Published on 16
March, 2013
अनिल नरेन्द्र
तीन साल बाद एक बार फिर कश्मीर आत्मघाती आतंकियों के
निशाने पर आ गया। बुधवार को घटते कैडर और सुरक्षा बलों के बढ़ते दबाव से हताश श्रीनगर
के बाहरी इलाके में बसे बेमिना के पुलिस पब्लिक स्कूल मैदान में क्रिकेट खेलने के बहाने
दाखिल आतंकियों ने हमला कर दिया। क्रिकेट किट में छिपाकर लाए हथियारों से किए गए हमले
में सीआरपीएफ के 5 जवान मारे गए जबकि 15 जवान और 3 स्थानीय नागरिक घायल हो गए। घायल
10 जवानों की दशा चिन्ताजनक बनी हुई है। सुरक्षा बलों ने जवाबी कार्रवाई में दोनों
हमलावरों को मार गिराया। घटना की जिम्मेदारी हिज्बुल मुजाहिद्दीन ने ली है। जिस इलाके
में हमला हुआ मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला वहां से आर्म्ड फोर्सेस स्पेशल पावर एक्ट हटाने
की सिफारिश कर चुके हैं। घटना के बाद भी उमर के पिता डॉ. फारुख अब्दुल्ला ने कहा कि
एक्ट हटाना ही होगा। इसकी जरूरत सिर्प सरहदी इलाकों में है। जिस जगह पर हमला हुआ वहां
सरकारी कार्यालय और स्कूल हैं। हुर्रियत के बन्द के आह्वान के कारण लोगों की उपस्थिति
कम थी। खिलाड़ियों के वेश में चार आतंकी क्रिकेट किट में एके-47 और ग्रेनेड लेकर ग्राउंड
में दाखिल हुए। इन लोगों की कोई चैकिंग नहीं की गई। अगर इनकी जांच होती तो हमला टल
सकता था। साथ ही सीआरपीएफ के जवान हथियारों की बजाय डंडों के साथ तैनात थे। कुछ दिन
पहले उमर अब्दुल्ला सरकार ने आदेश जारी कर पुलिस और सीआरपीएफ को घातक हथियारों का इस्तेमाल
नहीं करने के लिए कहा था। सीआरपीएफ पर हमला इसका परिचायक है कि राज्य में आतंकवाद का
खतरा पहले की तरह बरकरार है। कम से कम इस घटना के बाद तो कश्मीर में प्रभावी सशस्त्र
बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को वापस लेने की मुहिम पर विराम लग ही जाना चाहिए। वैसे
भी यह स्पष्ट है कि यह मुहिम संकीर्ण राजनीतिक कारणों से छेड़ी गई है। मौजूदा स्थितियों
में न तो इस कानून को वापस लिया जा सकता है और न ही कश्मीर में तैनात सुरक्षा बलों
की संख्या में कटौती हो सकती है। गौरतलब है कि संसद में हमले के मामले में दोषी अफजल
गुरू को 9 फरवरी को फांसी पर लटका दिया गया था। इसके बाद 21 फरवरी को हैदराबाद ब्लास्ट
हुआ और अब श्रीनगर में फिदायीन हमला। इस बीच फांसी के विरोध में इस्लामाबाद में अलगाववादी
नेता यासीन मलिक का अनशन और इस मौके पर आतंकी सरगना हाफिज सईद का वहां आना, इस पूरे
मामले की जटिलता को खतरनाक अंजाम की तरफ ले गए। इस हमले से यह भी जाहिर होता है कि
आतंकी संगठन कश्मीर में जारी मौजूदा हालात का फायदा उठाना चाह रहे हैं। यह दुर्भाग्यपूर्ण
और चिन्ताजनक है कि जैसे-जैसे विधानसभा चुनाव करीब आते जा रहे हैं वैसे-वैसे कश्मीर
में सत्तापक्ष और विपक्ष कश्मीर के हितों की अनदेखी करते जा रहे हैं। हथियारों से लैस
आतंकवादियों का मुकाबला करने के लिए मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला का यह आदेश कि पुलिस
और सुरक्षा बल सार्वजनिक स्थानों पर निजी हथियार न लेकर जाएं, हमारी समझ से तो बाहर
है। आप एक प्रॉक्सी वॉर का डंडों से कैसे जवाब दे सकते हैं? हमारे बहादुर सीआरपीएफ
के जवान यूं बलि का बकरा नहीं बनाए जा सकते। अगर हमें कश्मीर में या देश के अन्य भागों
में आतंक का मुकाबला करना है तो यह जरूरी है कि हमारे जवानों के पास आतंकियों से लोहा
लेने के लिए सही औजार तो हों। सवाल यह भी उठता है कि आखिर कश्मीर के नेता और यूपीए
सरकार यह क्यों नहीं देख पा रही है कि कश्मीर में आग कौन लगा रहा है? चूंकि कश्मीरी
राजनीतिज्ञ जाने-अनजाने में इस खेल में शामिल हैं इसलिए वह अलगाववादियों और घोषित पाकिस्तान
परस्त तत्वों के साथ-साथ पत्थरबाजों की भी एक जमात खड़ी हो गई है। कश्मीर केवल इसलिए
समस्याग्रस्त नहीं है क्योंकि पाकिस्तान और उसके समर्थित, सपोर्टिड आतंकी संगठन सक्रिय
हैं बल्कि इसलिए भी है कि कश्मीर के राजनेता अपनी सही भूमिका का निर्वाह करने से इंकार
कर रहे हैं। इन परिस्थितियों में भारत-पाक रिश्ते कैसे सुधर सकते हैं? यह ऐसे ही चलेगा,
हमारे बहादुर जवान मरते रहेंगे, हमारे हुक्मरानों में न तो इतना दम है और न ही इच्छाशक्ति
ही है कि पाकिस्तान को मुंहतोड़ जवाब दे सकें।
No comments:
Post a Comment