Published on 27
March, 2013
अनिल नरेन्द्र
खुशी और हर्षोल्लास के पर्व होली की तैयारियां जोरों पर
हैं। वैदिक विद्वानों के मुताबिक यह पर्व प्रतिवर्ष फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा
को मनाया जाता है। इसमें भद्रकाल वर्जित है। धर्म शास्त्राsं के अनुसार प्रतिपदा, चतुर्दशी
व आधी रात के बाद होलिका दहन निषिद्ध है। होलिका दहन करना राष्ट्र व समाज के लिए कल्याणकारी
रहेगा। बढ़ती महंगाई का असर होली पर भी दिख रहा है। खरीदारों को पिचकारी और गुलाल खरीदना
काफी महंगा पड़ रहा है। कारोबारियों का कहना है कि इस साल गुलाल की मांग में 40 फीसदी
की कमी आई है और इसकी कीमत में 15 से 30 फीसदी इजाफा हुआ है। जबकि पिचकारियों के लिए
भी लोगों को पिछले साल की तुलना में 20 से 25 फीसदी ज्यादा कीमत अदा करनी पड़ रही है।
सदर बाजार के एक व्यवसायी ने कहा कि पिचकारियों के कारोबार में इस साल भी चीनी पिचकारियों
की मांग ज्यादा है। दरअसल दिल्ली का पिचकारियों
का कारोबार 250-300 करोड़ का है, जो पिचकारियां दिल्ली में बनाई जाती हैं उनकी मांग
दिल्ली के आसपास के राज्यों में ज्यादा है। इन दिनों दुकानों में दबंग टू, जब तक है
जान, खिलाड़ी नम्बर 786 जैसी फिल्मों और बॉलीवुड स्टार सलमान खान, सोनाक्षी सिन्हा
के पोस्टर स्टीकर थीम वाली छोटी-बड़ी पिचकारियां खरीदारों को खूब लुभा रही हैं। चीनी
पिचकारियों पर भी बॉलीवुड का तड़का देखने को मिल रहा है। इस साल की होली में एक नई
चीज देखने को मिली है। बेरंग जीवन जी रहीं
वृंदावन की विधवाओं का जीवन रविवार को रंग से भर गया। सभी पर्वों खासकर रंगों के पर्व
से अलग-थलग रहने वाली विधवाओं ने रविवार को रंग से होली खेली। दरअसल कृष्ण की भूमि
वृंदावन के मीरा सहभागिनी विधवाश्रम की महिलाओं ने रविवार से होली खेलनी शुरू कर दी
है। यहां होली का पर्व चार दिनों तक मनाया जाएगा। इन चार दिनों में करीब पांच आश्रमों
की 800 महिलाएं होली मनाएंगी। अभी तक ये महिलाएं केवल अपने ठाकुर जी (श्रीकृष्ण) के
साथ होली खेलती थीं। यह सुविधाएं एनजीओ सुलभ इंटरनेशनल द्वारा मुहैया करवाई गई हैं। होली का पर्व प्रेम और खुशी का प्रतीक है
और इसको समाज व मन में फैली गंदगी को साफ करने के तौर पर मनाया जाना चाहिए। रंगों का
त्यौहार होली बसंत के आगमन की खुशी में मनाया जाता है। होली में इस्तेमाल किए जाने
वाले विभिन्न रंगों को भी बसंत का ही प्रतीक माना जाता है लेकिन आजकल होली के रंगों
में ऐसे कैमिकलों का इस्तेमाल होने लगा है जिससे शरीर को नुकसान होता है। पहले मैरीरोज,
चाइना रोज, केशु व परीजात आदि फूलों से रंग बनाए जाते थे। ये रंग त्वचा के लिए नुकसानदेय
नहीं होते थे। इनमें खुशबू भी होती थी। लेकिन लगातार कट रहे पेड़ों व फूलों की कमी
के चलते अब इनकी जगह कैमिकलयुक्त रंगों ने
ले ली है। रंगों में विभिन्न तरह के कैमिकल जैसे क्रोमियत्र से अस्थमा, सांस की बीमारी,
निकिल, आयरन से त्वचा संबंधी रोग, हड्डियों में रोग व बुखार हो सकता है। वहीं मिट्टी
व पानी के साथ मिलकर यह कैमिकलयुक्त रंग ज्यादा जहरीले हो जाते हैं। रंग छुड़ाने के
लिए कठोर साबुन का प्रयोग न करें। साबुन में एलकलाइन होता है जिससे रूखापन और बढ़ता
है। पहले क्लीजिंग क्रीम और लोशन से त्वचा की मालिश करें फिर रुई से साफ करें। नींबू
का प्रयोग भी किया जा सकता है। इससे दाग हल्के
हो जाएंगे। एक डाक्टर के अनुसार रंग में सिंथेटिक होता है। हरे रंग में कॉपर सल्फेट
होता है जिससे आंखों में एलर्जी, अल्पकालीन अंधापन, कंजक्टीवाइटिस हो सकता है। महिलाएं
इन बातों का रखें ख्याल ः अकेले होली खेलने
न निकलें, केवल परिचित व रिश्तेदारों के साथ होली खेलें, भांग न पीएं, अनजान से कोई
खाद्य पदार्थ न लें और भीड़ में शामिल न हों। आवारागर्द का सामना होने पर तुरन्त पुलिस
हेल्पलाइन की मदद लें और महंगे जेवरात न पहनें। अपने बच्चों के लिए बड़ी बॉल्टी में
पानी भरकर रखें ताकि वह कच्चे पानी से या गटर के पानी का इस्तेमाल न करें। सभी पाठकों
को दैनिक वीर अर्जुन, प्रताप व सांध्य वीर अर्जुन के तमाम साथियों की ओर से होली की
शुभकामनाएं और यह होली आप सबके लिए शुभ और मंगलमय हो।
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