Sunday, 31 July 2011

अन्ना आंदोलन पर तुले, सरकार इसे फेल करने पर


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31st July 2011
अनिल नरेन्द्र
जैसी इस संप्रग सरकार से उम्मीद थी वही हुआ। केंद्र सरकार ने टीम अन्ना को जोर का झटका दिया है। कैबिनेट ने लोकपाल बिल को मंजूरी दे दी है। जिस मसौदे को पास किया गया है, उसमें अन्ना हजारे की प्रमुख सिफारिशों को एकदम दरकिनार कर दिया गया है। सरकारी मसौदे और टीम अन्ना के मसौदे में सबसे बड़ा अंतर प्रधानमंत्री और ज्यूडिशरी को लेकर है। टीम अन्ना इस बात पर जोर दे रही थी कि लोकपाल के दायरे में प्रधानमंत्री व ज्यूडिशरी जरूरी है जबकि सरकारी मसौदे में प्रधानमंत्री इस कानून के दायरे से बाहर रहेंगे। जब वह पद छोड़ेंगे, तब भ्रष्टाचार के आरोपों की जांच लोकपाल कर सकता है। इसी तरह ज्यूडिशरी भी लोकपाल की जद से बाहर होगी। ज्यूडिशरी की जिम्मेदारी के लिए अलग बिल मानसून सत्र में लाने की उम्मीद सरकार ने जताई है। सरकारी मसौदे में संसद में सांसदों का बर्ताव भी लोकपाल के अधिकार क्षेत्र से बाहर होगा। अलबत्ता, संसद से बाहर के कामों पर लोकपाल जांच कर सकता है। अन्ना चाहते हैं कि संसद के अंदर भी सांसदों का बर्ताव लोकपाल बिल में कवर हो। एक बड़ा मतभेद नौकरशाहों को लेकर है। टीम अन्ना के लोकपाल में पूरी ब्यूरोकेसी इसके दायरे में होनी चाहिए, चाहे वह केंद्र की हो या राज्यों की जबकि सरकारी लोकपाल में ग्रुप `ए' के नीचे की ब्यूरोकेसी जांच के दायरे से बाहर रहेगी। उनके लिए अलग सिस्टम होगा। ऊपर के अधिकारियों की जांच लोकपाल कर सकता है।
टीम अन्ना के सभी सिपहसालार सरकार के रवैये और मसौदे से भड़क गए हैं। प्रशांत भूषण का कहना है कि जो मसौदा मंजूर किया गया है, वह लोकपाल कानून का नहीं `जोकपाल' विधेयक है। प्रशांत ने कहा कि वे सरकार के इस कारनामे के खिलाफ पूरे देश में `गांधीगीरी' करेंगे। 16 अगस्त से जंतर-मंतर पर अन्ना हजारे ने आमरण अनशन का ऐलान पहले से ही कर दिया है। प्रशांत भूषण ने प्रधानमंत्री को लोकपाल के दायरे से बाहर रखने को संविधान विरुद्ध बताया। अन्ना ने कहा कि सरकार ने छल किया है, हम जनता के बीच जाएंगे। टीम अन्ना ने जोर दिया था कि कैबिनेट के सामने दोनों (सरकारी और अन्ना का) मसौदा रखे जाएं, ताकि सही फैसला हो सके पर सिविल सोसायटी का मसौदा कैबिनेट के सामने रखा ही नहीं गया केवल मंत्रियों का मसौदा ही रखा गया। दूसरी ओर कानून मंत्री सलमान खुर्शीद का दावा है कि इस आरोप में कोई सच्चाई नहीं है। उन्होंने कहा कि टीम अन्ना ने लोकपाल विधेयक के लिए 40 प्रमुख बिंदु रखे थे। इसमें से 34 बिंदुओं को विधेयक में समाहित कर लिया गया है। टीम अन्ना की किरण बेदी कहती हैं कि जो विधेयक मंजूर किया गया है, वह एकदम लंगड़ा-लूला है। इस कानून के दायरे से प्रधानमंत्री और न्यायपालिका को बाहर रखा गया है। राज्यों में भ्रष्टाचार के मामले भी इसकी परिधि में नहीं आएंगे। राज्यों में अनिवार्य रूप से लोकपाल नियुक्त करने का सुझाव भी नहीं माना गया। इस तरह यह विधेयक देश की जनता के साथ एक कूर मजाक जैसा है। सूचना अधिकार के जाने-माने कार्यकर्ता अरविंद केजरीवाल ने मंजूर किए गए विधेयक के उस प्रावधान पर हैरानी जताई, जिसमें व्यवस्था की गई है कि भ्रष्टाचार के मामले की कोई शिकायत झूठी निकलती है तो उसे भारी जुर्माना या दो साल तक की सजा भी हो सकती है। वे कहते हैं कि शिकायतकर्ता के खिलाफ ही इतना कड़ा प्रावधान बनाने से लोग डर जाएंगे। इससे भ्रष्टाचारियों को उल्टा और ताकत मिलेगी। उन्होंने कहा कि मुझे यह समझ नहीं आ रहा कि लोकपाल कानून भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए बनाया जा रहा है या बड़े भ्रष्टाचारियों को कवच प्रदान करने के लिए बनाया जा रहा है? केजरीवाल ने लोकपाल विधेयक को `धोखापाल' विधेयक करार दिया है।
लोकपाल बिल के मसौदे के जो भी गुण-दोष हैं, उन्हें एक तरफ रख भी दिया जाए, तो यह साफ है कि इसे लेकर बहुत तीखे मतभेद हैं। एक ओर सरकार और सिविल सोसायटी के बीच मतभेद हैं तो दूसरी ओर सरकार और विपक्ष के बीच। कोई विपक्षी दल सरकार के मसौदे से सहमत नहीं है और इसका परिणाम तब सामने आएगा, जब विधेयक संसद में पेश होगा। सोमवार से संसद सत्र आरम्भ हो रहा है और यह बताने के लिए किसी ज्योतिष-ज्ञान की जरूरत नहीं है कि इस विधेयक पर भारी हंगामा होगा और पूरी-पूरी संभावना यह है कि इस बिल को संसद की स्थायी समिति को सौंप दिया जाएगा, यानि इस बात की कोई संभावना नहीं दिखती कि यह तुरन्त पारित हो जाएगा। पूरे देश में भ्रष्टाचार के विरोध में एक लहर दौड़ रही है और पब्लिक चाहती है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ अविलंब कुछ प्रभावी और सख्त कदम उठाए जाएं। लोकपाल बेशक हर मर्ज की दवा नहीं है, लेकिन वह भ्रष्टाचार के खिलाफ एक प्रभावशाली संस्था जरूर बन सकता है और देश में यह संदेश जाता है कि सरकार भ्रष्टाचार को खत्म करने पर गंभीर है पर तात्कालिक राजनैतिक स्वार्थ और मतभेद लोकपाल पर किसी किस्म की आम सहमति नहीं बनने दे रहा है। लोकपाल पर जब देश की सर्वोच्च संस्था संसद में बहस होगी तब शायद कोई प्रभावी कदम उभरकर निकले। फिलहाल तो टीम अन्ना अपने आंदोलन की तैयारी में जुट जाएगी और सरकार इसे फेल करने में।
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कांग्रेस पर येदियुरप्पा की विदाई भारी पड़ सकती है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 31st July 2011
अनिल नरेन्द्र
कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा के इस्तीफे से कांग्रेस ने भले ही ऊपरी तौर पर खुशी का इजहार किया हो पर अंदरुनी तौर पर उसे भारी चिंता जरूर होगी। अब तक कांग्रेस ने अपने कई मंत्री और मुख्यमंत्रियों को येदियुरप्पा की ओट में बचा रखा था और उनके नाम पर वह अपने घोटालों को न्यायसंगत ठहरा रही थी पर येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद कांग्रेस के कई विकेट गिरने का खतरा मंडराने लगा है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनों को फायदा दिलाने के आरोप में फंसे हैं, दिल्ली की मुख्यमंत्री शीला दीक्षित और उनके वरिष्ठ मंत्री राजकुमार चौहान पहले से ही लोकायुक्त के निशाने पर हैं। ऐसे में जब मुख्य विपक्षी दल भारतीय जनता पार्टी ने अपने एकमात्र आरोपी मुख्यमंत्री को हटा दिया तो कांग्रेस पर भी ऐसे अपने आरोपियों पर कार्रवाई करने का दबाव जरूर बढ़ेगा। एक अगस्त से शुरू हो रहे संसद के मानसून सत्र में विपक्ष हमलावर हो सकता है। इस दौरान केंद्रीय गृहमंत्री पी. चिदम्बरम और प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के इस्तीफे की मांग उठ सकती है। 2जी स्पेक्ट्रम एवं लाइसेंस आवंटन घोटाले के आरोप में जेल में बंद पूर्व संचार मंत्री ए. राजा ने अदालत में मोर्चा खोल दिया है। राजा के अलावा पूर्व दूरसंचार सचिव सिद्धार्थ बेहुरा के बयान ने भी सरकार को असहज स्थिति में ला दिया है। सरकार को इस मामले में सफाई देनी पड़ रही है। बेहुरा ने कहा कि दिसम्बर 2007 में लाइसेंस फीस को लेकर हुई बैठक में रिजर्व बैंक के गवर्नर सुब्बा राव और तत्कालीन वित्त मंत्री पी. चिदम्बरम मौजूद थे। बेहुरा के इस बयान पर गुरुवार को केंद्रीय दूरसंचार मंत्री कपिल सिब्बल को सफाई देनी पड़ी। विपक्ष अब इन सभी बयानों और सूचनाओं का तारतम्य बिठाने में जुट गया है। भाजपा के वरिष्ठ नेता और लोक लेखा समिति के अध्यक्ष डॉ. मुरली मनोहर जोशी ने पहले ही चिदम्बरम के खिलाफ मोर्चा खोल रखा है। वह चिदम्बरम को भी 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले का हिस्सेदार बताते हुए उनके इस्तीफे की मांग कर रहे हैं। हालांकि सरकार भी इस क्रम में स्थिति की गंभीरता को देखते हुए आपरेशन डैमेज कंट्रोल में जुट गई है। इसके लिए भूमि अधिग्रहण संशोधन विधेयक, लोकपाल विधेयक समेत अन्य बिल संसद में पेश किए जाने की रणनीति बनाई जा रही है, ताकि विपक्ष की धार को पुंद किया जा सके। येदियुरप्पा के इस्तीफे के बाद अब कांग्रेस के पास कोई और ऐसा भाजपा का उदाहरण भी नहीं बचा जिससे वह अपना बचाव कर सके।
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Saturday, 30 July 2011

Arrest of Ghulam Fai once again unmasks Pakistan

 - Anil Narendra
Everyone knew about the highly influential Pakistan lobby in US and thanks to this lobby that even after knowing everything, the US administration continued economic and military aid to Pakistan, but it was not aware of the powers working behind this lobby. A few days ago, the US administration arrested another of its citizen, who under the garb of an NGO, was working for the Pak intelligence agency-ISI and was spending money on anti-India propaganda with open hands. As a Director of the NGO, `Kshmiri American Council’ Fai was receiving regularly millions of rupees through hawala transactions and was using this money to inciting American Congressmen against India on Kashmir issue. Ghulam Fai, is the second American of Pak origin, who has recently been arrested by the US authorities. Earlier, terrorist David Hadley was arrested. There has been an astounding revelation that Fai used to organize seminars on Kashmir in America at the behest of ISI and a number of renowned Indians have been participating in these seminars. According to sources, renowned journalist, Dilip Padgaonkar, appointed as interlocutor on the issue of Jammu and Kashmir by the government of India had also attended these seminars. Seminars organized with ISI’s directions and funds have seen a number of Indians including renowned journalist Kuldip Nayyar, separatist leader Mirwaiz Umer Farooq, journalist Gautam Navalakha, Harinder Baweja, Manoj Joshi, Hameeda Naeem, Ved Bhasin, JD Mohammed as participants. These were not only platforms for discussions on Kashmir issue, but pro-Pakistan resolutions were also adopted in there. In fact, for last 25 years, Fai was engaged in reorienting world views on Kashmir. He was trying to internationalize the Kashmir issue, accusing India of heaping injustices on Kashmiris and to establish conspirational links far and wide. According to FBI, Fai is the Executive Director of US-based Kashmir American Council. He is managing its affairs as per dictats of ISI. Fai has been charged of spying for ISI, influencing the viewpoints of Kashmir specialists, politicians, journalists and eminent opinion leaders with a view to garner their support to Pakistan’s view point through the organization of seminars. According to FBI, a number of US Senators have also been contributing to his such efforts. After the arrest of Fai by the FBI, the heat was also felt in India, when it was revealed that a number of eminent Indian personalities have been attending these seminars in US on his invitations. Intelligence sources claim that people used to feel elevated on receiving invitations to attend his seminars. Invitees were paid hefty sums for attending these seminars, in addition to the compensation for US return fare and boarding-lodging in US. A resolution also used to be passed at the conclusion of the seminar, which used to strengthen Pakistan’s viewpoint. Dilip Padgaonkar has admitted his going to US to attend his seminar. He said that he had visited US on Fai’s invitation long back, but he was unaware of his ISI connections. What a coincidence that Fai was arrested at the time, when the US Secretary of State, Hillary Clinton was on a visit to India. In fact, US had known the truth about Fai for last at least six years. Fai was once detained with a huge amount of cash and was extensively interrogated also. India has been demanding action against Fai and his NGO for quite some time. There was no apparent source of income, still Fai was leading an ostentatious life. It may not be surprising that Fai had given maximum contribution to the Republican Senator Dan Burton, notorious for his extreme anti-India stand. The election funds of the present US President, Barak Obama have also been the beneficiary of his donations. Pakistan had been trying to influence US for putting pressure on India for Kashmir referendum. Fai had also penetrated the UN. He was the most vocal advocate of separatist Kashmiri leaders and his arrest must have come as a blow to them. Fai’s would be the second high-profile trial after the Hadley-Rana trial in Chicago. Now the question is that will US succeed pressurizing ISI to check such activities and find more about all ISI contacts? May be Ghulam Fai has direct links with various terror groups. Let us wait and watch about the outcome of the trial.

