Published on 23
March, 2013
अनिल नरेन्द्र
सुप्रीम कोर्ट ने बृहस्पतिवार को 1993 के मुंबई ब्लास्ट
केस पर अपना फैसला सुनाया। सभी की दिलचस्पी फिल्म सितारे संजय दत्त के मामले में थी। कोर्ट ने संजय दत्त को आर्म्स एक्ट का दोषी करार
दिया है। टाडा कोर्ट ने उन्हें नौ एमएम पिस्टल और एके-56 रखने का दोषी मानते हुए 6
साल की सजा सुनाई थी। सुप्रीम कोर्ट ने इसे 5 साल कर दिया और संजय दत्त को 4 हफ्ते
में सरेंडर करने को कहा है। संजय दत्त एक मजबूत व्यक्ति हैं और उन्होंने सुप्रीम कोर्ट
द्वारा दी गई सजा को जस का तस स्वीकार कर लिया है। संजय के वकील सतीश माने शिंदे ने
कहा कि हम उन्हें सजा के लिए मानसिक रूप से तैयार कर चुके हैं। खुद संजय दत्त की प्रतिक्रिया
थी कि सुप्रीम कोर्ट के फैसले से मैं भावनात्मक तनाव में हूं। पिछले 20 सालों तक मैंने
इसे सहा है। 18 महीने जेल में भी रह चुका हूं। अगर वे चाहते हैं कि मैं और पीड़ा उठाऊं
तो इसके लिए मुझे मजबूत होना पड़ेगा। आज मेरा दिल टूट गया क्योंकि मेरे साथ तीन बच्चे
और पत्नी और मेरा परिवार सजा भुगतेगा। वैसे संजय दत्त के चाहने वालों को उम्मीद की
एक किरण दिख रही है। हो सकता है कि उनके मुन्नाभाई को साढ़े तीन साल जेल में नहीं रहना
पड़े। यदि जेल में व्यवहार अच्छा रहा तो ढाई साल में बाहर आ सकते हैं। भारतीय प्रेस
परिषद के अध्यक्ष और सुप्रीम कोर्ट के पूर्व मुख्य न्यायाधीश जस्टिस मार्कंडेय काटजू
ने महाराष्ट्र के राज्यपाल के शंकर नारायण से संजय दत्त को माफी देने की अपील भी की
है। काटजू के बयान में कहा गया है कि संजय दत्त को सिर्प बगैर अनुमति के एक नोटिफाइड
एरिया में हथियार रखने का दोषी पाया गया है। 1993 मुंबई ब्लास्ट में शामिल होने का
नहीं। लिहाजा संविधान के अनुच्छेद 161 के तहत राज्यपाल को न्यूनतम सजा माफ करने का
अधिकार है। जस्टिस काटजू ने हत्या के दोषी ठहराए गए कमांडर नानावटी का उदाहरण भी दिया,
जिसमें राज्यपाल ने माफी दे दी थी। उन्होंने कहा कि संजय दत्त का अपराध हत्या से कम
ही संगीन है। वैसे पिछले कुछ समय से आतंकवादी घटनाओं के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने
कड़े फैसले करके न्यायपालिका को संकेत देने की कोशिश की है कि वह इसे गम्भीरता से ले
और ऐसे तमाम उपाय करे कि भविष्य में दहशतगर्दी न फैले। हम 1993 के मुंबई ब्लास्ट के
फैसले को भी इस कड़ी में ले सकते हैं। हालांकि इस केस को मुकाम पर पहुंचने में दो दशक
लग गए। 1993 में मुंबई में एक साथ करीब एक दर्जन ठिकानों पर किए गए बम विस्फोटों में
न केवल 257 लोगों की मौत हुई और 713 लोग घायल हुए थे। इन ब्लास्टों ने न केवल इस शहर
और देश को ही नहीं हिलाया था बल्कि दुनिया को भी स्तब्ध कर दिया था। ऐसे हमले की कल्पना
नहीं की जाती थी और कम से कम भारत में तो बिल्कुल नहीं। खुद सुप्रीम कोर्ट ने इसे द्वितीय
विश्व युद्ध के बाद की सबसे भीषण आतंकी वारदात करार दिया। जहां तक मुंबई हमले के अन्य
दोषियों को सुनाई गई सजा की बात है तो इस पर कोई बहुत बड़ा संतोष नहीं प्रकट किया जा
सकता क्योंकि जिन्होंने साजिश रची वे सब के सब न केवल बचे हुए हैं बल्कि उनमें से कुछ
अभी भी भारत के लिए खतरा बने हुए हैं। सवाल तो यह भी उठता है कि इन 20 सालों में मुंबई
पुलिस माफिया तत्वों से मुक्त हो सकी है? यह सवाल इसलिए क्योंकि आज भी माना जाता है
कि मुंबई हमले की साजिश रचने वाला दाउद इब्राहिम मुंबई में अपने गुर्गों के जरिये आज
भी क्राइम वर्ल्ड का बॉस है। वरिष्ठ वकील माजिद मेनन का कहना है कि अब संजय दत्त के
पास जेल जाने से बचने के लिए बहुत ही कम विकल्प बचे हैं। उन्हें सजा काटनी ही होगी।
दत्त पुनर्विचार याचिका दायर कर सकते हैं, लेकिन उन्हें जमानत मिलनी बहुत मुश्किल है।
मुझे नहीं लगता कि इस फैसले के खिलाफ बड़ी बैंच पुनर्विचार याचिका स्वीकार करे। वहीं
विशेष सरकारी वकील उज्ज्वल निकम कहते हैं कि मुझे बहुत खुशी है कि भगोड़े आरोपी टाइगर
मेमन के भाई याकूब मेमन की फांसी की सजा सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखी है। इसके जरिये
पाकिस्तान पर दबाव बनाया जा सकता है। पाकिस्तान के लिए अब टाइगर मेमन और दाउद इब्राहिम
को पनाह देना मुश्किल होगा और दुख की बात तो
यह है कि पाकिस्तान में बैठे भारत विरोधी तत्व अपने षड्यंत्रों से बाज नहीं आ रहे,
दूसरी ओर ऐसे षड्यंत्रों से बचने के लिए हर स्तर पर जैसे उपाय किए जाने चाहिए, वे अभी
तक नहीं किए जा सके हैं।
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