Published on 24
March, 2013
अनिल नरेन्द्र
केरल तट से दूर दो भारतीय मछुआरों की हत्या के आरोपी
दोनों इतालवी नौसैनिकों का शुक्रवार को भारत लौटना भारतीय कूटनीति व सुप्रीम कोर्ट
के कारण ही सम्भव हो सका। इन दो इतालवी आरोपी नौसैनिकों को भारत न भेजने के इटली के
शुरुआती फैसले की वजह से दोनों देशों के बीच जो कूटनीतिक संकट पैदा हो गया था इटली
के ताजा फैसले ने निश्चित ही उस संकट को समाप्त कर दिया है। गौरतलब है कि इटली ने जब
यह सूचना दी कि चुनावों में वोट देने के लिए भारतीय सुप्रीम कोर्ट से विशेष अनुमति
लेकर इटली जाने वाले दोनों अभियुक्त अब भारत नहीं लौटेंगे तो सुप्रीम कोर्ट ने इस पर
सख्त तेवर अपनाते हुए भारत में इटली के राजदूत को देश छोड़ने पर पाबंदी लगा दी थी।
कोर्ट ने यहां तक कह दिया कि इतालवी राजदूत ने अभियुक्तों की वापसी गारंटी संबंधी हलफनामा
देकर अपना कूटनीतिक अधिकार खो दिया है। लेकिन शुक्रवार को जब दोनों अभियुक्त वापस लौट
आए तो सभी ने राहत की सांस ली। यह संकट अभूतपूर्व इस मायने में था कि ऐसी नजीर ताजा
इतिहास में कहीं नहीं मिलती जिसमें कोई देश दूसरे देश के सुप्रीम कोर्ट के सामने कोई
वादा करे और फिर उससे मुकर जाए। भारत को समझ नहीं आ रहा था कि वह इस स्थिति का सामना
कैसे करे? भारत और इटली के संबंध कभी खराब नहीं रहे, लेकिन इस प्रसंग से बेमतलब की
कड़वाहट रिश्तों में स्थायी रूप से आ जाती। वैसे इटली का इंकार यूं ही इकरार में नहीं
बदला। भारतीय सुप्रीम कोर्ट से किए वादे के मुताबिक अपने नौसैनिकों को मुकदमे के लिए
उसने वापस भेज तो दिया लेकिन लिखित गारंटी के बदले। इटली ने भारत से लिखित गारंटी ली
है कि उसके नौसैनिकों को मृत्युदंड नहीं दिया जाएगा। वहीं इस कूटनीतिक संकट के समाधान
के लिए भारत को रियायत के साथ-साथ अपनी ताकत के कई कूटनीतिक दांव भी चलने पड़े। भारत
सरकार ने अगर इटली को लिखित में गारंटी दी है कि दोनों आरोपियों को मौत की सजा नहीं
दी जाएगी तो इस पर भी सवाल उठना स्वाभाविक ही है। कानून के जानकार कहते हैं कि सरकार
ऐसा भरोसा दे ही नहीं सकती। सजा तय करना अदालत का क्षेत्राधिकार है। सरकार फैसले का
पूर्वानुमान नहीं लगा सकती। क्या कभी ऐसा होता है कि हत्या जैसे जघन्य अपराध का आरोपी
सुप्रीम कोर्ट को वचन देकर बाहर जाने की अनुमति ले और वापस आने के लिए शर्तें रखे?
इटली के नौसैनिकों ने कुछ ऐसा ही किया है। पहले तो इटली ने उन्हें भेजने से मना कर
दिया और जब भारत व सुप्रीम कोर्ट ने दबाव बनाया तो वापस तो भेजा पर लिखित गारंटी के
साथ। इसके अलावा इटली सरकार को भारत सरकार ने यह भी आश्वासन दिया है अभियुक्त नौसैनिकों
के मौलिक अधिकारों की रक्षा और मुकदमा पूरा होने तक उन्हें गिरफ्तार नहीं किया जाएगा।
यानी जब तक मुकदमा चलता रहेगा तब तक वे दोनों नौसैनिक इटली के दूतावास की छत्रछाया
में रहेंगे। लेकिन यह साफ है कि दोनों आरोपी भारतीय न्याय व्यवस्था के सामने पेश होंगे
और उनके दोषी या निर्दोष होने का फैसला भारतीय अदालतें ही करेंगी। अब सत्तापक्ष और
विपक्ष दोनों में होड़ लग गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने इटली का अभियुक्तों को
वापस भेजने के फैसले का स्वागत करते हुए कहा कि इससे भारतीय न्यायिक प्रक्रिया की सत्यनिष्ठा
और गरिमा पुष्ट हुई है। केरल के मुख्यमंत्री ओमान चांडी ने कहा कि यह बात स्पष्ट रूप
से साबित हो गई है कि कोई भी देश भारत की सप्रभुता को लेकर सवाल नहीं कर सकता। विदेश
मंत्री सलमान खुर्शीद ने कहा कि फैसले के बारे में उचित प्रक्रिया के माध्यम से इस
संबंध में सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया जाएगा और वह खुद संसद को जानकारी देंगे। गृह
राज्यमंत्री आरपीएन सिंह ने कहा कि प्रधानमंत्री और संप्रग प्रमुख के कड़े रुख के कारण
मरीन को वापस भेजने का फैसला हुआ। प्रमुख विपक्षी दल भाजपा के प्रवक्ता राजीव प्रताप
रुड़ी ने कहा कि यह सभी विपक्षी दलों के सामूहिक प्रयास का नतीजा है। विपक्ष ने दबाव
बनाया जिसके बाद केंद्र सरकार ने इस मुद्दे पर कड़ा रुख अपनाया। अगर ऐसा नहीं होता
तो सरकार के ढुलमुल रवैये से इटली आरोपियों को भेजने के लिए शायद ही राजी होता। भाकपा
के गुरुदास दास गुप्ता ने कहा कि यह अच्छा है कि इटली ने आरोपी नौसैनिकों को वापस भारत
भेजने का फैसला किया है, लेकिन इसका श्रेय केवल सरकार को नहीं दे सकते। वास्तव में
इसका श्रेय जनता, संसद, सुप्रीम कोर्ट व अंतर्राष्ट्रीय दबाव को जाता है। चलो देर आए
दुरुस्त आए।
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