आईएसआई से 18 करोड़ लिए और वह ही तय करती थी एजेंडा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30th July 2011
अनिल नरेन्द्र
पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के एजेंट गुलाम नबी फई को बुधवार को अमेरिकी अदालत ने एक लाख डालर (करीब 45 लाख रुपये) के मुचलके पर जमानत दे दी। उसे नजरबंदी में रखने का आदेश दिया गया। उसके पैरों में रेडियो टैग बांधा जाएगा, जिससे उसकी गतिविधियों पर नजर रखी जा सके। अमेरिकी संघीय एजेंसी एफबीआई ने बीते सप्ताह फई को आईएसआई से धन लेकर अनुचित ढंग से कश्मीर पर अमेरिकी नीति को प्रभावित करने के आरोप में गिरफ्तार किया था। अलेक्जेंड्रिया की जिला अदालत के न्यायाधीश रावेल्स जोंस ने फई को जमानत देने और रेडियो टैग के साथ नजरबंद रखने का आदेश दिया। भारत के कश्मीर में जन्मे फई को वर्जीनिया के फेरफेक्स स्थित अपनी पत्नी के साथ अपने आवास में रहने की अनुमति दी गई है। फई और उसकी चीनी मूल की पत्नी को पासपोर्ट जमा करने को कहा गया है। फई ने कहा है कि कश्मीर के लोगों को अमेरिका से डरना नहीं चाहिए। उसने एक लिखित बयान में कहा, `कश्मीर के लोगों को यह सोचकर डरने की जरूरत नहीं कि विश्व शक्तियां और खासकर अमेरिका उन्हें निराश करेगा।' फई के वकील ने जमानत मिलने पर उसके द्वारा लिखित बयान की प्रति वितरित की। फई ने कहा, `जम्मू-कश्मीर राज्य के लोगों के प्रति मेरी आजीवन प्रतिबद्धता है। चाहे वह किसी भी पृष्ठभूमि में हो। मेरी प्रतिबद्धता उन्हें भी अपने भविष्य का फैसला करने के लिए आत्मनिर्णय का अधिकार हासिल करने में मदद करने की है।'
इससे पहले गुलाम फई ने अदालत में कहा कि मैं आईएसआई के इशारों पर काम करता था और आईएसआई से मैंने 40 लाख डालर (करीब 18 करोड़ रुपये) लिए। फई के वकीलों ने हालांकि दलील दी कि कश्मीरी अमेरिकी काउंसिल (केएसी) के प्रमुख फई ने हमेशा स्वतंत्र कश्मीर का समर्थन किया। एफबीआई एजेंट सारा वेब लिंडेन ने अदालत को बताया कि फई की हर बैठक का एजेंडा और भाषण आईएसआई तय करती थी। अमेरिकी अटार्नी गार्डन क्रोमबर्ग ने आरोप लगाया कि फई पिछले दो दशक से अमेरिका में आईएसआई के एजेंट के तौर पर काम कर रहा था। हलफनामे में आरोप लगाया गया कि केएसी अपने आपको ऐसा कश्मीरी संगठन बताता है, जो कश्मीरियों द्वारा संचालित होता है और उसे अमेरिकियों से पैसा मिलता है जबकि तीन सेंटरों में से एक `कश्मीर सेंटर' आईएसआई और पाकिस्तान सरकार के कुछ लोग संचालित कर रहे हैं। दो अन्य सेंटर लन्दन और ब्रुसेल्स में स्थित हैं। भारत सरकार को इस केस में विशेष दिलचस्पी लेनी चाहिए ताकि उसे पता चले कि पाकिस्तान किस-किस लेवल में ऑपरेट करता है। दुःख की बात तो यह है कि भारत के नामी-गिरामी पत्रकार गुलाम फई के आईएसआई प्रायोजित, फंडित कार्यक्रमों में भाग लेते रहे हैं।
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अंतत येदियुरप्पा को जाना ही पड़ा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 30th July 2011
अनिल नरेन्द्र
अंतत भाजपा हाई कमान ने हिम्मत और बुद्धिमता दिखाई और कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को हटाने का फैसला कर ही लिया। येदियुरप्पा ने हालांकि अपनी कुर्सी बचाने के लिए सब तरह के हथकंडे अपना लिए परन्तु आलाकमान के आगे उनकी एक न चली। आला कमान ने बुधवार देर रात ही उन्हें बता दिया कि पार्टी चाहती है कि वे अपना पद छोड़ दें। इसके बाद गुरुवार सुबह संसदीय दल की बैठक में उन्हें मुख्यमंत्री पद से हटाने के बारे में किए गए फैसले पर मोहर लगा दी गई। पार्टी ने येदियुरप्पा को हटाने के बारे में तभी मन बना लिया था, जब लोकायुक्त जस्टिस संतोष हेगड़े की रिपोर्ट के कुछ हिस्से लीक हो गए थे। लेकिन पार्टी चाहती थी कि पहले लोकायुक्त अपनी रिपोर्ट औपचारिक तौर पर सरकार के सुपुर्द कर दें। रिपोर्ट सुपुर्द करने के फौरन बाद ही येदियुरप्पा को दिल्ली तलब किया गया और उन्हें पद छोड़ने के लिए कहा गया। येदियुरप्पा बिना इस्तीफा दिए बेंगलुरु पहुंच गए। बेंगलुरु पहुंचने पर येदियुरप्पा ने अपनी ताकत आजमाने के लिए विधायकों व मंत्रियों की बैठक बुलाई जिसमें उनके हाथ निराशा ही लगी। उनकी बुलाई बैठक में कुल 13 विधायक ही पहुंचे। दरअसल भाजपा हाईकमान येदियुरप्पा की चाल को समझ गए थे। इधर येदियुरप्पा दिल्ली से खिसके उधर नितिन गडकरी ने विधायकों को येदियुरप्पा से दूरी बनाने को फोन कर दिया। मंत्रियों को साफ कहा गया कि अगर उन्होंने येदियुरप्पा का अब भी साथ दिया तो उन्हें अगले मंत्रिमंडल में नहीं लिया जाएगा। हाईकमान ने एम. वेंकैया नायडू को `ऑपरेशन येदियुरप्पा' के लिए बेंगलुरु रवाना कर दिया। पार्टी के कड़े रुख को देखते हुए येदियुरप्पा ने पद छोड़ने का फैसला किया और कहा कि वह 31 जुलाई को त्यागपत्र देंगे। उन्होंने बताया कि वह 31 जुलाई को इस्तीफा देंगे क्योंकि 31 जुलाई को शुक्ल पक्ष शुरू हो रहा है क्योंकि 30 जुलाई को अमावस्या है और ज्योतिषियों ने उन्हें शुभ मुहूर्त में इस्तीफा देने की सलाह दी है।
येदियुरप्पा ने अपने उत्तराधिकारी के तौर पर सांसद सदानन्द गौड़ा का नाम सुझाया है, लेकिन पार्टी शुक्रवार को होने वाली विधान मंडल की बैठक में ही नेता का फैसला करेगी। दिल्ली से अरुण जेटली और राजनाथ सिंह को पर्यवेक्षक बनाकर भेजा जा रहा है। मुख्यमंत्री के दावेदारों में के. ईश्वरप्पा, बीएस आचार्य, सुरेश कुमार और अनन्त कुमार भी दावेदार हैं। येदियुरप्पा लिंगायत हैं। कर्नाटक की राजनीति में लिंगायत निर्णायक भूमिका निभाते हैं। अपनी इस जाति के ताकत पर ही येदियुरप्पा हाईकमान को ब्लैकमेल कर रहे थे। राज्य की कुल आबादी में लिंगात करीब 27 प्रतिशत हैं जबकि लिंगात के बाद दूसरे स्थान पर वोकलिंग हैं जो 17 प्रतिशत हैं। पूर्व प्रधानमंत्री एचडी देवगौड़ा वोकलिंग समुदाय से हैं। हाल के वर्षों में येदियुरप्पा लिंगात समुदाय के बड़े नेता के तौर पर उभरकर सामने आए। कर्नाटक भाजपा विधायक दल में ही 35 से ज्यादा विधायक लिंगायत जाति के हैं। विधायकों के बलबूते पर ही विधानसभा चुनाव हो या लोकसभा चुनाव या पंचायत चुनाव, लिगांत कार्ड खेलकर येदियुरप्पा भाजपा को चुनाव जिताने के साथ-साथ अपनी भी जड़ें जमाते रहे। भाजपा को उत्तराधिकारी चुनते समय कर्नाटक के जातीय समीकरण का जरूर ध्यान रखना होगा। जहां तक सम्भव हो येदियुरप्पा का उत्तराधिकारी भी लिगांयत समुदाय से ही होगा।
कर्नाटक की राजनीति में एक बहुत बड़ा फैक्टर रेड्डी बंधु हैं। रेड्डी बंधुओं की कहानी किसी किवदंती से कम नहीं लगती। पुलिस कांस्टेबल के बेटे, जिनके पास साइकिल खरीदने की क्षमता थी उनके पास आज अपना हेलीकाप्टर है। राजनीतिक पकड़ ऐसी कि मुख्यमंत्री येदियुरप्पा और भाजपा का केंद्रीय नेतृत्व भी उन्हें किनारे करने की हिम्मत नहीं जुटा पाया। उन पर लौह अयस्क के अवैध खनन के गम्भीर आरोप लगे। वे करीब 1500 करोड़ के खनन कारोबारी हैं। एक अनुमान के मुताबिक 2002 में खनन तथा इसके निर्यात के व्यवसाय में उतरने के बाद उनकी सम्पत्ति अरबों में है। ओबुलापुरम माइनिंग कम्पनी का मालिकाना हक कर्नाटक के पर्यटन मंत्री जी. जनार्दन रेड्डी के पास है तो येदियुरप्पा सरकार में बड़े भाई जी. करुणाकरण रेड्डी राजस्व मंत्री हैं जबकि छोटे भाई सोमशेखर बेल्लारी से विधानसभा सदस्य हैं। वर्ष 2009 में भी रेड्डी बंधुओं ने येदियुरप्पा के खिलाफ इसलिए विद्रोह कर दिया था कि उन्हें बेल्लारी में मनमाफिक अधिकारियों की नियुक्ति का अधिकार नहीं दिया गया। तब भी सुषमा स्वराज के दखल से मामला सुलझा। भाजपा के शीर्ष नेता कहते रहे हैं कि बेल्लारी में कांग्रेस के गढ़ तोड़ने के लिए भाजपा को उनका सहारा लेना पड़ा। रेड्डी बंधुओं का राजनीतिक उदय बेल्लारी संसदीय सीट से पहली बार कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के चुनाव लड़ने के दौरान हुआ। भाजपा ने सोनिया के खिलाफ सुषमा स्वराज को मैदान में उतारा था। तब रेड्डी बंधुओं ने सुषमा को `काची' (मां) का दर्जा देते हुए उनकी जीत के लिए हर सम्भव कोशिश की थी पर जीत सोनिया की हुई। रेड्डी बंधुओं के सुषमा स्वराज से संबंधों को लेकर अक्सर सवाल उठते रहे हैं लेकिन हाल ही में सुषमा ने दो टूक शब्दों में यह कह दिया कि रेड्डी बंधुओं से उनका कोई कारोबारी संबंध नहीं है। येदियुरप्पा के उत्तराधिकारी चुनने के समय भाजपा आलाकमान को रेड्डी बंधुओं से क्या रणनीति अपनानी है, इस पर भी गम्भीरता से विचार करना होगा क्योंकि यह सरकार बनाने और उखाड़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते आए हैं।
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Friday, 29 July 2011

...और अब पाकिस्तान ने ग्लैमर का सहारा लिया


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th July 2011
अनिल नरेन्द्र
तमाम दुनिया में अपनी गिरती छवि से परेशान पाकिस्तान ने अब ग्लैमर का सहारा लिया है। पाकिस्तान की नई विदेश मंत्री हिना रब्बानी खार एक मॉडल ज्यादा लगती हैं बनिस्पत एक विदेश मंत्री के। विदेश मंत्री बनने के बाद पहली विदेश यात्रा उनकी और कहीं से नहीं शुरू हुई बल्कि भारत से। हिना रब्बानी खार 34 साल की हैं। वह पाकिस्तान की पहली महिला विदेश मंत्री हैं। अभी कुछ दिन पहले ही यानि 20 जुलाई को उन्होंने पद्भार सम्भाला था। हिना पाकिस्तान के नेता मलिक गुलाम नूर रब्बानी खार की बेटी हैं। वह 2001 में विदेश से होटल मैनेजमेंट की डिग्री लेकर आई थीं और 2002 से ही राजनीति में सक्रिय रहकर परिवार की परम्परा आगे बढ़ा रही हैं। हिना बिजनेसमैन फिरोज गुलजार की पत्नी हैं और उनके दो बेटे और एक बेटी है। हिना खुद भी एक बड़े व्यावसायिक कारोबार की मालकिन हैं। पिछले पाकिस्तानी फॉरेन मिनिस्टरों की तरह सफारी सूट वाले ओल्डमैन नहीं बल्कि बला-सी खूबसूरत मॉडल जैसी 34 साल की हिना ने भारत में हलचल मचा दी है। यूं तो पाकिस्तान के कई मंत्री भारत आते रहते हैं पर जिस तरह हिना ने भारत के यूथ को प्रभावित किया है वैसा शायद किसी और पाकिस्तानी नेता ने नहीं किया। आमतौर पर पाक की महिला अफसर या नेता किसी गैर मर्द से हाथ नहीं मिलातीं, केवल आदाब के लिए ही हाथ ऊपर उठाती हैं। लेकिन रब्बानी ने यह रवायत तोड़ डाली। उन्होंने बड़ी गर्मजोशी से हाथ मिलाया और इस तरह से उन्होंने संदेश देने की कोशिश भी की कि अब उनके मुल्क की चाल-ढाल भी बदल गई है पर बेशक पाकिस्तान ने अब ग्लैमर का सहारा लिया हो पर उसका एजेंडा नहीं बदला। हिना ने पहले दिन से ही कश्मीर मुद्दे को मुख्य एजेंडा बनाने की कोशिशें शुरू कर दीं। इन्दिरा गांधी अंतर्राष्ट्रीय एयरपोर्ट से उतरने के बाद वह सीधा पाक उच्चायुक्त गईं। वहां पहले से ही अलगाववादी नेता सैयद अली गिलानी और मीर वाइज फारुख उनका इंतजार कर रहे थे। सबने मिल बैठकर कश्मीर पर चर्चा की। हिना ने सोमवार को लाहौर में जेकेएलएफ नेता यासीन मलिक से भी भेंट की थी। हैदराबाद हाउस में भारत के विदेश मंत्री एसएम कृष्णा के साथ वार्ता में हिना ने स्पष्ट संकेत दे दिए कि आज भी पाकिस्तान वार्ता का मुख्य एजेंडा कश्मीर है। भारत को यह समझ लेना चाहिए कि पाक का एजेंडा नहीं बदला। चेहरे बदल गए हों, ग्लैमर्स मॉडल विदेश मंत्री बन गई हों पर आज भी कश्मीर राग ही प्राथमिकता है। भारत हमेशा से मेहमाननवाजी के लिए जाना जाता है। हमें हिना का गर्मजोशी से स्वागत करना चाहिए पर उनके ग्लैमर पर नहीं जाना चाहिए और अपने मुद्दों को प्रभावी ढंग से रखना चाहिए। वैसे एक इस्लामिक देश में जहां औरतों पर सख्त पाबंदियां हों, बुर्का पहनने पर बल दिया जाता हो, वहां एक खूबसूरत महिला जो सूट पहन रखी हो, हाथ मिलाती हो क्या यह अपने आपमें एक विरोधाभास नहीं? जिस देश में कट्टरपंथियों का राज हो वहां हिना कैसे? हिना रब्बानी खार को पाकिस्तान का विदेश मंत्री बनाए जाने पर जमीयत उलेमा-ए-इस्लामी पार्टी ने नाराजगी जताई है। पार्टी के प्रमुख मौलाना फजलुर रहमान ने रब्बानी की नियुक्ति की आलोचना करते हुए कहा कि एक महिला को यह पद देना `बुद्धिमानीपूर्ण' फैसला नहीं है। हमें इस निर्णय पर आपत्ति है। हमें यह नहीं पता है कि हिना रब्बानी किस तरह से कूटनीतिक मोर्चे पर पाकिस्तान का प्रतिनिधित्व करेंगी। वे एक महिला उद्यमी हैं और उनके पास कोई कूटनीतिक तथा राजनीतिक अनुभव नहीं है। ऐसे में यह बुद्धिमानीपूर्ण फैसला नहीं है।
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सरकार मुझे और मेरे सहयोगियों को मिटाने पर तुली है ः बाबा रामदेव


