Published on 17
March, 2013
अनिल नरेन्द्र
श्रीमती सोनिया गांधी आज सिर्प कांग्रेस पार्टी की केंद्रीय भूमिका में ही नहीं हैं बल्कि
देश की राजनीति में सबसे ज्यादा दखल रखती हैं। आज से 15 साल पहले जब 14 मार्च 1988
को वह राजनीति में उतरी थीं तो शायद किसी ने नहीं सोचा होगा कि उनका सफर इतना लम्बा
होगा। आज वह कांग्रेस पार्टी के इतिहास में सबसे ज्यादा वक्त तक अध्यक्ष पद पर रहने
वाली शख्सियत बन चुकी हैं। वह चार बार सबकी सहमति से इस पद के लिए चुनी गईं। जो काम
पंडित जवाहर लाल नेहरू, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी नहीं कर सके वह उनकी बहू सोनिया
गांधी ने कर दिखाया। डेढ़ दशक तक बतौर कांग्रेस अध्यक्ष पदभार सम्भालने का सेहरा इटली
में पैदा हुईं इंदिरा गांधी की बहू के सिर है। लगातार पाताल की तरफ जा रही कांग्रेस
को सोनिया ने न सिर्प पैरों पर खड़ा कर दिखाया बल्कि अब उनके नेतृत्व में केंद्र में
लगातार नौ वर्षों से संप्रग की सरकार है। इन 15 सालों में कांग्रेस की पूरी सत्ता अपने
इर्द-गिर्द केंद्रित रखें रहीं सोनिया ने अब धीरे-धीरे अपने पुत्र राहुल गांधी को सत्ता
हस्तांतरण शुरू किया है तो संगठन के अन्दर और बाहर सबकी नजरें फिर कांग्रेस पर हैं।
16वें साल में प्रवेश करते हुए सोनिया गांधी ने कहा कि पार्टी की बागडोर सम्भालना आसान
काम नहीं था और उन्होंने पार्टी कार्यकर्ताओं को इस बात का श्रेय दिया कि उनकी मदद
से वह अपनी जिम्मेदारी सही ढंग से निभा पाईं। सोनिया के राजनीतिक कैरियर में मई
2004 अहम मोड़ था जब उन्होंने गठबंधन के रास्ते कांग्रेस को केंद्र में सफलतापूर्वक
सत्ता तक पहुंचाया। वर्तमान कार्यकाल के लिए वर्ष 2010 में वह निर्विरोध चुनी गई थीं।
उनका कार्यकाल 2015 में समाप्त होगा। दरअसल पार्टी संविधान में बदलाव किया गया है जिसके
मुताबिक अब तीन साल की बजाय पांच साल में संगठनात्मक
चुनाव की व्यवस्था की गई है। 1998 में सोनिया गांधी ने जब सीताराम केसरी के हाथों से
छीनकर पार्टी की कमान सम्भाली, तब 127 साल पुरानी यह पार्टी अपने सबसे संकट के दौर
से गुजर रही थी। हर चुनाव में पार्टी हार रही थी। उनका विदेशी मूल का मुद्दा गरम रहा।
शरद पवार ने इसी मुद्दे पर अलग पार्टी बना ली। 1998 और 1999 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस
उनकी अगुवाई में हारी। इसके बाद उन्होंने पार्टी
में बड़े बदलाव किए और 2004 में कांग्रेस की अगुवाई वाली यूपीए सरकार बनी और
सोनिया इस गठबंधन की अध्यक्ष। 2004 में सत्ता मिलने के बाद नाटकीय घटनाक्रम में उन्होंने
प्रधानमंत्री का पद अस्वीकार कर दिया और अर्थशास्त्राr से नेता बने मनमोहन सिंह का
नाम देश के इस कार्यकारी शीर्ष पद के लिए आगे कर दिया। वह प्रधानमंत्री तो नहीं बनीं
लेकिन राष्ट्रीय सलाहकार परिषद (एनएसी) की चेयरमैन बनकर सरकार और संगठन की कमान पूरी
तरह से अपने पास ही रखी। आज सोनिया गांधी दुनिया की सबसे ताकतवर शख्सियतों में शुमार
हैं। सियासी रूप से ताकतवर होने के बावजूद गत दो-तीन साल में सोनिया का इकबाल देश-दुनिया
में कमजोर हुआ है। स्वास्थ्य कारणों से सक्रियता भी कुछ कम हुई और कांग्रेस की छवि
को भी हर क्षेत्र में धक्का लगा है। आजकल राजनीतिक विवाद भी उनके मायके से चल रहे हैं
चाहे वह हेलीकॉप्टर मामले का हो या इतालवी नौसैनिकों का। विपक्ष इन्हें इसलिए भी ज्यादा
उछाल रहा है क्योंकि यह सोनिया के मायके से संबंधित हैं। सोनिया गांधी के सामने अब
सबसे बड़ी चुनौती 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव में पार्टी व गठबंधन को पुन सत्ता
में लाना है। विपरीत हालातों में यह काम आसान नहीं होगा पर अब राहुल भी पूरी तरह मैदान
में उतर गए हैं और मां-बेटा मिलकर इस लक्ष्य को पूरा करने में लगेंगे। सोनिया की एक
बात विशेष है, वह बेशक 15 साल से कांग्रेस अध्यक्ष हैं पर ऐसे कांग्रेसी उंगलियों पर
गिनाए जा सकते हैं जो असल सोनिया को जानते हैं। वह सुनती ज्यादा हैं बोलती बहुत कम
हैं। शायद यही उनकी सफलता का राज हो।
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