Sunday, 29 November 2020

स्थानीय निकायों के चुनाव में मोदी का सहारा

जिला विकास परिषद (डीडीसी) के पहली बार हो रहे चुनाव में भाजपा को मोदी के नाम के सहारे से अपनी सियासी मंजिल तक पहुंचने की उम्मीद है। जम्मू के पास नगरोटा में गंभीर आतंकवादी घटना ने टल कर भी, इस चुनाव को रेखांकित कर दिया है। इस प्रकरण ने इसकी याद दिलाई है कि धारा 370 के खत्म हो जाने के बाद और पूर्ववती राज्य को तोड़कर गठित दोनों केंद्रशासित क्षेत्रों में शासन सीधे केंद्र सरकार ने अपने हाथ में लेने के सवा साल बाद भी, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की चुनौती कोई खत्म नहीं हुई है। फिर भी प्रत्यक्ष-निर्वाचन से जिला काउंसिल के गठन के इस पहले चुनाव के लिए, सिर्फ आतंकवाद की चुनौती नहीं है। इससे भी बड़ी चुनौती इन हालात में स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराने की है। इस केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन सवा साल तक सीधे चलाने के बाद, अगर केंद्र सरकार ने नया रूप देकर जिला काउंसिल के चुनाव कराने का फैसला किया है तो यह शासन के माध्यम के रूप में स्थानीय चुने हुए प्रतिनिधियों तथा निकायों की जरूरत, पहचाने जाने को ही दिखाता है। जिला काउंसिल के इस संक्रमण काल में निर्वाचित विधानसभा के स्थानापत्र के रूप में कारगर होने न होने की बहस अपनी जगह, जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले निकाय के रूप में उनसे समस्याओं को सुलझाने में मददगार होने की उम्मीद की जाती है। कश्मीर के नेताओं की लंबे समय तक नजरबंदी समाप्त होने के बाद इन चुनावों का विशेष महत्व हो जाता है। डीडीसी चेयरमैन के रूप में निर्वाचित शख्स को राज्यमंत्री का दर्जा दिया जाएगा। जिस प्रकार राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीए मीर के बीच लंबे अरसे से चले आ रहे गहरे मनमुटाव के कारण यहां कांग्रेस संगठन मजबूत दिखाई नहीं देता है। जिसका लाभ जम्मू संभाग में भाजपा को मिल सकता है। इन चुनावों में भाजपा ने अपने प्रत्याशियों के पक्ष में बड़ी संख्या में स्टार प्रचारकों को मैदान में उतारा है। 28 नवम्बर को डीडीसी चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान हुआ। जिसका प्रचार बृहस्पतिवार शाम को थम गया। प्रदेश के सभी 20 जिलों के 280 जिला परिषद के लिए आठ चरणों में मतदान होगा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पहली बार होने जा रहे यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बेहद अहम हैं। पार्टी की प्रबल कोशिश है कि भाजपा इन चुनावों में बहुमत लेकर देश व दुनिया में यह साबित कर देगी कि विशेष दर्जे वाले रहे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35ए को जनहित में खत्म किया जाना कितना जरूरी था। घाटी आधारित गुपकार गठबंधन जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा तथा पूर्ण राज्य पुन बहाल किए जाने का मुद्दा उछाल रहा है। कश्मीर घाटी में नामजदगी के पर्चे भरने के साथ ही प्राय सभी उम्मीदवारों को सुरक्षा मुहैया कराने की जरूरत से इस कसरत की मुश्किलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन सुरक्षित रहने के नाम पर उम्मीदवारों को व्यवहार में कैद करके रखना तो उलटा ही काम करेगा और अगर सिर्फ शासन की कृपा प्राप्त उम्मीदवारों को ही सुरक्षा के साथ चुनाव प्रचार का मौका मिलता है तो यह पूरी चुनावी प्रक्रिया को ही निरर्थक बना देगा। मुख्यधारा की क्षेत्रीय पार्टियों के गठबंधन, गुपकार ग्रुप ने खासतौर पर ऐसे आरोप लगाए हैं। इन पार्टियों का मौजूदा हालात में बहिष्कार करने के बजाय इन चुनावों में हिस्सा लेना, इस पूरे प्रयास का वजन भी बढ़ाता है।