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 29th July 2011
अनिल नरेन्द्र
केंद्र सरकार, गृह मंत्रालय व दिल्ली पुलिस की तमाम दलीलों को नकारते हुए सुप्रीम कोर्ट ने रामलीला मैदान में चार जून को बाबा रामदेव और उनके समर्थकों पर हुई कार्रवाई पर साफ आदेश दिया कि उस रात की सीडी सुप्रीम कोर्ट में पेश की जाए, कोर्ट खुद सीडी को देखेगा और भविष्य में ऐसी घटनाएं न हों यह सुनिश्चित करेगा। न्यायमूर्ति बीएस चौहान व न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार की पीठ ने कहा कि वे पांच अगस्त को शाम सवा चार बजे सभी पक्षों के वकीलों की उपस्थिति में घटना की सीडी देखेंगे। कोर्ट ने केंद्र सरकार व अन्य सरकारी एजेंसियों से कहा है कि उन्हें जो भी हलफनामे दाखिल करने हैं वे तीन दिन के भीतर दाखिल कर दें। आठ अगस्त और 16 अगस्त को इस मामले पर सुनवाई की जाएगी। अदालत ने कहा कि आधी रात में निर्दोष लोगों की पिटाई नहीं की जा सकती है, चाहे वे जो भी लोग हों। अदालत सुनिश्चित करेगी कि भविष्य में ऐसा दोबारा न हो। दिल्ली पुलिस की ओर से पेश वरिष्ठ वकील हरीश साल्वे ने कहा कि पहले ये साबित हो कि ऐसा हुआ भी था। इस पर न्यायमूर्ति स्वतंत्र कुमार ने टिप्पणी की, `कुछ तो हुआ है।' साथ ही अदालत ने चिदम्बरम को नोटिस किए जाने संबंधित दलील पर कहा कि यह मामला अभी ओपन है और पहले हलफनामा दायर करने दिया जाए उसके बाद इस मुद्दे को देखा जाएगा। उधर बाबा रामदेव ने सोमवार को नई दिल्ली के रफी मार्ग स्थित कांस्टीट्यूशनल क्लब में क्रोध से कहा कि केंद्र सरकार को न तो आतंकवाद से मतलब है और न ही भ्रष्टाचार से। उसके केंद्रबिन्दु सिर्प मैं हूं। सरकार मुझे और मेरे सहयोगियों को मिटाने पर तुली है। तरह-तरह से हम लोगों को प्रताड़ित किया जा रहा है। सीबीआई सहित तमाम एजेंसियों को हमारे पीछे लगाया गया है ताकि कोई षड्यंत्र और कुचक्र कर हमारी प्रतिष्ठा को प्रभावित किया जा सके। उन्होंने कहा कि हमारे या योगाचार्य बालकृष्ण के खिलाफ सरकार क्या कार्रवाई करवाएगी। कार्रवाई करनी है तो पहले प्रधानमंत्री और तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम के खिलाफ करे, जिनके नाम भ्रष्टाचार के आरोपी पूर्व केंद्रीय मंत्री ए. राजा ने लिए हैं। स्वामी रामदेव ने कहा कि बालकृष्ण ने कुछ भी गलत नहीं किया और न ही उनकी डिग्री फर्जी है। उन्होंने कहा कि यह कैसा मजाक है, हम विदेश से काला धन लाने की बात करते हैं, हम भ्रष्टाचार की बात करते हैं तो हमारे खिलाफ देशद्रोहियों जैसा सलूक किया जा रहा है। चार जून से पहले जो सरकार हमें राष्ट्रभक्त कह रही थी वह मुझे मिटाने पर आज तुली है।
फर्जी डिग्री और पासपोर्ट के आरोपों को लेकर सीबीआई बालकृष्ण पर शिकंजा कसती जा रही है। पासपोर्ट मामले में सीबीआई ने केस दर्ज कर लिया है और बालकृष्ण को पकड़ने के लिए जगह-जगह छापे मार रही है। बाबा रामदेव के सहयोगी बालकृष्ण के खिलाफ सख्त रवैया अपनाकर सीबीआई ने एक बार फिर से साबित कर दिया है कि वह एक स्वतंत्र जांच एजेंसी न होकर बल्कि केंद्र सरकार के इशारे पर काम करने वाला एक हथियार है। हालत यह है कि बालकृष्ण का पासपोर्ट रद्द कराने पर आमादा सीबीआई ने कांग्रेस के पूर्व सांसद सुब्बा का पासपोर्ट रद्द कराने की जरा भी कोशिश नहीं की जबकि इस मामले में वह सुब्बा के खिलाफ चार्जशीट तक दाखिल कर चुकी है। सीबीआई के वरिष्ठ अधिकारी स्वीकार करते हैं कि एमके सुब्बा के खिलाफ आरोप बालकृष्ण से कहीं ज्यादा गम्भीर हैं। सीबीआई ने अभी तक बालकृष्ण की भारतीय नागरिकता पर अंगुली नहीं उठाई है। उसके पास केवल पासपोर्ट कार्यालय में जमा किए बालकृष्ण की शैक्षिक डिग्रियों के फर्जी होने के प्रमाण हैं जबकि सुब्बा के मामले में सीबीआई ने अदालत में चार्जशीट दाखिल कर उसके भारतीय नागरिक नहीं होने का प्रमाण पेश किया है। इसके बावजूद आज तक जांच एजेंसी ने सुब्बा का पासपोर्ट रद्द करने के लिए विदेश मंत्रालय से अनुरोध करने की जरूरत नहीं समझी। यही नहीं, सीबीआई की चार्जशीट के बावजूद सुब्बा न सिर्प व्यावसायिक गतिविधियों को बदस्तूर जारी रखे हुए है बल्कि एक पूर्व सांसद को मिलने वाली सुविधाओं का लाभ भी ले रहा है। मजेदार बात यह है कि बालकृष्ण के फर्जी पासपोर्ट में तत्काल कार्रवाई शुरू करने वाली सीबीआई को सुब्बा के खिलाफ कार्रवाई करने में एक दशक से ज्यादा समय लग गया है। सरकार की नीयत साफ है, बाबा रामदेव ठीक ही कहते हैं कि सरकार उन्हें और उनके सहयोगियों को अब मिटाने पर तुली है।
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Thursday, 28 July 2011

गले की हड्डी बने येदियुरप्पा को अविलम्ब हटाओ

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th July 2011
अनिल नरेन्द्र
भ्रष्टाचार के मुद्दे पर यूपीए सरकार के खिलाफ अभियान चला रही भाजपा के शीर्ष नेतृत्व कर्नाटक के मुख्यमंत्री बीएस येदियुरप्पा को लेकर बुरी तरह फंस गई है। दक्षिण भारत में अपनी पहली सरकार को बचाने के लिए भाजपा हाई कमान कोई जोखिम उठाने से कतरा रहा है। लोकायुक्त संतोष हेगड़े ने येदियुरप्पा को भ्रष्टाचार का दोषी करार दिया है और श्री हेगड़े की नीयत व विश्वसनीयता पर शक नहीं किया जा सकता। वह राज्यपाल हंसराज भारद्वाज की तरह नहीं जो निजी एजेंडे या राजनीतिक एजेंडे पर काम करते हैं। जस्टिस हेगड़े एक ईमानदार और विश्वसनीय छवि के हैं। अगर उन्होंने येदियुरप्पा को दोषी पाया है तो यह सही होगा। दरअसल भाजपा नेतृत्व के लिए येदियुरप्पा गले की हड्डी बन चुके हैं जिसे न तो निगल पा रही है और न ही उगल पा रही है। येदियुरप्पा हर बार यही दलील दे देते होंगे कि अगर मुझे हटाया तो सरकार गिर जाएगी और दक्षिण भारत में भाजपा ने जो पैर जमाए हैं वह उखड़ जाएंगे। भाजपा नेतृत्व को येदियुरप्पा की ब्लैकमेलिंग के सामने अब और झुकना नहीं चाहिए। येदियुरप्पा के कारण भाजपा की केंद्र सरकार के खिलाफ भ्रष्टाचार की मुहिम को भी धक्का लग रहा है और कांग्रेस को यह मौका मिलता है कि वह भाजपा पर दोहरे मापदंडों का आरोप लगा सके। भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने कहा है कि लोकायुक्त की रिपोर्ट आने के बाद येदियुरप्पा पर उचित फैसला होगा। कह तो येदियुरप्पा भी यही रहे हैं कि रिपोर्ट आने के बाद पार्टी जो भी फैसला करेगी, वे उसे मानेंगे। भाजपा नेतृत्व को अविलम्ब येदियुरप्पा को हटाकर उनके उत्तराधिकारी की घोषणा कर देनी चाहिए, अब इसमें विलम्ब नहीं होना चाहिए। सम्भव है कि कुछ प्रभावशाली शक्तियों को कुछ दूसरे फायदे येदियुरप्पा के टिके रहने पर होते हों पर अगर शरीर के किसी भाग में कैंसर हो जाए तो क्या शरीर को बचाने के लिए उस अंग को काट नहीं देते? अगर येदियुरप्पा सरकार चली भी जाती है तो भी भाजपा को वापस आने में फायदा मिलेगा।
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बकौल ए. राजा, प्रधानमंत्री-चिदम्बरम को सब पता था


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 28th July 2011
अनिल नरेन्द्र
लगभग एक सप्ताह बाद संसद का मानसून सत्र शुरू होने वाला है। पहले से ही कई तरफ से घिरी कांग्रेस पार्टी और उसके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और घिरने वाले हैं। विपक्ष ने पहले से ही कई मुद्दों पर सरकार के खिलाफ लामबंदी तेज कर दी है। ऐसे में ए. राजा का सीबीआई की विशेष अदालत में प्रधानमंत्री और गृहमंत्री पर सीधे आरोप लगाने से पार्टी और सरकार दोनों की खासी फजीहत होने की सम्भावना है। Šजी स्पेक्ट्रम घोटाले मामले के मुख्य आरोपी पूर्व दूरसंचार मंत्री ए. राजा पर कार्रवाई में देर को लेकर पहले ही सुप्रीम कोर्ट की तीखी टिप्पणी झेल चुके प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह का नाम अब इस विवाद में घसीटे जाने से संप्रग सरकार में हड़कम्प मचना स्वाभाविक ही है। अदालत में अपने बचाव में दलील देते हुए राजा ने कह दिया कि 2जी स्पेक्ट्रम के तमाम महत्वपूर्ण फैसले उन्होंने अकेले नहीं किए। इनमें प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम की सहमति भी रही थी। उल्लेखनीय है कि अदालत में 2जी स्पेक्ट्रम मामले में अभियोग पक्ष और बचाव पक्ष की दलीलों का दौर चल रहा है। अभियोजन पक्ष की दलीलें सुन ली गई हैं। अब बचाव पक्ष को अपनी दलीलें रखने का मौका मिला है। ए. राजा की तरफ से उसके वकील ने एक लिखित बयान पढ़ा था। इसमें कहा गया कि उन्होंने 2जी स्पेक्ट्रम लाइसेंसों के वितरण में कोई मनमानी नहीं की। भाजपा नेतृत्व वाली एनडीए सरकार के दौर से मंत्रालय में जो नीति चली आ रही थी, उन्होंने भी अपने कार्यकाल में इसका ही अनुसरण-भर किया। राजा का कहना था कि यदि मंत्रालय में चली आ रही इस नीति का पालन करके उन्होंने कोई गुनाह किया है तो इससे पहले के दूरसंचार मंत्री भी उतने ही दोषी हैं और उन्हें भी उनके साथ तिहाड़ में होना चाहिए। राजा ने यह कह दिया है कि यह बात प्रधानमंत्री की जानकारी में थी कि स्वान और यूनिटेक कम्पनियों की काफी हिस्सेदारी बहुराष्ट्रीय कम्पनियों के पास चली गई थी। इन कम्पनियों को 2जी स्पेक्ट्रम के लाइसेंस जारी किए गए थे। इस मुद्दे पर तत्कालीन वित्तमंत्री पी. चिदम्बरम ने कोई आपत्ति दर्ज नहीं की थी। ऐसे में उन पर यह आरोप सही नहीं हैं कि उन्होंने विदेशी कम्पनियों के मामले की जानकारी सरकार से छिपाई थी।
राजा के अदालती बयान से चिंतित सरकार ने अपने रणनीतिकार मंत्रियों की फौज `डैमेज कंट्रोल' के लिए लगा दी है। कपिल सिब्बल से लेकर पी. चिदम्बरम, पवन बंसल और नारायणस्वामी तक, सभी राजा के बयानों को एक आरोपी का बयान साबित कर विपक्ष के हमलों का जवाब देने में जुट गए हैं। यूपी, बिहार और कर्नाटक में उजागर हुए ताजा घोटालों के मद्देनजर भाजपा समेत सभी विपक्षी दलों को आईना दिखाने की रणनीति पर अमल शुरू हो चुका है। यह अपनी जगह ठीक हो सकता है पर इससे राजा के आरोप धुल नहीं जाते। इसलिए एक ओर कपिल सिब्बल ने राजा के बयानों को एक आरोपी का बयान साबित करने की कोशिश की तो चिदम्बरम ने भाजपा पर यह आरोप मढ़ दिया कि विस्फोट की घटनाओं में शामिल दक्षिणपंथी कट्टरपंथियों के खिलाफ कार्रवाई की वजह से भाजपा बौखलाई हुई है और इसी बौखलाहट में वह प्रधानमंत्री और गृहमंत्री के इस्तीफों की मांग कर रही है। मगर ए. राजा के बयान के बाद सरकार के सबसे ईमानदार कहे जाने वाले दोनों शीर्ष मंत्री की साख पर आंच आ गई है और वह कैसे साबित करें कि वाकई मनमोहन सिंह और चिदम्बरम को 2जी घोटाले की जानकारी नहीं थी? प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और उनके सिपहसालारों को यह भूलना नहीं चाहिए कि उन्होंने पहले इसी ए. राजा को डिफैंड किया था और यह भी कहा था कि राजा ने कोई गलत काम नहीं किया। अब उस स्टैंड से कैसे पलटेंगे? किसी भी घोटाले का अभियुक्त अपने बचाव में जो कुछ कहता है उस पर पूरी तरह भरोसा करना मुश्किल होता है, लेकिन यह भी मानकर नहीं चला जा सकता कि हर मामले में उसकी दलील खारिज ही कर देनी चाहिए। Šजी स्पेक्ट्रम घोटाले के अभियुक्त यह जो आरोप लगा रहे हैं कि स्पेक्ट्रम पाने वाली कम्पनियों द्वारा शेयर बेचे जाने के मुद्दे पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और तत्कालीन वित्तमंत्री चिदम्बरम के साथ चर्चा की गई थी एक गम्भीर आरोप है। राजा की मानें तो स्पेक्ट्रम पाने वाली कम्पनियों द्वारा अपनी हिस्सेदारी विदेशी कम्पनियों को बेचने के फैसले को केंद्रीय वित्तमंत्री ने प्रधानमंत्री की उपस्थिति में मंजूरी दी थी। सत्तापक्ष राजा के इस आरोप को एक अभियुक्त का बयान बताकर पल्ला झाड़ सकता है, लेकिन इतने मात्र से सन्देह के बादल छंटने वाले नहीं हैं। इसलिए और भी नहीं, क्योंकि यह बात पहले भी सामने आ चुकी है कि राजा के फैसलों पर प्रधानमंत्री के साथ-साथ चिदम्बरम ने भी एतराज जताया था। सच तो यह है कि इस सन्दर्भ में इन दोनों ने पत्र भी लिखे थे और उसके प्रमाण मौजूद हैं। आम जनता तो यह जानना चाहेगी कि आखिर राजा पर इस एतराज का कोई असर क्यों नहीं हुआ और उन्हें मनमानी करने से क्यों नहीं रोका जा सका? ए. राजा की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच के कई आधार हो सकते हैं। सबसे महत्वपूर्ण तो यह है कि राजा की गिरफ्तारी में इतनी देर क्यों लगी? गिरफ्तारी से पहले तक यही प्रधानमंत्री और तत्कालीन गृहमंत्री उनका हर तरह से बचाव करने में लगे हुए थे। खुद प्रधानमंत्री ने स्पेक्ट्रम आवंटन में किसी तरह की गड़बड़ी से इंकार किया था। इतना ही नहीं, दोषपूर्ण और मनमाने तरीके से किए गए स्पेक्ट्रम आवंटन के चलते हुई राजस्व हानि को शून्य बताया गया था। इसके अतिरिक्त यह भी किसी से छिपा नहीं कि स्पेक्ट्रम हासिल करने वाली कम्पनियों ने किस तरह अपनी हिस्सेदारी बेचकर अरबों रुपये अर्जित किए और यह तो जगजाहिर है कि स्पेक्ट्रम आवंटन के समय सारे कायदे-कानूनों को ताक पर रख दिया गया था। क्या सरकार के मुखिया हमें यह बताने की कोशिश कर रहे हैं कि उनके मना करने पर भी उनके एक मंत्री ने मनमानी की और उनके आदेशों का खुला उल्लंघन किया? हम गठबंधन मजबूरियां तो एक हद तक समझ सकते हैं पर इस मजबूरी की आड़ में एक मंत्री को खुलेआम लूट मचाने की छुट्टी हो, यह बात अपनी समझ से बाहर है। अब सवाल यह है कि राजा अपने आरोपों को साबित करने के लिए अदालत में कैसे सबूत देते हैं और अदालत उस पर क्या रुख करती है? अभी तो ए. राजा ने यह आरोप लगाए हैं, आगे देखते जाइए कौन-कौन क्या आरोप लगाता है।
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Wednesday, 27 July 2011

