Published on 8 March, 2013
अनिल नरेन्द्र
युवा कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी
से कांग्रेसियों को बहुत उम्मीदें हैं। एक तरह से राहुल गांधी कांग्रेस की डूबती
नैया के अंतिम सहारा हैं और वह हुकुम का इक्का हैं। कांग्रेस ने उपाध्यक्ष बनाकर
अपनी चाल चल दी है। राहुल ने मंगलवार को संसद के सेंट्रल हॉल में एक बहुत भावुक
भाषण दिया और कई महत्वपूर्ण बातें कहीं। सबसे महत्वपूर्ण बात जो राहुल ने कही वह
यह थी कि आगामी आम चुनावों में उन्हें प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाए जाने की
सम्भावनाओं को खारिज किया जाए। उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री पद उनकी प्राथमिकता
नहीं है। उनका मकसद पार्टी को मजबूत करना और जनता को जोड़ना है, साथ ही उन्होंने
संकेत दिया कि फिलहाल उनका शादी का कोई इरादा नहीं है। उन्होंने कहा कि अगर मेरा
विवाह हुआ और बच्चे हुए तो मैं भी औरों की तरह चाहूंगा कि मेरे भी बच्चे मेरी जगह
लें। राहुल ने कहा कि वह कांग्रेस में हाई कमान संस्कृति के खिलाफ हैं और इसे खत्म
करने की दिशा में कदम उठाना चाहते हैं। जयपुर चिन्तन बैठक के बयानों से थोड़ा आगे
बढ़ते हुए बेबाक बातचीत में उन्होंने यह स्वीकार किया कि वह जमीनी नहीं बल्कि
पैराशूट से उतारे गए नेता हैं, लिहाजा भागीदारी के साथ संगठन के लिए काम करना
चाहते हैं। उन्होंने संगठन को मजबूत करने के लिए कई भावी कदमों का भी जिक्र किया।
राहुल गांधी को जब मैं देखता हूं तो मुझे उनके पिता स्वर्गीय राजीव गांधी की याद आ
जाती है और राजीव के करीब होने की वजह से मैं राहुल को भी सफल होना देखना चाहता
हूं पर राहुल को जमीनी हकीकत भी समझनी पड़ेगी। दरअसल मुझे यह लगता है कि भाजपा में
राजनाथ-मोदी जोड़ी के बढ़ते कदमों से कांग्रेस में घबराहट पैदा हो गई है और राहुल
ने अपने ढंग से नरेन्द्र मोदी द्वारा तीन दिन पहले दिल्ली में दिए गए भाषण का जवाब देने का प्रयास किया है। राहुल
की बातों में विरोधाभास स्पष्ट नजर आता है। आप कांग्रेस संगठन में आईं कमजोरियों
की तो बात करते हैं पर साथ-साथ यह भी कहने से गुरेज नहीं करते कि मैं पीएम नहीं
बनूंगा या पीएम बनना मेरी प्राथमिकता नहीं। अगर आप पीएम नहीं बनना चाहते, सरकार की
नीतियों और प्राथमिकताओं को सही नहीं करना चाहते तो क्या महज संगठन को ठीक करके
कांग्रेस को 2014 के लोकसभा चुनाव में
जिता सकोगे? आज जनता आपकी मनमोहन सिंह सरकार की गलत आर्थिक नीतियों, प्राथमिकताओं,
भ्रष्टाचार, महंगाई, बिगड़ती कानून व्यवस्था, बिजली, पानी इत्यादि-इत्यादि
समस्याओं से बुरी तरह त्रस्त है और यह सब आपकी पार्टी की सरकार की ही देन है। अगर
आप सरकार की नीतियों को नहीं बदलते तो वोट कहां से आएंगे। संगठन तो तभी काम आता है
जब वोट तैयार हों, वोटों की फसल तैयार हो, काटने वाला चाहिए। काटने के लिए संगठन
जरूरी होता है। जब नरेन्द्र मोदी बनाम राहुल गांधी लड़ाई को हम देखते हैं तो
जाहिर-सी बात है कि दोनों नेताओं का राजनीतिक इतिहास, उनकी राजनीतिक सफलताएं,
सरकार चलाने का अनुभव, संसद में परफार्मेंस इत्यादि सभी की तुलना की जाती है।
नरेन्द्र मोदी ने लगातार तीसरी बार गुजरात विधानसभा चुनाव जीत कर साबित कर दिया है
कि उनकी कथनी और करनी में फर्प नहीं है। गुजरात का विकास सबके सामने है। उनका
सरकार चलाने का अनुभव, गुजरात में पार्टी चलाने की क्षमता पर अब किसी को संदेह नहीं।
आज तक उनकी ईमानदारी पर कोई प्रश्न चिन्ह नहीं लगा। पिछले 10 साल में गुजरात में
कोई दंगा नहीं हुआ, बहू-बेटियां पूरी तरह सुरक्षित हैं। विकास का लाभ गुजरात की आम
जनता को पहुंच रहा है। दुख से कहना पड़ता है कि राहुल गांधी की कारगुजारी संतोषजनक
नहीं रही। संसद में आज तक राहुल ने किसी भी महत्वपूर्ण डिबेट में भाग नहीं लिया।
सरकार चलाने का उन्हें कोई अनुभव नहीं। बिहार व उत्तर प्रदेश में राहुल के हाथ में
कमान थी नतीजा क्या हुआ? यह सारी कमियों को देखने के बाद हमें लगता है कि राहुल को
अभी बहुत मेहनत करनी होगी। आगे का रास्ता कांटों भरा है। 2014 के लोकसभा चुनाव से पहले 9 राज्यों में जिनमें
कई अत्यंत महत्वपूर्ण राज्य है में चुनाव होना है। यह राहुल के लिए ड्रेस रिहर्सल
होगी। कांग्रेस की इस चापलूसी संस्कृति ने पार्टी को डुबा दिया है। यह खुशी की बात
है कि राहुल ने कड़ी मेहनत करके जमीनी हकीकतों को करीब से देखा है और समझा है। अब
उन्हें दूर करना चाहते हैं। आज सारे देश की नजरें राहुल गांधी पर टिकी हैं। यह साल
तय करेगा कि वह किस ओर बढ़ रहे हैं।
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