मैक्रों ने कहाöइस्लामिक नेता प्रजातंत्र मूल्यों को स्वीकारें

फ्रांस के राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों ने देशभर के मुस्लिम नेताओं को 15 दिन का अल्टीमेटम दिया है। उन्होंने कहा है कि इस अवधि में सभी इस्लामिक नेता कट्टरपंथी इस्लाम के खिलाफ राष्ट्रव्यापी मुहिम का हिस्सा बन जाएं। इस रूप में प्रजातांत्रिक मूल्यों के चार्टर को स्वीकार कर लें। मैक्रों ने फ्रेंच काउंसिल ऑफ द मुस्लिम फेथ (सीएफसीए) नामक संगठन से कहा है कि प्रजातांत्रिक मूल्यों के चार्टर को स्वीकार करते हुए लिखें कि इस्लाम धर्म है। यह कोई राजनीतिक आंदोलन नहीं है। इसका मकसद मुस्लिम समूहों में विदेशी हस्तक्षेप को रोकना भी है। यह कदम देशभर में एक महीने से भी कम समय में तीन इस्लामिक आतंकवादी हमलों के बाद उठाया गया है। राष्ट्रपति मैक्रों ने इस्लाम को बतौर धर्म संकट में बताया था। उन्होंने इस्लामिक अलगाववाद से निपटने का संकल्प भी लिया था। इस पर तुर्की सहित कई मुस्लिम बहुसंख्यक देशों ने कड़ी नाराजगी जाहिर की थी। पाकिस्तान सरकार की कैबिनेट मंत्री शिरीन मजारी ने मैक्रों के खिलाफ कड़ी टिप्पणी कर दी। पाकिस्तान को एक बार फिर विश्व स्तर पर उस वक्त शर्मसार होना पड़ा जब फ्रांसीसी राष्ट्रपति पर की गई मजारी को न सिर्फ अपना विवादित ट्वीट वापस लेना पड़ा बल्कि उन्हें अपने किए पर माफी भी मांगनी पड़ी। मजारी ने कहा था कि राष्ट्रपति इमैनुएल मैक्रों की सरकार मुस्लिमों पर नाजी शासन में यहूदियों पर हुए जुल्म की तरह अत्याचार कर रही है। पाकिस्तानी मंत्री के इस ट्वीट पर राष्ट्रपति मैक्रों नाराज हो गए और फ्रांस ने मजारी से टिप्पणी को वापस लेने की मांग की। दो दिन पूर्व शिरीन मजारी ने एक लेख का हवाला देते हुए कुछ ट्वीट किए कि मैक्रों सरकार मुसलमानों पर नाजियों द्वारा यहूदी अत्याचारों जैसा बर्ताव कर रही है। इस पर फ्रांसीसी विदेश मंत्रालय ने पाक सरकार से सम्पर्क कर आपत्ति जताई। फ्रांस ने कहा कि या तो मंत्री अपने दावे के पक्ष में सुबूत पेश करें अन्यथा माफी मांगें। फ्रांस के सख्त रवैये के आगे पाक की इमरान खान सरकार को झुकना पड़ा और मंत्री को माफी मांगनी पड़ी। मजारी ने लिखाöमैं अपनी गलती सुधारते हुए ट्वीट डिलीट कर रही हूं और इस गलती के लिए माफी भी मांगती हूं। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 28 November 2020

