Thursday 7 March 2013

निर्भया को अमेरिका सम्मानित करेगा



  Published on 7 March, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
बहुचर्चित दिल्ली के वसंत विहार गैंगरेप पीड़िता निर्भया उर्प दामिनी की बहादुरी की गाथा अंतर्राष्ट्रीय हो चुकी है। 8 मार्च को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है। इस अवसर पर अमेरिका की राजधानी वाशिंगटन में दिल्ली की इस बहादुर लड़की के नाम पर एक बड़ा पुरस्कार देने की घोषणा हुई है। पुरस्कार का नाम है इंटरनेशनल वूमन ऑफ करेज अवार्ड। निर्भया के साथ दुनिया की नौ अन्य बहादुर महिलाओं के नाम यह पुरस्कार किया गया है। सभी को सम्मानित किया जाएगा। इस अवसर पर खासतौर पर अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा की पत्नी मिशेल ओबामा उपस्थित रहेंगी। अमेरिका पशासन ने एक पेस नोट में दिल्ली की बहादुर लड़की की जमकर सराहना की है। कहा गया है कि इस 23 वर्षीय लड़की ने आखिरी सांस तक बलात्कारियों से जंग की थी। लेकिन पिछले साल 29 दिसम्बर को इसने सिंगापुर के एक अस्पताल में दम तोड़ दिया था। अमेरिका में मिशेल ओबामा पीड़िता के परिजनों को सम्मानित करने जा रही हैं। सूत्रों के अनुसार अमेरिकी दूतावास ने निर्भया के परिजनों से सम्पर्प किया है। अमेरिका ने सरकारी खर्चे पर पीड़िता के परिजनों को वाशिंगटन पहुंचने का न्यौता दिया है। अभी यह औपचारिक रूप से जानकारी नहीं मिल पाई है कि पीड़िता के परिवार के कौन-कौन लोग अमेरिका जाने वाले हैं। इधर मीडिया में एक निराशाजनक सर्वे छपा है। महिला सुरक्षा के लिए शुरू की गई केंद्र और दिल्ली सरकार की तमाम कोशिशों के बावजूद दिल्ली की महिलाएं खुद को सुरक्षित नहीं मानतीं। तमाम पयासों के बावजूद महिलाओं को रात की बात छोड़िए दिन के उजाले में भी डर लगता है। घूरती नजरें ऐर अभद्र टिप्पड़ियां सार्वजनिक जगहों पर थमने का नाम ही नहीं ले रहीं। अब घर वाले काम पर गईं लड़कियों की सुरक्षा को लेकर बार-बार फोन पर पूछते रहते हैं कि कहां तक पहुंचीं? जब तक वह घर सुरक्षित आ नहीं जातीं तब तक मां-बाप परेशान रहते हैं। जनपथ जैसे सार्वजनिक बाजार में भी मनचले भद्दी फब्तियां कसने से बाज नहीं आते। एक लड़की ने कहा कि सरकार के सुरक्षा दावे भी खोखले हैं। मैंने जब ऐसी ही घटना की शिकायत करने के लिए हेल्पलाइन नंबर 181 पर कॉल की तो नंबर मिला ही नहीं। आम शिकायत है कि बसों में तो लड़कियां सफर कर ही नहीं सकतीं। यदि कुछ हो जाए तो कोई मदद को नहीं आता। एक छात्रा कहती है कि हर बार तो पुलिस के पास मदद को नहीं जा सकते। कॉलेज से घर पहुंचने के लिए यदि सार्वजनिक वाहन का इस्तेमाल किया जाए तो वह भी सुरक्षित नहीं। हालांकि मेट्रो का कोच कुछ हद तक अब भी सुरक्षित कहा जा सकता है। हमारे यूथ को अपनी मानसिकता बदलनी होगी। यह काम न तो सरकार कर सकती है और न ही पुलिस। यह काम तो समाज और घरों में होता है। हर मां-बाप अपने लड़के की फितरत को जानते हैं, कुछ मजबूरी में तो कुछ लाड़-प्यार में लड़के को समझाते नहीं। जब तक हमारे समाज में महिलाओं के पति इज्जत नहीं बढ़ती तब तक मुश्किल है इसका समाधान।

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