चौतरफा दबाव में मायावती


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th July 2011
अनिल नरेन्द्र
जैसे-जैसे उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव नजदीक आते जा रहे हैं वैसे-वैसे मायावती की समस्याएं बढ़ती जा रही हैं। चार वर्ष तक तो स्थिति बहन जी के नियंत्रण में रही पर पांचवें अंतिम साल में स्थिति उनके काबू से बाहर होती जा रही है। उन पर चौतरफा दबाव बढ़ता जा रहा है। राहुल गांधी जमीन पर उतरकर गांव-गांव घूम रहे हैं, तो दूसरी तरफ अदालतों ने मायावती सरकार को कटघरे में खड़ा करके एक नई समस्या पैदा कर दी है। इन सबकी वजह से केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार की घेराबंदी शुरू कर दी है। सूत्रों के मुताबिक घोटालों और आपराधिक षड्यंत्रों के लिए बदनाम हो चुकी राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएमएम) योजना समेत केंद्र की सभी योजनाओं के लिए पिछले चार वर्षों में भेजे गए धन के उपयोग का हिसाब उत्तर प्रदेश सरकार से मांगे जाने की तैयारी शुरू हो गई है। इसकी शुरुआत राज्य सरकार को एनआरएमएम योजना के तहत दी जाने वाली राशि में 700 करोड़ से ज्यादा की कटौती कर दी गई है। सूत्रों का यह भी कहना है कि मायावती के करीबी माने जाने वाले कुछ उद्योगपतियों और बिल्डरों पर जांच एजेंसियों का घेरा भी कसने लगा है। पिछले दिनों राज्य सरकार के एक ताकतवर मंत्री के खिलाफ हत्या के एक मामले में हाई कोर्ट द्वारा सीबीआई जांच के आदेश पर भी जल्दी ही अमल हो सकता है। गृह मंत्रालय यह भी हिसाब लगा रहा है कि प्रधानमंत्री द्वारा बुलाई गई कितनी बैठकों में मायावती अभी तक शामिल हुई हैं? गृह मंत्रालय से मिली जानकारी के मुताबिक मायावती ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा बुलाई गई एक भी बैठक में शिरकत नहीं की है। सरकार के सूत्रों का कहना है कि उत्तर प्रदेश को पिछले छह वर्षों में एनआरएमएम के तहत 8570 करोड़ दिए गए हैं। इसके अलावा इस वर्ष 3137 करोड़ की धनराशि और मिली। अब तक कुल 11708 करोड़ रुपये दिए जा चुके हैं। राज्य सरकार ने इनके खर्च का कोई हिसाब केंद्र को नहीं दिया है। यही हाल मनरेगा, इन्दिरा आवास योजना, राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना जैसी अन्य केंद्रीय योजनाओं का भी है। इनकी मद से भी केंद्र से राज्य को अरबों रुपये की धनराशि आ चुकी लेकिन खर्च का हिसाब राज्य सरकार ने अब तक केंद्र को नहीं दिया। जबकि गुजरात, बिहार, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, कर्नाटक, झारखंड, उत्तराखंड की गैर-कांग्रेसी सरकारें भी केंद्रीय योजनाओं को किस तरह खर्च करती हैं, उसका हिसाब नियमित रूप से देती हैं। इस सरकार के शीर्ष पर बैठे लोगों ने अरबों का धंधा किया तो राजधानी तक आने वाली केंद्रीय योजनाओं को जमकर लूटा है। जब सरकार के संरक्षण में मंत्री लूटने में जुटे हों तो सांसदों-विधायकों के दमन शोषण को कौन रोकेगा? इसी वजह से कई जगहों पर हत्या और बलात्कार के मामले में मंत्री से लेकर विधायक तक फंसे हैं। राहुल गांधी का भगीरथी प्रयास राज्य में कांग्रेस की वापसी के लिए भी रंग लाने लगा है। नोएडा और ग्रेटर नोएडा में भूमि अधिग्रहण को लेकर अदालतों के फैसले से भी केंद्र और कांग्रेस दोनों का हौंसला बढ़ा दिया है। कुल मिलाकर मायावती बुरी तरह से फंस गई हैं। देखना यह होगा कि अपने राजनीतिक कैरियर की यह सबसे बड़ी चुनौती से वह कैसे निपटती हैं?
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गुलाम फई की गिरफ्तारी से फिर बेनकाब हुआ पाकिस्तान


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 27th July 2011
अनिल नरेन्द्र
सभी जानते थे कि अमेरिका में पाकिस्तान लॉबी बहुत प्रभावशाली है और पिछले कई वर्षों में इसी लॉबी के कारण सब कुछ जानते हुए भी अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान की आर्थिक, सैनिक मदद करता चला आ रहा है पर यह नहीं पता था कि इस लॉबी के पीछे कौन-कौन-सी शक्तियां काम कर रही हैं। गत दिनों अमेरिका ने अपने एक और नागरिक को गिरफ्तार किया है जो दशकों से एक एनजीओ की आड़ में पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी आईएसआई के लिए काम कर रहा था और कश्मीर पर भारत विरोधी प्रचार के लिए पानी की तरह पैसा बहा रहा था। `कश्मीरी अमेरिकन काउंसिल' नामक इस एनजीओ के डायरेक्टर के रूप में गुलाम नबी फई आईएसआई से हवाला के जरिये करोड़ों रुपये नियमित रूप से पाता था और इसका इस्तेमाल अमेरिकी सांसदों को कश्मीर पर भारत के खिलाफ भड़काने के लिए करता था। गुलाम फई ऐसे दूसरे पाकिस्तानी मूल के अमेरिकन हैं जिन्हें हाल में अमेरिका ने गिरफ्तार किया है। इससे पहले आतंकी डेविड हेडली गिरफ्तार हुए थे। चौंकाने वाली बात यह भी सामने आई है कि फई आईएसआई के इशारों और पैसों से अमेरिका में कश्मीर पर सेमिनार आयोजित करता था और इस आयोजन में बहुत से नामी भारतीय भी हिस्सा लेते रहे हैं। सूत्रों के अनुसार भारत सरकार ने प्रख्यात पत्रकार दिलीप पडगांवकर को जम्मू-कश्मीर मामले में प्रमुख वार्ताकार बनाया है वह भी फई के सेमिनार में हिस्सा ले चुके हैं। आईएसआई के सहयोग से आयोजित होने वाले सेमिनारों में भाग लेने वालों में प्रख्यात पत्रकार कुलदीप नैयर, अलगाववादी नेता मीरवाइज उमर फारुख, राजेन्द्र सच्चर, पत्रकार गौतम नवलखा, हरिन्दर बवेजा, मनोज जोशी, हमीदा नईम, वेद भसीन, जेडी मोहम्मद समेत तमाम भारतीय रहे हैं। सेमिनार में न केवल कश्मीर के मुद्दे पर चर्चा होती थी बल्कि पाकिस्तान का समर्थन करने वाला प्रस्ताव भी पारित होता था। फई दरअसल सेमिनार के बहाने पिछले 25 सालों से दुनिया का कश्मीर पर नजरिया बदलने में लगा हुआ था। उसकी कोशिश इसके माध्यम से कश्मीर मुद्दे का अंतर्राष्ट्रीयकरण करना, भारत को कश्मीरवासियों के साथ अन्याय करने का दोषी बनाना तथा दूर तक षड्यंत्र के तार जोड़ने की थी। एफबीआई के मुताबिक फई अमेरिका से चलने वाले कश्मीर अमेरिकन परिषद का कार्यकारी निदेशक हैं। वह इसे आईएसआई के इशारे पर चला रहा है। फई पर आईएसआई के लिए जासूसी करना, उसके इशारे पर पाकिस्तान के कश्मीर पर रुख को समर्थन देने के इरादे से विशेषज्ञों, राजनीतिज्ञों, पत्रकारों तथा समाज के अगुवा लोगों के लिए सेमिनार आयोजित करके लोगों का नजरिया बदलने का आरोप है। एफबीआई के अनुसार उसके इस प्रयास का कई अमेरिकी सीनेटर भी हिस्सा रहे हैं। फई को एफबीआई द्वारा गिरफ्तार किए जाने के बाद भारत में इसकी आंच पहुंची और पता चला कि कई भारतीय नामचीन हस्तियां भी उसके बुलावे पर अमेरिका का दौरा करती रही हैं। खुफिया सूत्र बताते हैं कि सेमिनार में भाग लेने के लिए फई के नियंत्रण पर लोगों को काफी फख्र होता था। इसके लिए अमेरिका आने-जाने, सेमिनार में भाग लेने, रहने-खाने के अलावा इसमें भाग लेने के एवज में मोटी धनराशि मिलती थी। सेमिनार के अन्त में एक प्रस्ताव भी पारित होता था और उसमें पाकिस्तान का समर्थन करने वाली राय को बल देने वाला प्रस्ताव भी पारित होता था। दिलीप पडगांवकर ने फई द्वारा आयोजित सेमिनार में उसके बुलावे पर अमेरिका जाने की बात मानी है। उन्होंने कहा कि वह बहुत पहले फई के नियंत्रण पर वहां गए थे, लेकिन उन्हें फई के आईएसआई के साथ जुड़े होने की कोई जानकारी नहीं थी। क्या यह महज संयोग था कि गुलाम फई की गिरफ्तारी ऐन ऐसे मौके पर हुई जब अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन भारत यात्रा पर थीं। अमेरिका को कम से कम छह साल पहले से गुलाम की हकीकत मालूम थी। एक बार तो फई को भारी-भरकम रकम (नकदी) के साथ पकड़ा गया था और उससे गहन पूछताछ भी हुई थी। भारत काफी समय से फई और उनके एनजीओ के खिलाफ कार्रवाई की मांग कर रहा था। कमाई का कोई प्रत्यक्ष स्रोत नहीं दिखने के बावजूद गुलाम फई अमेरिका में रईसों की जिन्दगी बसर करता था। आश्चर्य नहीं कि धुर भारत विरोधी के रूप में कुख्यात रिपब्लिकन सांसद डैन बर्टन को गुलाम ने सबसे अधिक चन्दा दिया था। वर्तमान राष्ट्रपति बराक ओबामा भी अनजाने में अपने चुनाव अभियान में गुलाम फई से चन्दा ले चुके हैं। पाकिस्तान गुलाम के जरिये अमेरिका को इस बात के लिए राजी करना चाहता था कि वह भारत पर दबाव डाले कि कश्मीर में जनमत संग्रह होना चाहिए। फई की पैठ तो संयुक्त राष्ट्र में भी थी। गुलाम कश्मीरी अलगाववादियों का तो वह सबसे बड़ा एम्बेसेडर था और इसकी गिरफ्तारी से इन भारत विरोधी तत्वों के होश उड़ने स्वाभाविक ही हैं। डॉ. गुलाम फई का मुकदमा शिकागो में हेडली-राणा मुकदमे के बाद अमेरिका में दूसरा हाई-प्रोफाइल मुकदमा होगा। अब सवाल यह है कि क्या अमेरिका आखिरकार पाकिस्तानी खुफिया एजेंसी पर इस बात का दबाव डालने में सफल होगा कि वह इस प्रकार की गतिविधियों पर अंकुश लगाए, आईएसआई के सारे सम्पर्कों का पता लगाए? हो सकता है कि गुलाम फई के आतंकी संगठनों से भी सीधे संबंध हों। देखें मुकदमे में क्या-क्या उभरकर आता है?
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Tuesday, 26 July 2011

