Published on 10 March, 2013
अनिल नरेन्द्र
दो साल तक संघर्ष करने के बाद वेनेजुएला के राष्ट्रपति
ह्यूगो शावेज आखिरकार कैंसर से अपनी जंग हार गए। राजनीतिक गतिरोध के बीच शावेज वेनेजुएला
को अकेला छोड़ गए। मंगलवार को दोपहर (भारतीय समयानुसार बुधवार सुबह) 58 वर्षीय शावेज
ने अपनी अंतिम सांस ली। उनके निधन से तेल समृद्ध लैटिन अमेरिकी देश ने अपना लोकप्रिय
करिश्माई नेता खो दिया है और देश एक बार फिर अनिश्चितता के भंवर में फंस गया है। ह्यूगो
शावेज का निधन समूचे दक्षिण अमेरिका के लिए शोकाहत करने वाला है तो दुनियाभर में उन
लोगों के लिए स्तब्ध करने वाला भी, जो अमेरिकी साम्राज्यवाद के खिलाफ उनकी लड़ाई को
आश्चर्य के साथ देख रहे थे। वैचारिक प्रतिबद्धता का सबसे बड़ा सबूत क्या होगा कि कैंसर
के इलाज के लिए उन्होंने विकसित देशों की बजाय क्यूबा को चुना। निश्चित रूप से ह्यूगो
शावेज तकरीबन तीन करोड़ की आबादी वाले ऐसे छोटे देश के बड़े नेता थे जिसकी पहले कभी
अंतर्राष्ट्रीय मामलों में कोई खास भूमिका नहीं रही। लेकिन पिछले 15 वर्षों से वेनेजुएला
दुनिया में चर्चित रहा तो उसकी वजह शावेज ही थे। शावेज के नेतृत्व में वेनेजुएला ने
दुनिया को दिखाया कि विकल्प का मतलब अपनी क्षमताओं की खोज और साहस के साथ उसका निर्वाह
करना है। शावेज की राजनीतिक विरासत विवादास्पद रही, लेकिन इससे कोई इंकार नहीं कर सकता
कि उनके शासनकाल में गरीबों की हालत सुधरी, सामाजिक सुरक्षा के इंतजाम दुरुस्त हुए
और राष्ट्रीय संसाधनों का जन कल्याण के लिए बेहतर उपयोग हुआ। 1997 तक वेनेजुएल के विशाल
तेल भंडार की लूट मची थी। लेकिन 1998 में सत्ता में आते ही शावेज ने इस लूट को खत्म
किया। दुनिया की कुल तेल सम्पदा का पांचवां हिस्सा अकेले वेनेजुएला में है और शावेज
अपने देश की इस ताकत और महत्व को बाखूबी समझते थे। उन्होंने पश्चिमी देशों की कई बड़ी
तेल कम्पनियों को पहले से ज्यादा रॉयल्टी देने पर मजबूर किया और अपने देश के तमाम लोगों
का दिल जीत लिया। शावेज और अमेरिका की कभी नहीं बनी। वह हमेशा आरोप लगाते रहे थे कि
वाशिंगटन उनकी हत्या की साजिश रच रहा है। रूस के प्रमुख विपक्षी नेता गेन्नादी झिगानोव
ने तो यहां तक कहा है कि शावेज को कैंसर होने के पीछे अमेरिका का हाथ हो सकता है। रूस
के दूसरे सबसे बड़े दल रूसी कम्युनिस्ट पार्टी
बोबी आरएफ के महासचिव झिगानोव ने कहा कि यह कैसे सम्भव है कि अमेरिकी नीतियों की मुखालफत
करने वाले 10 लैटिन अमेरिकी देशों के नेता एक-एक करके एक ही बीमारी से पीड़ित हो गए।
उन्होंने आगे कहा कि मेरे विचार में यह संयोग मात्र नहीं है और इनकी अंतर्राष्ट्रीय
जांच होनी चाहिए। शावेज की मौत भारत के लिए बड़ा झटका है। भारतीय तेल कम्पनियों ओएनजीसी
(विदेश) लि., ऑयल इंडिया तथा इंडियन ऑयल ने वेनेजुएला के तेल क्षेत्रों में निवेश कर
रखा है। इसके अलावा रिलायंस इंडस्ट्रीज ने भी अक्तूबर में वेनेजुएला की सरकारी क्षेत्र
की तेल कम्पनी पीडीवीएसए के साथ करार किए हैं। सार्वजनिक तौर पर दिए गए शावेज के कुछ
बयान भले ही तीखे रहे हों, लेकिन अमेरिकी फौज के सामने उन्हें एक प्रभावी हस्तक्षेप
के तौर पर देखा जाता रहा। अंतर्राष्ट्रीय फलक पर उन्होंने नव उदारवादी पूंजीवाद को
जिस तरह खुली चुनौती दी और सैद्धांतिक तौर पर भी जिन नीतियों पर कामयाब अमल करके दिखाया
वह भरोसे और विकल्प की राजनीति का एक नायाब उदाहरण है। ह्यूगो शावेज का यूं जाना केवल
वेनेजुएला की क्षति नहीं बल्कि पूरे विश्व ने एक महान सपूत खो दिया। शावेज अपनी विरासत
अधूरी और असुरक्षित छोड़कर दुनिया से चले गए।
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