Wednesday 13 March 2013

यमुना सिर्फ एक नदी नहीं है लाखों लोगों की आस्था का केंद्र भी है




 Published on 13 March, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
देश में जन सरोकार से जुड़े प्रश्नों पर मुहिम और आंदोलन निरन्तर चलते ही रहते हैं। लेकिन दुर्भाग्य से उन्हें तब तक अनदेखा किया जाता है जब तक कि उनकी धमक दिल्ली में सुनाई न पड़े। यमुना मुक्ति पदयात्रा को शुरू में तवज्जो न देने का ही परिणाम है कि आज लाखों पदयात्री यमुना सफाई मुद्दे को लेकर दिल्ली प्रवेश कर गए हैं। इनमें से कुछ साधू-संत हैं, कुछ किसान, तो कुछ सजग संवेदनशील लोग जिन्हें नदी की दूरदर्शिता खींच लाई है। इन आंदोलनकारियों को बेशक कुछ विरोधी राजनेताओं का भी समर्थन मिला है लेकिन इससे आंदोलन का महत्व जरा भी कम नहीं होता। दिल्ली में यमुना की सफाई के लिए 1995 से 2012 तक 2072 करोड़ रुपए सरकार की ओर से खर्च किए जा चुके हैं। अब तक लगभग 12000 करोड़ रुपए खर्च करने के बावजूद यमुना एक नाला बनी हुई है। 4 दिसम्बर 2012 को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि यह निराशाजनक है। जस्टिस स्वतंत्र कुमार और जस्टिस मदन बी. लोकुर की बैंच ने अवलोकन किया कि दिल्ली में यमुना नदी में पानी नहीं गंदगी बहती है। वर्षों से कहा जा रहा है कि हरियाणा के हथिनी पुंड बैराज से यमुना को मुक्त करने और दिल्ली की गंदगी यमुना में न डालने से तस्वीर बदल सकती है। इसके अलावा चूंकि यमुना पर दिल्ली की प्यास मिटाने का भी कमोबेश दायित्व है, इसलिए उसके उद्धार के लिए दिल्ली सरकार की जिम्मेदारी स्वाभाविक ही बढ़ जाती है पर सच्चाई यह है कि दिल्ली और हरियाणा की सरकारें पिछले कई वर्षों से एक-दूसरे पर यमुना को प्रदूषित करने का आरोप लगा रही हैं। जबकि न सिर्प दोनों जगहों पर कांग्रेस की सरकार है बल्कि केंद्र में भी कांग्रेस के नेतृत्व वाली यूपीए सत्ता में है। यमुना सिर्प एक नदी नहीं है बल्कि यह लाखों लोगों की आस्था का केंद्र भी है। यमुनोत्री से लेकर इलाहाबाद में संगम तक अपने 1376 किलोमीटर के सफर में यमुना करीब 1000 किलोमीटर का सफर गंदे नाले के रूप में तय करती है। यमुना की सहायक नदियों चम्बल, केन, बेतवा इत्यादि की वजह से इस नदी में थोड़ा पानी देखने को मिल जाता है। इससे पहले दिल्ली से चम्बल  तक के बीच करीब 700 किलोमीटर में यमुना महज एक नाला बनकर रह गई है। यमुना को सबसे ज्यादा प्रदूषित देश की राजधानी दिल्ली ने किया है। दिल्ली हर दिन हजारों लीटर सीवरेज वॉटर यमुना नदी में फेंक देती है। औद्योगिक प्रदूषण, बिना उपचार के कारखानों से निकला दूषित पानी, मलमूत्र और गंदगी को सीधा नदी में बहा दिया जाता है। यमुना के किनारे मथुरा, वृंदावन जैसे धार्मिक स्थल भी पड़ते हैं जहां श्रद्धालु आकर आस्था का प्रतीक मानी जाने वाली मलमूत्र से भरी यमुना के पानी में स्नान करते हैं। हालात इतने खराब हैं कि आक्सीजन की नदी में कमी होने से इसमें रहने वाले जीवों की भी मौत हो रही है। इसके लिए सरकार को समय रहते संसाधन और सुविचारित कार्य योजना बनानी होगी। यमुना के उद्धार के लिए संबंधित सरकारों को ठोस रास्ता निकालना ही पड़ेगा। लेकिन यमुना को उसके पुराने स्वरूप में लौटाने के लिए जनता को भी सजग और जागरुक होना पड़ेगा, जो हर बेकार चीजों को नदियों में डालकर उसे गंदा करने से बाज नहीं आते। गंगा का उदाहरण भी सामने है, जिसको लेकर प्रधानमंत्री की अध्यक्षता में एक प्राधिकरण गठित होने के बाद भी हालात यथावत हैं। बेहतर होगा कि समय रहते सरकार चेते और खासकर नदियों की निर्मलता के प्रश्न पर आमजन की जागरुकता का सकारात्मक इस्तेमाल करे। जल संरक्षण सहित पर्यावरण के तमाम मसलों को लम्बे समय तक टाला नहीं जा सकता क्योंकि अब इसके खतरे साफ-साफ दिखने शुरू हो गए हैं। 


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