नोट के बदले वोट पर अमर सिंह से लम्बी पूछताछ


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 26th July 2011
अनिल नरेन्द्र
`नोट के बदले वोट' मामले में दिल्ली पुलिस की अपराध शाखा ने शुक्रवार को राज्यसभा सांसद अमर सिंह से लगभग साढ़े तीन घंटे पूछताछ की। इस मामले में पहले से ही गिरफ्तार दो आरोपियों संजीव सक्सेना और सुहेल हिन्दुस्तानी से भी आमना-सामना कराया गया। इस तीन घंटे की पूछताछ पर औपचारिक रूप से दिल्ली पुलिस द्वारा कोई ब्रीफिंग अभी तक नहीं हुई है, इसलिए इस दौरान क्या सवाल-जवाब हुए उनके बारे में दावे से कुछ नहीं कहा जा सकता। हां, समाचार पत्रों में जो रिपोर्ट छपी है उससे थोड़ा अंदाजा हो सकता है कि सवालों की लाइन क्या रही होगी। अमर सिंह शुक्रवार सुबह ही 10ः45 बजे अपनी मर्सीडीज कार में चाणक्यपुरी स्थित अपराध शाखा के इंटर स्टेट सेल पहुंच गए। दोपहर लगभग 12ः50 बजे तक अपराध शाखा के पुलिस अधिकारी अमर सिंह से पूछताछ करते रहे। फिर स्पेशल सेल के अतिरिक्त उपायुक्त एलएन राव भी पहुंच गए। राव पूर्व में भी टेपिंग मामले में अमर सिंह से पूछताछ कर चुके हैं। दोपहर 2ः00 बजे पूछताछ समाप्त होने के बाद वे मीडिया कर्मियों के सवालों का जवाब दिए बिना निकल गए। पुलिस सूत्रों ने बताया कि पूछताछ के दौरान अमर सिंह का व्यवहार सामान्य रहा और वे आत्मविश्वास से भरे थे। अधिकारियों ने पूछताछ के दौरान लगभग 1ः30 बजे सुहेल हिन्दुस्तानी और अमर सिंह का आमना-सामना भी कराया। अमर सिंह ने सुहेल के एक करोड़ रुपये देने के आरोपों समेत सभी आरोपों को खारिज कर दिया। उन्होंने कहा कि संजीव सक्सेना मेरा निजी सचिव रह चुका है। लेकिन जब यह कांड हुआ तब वह एक बसपा नेता का निजी सचिव था। एक छपी रिपोर्ट के अनुसार अमर सिंह ने सभी सवालों का गोलमोल अंदाज में जवाब दिया। दिल्ली पुलिस अपराध शाखा ने अमर सिंह के लिए 15 सवालों की फेहरिस्त तैयार कर रखी थी। पहला सवाल था कि 22 जुलाई, 2008 को संसद में लाए गए एक करोड़ रुपये के सिलसिले में एक खास टेलीफोन पर बातचीत हुई। उस नम्बर वाले शख्स के बारे में वह कितना जानते हैं। दूसरा सवाल कुछ खातों के बारे में पूछा जिनसे कैश फॉर वोट के लिए एक करोड़ रुपये निकाले गए थे। तीसरा सवाल था, 22 जुलाई को सांसद अशोक अर्गल, महावीर सिंह भगोरा, फग्गन सिंह कुलस्ते उनके निवास पर आए थे या नहीं? चौथा सवाल कि सिंह ने अपने पीए संजीव सक्सेना की मुलाकात इन तीनों से करवाई थी या नहीं। सूत्रों के मुताबिक अमर सिंह का फरार ड्राइवर संजय इन मामलों की अहम कड़ी है। घटना के बाद से ही संजय गायब है। छठा सवाल कि क्या अमर सिंह ने 22 जुलाई की सुबह संजय को संजीव के साथ फिरोजशाह रोड भेजा था? अगला सवाल कि रिश्वत के एक करोड़ रुपये बैग में उनके घर पर भरे गए थे? सूत्रों ने बताया कि सवाल नम्बर आठ था, वह एक करोड़ रुपये किसके थे? अमर सिंह ने इसकी जानकारी से इंकार कर दिया तो अगला सवाल संजीव की पूछताछ में आए तथ्य पर दागा गया। पुलिस ने पूछा कि संजीव ने कहा है कि अमर सिंह का ड्राइवर संजय उसे लेकर गया था तो आपको (अमर सिंह) इसकी जानकारी कैसे नहीं है? यह कैसे हो सकता है? अभी तक पूरी तरह लड़खड़ा चुके अमर सिंह से हल्का सवाल करते हुए पुलिस ने पूछा कि वह संजीव सक्सेना को कब से जानते हैं और उसे घटना से संबंधित क्या काम सौंप रखा था। 13वां सवाल फिर सख्त था। पहले सवाल में पूछे गए फोन नम्बर पर वापस लौटते हुए पुलिस ने सवाल दागा कि 19 और 21 जुलाई, 2008 के बीच उस नम्बर पर उनकी कितनी बातचीत हुई, किससे हुई, क्यों और क्या हुई? कॉल डिटेल के मुताबिक अमर सिंह ने उस नम्बर पर उस बीच कई दफा बातचीत की। 15वां और आखिरी सवाल था कि कुलस्ते ने पुलिस को बयान दिया है कि अमर सिंह ने संजीव को सांसदों से मिलवाया। इसमें कितना सच्चाई है?
उधर श्री अमर सिंह से चाणक्यपुरी थाने में पूछताछ हो रही थी इधर बहुत से नेताओं की सांसें अटकी हुई थीं। उन्हें यह डर सता रहा था कि पता नहीं अमर सिंह क्या कह दें। अमर सिंह उस्तादों के उस्ताद हैं, वे अपने को बचाने के लिए अंगुली किसी तरफ भी कर सकते हैं। खासकर कांग्रेसी नेताओं में काफी हलचल रही। पूछताछ के बाद कांग्रेसी नेता गम्भीर दिखे। कल तक कांग्रेस के वरिष्ठ नेता कह रहे थे कि सुहेल हिन्दुस्तानी के बयान पर कांग्रेस और अमर सिंह जैसी शख्सियत से पूछताछ ठीक नहीं है। सुहेल भाजपा का पिट्ठू और दलाल है। पुलिस दरियाफ्त के बाद ही पार्टी के नेता अहमद पटेल को क्लीन चिट दे दी है। सवाल किया जा रहा है कि पूछताछ से पहले ही पुलिस ने किसी को भी क्लीन चिट किस बिना पर दे दी? कांग्रेस के प्रवक्ता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि इस मामले में कानून अपना काम कर रहा है। चूंकि मामला कोर्ट के विचाराधीन है इसलिए पार्टी की तरफ से प्रतिक्रिया देना उचित नहीं है। एक अन्य कांग्रेस के वरिष्ठ नेता ने कहा कि आज दिल्ली के एक कोर्ट ने नोट के बदले वोट में कांग्रेस और समाजवादी पार्टी की भूमिका को नकार दिया है। इसलिए पुलिस बहुत जल्द सच्चाई तक पहुंच जाएगी। यह पूरा खेल भाजपा की तरफ से प्रायोजित था जिससे कांग्रेस और सरकार बदनाम हो।
दूसरी तरफ भाजपा ने दिल्ली पुलिस द्वारा न्यायालय को यह बताए जाने पर कि मामले में कांग्रेस या सपा के किसी नेता के शामिल होने की बात जांच में सामने नहीं आई है पर कहा कि पुलिस का बयान पूरी बेइमानी को छिपाने वाला और जांच के नाम पर धब्बा है। भाजपा प्रवक्ता प्रकाश जावडेकर ने पुलिस जांच पर प्रश्न खड़ा करते हुए कहा कि जब पूरी जांच नहीं हुई, मामले से संबंधित लोगों के बयान ही नहीं हुए तो फिर पुलिस इस निष्कर्ष पर कैसे पहुंच सकती है कि पूरे मामले में लाभान्वित होने वाली कांग्रेस या इस पूरे कांड को अंजाम देने वाली सपा का इसमें कोई हाथ नहीं है। भाजपा प्रवक्ता ने कहा कि अगर जांच इसी तरह होनी है तो जांच एक छलावा है और पुलिस अपने राजनीतिक आकाओं के इशारे पर पूरे मामले में लीपापोती करने की कोशिश कर रही है। जावडेकर ने कहा कि पुलिस की जांच में तेजी वैसे ही उच्चतम न्यायालय के दबाव के बाद आई है लेकिन लगता है कि पुलिस पूरी तरह से राजनीतिक दबाव में काम कर रही है। उन्होंने कहा कि यदि पुलिस मामले में ईमानदारी और कायदे से जांच करे तो 15 दिन के अन्दर दूध का दूध और पानी का पानी हो जाएगा। वैसे भी मामला अदालत में है और अदालत को दिल्ली पुलिस को कनविंस करना होगा कि वह अगर इस निष्कर्ष पर पहुंची है तो किस बिना पर पहुंची है? फिर अदालत के रुख पर निर्भर करेगा कि केस किस दिशा में चलना है। अभी से कुछ भी दावे से कहना शायद गलत होगा।
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Friday, 22 July 2011

कैश फॉर वोट प्रकरण में सुहेल हिन्दुस्तानी की गिरफ्तारी महत्वपूर्ण है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 23rd July 2011
अनिल नरेन्द्र
सुप्रीम कोर्ट की सख्ती के बाद नोट के बदले वोट मामले में दिल्ली पुलिस की क्राइम ब्रांच ने बुधवार को इस केस की अहम कड़ी की भूमिका निभाने वाले सुहेल हिन्दुस्तानी को गिरफ्तार कर लिया। भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ता रह चुके सुहेल इसलिए भी महत्वपूर्ण है क्योंकि इसने संजीव सक्सेना के साथ मिलकर तीन भाजपा सांसदों को रिश्वत देने में अहम भूमिका निभाई थी। क्राइम ब्रांच ने सुहेल को बुधवार सुबह पूछताछ के लिए बुलाया था। लगभग सात घंटे तक चली पूछताछ के बाद उसे गिरफ्तार कर लिया गया। सुहेल के रवैये से पुलिस अधिकारी भी हैरान हो गए। दरअसल उसने पुलिस के हर सवाल का हाजिर जवाबी अन्दाज में जवाब दिया। इस दौरान उसके चेहरे पर कोई शिकन नहीं थी। अपराध शाखा के एक अधिकारी ने बताया कि एक गुलदस्ता लेकर अपराध शाखा के दफ्तर में पहुंचे सुहेल ने अपने पारिवारिक पृष्ठभूमि का जिक्र करते हुए बताया कि वह राजस्थान के टोंक जिले से 15 वर्ष पहले जनपथ होटल आकर रुका था। इसके बाद उसने राशि रत्नों का व्यवसाय शुरू किया। इस दौरान उसका सम्पर्प कई बड़े लोगों व नेताओं से हुआ। इसी के चलते वह कुछ वर्ष पहले भाजपा के युवा मोर्चा में शामिल हो गए। उसके बाद उसने पार्टी में काफी अच्छी पकड़ बना ली। पूछताछ के लिए जाने से पहले सुहेल ने कैश फॉर वोट मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और सोनिया गांधी का नाम लेकर उन्हें भी इस मामले में घसीटने की कोशिश की। सुहेल ने संवाददाताओं से कहा, `मुझे अमर सिंह और अहमद पटेल (सोनिया गांधी के राजनीतिक सचिव) के फोन आए थे। प्रधानमंत्री के करीबी लोगों से और 10 जनपथ से भी मुझे फोन आए।' लेकिन सुहेल ने फोन करने वालों के नाम नहीं बताए। पूछताछ में उसने दावा किया कि उसका रोल विश्वास मत के दौरान बीजेपी सांसदों की खरीद-फरोख्त की कोशिश का पर्दाफाश करने तक सीमित था। सुहेल हिन्दुस्तानी का असल नाम सुहेल अहमद है। उसके बारे में कहा जाता है कि वह राजनीति के गलियारों में लोगों से सम्पर्प बनाने के लिए जाना जाता है। पूर्ववर्ती राजस्थान सरकार के कुछ राजनेताओं से भी उसके अच्छे सम्पर्प बताए जाते हैं। इतना ही नहीं, मध्य प्रदेश समेत कई राज्यों में सुहेल की निर्बाध पैठ भी बताई जाती है। सुहेल की गिरफ्तारी के बाद अब इस मामले में समाजवादी पार्टी के पूर्व महासचिव अमर सिंह पर गाज गिर सकती है। गृह मंत्रालय ने दिल्ली पुलिस को अमर सिंह समेत दो वर्तमान और दो पूर्व सांसदों की जांच की इजाजत दे दी है। मंत्रालय ने यह निर्णय बुधवार की देर शाम गृहमंत्री पी. चिदम्बरम से पुलिस कमिश्नर बीके गुप्ता की मुलाकात के बाद किया है। पुलिस सूत्रों ने बताया कि अमर सिंह के अलावा समाजवादी पार्टी के सांसद रेवती रमण सिंह और भाजपा के पूर्व सांसद फग्गन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा से भी इस मामले की पूछताछ की जाएगी। सुहेल ने बताया कि अमर सिंह और अहमद पटेल ने सरकार बचाने के लिए उससे सम्पर्प किया था। उन लोगों ने उन भाजपा सांसदों की खरीद-फरोख्त करने में मदद करने को कहा था जो कमजोर या मजबूरी में फंसे हों और जिनके खिलाफ कोई केस चल रहा हो। इसके एवज में उन सांसदों को पांच करोड़ रुपये दिए जाएंगे। सरकार बचाने की प्रक्रिया में उससे किन लोगों ने सम्पर्प किया था, इसका पूरा ब्यौरा मिल जाएगा। इसके लिए उसके फोन कॉल रिकार्ड की जांच की जा सकती है। पुलिस को इस मामले में अमर सिंह के ड्राइवर संजय की भी तलाश है जो अब तक काबू नहीं आ सका।
राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति हामिद अंसारी ने दिल्ली पुलिस को `कैश फॉर वोट' के मामले में जांच आगे बढ़ाने में संसद सदस्यों में सम्भावित पूछताछ की इजाजत दे दी है। राजनेताओं, सत्ता के गलियारों तथा नामचीन हस्तियों के इर्द-गिर्द घूमकर सेवाएं देने में माहिर सुहेल हिन्दुस्तानी की गिरफ्तारी के बाद अब कई नेताओं की मुसीबतें बढ़ सकती हैं। राजग सरकार के समय प्रधानमंत्री कार्यालय में सेवाएं देने तथा बाद में भाजपा के वरिष्ठ नेता लाल कृष्ण आडवाणी के करीबी माने जाने वाले सुधीन्द्र कुलकर्णी तक इसकी आंच पहुंच सकती है। हालांकि भाजपा प्रवक्ताओं ने अभी इस पर कोई प्रतिक्रिया अभी तक नहीं दी पर अगर यह मामला आगे बढ़ता है तो संसद के मानसून सत्र में इसका मुद्दा बनना लग रहा है। फिलहाल भाजपा इस मामले की जांच और दोषी को सजा देने के बयान तक ही सीमित है। सुहेल हिन्दुस्तानी द्वारा 12 अगस्त 2008 को तत्कालीन लोकसभाध्यक्ष को लिखे पत्र के मुताबिक उसने सुधीन्द्र कुलकर्णी द्वारा रखे गए प्रस्ताव को मानकर सांसदों की कथित खरीद-फरोख्त उजागर करने में सहयोग दिया था। उसके मुताबिक कांग्रेस के बड़े नेताओं के इशारे पर सरकार बचाने का प्रयास किया जा रहा था। पत्र में बताया गया है कि इसके लिए इंडिया इस्लामिक सेंटर में सुहेल हिन्दुस्तानी ने पहले सपा के तत्कालीन सांसद उदय प्रताप सिंह से सम्पर्प किया। उन्हें अपने पास विपक्ष के बिकाऊ सांसदों की सूची होने की जानकारी दी और उदय ने इसके लिए सपा सांसद पुंवर रेवती रमण सिंह और राज्यसभा में पार्टी के तत्कालीन राष्ट्रीय महासचिव अमर सिंह से सम्पर्प करने की सलाह दी। जाते-जाते उदय सुहेल का नम्बर भी लेते गए। इससे पहले सुहेल हरियाणा कैडर के आईएएस अधिकारी और मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा के करीबी एसपी गुप्ता से मिले थे। पत्र के अनुसार गुप्ता को भी सुहेल हिन्दुस्तानी ने विपक्ष के बिकाऊ सांसदों की सूची होने के बारे में बताया। गुप्ता ने भी इसके बाबत उन्हें मुख्यमंत्री हुड्डा तथा कांग्रेसी नेताओं से मिलाने का आश्वासन दिया। समझा जा रहा है कि इस घटनाक्रम को दिल्ली पुलिस और अदालत के सामने रखकर सुहेल हिन्दुस्तानी बड़ा राजनीतिक भूचाल खड़ा कर सकते हैं। सूत्रों के अनुसार राज्यसभा के सभापति और लोकसभाध्यक्ष दोनों ने दिल्ली पुलिस को `कैश फॉर वोट' मामले की जांच आगे बढ़ाने की हरी झंडी दिखा दी है। इससे साफ है कि आने वाले समय में सपा के सांसद रेवती रमण सिंह और पूर्व महासचिव अमर सिंह की मुसीबतें बढ़ने वाली हैं। इस प्रकरण में अभी भाजपा, वामदल, जद(यू) समेत अन्य दल पुलिस की जांच पर पूरी नजर रखे हुए हैं। संसद के मानसून सत्र में एक बार फिर `कैश फॉर वोट' मामले की गूंज सुनाई देने के आसार हैं। इस पूरे मामले में प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की पहले से गिरती छवि और गिरने की सम्भावना से इंकार नहीं किया जा सकता पर सारा दारोमदार दिल्ली पुलिस की जांच और अदालतों के एटीट्यूट पर निर्भर करता है।

