Sunday, 10 March 2013

सवाल यौन संबंधों की उम्र 18 से 16 करने का


 Published on 10 March, 2013 
 अनिल नरेन्द्र
 केंद्रीय गृह मंत्रालय ने सहमति से यौन संबंध बनाने की उम्र कम करने का प्रस्ताव केंद्रीय कैबिनेट की स्वीकृति के लिए भेजा है। सहमति की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल पर ला देने के प्रस्ताव पर समाज में तरह-तरह की प्रतिक्रिया हो रही है। कुछ का कहना है कि यह कदम अगर बच्चों के समय से पहले युवा हो जाने की परिघटना को ध्यान में रखकर उठाया गया है, तो क्या आने वाले दिनों में यह उम्र सीमा और घटाकर 10 साल के बच्चों को सहमति से यौन संबंध बनाने का कानूनी अधिकार दे दिया जाएगा? केंद्र सरकार इस विधेयक पर अगर कैबिनेट में सहमति बन जाती है तो इसे 22 मार्च से पहले ही संसद में पारित कराना चाहेगी, मगर सहमति से यौन संबंध की उम्र 18 साल से घटाकर 16 साल करने के इस प्रस्ताव पर विवाद छिड़ गया है। दिल्ली के वसंत विहार में गैंगरेप की घटना के बाद पिछले महीने सरकार ने बलात्कार संबंधी कानून को सख्त बनाने के लिए अध्यादेश जारी किया था। इसमें आपराधिक कानून के मौजूदा प्रावधानों को कड़ा किया गया है। इस कानून में संशोधन की प्रक्रिया पहले से ही चल रही है और संसदीय समिति उसकी समीक्षा कर रही थी। कुछ दिन पहले समिति ने भी अपनी सिफारिशें सरकार को सौंप दी हैं। इन सिफारिशों और अध्यादेश के प्रावधानों को समाहित करते हुए सरकार को संसद में नया विधेयक पेश करना है। मगर गृह मंत्रालय के दो सुझावों पर विवाद है। इनमें एक सहमति से यौन संबंधों की उम्र घटाने और दूसरा यौन हमले की जगह फिर से बलात्कार शब्द का इस्तेमाल सुनिश्चित करना है। कानून मंत्रालय यौन संबंधों की सहमति की उम्र घटाने को तैयार है। लेकिन कुछ मंत्रियों का मानना है कि इससे यौन उत्पीड़न की घटनाएं बढ़ेंगी, इसलिए मौजूदा व्यवस्था को नहीं बदला जाए। जबकि जो लोग उम्र को कम करने के पक्ष में हैं उनका कहना है कि सहमति से बने संबंधों को कानून की आड़ में अपराध करार दिया जाता है, जिससे युवाओं का अनावश्यक उत्पीड़न होता है। आपराधिक कानून संशोधन विधेयक का जो प्रारूप कैबिनेट के सामने रखा जाना है उसमें यौन सहमति की उम्र 16 साल कर दी गई है। यानी इससे कम उम्र की लड़की के साथ कोई व्यक्ति यदि उसकी सहमति से भी यौन संबंध बनाता है तो उसे बलात्कार माना जाएगा। यहां यह स्पष्ट करना जरूरी है कि सहमति की आयु 18 वर्ष करने के पीछे भी युवा वर्ग के खिलाफ कोई पूर्वाग्रह नहीं काम कर रहा था। हाल तक यह उम्र 18 साल ही थी और इसे ऊपर लाने की वजह यह बताई गई थी कि लड़कियों को बहला-फुसला कर उन्हें वेश्यावृत्ति की तरफ धकेलने वाले सहमति की कानूनी उम्र कम होने का भरपूर फायदा उठाते हैं। होता यह है कि दूरदराज के इलाके में किसी 16 साल की लड़की को भगाकर लाने वाले चिकने-चुपड़े दलाल पुलिस की गिरफ्त में आने से कानूनी आड़ में साफ बच जाते हैं। तमाम महिला संगठन बल्कि खुद बाल अधिकार आयोग भी आवाज उठाता रहा है कि सहमति की आयु ऊंची होने का सीधा नुकसान अपने परिवारों से बगावत करके शादी करने वाले युवा जोड़ों को उठाना पड़ता है। 19 साल का कोई लड़का अगर 18वें में चल रही लड़की के साथ मंदिर में जाकर शादी कर ले तो या तो घर जाते ही खाप पंचायत का मौत का फरमान सुने और थाने जाए तो दरोगा सड़क पर बलात्कार का केस ठोक देते हैं। भले ही लड़की चिल्लाती रहे कि मैंने अपनी मर्जी से शादी की है। ऐसे में मासूम लड़कियों को दलालों के जाल से बचाने के लिए एंटी ट्रैफिकिंग कानूनों को बेहतर बनाने की जरूरत है पर दूसरे पक्ष पर भी गम्भीरता से विचार होना चाहिए। हमारी राय में ऐसे मामलों में जल्दबाजी से बचना चाहिए और समाज में व्यापक परिणाम हेतु कानूनों पर सभी पक्षों से बातचीत  और सहमति के बाद ही आगे बढ़ना बेहतर रहेगा।

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