हम इसे हिन्दू-मुस्लिम नहीं देखते ः हाई कोर्ट

लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल हिन्दू समूहों का एक वर्ग उन मुस्लिम पुरुषों के लिए करता है जो प्यार और शादी की आड़ में महिलाओं को कथित रूप से धर्मांतरण के लिए मजबूर करते हैं। साल 2009 में केरल और कर्नाटक के क्रमश कैथोलिक और हिन्दू समूहों ने आरोप लगाया था कि उनके समुदाय की महिलाओं का जबरन इस्लाम में धर्मांतरण किया जा रहा है। इसके बाद लव जिहाद शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया। लेकिन 2014 में उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के दौरान पहली बार प्रचलित हुआ जब भाजपा ने इसे व्यापक तौर पर उठाया। अपने धर्म से बाहर शादी करने वाले जोड़ों के लिए स्थितियां खासी मुश्किल भरी हैं। उन्हें अपने विवाह को सामाजिक तौर पर स्वीकृत कराने और खुश रहने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, लेकिन ऐसे जोड़ों को लव जिहाद शब्द के बढ़ते चलन से अब बेचैनी हो रही है। कई जोड़ों ने कहा कि कई राज्य सरकारों ने लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की मंशा जाहिर की है, जिससे अलग-अलग धर्म के मानने वाले (इंटरफेथ) जोड़ों के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं। दिल्ली में रहने वाली और हिन्दू व्यक्ति से शादी करने वाली शीना शाह उल हमीद ने कहाöलव जिहाद अपने आप में मजाक है। कोई कैसे किसी रिश्ते में जिहाद ला सकता है? वैवाहिक चीजों में धर्म के आधार पर किसी को कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है? अगर कानून बनाया जाता है तो हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इसे देखेगा और रद्द करेगा। अगर हम न्यायालय और कानून की बात करें तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो अलग-अलग धर्मों के बालिग लड़के और लड़की के प्रेम विवाह के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि वो युवाओं को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। कानून दो बालिग व्यक्तियों को एक साथ रहने की इजाजत देता है। चाहे वह समान या विपरीत सेक्स के ही क्यों न हों। कोर्ट ने साफ कहा कि उनके शांतिपूर्ण जीवन में कोई व्यक्ति या परिवार दखल नहीं दे सकता है। यहां तक कि राज्य भी दो बालिक लोगों के संबंध को लेकर आपत्ति नहीं कर सकता है। कुशीनगर के विष्णुपुरा के रहने वाले सलामत अंसारी और तीन अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बैंच ने यह फैसला सुनाया है। प्रियंका खरवार उर्फ आलिया के पिता की ओर से कहा गया कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन प्रतिबंधित है। ऐसी शादी कानून की नजर में वैध नहीं है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति की पसंद का तिरस्कार, पसंद की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है। कोर्ट ने कहाöप्रियंका खरवार और सलामत को अदालत हिन्दू-मुस्लिम के रूप में नहीं देखती है बल्कि दो युवाओं के रूप में देखती है। कोर्ट ने कहा कि संविधान की अनुच्छेद-21 अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति के साथ शांति से रहने की आजादी देता है। इसलिए इसमें हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पॉक्सो एक्ट भी लागू नहीं होता है। इस आधार पर कोर्ट ने याचियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को भी रद्द कर दिया है। सरकार की ओर से यह आपत्ति की गई इसके पूर्व नूरजहां और प्रियांशी उर्फ समरीन के मामले में शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने को अवैध माना है, जिस पर कोर्ट ने असहमति जताई। वहीं यह उम्मीद जताई कि बेटी परिवार के लिए सभी उचित शिष्टाचार और सम्मान का व्यवहार करेगी।