गोरखा समस्या का समाधान एक नई दिशा प्रदान कर सकता है


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22nd July 2011
अनिल नरेन्द्र
पश्चिम बंगाल सरकार, केंद्र सरकार और गोरखा जनमुक्ति मोर्चा के बीच हुआ समझौता दार्जिलिंग इलाके में शांति बहाली का एक ऐतिहासिक कदम है। वाम मोर्चा ने इस क्षेत्र से कभी न्याय नहीं किया और हमेशा इसे कुचलने का ही प्रयास किया पर ममता बनर्जी ने सत्ता सम्भालते ही पहाड़ी क्षेत्र की इस ज्वलंत समस्या को सुलझा दिया। निश्चित रूप से यह उनकी एक उल्लेखनीय उपलब्धि है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कठिन राजनीतिक चुनौती का फौरी तौर पर हल निकालने के काम को सफलता से हल करके अपनी राजनैतिक काबलियत का एक सुबूत दिया है। गोरखा मूल के लोगों के लिए अलग राज्य की मांग तीन दशकों से बंगाल की राजनीति में उथल-पुथल मचाती रही है पर अलग राज्य के लिए पश्चिम बंगाल का बंटवारा ऐसा संवेदनशील मुद्दा था जिसे छूने की हिम्मत किसी में नहीं थी। 23 साल पहले ऐसा ही एक समझौता तात्कालिक गोरखा मुक्ति मोर्चा के साथ हुआ था जिसमें दार्जिलिंग गोरखा पर्वतीय परिषद की स्थापना की गई थी और सुभाष घीसिंग को इसका नेता बनाया गया था। हालांकि यह भी स्वायत्तशासी परिषद थी और इसमें दार्जिलिंग, कलिम्पोंग और करस्योंग के इलाके शामिल किए गए थे लेकिन इसके अधिकार सीमित थे। वाम मोर्चे ने इस 42 सदस्यीय परिषद में एक-तिहाई सदस्यों को मनोनीत करने का अधिकार अपने पास रख लिया था जिसे लेकर खींचतान मची रहती थी। ममता बनर्जी ने नई व्यवस्था को गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन का नाम देकर गोरखा भावनाओं को काफी हद तक संतुष्ट किया है। तात्कालिक तौर पर इसमें वही इलाके रखे गए हैं जो सुभाष घीसिंग की पहली परिषद में थे। ताजा तितरापा समझौते के बाद परिषद की पुलिना में जीटीए के पास ज्यादा अधिकार होंगे। परिषद के सदस्यों की संख्या 50 करने का प्रावधान किया गया है और मनोनीत किए जाने वाले सदस्यों की संख्या घटाकर पांच कर दी गई है। स्वायत्तता की पुंजी से किसी क्षेत्रीय या अस्मितामूलक समस्या का समाधान का यह देश में पहला उदाहरण नहीं है। असम में बोडोलैंड क्षेत्रीय परिषद को इससे ज्यादा स्वायत्तता हासिल है। यही बात मेघालय के तीन यानि खासी, ज्यंतिया और गारो परिषद के बारे में भी कही जा सकती है। इन निकायों को प्रशासनिक कामों के अलावा कुछ हद तक न्यायिक अधिकार भी हासिल हैं। लेकिन ममता के फॉर्मूले में भी एक पेंच फंस सकता है। बेशक एक कमेटी का गठन जरूर किया गया है जो तराई और सिलीगुड़ी के गोरखा बाहुल हिस्सों को नई व्यवस्था का अंग बनाने की मांग करेगी, लेकिन पेंच यही फंसता है। इन इलाके के बंगाली, आदिवासी तथा अन्य गैर-गोरखा समुदाय के लोग इस व्यवस्था के साथ जाने को तैयार नहीं हैं। यही वजह है कि जहां नई व्यवस्था को लेकर गोरखा समुदाय के लोग आतिशबाजियां कर रहे थे, उस समय सिलीगुड़ी और तराई क्षेत्र के कई भागों में हड़ताल चल रही थी। चुनाव में मुंह की खाने के बाद वाम मोर्चा राजनीतिक रोटियां सेंकने की फिराक में है और इसे बंगाल का बंटवारा बता रहा है। हालांकि ममता बनर्जी ने गोरखालैंड प्रशासन की घोषणा के वक्त साफ तौर पर कह दिया था कि राज्य का विभाजन किसी भी हालत में नहीं किया जाएगा। गोरखालैंड क्षेत्रीय प्रशासन ऐसा मध्यमार्गी प्रयोग है जिसे अलग राज्य की मांग उठा रहे तेलंगाना, विदर्भ जैसे आंदोलनों का हल निकल सकता है। वैसे भी देखा जाए तो अलग राज्य बनाने से और राज्यों के बंटवारे करने से तो यह रास्ता कहीं बेहतर है।
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हिलेरी क्लिंटन की सफल (?) भारत यात्रा


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 22nd July 2011
अनिल नरेन्द्र
अमेरिका की विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन की भारत यात्रा अमेरिकी दृष्टि से बहुत सफल रही। हर बार की तरह इस बार भी अमेरिका ने भारत को पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद पर हमदर्दी के कुछ शब्द कहकर अपना पलड़ा झाड़ लिया है। हिलेरी की यात्रा मुंबई में ताजा बम विस्फोटों के तुरन्त बाद हुई थी। इसलिए भी भारत के पास पाक प्रायोजित आतंकवाद को समाप्त करने पर अमेरिका का खुला समर्थन पाना जरूरी था। समय भी था पर पाकिस्तान अमेरिका की मजबूरी है। आज भी वह पाकिस्तान पर कुछ हद तक निर्भर है। जब तक अमेरिका अफगानिस्तान में मौजूद है तब तक अमेरिका पाकिस्तान से नहीं बिगाड़ेगा। यूं ही लड़ता-झगड़ता रहेगा, दोनों देशों के बीच नौटंकी जारी रहेगी। समय की पुकार थी कि हिलेरी पाकिस्तान को सख्त संदेश देतीं लेकिन आतंकवाद पर कड़कमिजाजी दिखा रहा अमेरिका आतंकी संगठनों के पनाहगार पाक को लेकर सम्भलकर बात करता नजर आया। भारत यात्रा पर आईं हिलेरी क्लिंटन ने मंगलवार को कहा कि पाक पर आतंक के खिलाफ कदम उठाने के लिए जितना सम्भव हो सके, उतना दबाव बनाया जाएगा। लेकिन इसकी भी एक हद होती है। हैदराबाद हाऊस में हिलेरी ने आतंकवाद के खिलाफ जंग में भारत के साथ सहयोग बढ़ाने का आश्वासन तो दिया वहीं यह कहने से भी नहीं चूकीं कि इस लड़ाई में पाक भी अमेरिका का अहम साथी है। अमेरिका भारत पर पाक से शांतिवार्ता जारी रखने का अक्सर दबाव बनाता रहता है। इसकी पुष्टि हिलेरी ने यह कहकर की कि भारत और पाकिस्तान के बीच जारी वार्ता से हम उत्साहित हैं। अमेरिकी दृष्टिकोण में पाकिस्तान आतंकवाद के खिलाफ लड़ाई में प्रमुख सहयोगी है। आतंकवादियों ने मस्जिदों व सरकारी भवनों पर हमला करके बड़ी संख्या में पाकिस्तानियों को मौत के घाट उतारा है, यह दलील देकर क्लिंटन ने भारत को समझाने का प्रयास किया कि पाकिस्तान खुद आतंकवाद का शिकार है। अमेरिका का दोहरा चेहरा फिर एक बार भारत के सामने आया है। वह दोहरे मापदंड रखता है। उसके लिए उसका अपना हित सर्वोपरि है। अमेरिका ने असैन्य एटमी करार को पूर्णता के साथ लागू करने के आश्वासन के जरिये भारत को भले ही राहत देने की कोशिश की हो पर परमाणु दुर्घटना कानून पर मतभेद के संकेत भी दे दिए हैं। हिलेरी ने मंगलवार को कहा कि भारत के साथ असैन्य करार के पूर्णता से किया जाएगा लेकिन क्रियान्वयन नाभिकीय दुर्घटना से होने वाले नुकसान की भरपायी के मामले में भारत को अपने कानून को अंतर्राष्ट्रीय नियमों के मुताबिक करना होगा। हिलेरी ने कहा कि भारत को अपने मुआवजे कानूनों को अंतर्राष्ट्रीय नियमों के अनुसार करने के लिए यूएन कन्वेंशन की पुष्टि की औपचारिकता पूरी करनी होगी।
गत दिवस ही हिलेरी क्लिंटन ने कहा कि पाकिस्तान से मुंबई हमले के सूत्रधारों के खिलाफ कार्रवाई करने का अनुरोध किया गया है। उन्होंने यह कहने में भी कोई सकोच नहीं किया कि पाकिस्तान के सन्दर्भ में अमेरिका और भारत क्या कर सकते हैं, इसकी एक सीमा है। इसका सीधा मतलब है कि अमेरिकी प्रशासन पाकिस्तान पर इसके लिए दबाव बनाने का कोई इरादा नहीं रखता कि वह अपनी जमीन से आतंकवादी गतिविधियों पर अंकुश लगाए और भारत विरोधी गतिविधियों का परित्याग करे। अगर भारत यह समझता है कि पाक प्रायोजित आतंकवाद की लड़ाई में अमेरिका भारत का साथ देगा तो वह गलतफहमी में है और हिलेरी ने इसे साफ भी कर दिया है। हमें अपनी लड़ाई खुद ही लड़नी पड़ेगी। बेशक पाकिस्तानी सेना अपने पश्चिमी हिस्से में तालिबान से लड़ने की नौटंकी कर रही हो पर पूर्वी हिस्से में तो उसकी मदद से आतंकवादी शिविर चल रहे हैं जहां से भारत पर हमले किए जाते हैं। क्या अमेरिका को इसकी जानकारी नहीं है? सब कुछ जानते हुए भी जब वह अनजान बन जाता है तो इसका मतलब साफ है कि उसके सामने उसके सामरिक हित प्राथमिकता रखते हैं, उसे इस बात की कोई परवाह नहीं कि पाकिस्तान, भारत के खिलाफ क्या करता है? अमेरिका के इस रवैये से बार-बार अवगत होने के बावजूद यही स्टैंड रहा है कि भारत इन आतंकी अड्डों को नष्ट न करे। अगर अमेरिका का दबाव न होता तो शायद अब तक भारत कम से कम कुछ आतंकी शिविरों पर तो सर्जिकल स्ट्राइक कर ही देता। कब तक भारतीय नेता यह उम्मीद पाले रखेंगे कि पाकिस्तान की आतंकवादी नीतियों पर अमेरिका हमारा समर्थन करेगा? इससे प्रश्न उठता है कि भारत की पाकिस्तान के प्रति नीति आखिर है क्या? कभी उसको गाली देता है तो कभी दोस्ती का हाथ बढ़ाता है। क्या यह केवल अपने अमेरिकी आकाओं को खुश करने के लिए होता है। अमेरिका की प्राथमिकताएं स्पष्ट हैं पर हमें अपनी स्पष्ट करने की सख्त जरूरत है, जितनी जल्दी यह बात भारतीय नेताओं को समझ आ जाए उतना ही देश के लिए अच्छा होगा। कुल मिलाकर हिलेरी की भारत यात्रा अमेरिकी दृष्टिकोण से सफल रही और भारत को एक बार फिर झुनझुना थमा दिया गया है।
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Thursday, 21 July 2011

