Saturday 16 March 2013

इटली से आर-पार करनी होगी, दांव पर है भारत की अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा




 Published on 16 March, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
हत्या के आरोपी अपने दोनों नौसैनिकों को भारत वापस भेजने से इंकार करके इटली सरकार ने साफ तौर पर भारत सरकार और भारत के सुप्रीम कोर्ट का अपमान किया है। इटली ने भारत से विश्वासघात किया है। भारतीय सुप्रीम कोर्ट के आदेश के मुताबिक या तो वे 22 मार्च की तयशुदा तारीख तक अपने दोनों दोषी नौसैनिकों को भारत के सुपुर्द करें या फिर कूटनीति से लेकर व्यापार और निवेश तक भारत अपने रास्ते और इटली अपने रास्ते। दांव पर है भारत की इज्जत। इस बार आर या पार। बीच का रास्ता खोजना है तो इटली वाले खोजें, भारत में इसकी कोई भूमिका नहीं है। इटली सरकार ने पहले तो यह दलील दी कि इस वारदात को लेकर किसी भारतीय अदालत में मुकदमा चलाया ही नहीं जा सकता क्योंकि घटना स्थल भारत की समुद्री सीमा में नहीं था। पिछले साल एक इतालवी मालवाहक जहाज पर तैनात दो इटेलियन नौसैनिक गार्डों ने भारतीय जल सीमा के भीतर मछली पकड़ रहे केरल के दो मछुआरों को गोली मारकर हत्या कर दी थी। समय पर सूचना मिल जाने से भारतीय नौसेना ने इतालवी जहाज की घेराबंदी कर दी वरना हत्यारे साफ निकल जाते और पश्चिमी देश अपने साझा दबाव से किसी को उनके कंधों पर हाथ नहीं रखने देते। अदालत ने उन्हें पहले क्रिसमस के मौके पर घर हो आने का मौका दिया। फिर बीती 22 फरवरी को वे अपने देश में वोट डालने के बहाने एक महीने की पेरोल पर गए। लेकिन अब इतालवी हुकूमत कह रही है कि उनके खिलाफ जो भी मुकदमा चलाया जाए, भारतीय अदालतों में नहीं  बल्कि इंटरनेशनल कोर्ट में चलाया जाए। ध्यान रहे इस मामले में उनकी वापसी की गारंटी भारत स्थित इतालवी दूतावास ने ली थी। भारतीय कानून के मुताबिक दोषियों के समय पर हाजिर न होने की स्थिति में गारंटर को जेल की हवा खानी पड़ती है। इंटरनेशनल प्रोटोकॉल के मुताबिक राजदूत को गिरफ्तार तो नहीं किया जा सकता, लेकिन संबंधित देश के साथ कूटनीतिक संबंध तोड़ने का विकल्प हमेशा बना रहता है। अगर हम हेलीकॉप्टर खरीद घोटाले में इतालवी पुलिस द्वारा रिकार्ड की गई फिन मैकेनिका के अधिकारियों की बातचीत को याद करें तो यह बिल्कुल साफ हो जाता है कि भारतीय कानून व्यवस्था और राजनीतिक ढांचे के बारे में इटली के आम लोगों की कितनी ओछी समझ होगी। अब अगर इस मामले में हमने जरा-सी भी चूक की तो इसमें हमारे देश के बारे में वही समझ और मजबूत होगी। हमारे अनुभव तो यही बताते हैं कि विकासशील देशों में बन्द अपने नागरिकों को विकसित देश किसी न किसी बहाने ले जाते हैं या अपने आरोपी नागरिकों को दूसरे देशों को नहीं सौंपते। मसलन पुरुलिया हथियार कांड मामले में आरोपी किम डेबी के प्रत्यार्पण से डेनमार्प ने इंकार कर दिया था। इसी तरह बोफोर्स मामले में इटली के क्वात्रोची को और भोपाल गैस कांड के खलनायक वॉरन एंडरसन को अमेरिका ने भारत को नहीं सौंपा। विडम्बना यह है कि वही पश्चिमी देश ही सबसे ज्यादा अंतर्राष्ट्रीय उसूलों और नियम-कायदों की बात करते हैं। भारतीय न्यायपालिका की निष्पक्षता की दुनियाभर में साख रही है। फिर आरोपी सैनिकों की बाबत सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया ने यह कहकर कि इटली सरकार चाहे तो भारत के न्यायाधिकार को चुनौती दे सकती है, यह जाहिर कर दिया था कि उस पर किसी तरह के पूर्वग्रह या भेदभाव का संदेह नहीं किया जा सकता। इस फैसले को इटली के अनुकूल माना गया, क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने इस सवाल को खुला छोड़ दिया कि अपराध भारतीय जल सीमा में हुआ या नहीं। कुछ ही समय पहले भारत और इटली के बीच एक समझौता हुआ, जिसके तहत दूसरे देश में सजायाफ्ता अपराधी अपने देश में कैद  भुगतेंगे। इन सबके बावजूद इटली अगर दादागीरी पर उतरा है तो उसे उसी के अंदाज में जवाब देने के अलावा भारत के पास और कोई चारा नहीं। अब जो भी होगा उसकी पूरी जिम्मेदारी इटली सरकार की होगी। आखिर प्रश्न भारतीय अंतर्राष्ट्रीय प्रतिष्ठा का है।

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