Saturday, 23 March 2013

सीबीआई या कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन?



 Published on 23 March, 2013 
 अनिल नरेन्द्र 
यूपीए सरकार से समर्थन वापसी के 36 घंटों के भीतर ही द्रमुक के कार्यकारी अध्यक्ष एमके स्टालिन के चेन्नई स्थित घर पर छापा मारकर सीबीआई ने पहले से ही गर्माई सियासत में और गर्मी ला दी। केंद्र सरकार की प्रतिशोध की राजनीति का संदेश जाने से सांसत में आए प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम से लेकर पूरा सरकारी अमला सफाई देता नजर आया। पीएम ने जहां इस छापे के समय को दुर्भाग्यपूर्ण बताया वहीं चिदम्बरम ने सारी मर्यादाएं तोड़ते हुए छापों की निन्दा कर दी। इतना ही नहीं, सरकार की तरफ से ही सीबीआई के छापों के पीछे साजिश की आशंका जताई जा रही है। इस पूरे ड्रामे के दो मुख्य पात्र हैं। कांग्रेस पार्टी और सीबीआई। पहले तो हम सीबीआई से पूछना चाहेंगे कि वह गाड़ियों की, टैक्स चोरी के मामले में इन्वाल्व हुई क्यों? क्या सीबीआई के पास और कोई काम नहीं बचा कि अब वह गाड़ियों के आयात में टैक्स चोरी के मामलों में छापे मारने लगे? वैसे भी सीबीआई की कारगुजारी संतोषजनक नहीं। इतने दिन बीतने के बाद भी राजा भैया मामले में सीबीआई अभी तक कुछ नहीं कर सकी। दरअसल सीबीआई का हौवा दिखाकर सत्तारूढ़ दल अपने राजनीतिक स्वार्थ साधते हैं। रहा सवाल कांग्रेस का तो अपनी तरफ से तो पार्टी ने एक तीर से दो शिकार करने की कोशिश की है। पहला निशाना द्रमुक पर साधा है कि देखो हमसे समर्थन वापस लेने की सजा के लिए तैयार रहो। दूसरा उन बाकी सहयोगी दलों (बसपा और सपा) को यह संदेश देने का प्रयास किया है कि अगर तुमने अलग होने की जुर्रत की तो नतीजा भुगतने के लिए तैयार रहना। मेरी राय में कांग्रेस रणनीतिकारों की बुद्धि भ्रष्ट हो चुकी है। कांग्रेस विनाश काले विपरीत बुद्धि की कहावत पर चल रही है। इस साल नौ राज्यों का चुनाव होना है और जिन राज्यों में चुनाव होना है उनमें तमिलनाडु व आंध्र प्रदेश शामिल हैं। कांग्रेस अब तक द्रमुक, टीआरएस   और तृणमूल कांग्रेस से मिलकर चुनाव लड़ती रही है। आज कांग्रेस से यह तीनों न केवल नाराज ही हैं बल्कि वह अब कांग्रेस से गठजोड़ कर चुनाव नहीं  लड़ेंगी। नतीजा यह होगा कि इन राज्यों में कांग्रेस को अकेले लड़ना पड़ेगा। दरअसल कांग्रेस की यह रेपुटेशन बनती जा रही है कि जरूरत पड़ने पर बाप बना लेती है और काम पूरा होने पर जैसे दूध से मक्खी निकाल बाहर फेंक देते हैं ऐसा व्यवहार करती है। आज लालू प्रसाद यादव जैसे सबसे ज्यादा विश्वास पात्र सहयोगी का क्या हाल है? 4 सांसदों के बावजूद आरजेडी का एक भी राज्यमंत्री केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल नहीं है। आंध्र में जगन रेड्डी एक अत्यंत मजबूत स्तम्भ थे, सीबीआई केसों में फंसा कर ऐसा दुश्मन बना लिया है कि उन्होंने भी कसम खा ली है कि आंध्र में कांग्रेस का सूपड़ा साफ करके ही दम लेंगे। कभी दक्षिण भारत में कांग्रेस का सबसे मजबूत माना जाने वाला राज्य आज उसके के हाथ से निकलता जा रहा है। रही-सही तस्वीर विधानसभा चुनाव में नजर आ जाएगी। टीआरएस को लिखित रूप में देकर विधानसभा चुनाव में तो उसका पूरा लाभ उठा लिया पर काम होते ही लात मार बाहर कर दिया। आज कांग्रेस पर किसी भी सहयोगी को विश्वास नहीं रहा। शरद पवार अपना अलग ही खेल खेल रहे हैं। कांग्रेस गठबंधन धर्म को निभाने में बुरी तरह फेल हो गई है तभी तो राम गोपाल यादव ने कहा कि अटल बिहारी वाजपेयी गठबंधन सरकार ने गठबंधन धर्म बेहतर निभाया था। राजग गठबंधन यूपीए गठबंधन से कहीं बेहतर था। संसद का बजट सत्र चल रहा है और कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराने होंगे। इन परिस्थितियों में मनमोहन सरकार इन्हें कैसे पारित कराएगी, यह अलग मसला है। स्टालिन पर सीबीआई का छापा कहीं यूपीए सरकार के लिए ताबूत में आखिरी कील का काम न कर दे? अगर आज सीबीआई को कांग्रेस ब्यूरो ऑफ इन्वेस्टीगेशन या कांग्रेस बचाओ इंस्टीट्यूट कहकर संबोधित किया जाए तो वह गलत नहीं।

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