वैवाहिक समारोहों पर नए आदेश से असमंजस पैदा हो गया है

शादियों का सीजन शुरू हो गया है। राजधानी में लगातार बढ़ रहे कोरोना मामलों को देखते हुए दिल्ली सरकार ने वैवाहिक समारोह में अतिथियों की अधिकतम संख्या 200 से रातोंरात घटाकर 50 करने से शादी वाले परिवारों में तलहका मचा दिया है। इससे शादी करने वाले परिवारों में, टैंट, बैंक्वेट हॉलों, केटरर्स व शादी के कार्ड छापने वालों को असमंजस की स्थिति में डाल दिया है। कई परिवारों ने 200 कार्ड छपवाकर बांट भी दिए हैं। अब उनके लिए समस्या हो गई है कि वह क्या करें, कैसे लोगों को मना करें, किस-किस को इंवीटेशन स्टैंड करता है यह सब समस्या पैदा हो गई है। दिल्ली वेडिंग एंड ग्रीटिंग कार्ड मैन्युफैक्चरर्स के प्रेजिडेंट बिमल जैन ने कहा कि नवम्बर की शादियों के कार्ड तो दीपावली से पहले ही ग्राहकों को दे दिए गए हैं। लेकिन दिसम्बर में होने वाली शादियों के कार्ड अभी भी तमाम कार्ड निर्माताओं के पास पड़े हैं। अब उनके क्लाइंट कार्ड लेने नहीं आ रहे हैं। फोन पर वह कह रहे हैं कि अधिकतम 50 कार्ड लेकर ही जाएंगे। 100-150 कार्ड लेने का कोई फायदा नहीं है। इसका नुकसान भी कार्ड निर्माताओं के ऊपर आ गया है। जब से दिल्ली सरकार का यह आदेश आया है, तभी से कार्ड निर्माताओं में सदमा लगा हुआ है। उनकी समझ नहीं आ रहा कि क्या करें? यही हाल केटरर्स का भी है, टैंट वालों का भी है। कुछ लोगों ने थोड़ा एडवांस दे रखा है और बुकिंग कैंसिल होने पर उसे लौटाने का दबाव बढ़ रहा है। मुख्यमंत्री अरविन्द केजरीवाल ने आनन-फानन में यह निर्णय लिया है, जिससे बहुत सारे ठेकेदार, कार्ड वालों के सामने बड़ी मुसीबत खड़ी हो गई है। वैसे कोरोना और लॉकडाउन की मार से अब तक उबरे नहीं थे। धीरे-धीरे काम उठना शुरू हुआ था। दीपावली से पहले 20 प्रतिशत तक बिजनेस आ रहा था। उम्मीद बंधी थी कि व्यापार में तेजी आएगी। लेकिन अब 50 आदमियों की पाबंदी से सब गड़बड़ा गया है। समारोह में 50 आदमियों का मतलब वर या वधु पक्ष की ओर से 25-25 आदमियों का मतलब तो इतने लोग घर परिवार के ही हो जाते हैं। इस अचानक संख्या घटाने से लोगों को न केवल भारी नुकसान हुआ है बल्कि उन्हें नई समस्या में डाल दिया गया है।

सत्ता सौंपने के लिए ट्रंप अब तैयार

अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की मिशिगन राज्य से जो बाइडन की जीत को प्रमाणित न होने देने की कोशिशों को झटका लगने के बाद अंतत इस राज्य में डेमोक्रेटिक प्रत्याशी के जीतने की आधिकारिक पुष्टि हो गई। इसके अलावा पेंसिल्वेनिया राज्य की एक अन्य अदालत द्वारा ट्रंप के खिलाफ फैसला देने के बाद ट्रंप ने आखिरकार मान लिया कि बाइडन को सत्ता सौंपने की प्रक्रिया शुरू हो जानी चाहिए। मिशिगन में बाइडन के 1.54 लाख मतों से जीतने की प्रमाणिक पुष्टि होने व पेंसिल्वेनिया में अदालती फैसले के बाद ट्रंप के पास अब कोई और रास्ता नहीं बचा था। ट्रंप ने ट्वीट करके कहा कि सत्ता हस्तांतरण की निगरानी करने वाली संघीय एजेंसी जीएसए (जनरल सर्विस एडमिनिस्ट्रेशन) प्रमुख एमिली मर्फी को वो जांच करनी चाहिए जो जरूरी है। जीएसए ने जो बाइडन को विजेता के तौर पर स्वीकार कर लिया है। बाइडन 20 जनवरी 2021 को अपना कार्यभार संभालेंगे। हालांकि ट्रंप ने अपनी लड़ाई जारी रखने की बात भी कही है। साथ ही ट्रंप ने न तो औपचारिक तौर पर हार स्वीकार की और न ही बाइडन को बधाई दी। लेकिन सत्ता हस्तांतरण के लिए तैयार होने का सीधा संकेत है कि ट्रंप को अब व्हाइट हाउस छोड़ना पड़ेगा। अमेरिकी खुफिया एजेंसी भी अब नवनिर्वाचित राष्ट्रपति को सीधे तौर पर संवेदनशील सूचना दे सकेगी। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 27 November 2020

