Published on 5 March, 2013
अनिल नरेन्द्र
श्रीलंकाई सेना ने देश में 26 साल तक चले आ रहे तमिल
ईलम यानी तमिल टाइगर्स के साथ गृहयुद्ध के आखिरी महीनों के दौरान कई युद्ध अपराध किए।
अब तक अखबारों में इसकी चर्चा तो होती थी पर कोई ठोस सबूत नहीं मिल रहा था। गत सप्ताह
गृहयुद्ध के अंतिम दिनों पर बनाया एक वृत्त चित्र पेश किया गया। यह वृत्त चित्र मई
2009 में खत्म हुए संघर्ष के आखिरी 138 दिनों की एक भयावह तस्वीर पेश करता है। इसका
शीर्षक `नो फायर जोन-द किलिंग फील्ड्स ऑफ श्रीलंका' है। फिल्म के निर्माता हैं कैलम
मैकराई। मैकराई ने इस फिल्म का प्रदर्शन जेनेवा में संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय में गत
सप्ताह इसके प्रदर्शन से पहले कहा कि इसे सरकार
के सैनिकों के युद्ध अपराध और मानवता के खिलाफ अपराध के सबूत के तौर पर देखना चाहिए।
उन्होंने कहा कि असली सच्चाई सामने आ रही है। हालांकि जेनेवा में नियुक्त श्रीलंका
के राजदूत रविनाथ आर्य सिन्हा ने इस फिल्म के प्रदर्शन का कड़ा विरोध किया। वृत्त चित्र प्रदर्शन का आयोजन ह्यूमन राइट्स वॉच और एमनेस्टी
इंटरनेशनल ने किया था और उन्होंने संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद से अंतर्राष्ट्रीय
जांच के आदेश का आह्वान किया है। उन्होंने आरोप लगाया कि श्रीलंका के घरेलू `लेसंस
लर्न्ट एण्ड रीकउंसिलिएशन कमीशन' (एलएलआरसी) ने सेना की भूमिका पर पर्दा डाल दिया।
वृत्त चित्र में बताया गया है कि जनवरी 2009 में श्रीलंका की सरकार ने नो फायर जोन
बनाया था लेकिन वास्तव में यह `नो फायर जोन' उन हजारों नागरिकों के लिए जाल साबित हुआ
जो सुरक्षा की उम्मीद में यहां पहुंचे थे। इस भाग में भीषण गोलाबारी हुई थी और फिल्म
में बच्चों, महिलाओं तथा पुरुषों के खून से लथपथ शव और कटे हुए अंग पड़े दिखाई दे रहे
हैं। संयुक्त राष्ट्र के अनुमान के मुताबिक युद्ध के आखिरी महीनों में करीब 40 हजार लोग मारे गए। इनमें से ज्यादातर की मौत श्रीलंका
सेना की अंधाधुंध गोलीबारी की वजह से हुई। करीब दो सप्ताह तक नो फायर जोन में फंसे
रहे संयुक्त राष्ट्र के एक कार्यकर्ता ने फिल्म में सवाल पूछा कि सरकार ने अपने ही
गोलाबारूद और हथियारों की रेंज में `नो फायर जोन' क्यों बनाया? उन्होंने कहा, `या तो आपको इस बात की परवाह
नहीं है कि उस सुरक्षित भाग में आप लोगों को मारते हैं या फिर आप उन्हें निशाना बनाते
हैं।' उन्होंने कहा कि उन्हें यह बात ज्यादा सही लगती है कि आप लोगों को निशाना बनाते
हैं। गत सप्ताह एक और रिपोर्ट में वी. प्रभाकरन के छोटे से बेटे के दो फोटो दिखाए गए
थे। पहली फोटो में तो वह जिन्दा है, गिरफ्तार है पर बैठा हुआ है और दूसरे चित्र में
वह मरा हुआ है। हालांकि श्रीलंका सरकार ने बाद में दावा किया कि श्रीलंकाई सेना ने
उसे नहीं मारा पर उसकी सफाई में कोई दम नहीं। धीरे-धीरे तमिल टाइगर्स के साथ-साथ उसके
समर्थक तमिल मूल के श्रीलंकाइयों को भी साफ किया गया। अब यह बात खुलकर सामने आ गई है।
श्रीलंका के राष्ट्रपति महेन्द्रा राजपक्षे कठघरे में खड़े हैं, सारी दुनिया उनकी सफाई
की प्रतीक्षा कर रही है।
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