Sunday 31 March 2013

लियाकत की गिरफ्तारी ः जम्मू-कश्मीर और दिल्ली पुलिस आमने-सामने



 Published on 31 March, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
 आतंक फैलाने की साजिश रचने के आरोप में गिरफ्तार किए गए हिजबुल मुजाहिद्दीन के आतंकवादी सैयद लियाकत शाह की  गिरफ्तारी विवादों में आ गई है और गिरफ्तारी को लेकर एक बार फिर दो राज्यों की पुलिस के बीच होने वाले टकराव को उजागर करके रख दिया है। अब केंद्र सरकार इस मामले की जांच राष्ट्रीय जांच एजेंसी (एनआईए) को सौंपे जाने के मुद्दे पर पशोपेश में पड़ी है। दिल्ली पुलिस का दावा है कि वह नेपाल से गोरखपुर के रास्ते राजधानी में होली के मौके पर आतंक फैलाने के लिए आ रहा था। उसके पास से एक एके-56 राइफल, तीन हथगोले, दो मैगजीन व 30 कारतूस बरामद किए गए। वहीं जम्मू-कश्मीर पुलिस का कहना है कि वह तो आत्मसमर्पण करने के लिए भारत आ रहा था जिससे कि राज्य सरकार की पुनर्वास नीति का लाभ उठा सके। जाहिर है कि जम्मू-कश्मीर पुलिस या दिल्ली पुलिस दोनों में से एक भी तो सच नहीं बोल रही हैं। आतंकवाद इस देश के लिए कितनी गम्भीर समस्या बन गई है लेकिन इस घटना से साफ है कि उसके प्रति सरकार गम्भीर नहीं दिखती। लियाकत पुनर्वास के लिए आ रहा था या तबाही मचाने, उसका परिवार उसके साथ था या नहीं, इसकी सही जानकारी न हो पाना सरकार की अक्षमता नहीं तो और क्या है? आतंकवाद पर ऐसी गफलत देश और नागरिकों की सुरक्षा के लिए कितनी खतरनाक है, शायद सरकार यह समझने को तैयार नहीं। पहले भी बटला हाउस मुठभेड़ जैसी घटनाओं को लेकर पुलिस की कार्रवाई पर सवाल खड़े किए जाते रहे हैं। उन विवादों में देश की सुरक्षा से ज्यादा राजनीति ही सामने आई है। अब जम्मू-कश्मीर पुलिस ने लियाकत को राज्य की पुनर्वास नीति के तहत समर्पण के लिए भारत आ रहे पूर्व आतंकवादी बताकर दिल्ली पुलिस के दावे पर सवाल खड़े कर दिए हैं। जबकि दिल्ली पुलिस के अनुसार लियाकत अली आतंकी संगठन हिजबुल मुजाहिद्दीन का गुर्गा है और अपने पाकिस्तानी आकाओं के निर्देश पर तबाही मचाने भारत लौट रहा था। इस सच्चाई को सामने लाने के साथ-साथ इस बात की भी तस्दीक होनी चाहिए कि कहीं जम्मू-कश्मीर विधानसभा के इस साल होने वाले चुनावों के मद्देनजर इस गिरफ्तारी को लेकर कोई सियासत तो नहीं हो रही क्योंकि पिछले 23 साल से आतंकवाद की तपिश झेल रहे राज्य में आतंकवाद और राजनीति के कथित मेलजोल पर पहले भी सवाल उठते रहे हैं चाहे वह पीडीपी सरकार की आतंक के प्रति उदार नीति रही हो या मौजूदा नेशनल कांफ्रेंस-कांग्रेस गठबंधन सरकार की पुनर्वास नीति। केंद्र सरकार ने संकेत दिया है कि वह लियाकत की गिरफ्तारी से जुड़े सवालों के जवाब के लिए एनआईए को जांच सौंप सकती है। सवाल उठता है कि एनआईए किन-किन बिन्दुओं पर जांच करेगी? यह तय है कि एनआईए को लियाकत की कस्टडी लेकर उससे पूछताछ करनी पड़ेगी पर लियाकत क्या कहेगा, वह क्यों मानेगा कि दिल्ली में फिदायीन अटैक के लिए आया था? इस मुद्दे पर दिल्ली पुलिस बैकफुट पर है। उसे अपना सोर्स बताना पड़ेगा, कुछ फोन नम्बरों पर बातचीत इंटरसेप्ट की है वह भी बतानी पड़ेगी, जांच के सभी कोण एनआईए के अफसरों को बताने पड़ सकते हैं। एनआईए को यह भी देखना पड़ेगा कि जामा मस्जिद के निकट गैस्ट हाउस में मिले इतने खतरनाक हथियार किसके हैं, वहां कैसे पहुंचे, वहां आए दो शख्स असल में कौन थे, होटल के स्टाफ का अब क्या कहना है? उधर खबर आई है कि लियाकत की गिरफ्तारी से हिजबुल मुजाहिद्दीन में खलबली है। ऑपरेशन के फेल होने से आतंकी सकते में हैं। एक आला दिल्ली पुलिस के अफसर की मानें तो कुछ इसी आशय की कॉल खुफिया एजेंसियों ने इंटरसेप्ट की है। जम्मू-कश्मीर से कुछ लोगों ने पाकिस्तान में आकाओं को फोन कर लियाकत की गिरफ्तारी की सूचना दी थी। जांच में पता चला है कि जो एके-56 राइफल जामा मस्जिद इलाके से बरामद हुई वह चीन निर्मित है। गैस्ट हाउस में जिस आतंकी ने कमरा बुक कराया था उसने अपना नाम मोहम्मद तथा पता भिवानी, हरियाणा का लिखाया था। जो फर्जी पाए गए। उधर स्पेशल सेल अधिकारियों ने बताया कि लियाकत की गिरफ्तारी में सशस्त्र सीमा बल की भी मदद ली  गई थी। लियाकत अली शाह पाकिस्तान के कब्जे वाले कश्मीर मुजफ्फराबाद में रहता था। उसके पास से एक मुहाजिर कार्ड मिला है जिससे पता चलता है कि वह मुहाजिर बनकर वहां अपनी पत्नी व बच्चे के साथ रहता था। बता दें कि इस कार्ड के धारक को वहां की सरकार की तरफ से 15 हजार रुपए प्रतिमाह की मदद मिलती है।

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