में विधानसभा चुनावों के अलावा 2014 में लोकसभा चुनाव भी होने हैं। जिसके चलते सरकार को अगले महीने पेश होने वाले आम बजट को लोक लुभावना बनाना है। आम बजट में सरकार ऐसी कोई घोषणा नहीं करना चाहती थी जिससे मतदाता कांग्रेस से विमुख हो, इसलिए उसने बजट से ठीक पहले डीजल को नियंत्रणमुक्त किए जाने का बड़ा फैसला ले लिया। डीजल के दाम बढ़ने से आम आदमी के इस्तेमाल की लगभग सभी चीजें महंगी हो जाएंगी। महंगाई बढ़ेगी तो रिजर्व बैंक ब्याज दर में वृद्धि करेगी। जिससे कर्ज महंगा होगा और उद्योगों का उत्पादन घटेगा। जीडीपी में महत्वपूर्ण योगदान रखने वाला कृषि क्षेत्र भी बुरी तरह प्रभावित होगा। किसानों को सिंचाई और जुताई के लिए डीजल महंगा मिलेगा तो उनकी आमदनी प्रभावित होगी और वे कर्ज लेने पर मजबूर होंगे। कर्ज न अदा करने की स्थिति में किसानों की आत्महत्या दर बढ़ने का भी खतरा है। चाहिए तो यह था कि सरकार डीजल की कीमतें नियंत्रणमुक्त करने से पहले एक ऐसा खाका तैयार करती जिसमें खाद्य व अन्य आवश्यक वस्तुओं की ढुलाई पर लगने वाले भाड़े में डीजल मूल्य वृद्धि का असर न होता, साथ ही किसानों को भी बिना रोक-टोक के सस्ता डीजल मिलता रहता। आने वाले दिनों में इस फैसले का चेंज रिएक्शन देखने को मिलेगा।

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