कैश फॉर वोट केस ः अमर सिंह पर कसता शिकंजा


Published on 21th July 2011
अनिल नरेन्द्र
यूपीए-एक सरकार को बचाने के लिए कथित रूप से सांसदों के वोट खरीदने के आरोप की जांच के सिलसिले में दिल्ली पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए गए संजीव सक्सेना को गिरफ्तार कर लिया था और सोमवार को उसे विशेष न्यायाधीश संगीता ढींगरा सहगल की अदालत में पेश किया गया। अदालत ने पुलिस को पुख्ता जानकारी प्राप्त करने के लिए सक्सेना का तीन दिन का पुलिस रिमांड दे दिया है। गौरतलब है कि यूपीए-एक सरकार के कार्यकाल में जब वामदलों के समर्थन वापस लेने के बाद मनमोहन सिंह ने लोकसभा में अपना बहुमत साबित किया था तभी सांसदों की खरीद-फरोख्त का आरोप लगा था। इसी कड़ी में 22 जुलाई, 2008 को विश्वास मत से एक दिन पहले तीन भाजपा सांसदों को कथित तौर पर एक करोड़ रुपये दिए गए थे। पुलिस ने आरोप लगाया है कि 22 जुलाई को समाजवादी पार्टी के तत्कालीन महासचिव अमर सिंह ने भाजपा सांसद फगन सिंह कुलस्ते और अशोक अर्गल का संजीव से परिचय करवाया था। दावा किया गया है कि संजीव सक्सेना ने संसदीय समिति को भी गलत जानकारी देकर तथ्यों से भटकाने की कोशिश की। आरोप है कि संजीव ने ही भाजपा सांसद को एक करोड़ रुपये दिए थे। इस मामले में भाजपा के पूर्व सांसद महावीर सिंह भगोरा और फगन सिंह के बयान दर्ज किए जा चुके हैं। अशोक अरगल का बयान लिया जाना है। सूत्रों के मुताबिक गिरफ्तारी के बाद शुरुआती पूछताछ में संजीव सक्सेना ने बिना झिझक के अमर सिंह के साथ अपने करीबी रिश्तों की बात कही है। उसने पुलिस को बताया कि वह सिंह के सचिव के रूप में काम करता था। अभियोजन पक्ष ने अदालत को बताया कि अमर सिंह के ड्राइवर संजय की तलाश जारी है। संजय का बयान इस केस में महत्वपूर्ण बन जाता है, क्योंकि वही इस बात की पुष्टि कर सकता है कि वह और संजीव सक्सेना भाजपा सांसद के आवास पर एक करोड़ रुपये लेकर देने गए थे। अमर सिंह ने दो 20 जुलाई 2008 को संजीव सक्सेना को अपना सचिव बताते हुए भाजपा सांसद अशोक अरगल से मिलाया। सक्सेना ने लोधी एस्टेट स्थित आवास पर अर्गल को एक करोड़ रुपये दिए। फगन सिंह कुलस्ते और महावीर भगोरा ने भी सक्सेना की पहचान कर ली है। दिल्ली पुलिस ने छानबीन करके यह पता लगा लिया है कि यह पैसा किसके यूपी के बैंक से निकाला गया था। दरअसल नोटों की गड्डी पर बैंक का लेवल चिपका रह गया था। अब किस खाते से यह पैसा निकाला गया, यह पता लगाने की कोशिश हो रही है। पैसा (3 करोड़) एकमुश्त नहीं निकाला गया, यह थोड़ा-थोड़ा करके निकाला गया।
श्री अमर सिंह पर पुलिस का शिकंजा कसता जा रहा है। संजीव सक्सेना ने तो सीधा आरोप लगा ही दिया है कि यह पैसा अमर सिंह ने उन्हें दिया था। अगर ड्राइवर संजय भी मिल जाता है और वह भी यह कह देता है कि संजीव सक्सेना ठीक कह रहे हैं और वह संजीव के साथ मौजूद था जब भाजपा के सांसद के पास एक करोड़ लेकर गए थे तो मामला ज्यादा संगीन हो जाएगा। सरकार और प्रशासन ने तो मामले को लटकाने में कोई कसर नहीं छोड़ी थी पर गत शुक्रवार को सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली पुलिस को कुछ न करने पर कड़ी फटकार लगाई थी। तब जाकर दिल्ली पुलिस हरकत में आई और संजीव सक्सेना की गिरफ्तारी हुई। यह मामला बहुत संगीन बन सकता है। इसमें कई बड़ी हस्तियां शामिल हो सकती हैं। अपने कार्यकाल के अंतिम दौर में लड़खड़ाने वाली यूपीए सरकार के लिए एक नया सिरदर्द पैदा हो सकता है। अपने सहयोगी रहे संजीव सक्सेना की गिरफ्तारी से बौखलाए अमर सिंह ने कांग्रेस रणनीतिकारों को चेतावनी दी है कि यदि कानून के हाथ उन तक पहुंचे तो वे सबका भंडाफोड़ कर देंगे। आरोप यह है कि कांग्रेस के कुछ रणनीतिकारों के कहने पर अमर सिंह ने भाजपा सांसदों को रिश्वत दी थी जिन्होंने अपनी पार्टी के व्हिप का उल्लंघन करते हुए यूपीए के पक्ष में वोटिंग की थी। तब जाकर मनमोहन सिंह सरकार बच गई थी। लेकिन उस जांच में 3 साल ढिलाई बरतने के बाद सुप्रीम कोर्ट की फटकार के बाद पुलिस हरकत में आई है। सूत्रों के अनुसार अमर सिंह कांग्रेस के रवैये से इन दिनों खासे नाराज चल रहे हैं और उन्हें इस बात का दर्द है कि आड़े वक्त में कांग्रेस जन उनसे काम निकलवा लेते हैं और बाद में भूल जाते हैं। हाल ही में अमर सिंह ने कांग्रेस के ही रणनीतिकारों के कहने पर टीम अन्ना हजारे के सबसे योग्य वकील शांति भूषण और प्रशांत भूषण के कच्चे चिट्ठे खोलने में भी मदद की थी परन्तु इसके बाद भी कानूनी शिकंजा उनकी ओर बढ़ता जा रहा है। अब उन्होंने कांग्रेस नेताओं को स्पष्ट चेतावनी दे दी है कि यदि दिल्ली पुलिस उनके द्वार पर चढ़ी तो फिर वो किसी को भी नहीं छोड़ने वाले हैं। उनके पास जो भी खुफिया जानकारी और सूचनाएं हैं, वे उन्हें सार्वजनिक कर देंगे।
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धोनी को भज्जी के मजाक वाले विज्ञापन में काम नहीं करना चाहिए था


Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi

Published on 21th July 2011
अनिल नरेन्द्र
देश के दो शराब बनाने वाली कम्पनियों ने टीम इंडिया के दो खिलाड़ियों में बेकार विवाद पैदा करवा दिया है। मैकडोवेल कम्पनी और रॉयल स्टैग। इन दोनों शराब कम्पनियों में बीच बाजार में व्हिस्की ब्रांड्स को लेकर प्रतिद्वंद्विता है। ऑफ स्पिनर हरभजन सिंह ने विजय माल्या के स्वामित्व वाली कम्पनी यूबी प्रिट्स को एक टीवी विज्ञापन को लेकर कानूनी नोटिस भेजा है। इस विज्ञापन में भारतीय कप्तान महेन्द्र सिंह धोनी को उनका मजाक उड़ाते हुए दिखाया गया है। यह कानूनी नोटिस हरभजन सिंह की मां अवतार कौर ने अपने वकीलों के जरिये भेजा है। हरभजन के वकीलों ने कानूनी नोटिस में दावा किया है कि यह इस ऑफ स्पिनर, उनके परिवार और सिख समुदाय का व्यासायिक मजाक है। इनमें से एक वकील ने कहा कि क्रिकेटर ही नहीं उनका परिवार भी इस विज्ञापन से परेशान है। इस विज्ञापन के लिए नोटिस भेजते हुए भज्जी की मां अवतार कौर ने कहा कि इस तरह के विज्ञापन से भारतीय टीम में मतभेद पैदा होते हैं तथा इन्हें राष्ट्र विरोधी करार दिया जा सकता है। नोटिस में कम्पनी से हरभजन के परिवार से बड़े समाचार पत्रों तथा टेलीविजन चैनलों में सार्वजनिक तौर पर माफी मांगने और नोटिस मिलने के तीन दिन के अन्दर विज्ञापन हटाने की मांग की गई है। नोटिस में कहा गया है कि मेरा मुवक्किल आपको तुरन्त नोटिस भेजकर अपनी गलती स्वीकार करके उसमें सुधार करने का मौका दे रहा है। इसमें असफल रहने पर हमारे पास उचित कानूनी कार्यवाही करने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा जिसमें मानहानि का दावा और इस तरह की दीवानी और आपराधिक कार्रवाई भी शामिल है। इसमें नोटिस की लागत के लिए क्रिकेटर के परिवार ने एक लाख रुपये के मुआवजे की मांग भी की है। हरभजन और धोनी दो अलग-अलग ब्रांड का विज्ञापन करते हैं। भारतीय कप्तान मैकडोवेल नम्बर वन प्लेटिनम के विज्ञापन में कथित तौर पर हरभजन का मजाक उड़ाते हैं। हरभजन रॉयल स्टैग का विज्ञापन करता है। रॉयल स्टैग और मैकडोवेल नम्बर वन दोनों के बीच बाजार में व्हिस्की ब्रांड्स को लेकर प्रतिद्वंद्विता है। यह विज्ञापन हालांकि सोडा ब्रांड का है। हरभजन के रॉयल स्टैग विज्ञापन की मुख्य लाइन है, `हैव आई मेड इट लार्ज।' धोनी ने मैकडोवेल के लिए जो विज्ञापन किया है उसमें हरभजन जैसा दिखने वाला व्यक्ति कहता है, `हैव आई मेड इट लार्ज' जबकि धोनी कहता है कि अगर `जिन्दगी में कुछ करना है तो लार्ज छोड़ो, कुछ अलग करो यार।' धोनी के विज्ञापन में हरभजन की तरह दिखने वाला व्यक्ति बाल बैरिंग फैक्टरी में काम करता है और बड़ी बनाने के प्रयास में वह लोहे की गेंद को बहुत बड़ी बना देता है तो उसके पिता उस पर थप्पड़ मार देते हैं। उल्लेखनीय है कि हरभजन के पिता की बाल बैरिंग बनाने की फैक्टरी हुआ करती थी जहां पर हरभजन भी काम करता था। शराब निर्माताओं ने बिना वजह इन दो खिलाड़ियों में मतभेद करवा दिया है। मेरी राय में महेन्द्र सिंह धोनी को यह विज्ञापन करने से मना कर देना चाहिए था जब उन्होंने देखा होगा कि इसमें भज्जी के कैरेक्टर वाला व्यक्ति है और इसमें हरभजन का मजाक उड़ाने का प्रयास किया गया है। उधर विजय माल्या कहते हैं कि हम विज्ञापन बन्द नहीं करेंगे, न ही कोई संशोधन करेंगे।
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Wednesday, 20 July 2011

काले धन की निगरानी सुप्रीम कोर्ट करे यह सरकार को स्वीकार नहीं

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20th July 2011
अनिल नरेन्द्र
भ्रष्टाचार और काले धन के मुद्दे पर अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की चुनौतियों से जूझ रही मनमोहन सरकार को उस समय तग़ड़ा झटका लगा था जब सुप्रीम कोर्ट ने काले धन से जुड़े सारे मामलों की जांच के लिए विशेष जांच दल गठित कर दिया था। इस विशेष जांच दल की अध्यक्षता सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश बीपी जीवन रेड्डी करेंगे और एक अन्य सेवानिवृत्त जज एमबी शाह इसके सदस्य होंगे। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया था कि हसन अली और कैलाश नाथ तापड़िया सहित काले धन से जुड़े सभी मामलों की जांच, इनमें आगे की कार्रवाई तथा मुकदमा चलाने की जिम्मेदारी इस विशेष जांच दल की होगी पर केंद्र सरकार को लगता है कि यह मंजूर नहीं है कि काले धन की जांच सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में हो। तभी तो केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में इस आदेश की पुनर्समीक्षा याचिका दायर की है। सरकार ने इस फैसले को कार्यकारी अधिकारों का न्यायिक अतिक्रमण मानते हुए कहा है कि कार्यपालिका और न्याय पालिका की अलग-अलग शक्तियां हैं और शीर्ष अदालत का फैसला इन सिद्धांतों के खिलाफ है। याचिका में कहा गया है कि न्यायालय का यह कहना सरासर गलत है कि काला धन वापस लाने के लिए सरकार जोरदार प्रयास नहीं कर रही। ऐसा होता तो सरकार इस मामले में उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन नहीं करती। यह एक ऐतिहासिक केस साबित हो सकता है क्योंकि सरकार की याचिका पर फैसला करते समय जहां अदालत को कुछ अतिमहत्वपूर्ण कानूनी पहलुओं का ध्यान रखना होगा, वहीं अदालत सरकार से यह सवाल भी कर सकती है कि आखिरकार अदालत को इस तरह का आदेश क्यों पारित करना पड़ा। सरकार ने भले ही समीक्षा याचिका दायर करना जरूरी समझा क्योंकि कैबिनेट में कुछ महत्वपूर्ण कानून वे शामिल है, लेकिन इससे सरकार की कार्यप्रणाली, जांच एजेंसियों के प्रति इसके रवैये और स्वयं जांच एजेंसियों की भूमिका पर बहस छिड़ सकती है।
काले धन का मामला अतिमहत्वपूर्ण है क्योंकि देश का वैध धन अवैध तरीके से विदेशों में जाना तो चिंता का विषय है ही, साथ ही इसके परिणाम राष्ट्रीय सुरक्षा के मुद्दे से भी जुड़े हैं, जैसा कि सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा है। सुप्रीम कोर्ट ने जो आदेश दिया था उसका अभी तक कुछ ठोस परिणाम नहीं आ सका। दरअसल हो बिल्कुल उल्टा रहा है। अब तक एसआईटी तो हुआ नहीं है, वित्त मंत्रालय की तरफ से गठित समितियां भी काम नहीं कर पा रही हैं और अब सरकार द्वारा अपील दायर करने से मामला और उलझ गया है। अब ये समितियां निर्धारित समय अवधि में अपनी रिपोर्ट भी नहीं दे सकेंगी। जब तक सुप्रीम कोर्ट इस बारे में अपना फैसला नहीं सुनाता, यह काम बाधित रहेगा। यही हाल काले धन पर गठित दूसरी समिति का भी हो गया है। यह समिति सीबीडीटी चेयरमैन की अध्यक्षता में गठित की गई थी। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश में इस समिति का भी जिक्र है। इस समिति को काले धन पर रोक लगाने के लिए मौजूदा किन कानूनों में संशोधन करने की जरूरत है, इसके बारे में सुझाव कमेटी को देने को कहा गया था। कमेटी ने अपनी पहली बैठक में पब्लिक से सुझाव मांगे थे और तीन हफ्ते में 4000 सुझाव व प्रतिक्रिया आई थी पर अब यह मामला भी रुकने का डर है। सरकार सुप्रीम कोर्ट के आदेशों को हर हालत में ब्लाक करने पर तुली है, ऐसा लगता है।
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इस देश में असल राज है नौकरशाहों, पत्रकारों और दलालों का

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 20th July 2011
अनिल नरेन्द्र
2जी स्पेक्ट्रम घोटाले ने एक बात तो साबित कर ही दी है कि इस देश को जनता द्वारा चुने गए प्रतिनिधि उर्प सांसद, मंत्री इत्यादि नहीं चला रहे बल्कि उद्योगपति, नौकरशाह और दलाल चला रहे हैं। अगर ऐसा न होता तो नीरा राडिया सरीखे के लोग इतने शक्तिशाली न होते जो अपनी पसंद का मंत्री भी चुनवा लेते हैं और उसे चुनिंदा मंत्रालय भी दिलवा देते हैं। नीरा राडिया आज मशहूर हस्ती हैं, कौन हैं यह नीरा राडिया? 1995 में पहली बार नीरा राडिया भारत में आई और उसने पहली नौकरी सहारा समूह में बतौर लियाजन अफसर की थी। 2001 में नीरा ने वेशन्वी कम्युनिकेशन नामक कंपनी आरंभ की थी और देखते ही देखते टाटा और अंबानी समूह का सारा लियाजन का काम संभालने लगी। अचानक अपनी संदिग्ध गतिविधियों के कारण नीरा प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) की नजरों में आ गई। ईडी इस बात की जांच कर रहा था कि अचानक 10 सालों में नौकरी करने वाली नीरा राडिया 300 करोड़ रुपये की सम्पत्ति की मालिक कैसे बन गई? इसी जांच में ईडी ने नीरा राडिया के फोन को टेप करना आरंभ किया। आयकर विभाग ने लगभग 104 टेप अपनी वेबसाइट पर लगाए हैं। इनसे पता चलता है कि कैसे राजनेताओं, उद्योगपतियों, नौकरशाह और पत्रकारों की सांठगांठ से यह सरकार चल रही है। अकेले टाटा समूह और मुकेश अंबानी नीरा राडिया को साल का 30,30 करोड़ रुपये बतौर फीस देती है। आखिर इतने पैसे उद्योगपति (वह भी टाटा और अंबानी जैसे) देते हैं तो कुछ तो नीरा राडिया उन्हें एवज में देती ही होगी। ऐसा नहीं उद्योगपति एक भी पैसा खर्च करते? राडिया की गतिविधियों की सूची लंबी है। 2009 में यूपीए सरकार की सत्ता में वापसी के बाद ए. राजा को फिर से दूरसंचार मंत्री बनवाने के लिए नीरा राडिया ने कनिमोझी सहित कई प्रभावशाली लोगों के साथ लाबिंग की थी। राडिया ने सीबीआई को दिए बयान में स्वीकार किया कि राजा को मंत्री बनवाने के लिए सभी संभावित संगत पर विचार किया गया। उन्होंने यह भी बताया कि राजा को अनिल अंबानी से दूरी बनाकर रहने की सलाह दी गई थी। नीरा ने इस विषय पर भारती एयरटेल के प्रमुख सुनील मित्तल से भी चर्चा की थी। राडिया ने हाल ही में सीबीआई को दिए बयान में यह बातें कबूल की हैं। पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया गया कि 2जी स्पेक्ट्रम मामले की जांच में हस्तक्षेप करने को लेकर सहारा समूह के प्रमुख सुब्रत राय और दो पत्रकारों के खिलाफ लगे आरोपों की जांच के सिलसिले में सीबीआई ने कारपोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया और टेलीविजन चैनलों के कुछ शीर्ष अधिकारियों से पूछताछ की है। हालांकि सीबीआई ने कहा कि अभी उन टेलीविजन पत्रकारों और प्रवर्तन निदेशालय के जांच अधिकारियों के बीच टेलीफोन पर हुई बातचीत की जांच किया जाना बाकी है जिनसे 2जी मामले की जांच के सिलसिले में कथित तौर पर संपर्प किया गया था। यह बयान वरिष्ठ अधिवक्ता केके वेणुगोपाल ने दिया। उन्होंने सीबीआई द्वारा की गई जांच के निष्कर्षों को पढ़ा। सीबीआई ने बंद लिफाफे में अपनी रिपोर्ट दी है। न्यायमूर्ति जीएस सिंघवी और न्यायमूर्ति एके गांगुली की पीठ को यह भी सूचित किया गया कि सीबीआई सभी पहलुओं से आरोपों की जांच कर रही है और स्वतंत्र गवाहों तथा दस्तावेजों की तलाश कर रही है। वेणुगोपाल ने कहा नीरा राडिया से पूछताछ की गई है। इन लोगों से एक से अधिक बार पूछताछ की गई है क्योंकि उनके बयान में कुछ विरोधाभास था। शीर्ष अदालत ने गत छह मई को कहा था कि प्रथम दृष्टया सुब्रत राय और सहारा न्यूज नेटवर्प के दो पत्रकारों उपेंद्र राय और सुबोध जैन के खिलाफ 2जी मामले की जांच में हस्तक्षेप करने का मामला बनता है और अदालत ने अवमानना के लिए नोटिस जारी किया था।
उधर सीबीआई ने पटियाला हाउस की एक अदालत को जानकारी दी कि बहुचर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले की अहम कड़ी माने जाने वाली कारपोरेट लाबिस्ट नीरा राडिया की बातचीत वाले टेप मामले से जुड़े सभी आरोपियों को दिए जाएंगे। बता दें कि इन टेपों में कारपोरेट जगत के अलावा मीडिया सहित अन्य क्षेत्रों के लोगों से बातचीत है, जिसके कुछ ही अंश बाहर आ पाए हैं। सीबीआई द्वारा सभी आरोपियों को ये टेप उपलब्ध कराने से कई अन्य लोगों की बातचीत से पर्दा उठ सकता है। देश उम्मीद करता है कि नीरा राडिया के सारे टेपों को सार्वजनिक किया जाए ताकि जनता को यह पता चल सके कि असल में इस देश पर राज कौन करता है? जनता या दलाल?
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Tuesday, 19 July 2011

जब वोट बैंक राजनीति देश की सुरक्षा पर भी भारी पड़े

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th July 2011
अनिल नरेन्द्र
ताजा मुंबई हमलों में कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह की प्रतिक्रिया ठीक उसी लाइन पर आई जिसकी उनसे उम्मीद रखी जा सकती है बल्कि आश्चर्य तो तब होता जब उन्हें इस ताजा बम कांड में हिन्दू आतंकवादियों का हाथ नजर न आता। तभी आश्चर्य नहीं हुआ जब दिग्विजय ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ पर निशाना साधते हुए शनिवार को कहा कि मुंबई धमाकों में हिन्दू सगठनों की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है, वैसे अभी मुंबई धमाकों में संघ का हाथ होने के सुबूत नहीं मिले हैं परन्तु जांच एजेंसियों को सभी बिन्दुओं से जांच करनी चाहिए। अब दिग्विजय ने कहा कि मैं आरएसएस की आतंकी गतिविधियों के सुबूत दे सकता हूं। उन्होंने कहा कि वह अपनी इस बात से पीछे नहीं हट रहे हैं कि देश में हुई आतंकवादी घटनाओं के पीछे हिन्दू संगठनों का हाथ रहा है। पहले हम समझते थे कि दिग्विजय जो कहते हैं वह उनकी अपनी सोच, रणनीति के तहत हो रहा है, चूंकि उनका 10 साल का राजनीतिक बनवास समाप्त होने जा रहा है इसलिए वह अपनी जड़ें पुन राजनीति में जमाना चाहते हैं इसलिए उन्होंने एंटी हिन्दू लाइन ली है ताकि अल्पसंख्यक वोटों के पैठ बना सकें पर जैसे उनके विवादास्पद बयानों का कांग्रेस आला कमान समर्थन करता है उससे साफ लगता है कि दिग्गी राजा को आला कमान का पूरा समर्थन हासिल है। मुंबई में हुए श्रृंखलाबद्ध धमाकों का दिग्विजय सिंह ने जिस तरह आनन-फानन में सांप्रदायिक रंग देने का प्रयास किया उसमें हमें उम्मीद थी कि शायद पार्टी हाई कमान उन्हें कड़ी फटकार लगाए और अपने आपको इस बयान से अलग करे पर न केवल चुप्पी साधकर शीर्ष नेतृत्व ने इसे अपनी मौन स्वीकृति दी बल्कि यह भी जता दिया कि हिन्दू संगठनों की जोरदार खिलाफत उसकी सोची-समझी रणनीति का हिस्सा है जिसके दिग्विजय सिंह मोहरे मात्र हैं। अभी तक दिग्विजय के बयानों पर कांग्रेस टोकाटाकी करती थी पर जिस तरह से प्रवक्ता शकील अहमद ने खुले तौर पर दिग्विजय का समर्थन किया है उससे यह बात सिद्ध हो जाती है कि मुस्लिम वोट बैंक को साधने के लिए दिग्विजय सिंह आज तक जो भी बोलते आ रहे थे वह कांग्रेस नेतृत्व की सोची-समझी चरणबद्ध नीति थी और ऐसे बेहूदा और बेतुके बयानों के लिए दिग्विजय सिंह को बाकायदा पुरस्कृत भी किया गया। उन्हें उस प्रदेश का प्रभारी बना दिया गया है जहां कांग्रेस की नजर अल्पसंख्यक वोट बैंक पर टिकी हुई है। इस समय भी दिग्विजय सिंह उत्तर प्रदेश और असम जैसे मुस्लिम आबादी वाले प्रदेशों के प्रभारी महासचिव हैं।
यह बहुत ही शर्म की बात है कि मुंबई विस्फोट जैसे मुद्दे पर भी दिग्विजय सरीखे नेता राजनीति और वोट बैंक पॉलिटिक्स का खेल खेलने से बाज नहीं आते। हमारे देश के नेता संकीर्ण राजनीतिक स्वार्थों के फेर में किस हद तक गिर सकते हैं। वे लाशों पर राजनीति करने के साथ-साथ उन समस्याओं से भी लाभ उठाने की ताक में रहते हैं जो राष्ट्र के लिए शर्मिंदगी का कारण बनती है। मुंबई में बम विस्फोटों के बाद भारत अंतर्राष्ट्रीय चर्चों पर यह कहने की स्थिति में नहीं रह गया है कि वह आतंकवाद से अपने बलबूते पर लड़ सकता है, लेकिन बावजूद इसके केंद्रीय सत्ता का नेतृत्व कर रहे दल के महासचिव इसके लिए बेचैन हो गए कि इस घटना का राजनीतिक लाभ कैसे उठाया जा सके? उन्हें इस बात की भी कतई चिन्ता नहीं कि पाकिस्तान जैसे देश इस बात का कितना फायदा उठा सकते हैं। जहां तक राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की देश के प्रति वफादारी का सवाल है तो कांग्रेस के सबसे कद्दावर नेता पंडित जवाहर लाल नेहरू भी आन रिकार्ड कह चुके हैं कि संघ को आतंकवाद से नहीं जोड़ा जा सकता। चूंकि हो सकता है कि इस तरह के ऊंट-पटांग बयान अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से जुड़े हो, इसलिए भाजपा भी मैदान में कूद पड़ी है। शनिवार को भाजपा नेता शाहनवाज हुसैन ने दिग्विजय के बहाने सोनिया गांधी और राहुल गांधी को भी लपेट लिया। राहुल से दिग्विजय की नजदीकी का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि राहुल खुद जो नहीं कह पाते, वह दिग्विजय सिंह से कहलवाते हैं। देश आतंकवाद से जूझ रहा है। ऐसे में दिग्विजय का संघ पर आरोप लगाना सिवाय गन्दी, तुच्छ राजनीति के और कुछ नहीं है। भाजपा के दूसरे वरिष्ठ नेता मुख्तार अब्बास नकवी कहते हैं कि दिग्विजय सिंह को अरब सागर के किनारे ले जाएं और उनके शरीर में मौजूद लादेन की शैतानी रूह को भगाने के लिए कुछ झाड़-पूंक करवाएं। दिग्विजय सिंह जुबानी डायरिया का शिकार हो गए हैं। उनका अपनी भाषा और शब्दों पर कोई कंट्रोल नहीं है। कोई भी आसानी से समझ सकता है कि दिग्विजय सिंह को विष वमन करने की छूट इस आशा से दी गई है ताकि हिन्दू संगठनों को अपमानित और लांछित करने वाले उनके बयानों के जरिये मुस्लिम समाज के वोट आसानी से हासिल किए जा सकें? कांग्रेस की इस सोच से यह साफ है कि उसकी नजर में मुस्लिम समाज तक उसका वोट बैंक बनेगा जब उसे हिन्दू संगठनों से डराया जाएगा।
इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहा जाएगा कि आतंकवाद जैसे संवेदनशील मुद्दे पर इस प्रकार की घटिया वोट बैंक राजनीति हो रही है। क्या यह जांच एजेंसियों को गलत दिशा में जांच करने व उन्हें जानबूझ कर भटकाने का काम नहीं है? यह एक तथ्य है कि खुद गृहमंत्री पी. चिदम्बरम कह चुके हैं कि भगवा आतंकवाद देश के लिए एक बड़ी चुनौती बन चुका है। आतंकवादी का कोई धर्म नहीं होता, मजहब नहीं होता, यह एक विचारधारा है और यह सम्भव है कि कुछ मुट्ठीभर हिन्दू भी इसके शिकार हों पर इसका मतलब यह कतई नहीं कि आप सारे हिन्दू समाज को इसका जिम्मेदार ठहराएं, उन्हें बदनाम करें जैसे कि आप मुट्ठीभर मुस्लिम आतंकियों के कारण पूरे मुस्लिम समाज को जिम्मेदार नहीं ठहरा सकते। अगर दिग्विजय सिंह के पास कोई ठोस सुबूत हैं तो जांच एजेंसियों को बताएं ताकि वह इसकी बारीकी से छानबीन कर सके।
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हम राह से भटक गए थे, शुक्रिया और अलविदा

Vir Arjun, Hindi Daily Newspaper Published from Delhi
Published on 19th July 2011
अनिल नरेन्द्र
ब्रिटेन के सनसनीखेज खबरों का पर्याय बन चुका `न्यूज ऑफ द वर्ल्ड' रविवार को इतिहास बन गया। इस इतिहास में कुछ वाकया खबरनवीसों के लिए फिक्र करने वाले हैं तो कुछ शर्म से सिर झुका देने वाले। लेकिन यह अन्त वाकई अफसोसजनक है। आखिरी वक्त में टेबलॉयड ने भी माना कि वह अपनी राह से भटका, जहां से वापस आना नामुमकिन था। सालों तक दुनिया के कई देशों में शासन करने वाले ब्रिटेन में `न्यूज ऑफ द वर्ल्ड' उन चुनिन्दा प्रकाशनों में था, जिसने उपनिवेशवाद की लौ देखी तो इसके बुझने का भी गवाह बना। 168 साल के इतिहास का गवाह रहा यह अखबार आज खुद हमेशा के लिए तारीख का हिस्सा बन गया। इस टेबलॉयड का संचालन करने वाली कम्पनी `न्यूज इंटरनेशनल' के अध्यक्ष जेम्स मकोर्ड ने फोन हैकिंग प्रकरण में फंसने के बाद इसे बन्द करने का फैसला किया। मकोर्ड ने फोन हैकिंग प्रकरण के कारण इस 168 साल पुराने और करीब 75 लाख पाठक संख्या होने के बावजूद इस अखबार को बन्द करना ही बेहतर समझा। टेबलॉयड के अंतिम संस्करण के मुख्य पृष्ठ पर शीर्षक था, शुक्रिया और अलविदा। सम्पादकीय में कहा गया कि पिछले डेढ़ दशक से यह टेबलॉयड ब्रिटेन के लोगों की जरूरत का हिस्सा बन गया था। इस अखबार ने 168 वर्षों में छह राजाओं का दौर देखा। इसमें कहा गया कि हमने इतिहास को जिया है। हमने इतिहास देखा और हमने इतिहास बनाया, पुराने जमाने से लेकर डिजिटल युग तक। अंतिम सम्पादकीय में कहा गया कि हमने महारानी विक्टोरिया के निधन, टाइटैनिक जहाज के डूबने, दो विश्व युद्ध, 1996 विश्व कप जीत, चन्द्रमा पर पहला व्यक्ति, डायना की मौत सहित कई मुद्दों को रिकार्ड किया। इसमें कहा गया कि इस टेबलॉयड ने कई प्रकरण और सैलेब्रिटी के बारे में चौंकाने वाले खुलासे किए। सम्पादकीय में कहा गया कि सीधी बात है, हम राह से भटक गए। मीडिया युगल रुपर्ट मकोर्ड की मशहूर शख्सियत ने 80 साल की उम्र में वाकई चुनौतीपूर्ण फैसला किया है। इतने सफल प्रकाशन के बाद छोटी-छोटी गलतियों के लिए टेबलॉयड को इतना बड़ा फैसला लेना पड़ा। यह फैसला तमाम प्रिंट मीडिया के लिए सबक है कि खोजी पत्रकार की भी सीमा होती है, उन सीमाओं को लांघने के परिणाम घातक भी हो सकते हैं।
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