तीन दशकों से कांग्रेस के चाणक्य रहे अहमद पटेल का जाना

कांग्रेस को एक हफ्ते में दो बड़े झटके लग गए। पहला तरुण गोगोई के जाने से और तुरन्त बाद व]िरष्ठ नेता अहमद पटेल के जाने से। अहमद पटेल का बुधवार को निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे और कुछ हफ्तों से कोरोना संक्रमित हो गए थे और मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। पटेल के बेटे फैसल पटेल और पुत्री मुमताज सिद्दीकी ने ट्विटर पर एक बयान जारी कर बताया कि उनके पिता ने बुधवार को तड़के तीन बजकर 30 मिनट पर अंतिम सांस लिया। उन्होंने कहा कि दुख के साथ अपने पिता अहमद पटेल की दुखद और असामयिक मृत्यु की घोषणा कर रहे हैं। फैसल और मुमताज ने बताया कि लगभग एक महीने पहले उनके पिता कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे। इलाज के दौरान उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया। पटेल को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहाöश्री अहमद पटेल के जाने से मैंने एक ऐसा सहयोगी खो दिया है जिनका पूरा जीवन कांग्रेस पार्टी को समर्पित था। उनकी निष्ठा और समर्पण, अपने कर्तव्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, मदद के लिए हमेशा मौजूद रहना और उनकी शालीनता कुछ ऐसी खूबियां थीं जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थीं। मैंने ऐसा कॉमरेड, निष्ठावान सहयोगी और मित्र खो दिया जिनकी जगह कोई नहीं ले सकता। मैं उनके निधन पर शोक प्रकट करती हूं और उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करती हूं। अहमद पटेल सिर्फ कांग्रेस के कोषाध्यक्ष ही नहीं रहे बल्कि उन्हें पार्टी का संकटमोचक व चाणक्य भी माना जाता था। यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक का उन पर पूरा भरोसा था। पार्टी में आए बड़े संकट के समय उन्होंने खुद से इसे टालने या सुलझाने में हमेशा अहम भूमिका निभाई। मनमोहन सिंह सरकार में भी उन्हें दो बार मंत्री पद ऑफर किया गया पर उन्होंने सरकार में रहने के बजाय पार्टी के लिए काम करना बेहतर समझा। अहमद पटेल करीब तीन दशक तक कांग्रेस के लिए बड़े और अहम रणनीतिकार बने रहे। मई 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधन के बाद पीवी नरसिंह राव सरकार के दौरान भी कई अहम मौकों पर पटेल की सलाह काम आई। अल्पमत सरकार के पांच साल चलाने में कई दलों के नेताओं के साथ नरसिंह राव के निजी संबंध काम आए थे। लेकिन पटेल ने हमेशा नाजुक मौकों पर परदे के पीछे से काम करना बेहतर समझा। वह पहली बार चर्चा में तब आए थे जब 1985 में राजीव गांधी ने उन्हें ऑस्कर फर्नांडीस और अरुण सिंह के साथ अपना संसदीय सचिव बनाया था। तब इन तीनों को अनौपचारिक चर्चाओं में अमर-अकबर-एंथोनी गैंग कहा जाता था। अहमद पटेल के दोस्त, विरोधी और सहकर्मी उन्हें अहमद भाई कहकर पुकारते रहे, लेकिन वह हमेशा सत्ता और प्रचार से खुद को दूर रखना ही पसंद करते थे। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और संभवत प्रणब मुखर्जी के बाद यूपीए के 2004 से 2014 के शासनकाल में अहमद पटेल सबसे ताकतवर नेता थे। 2014 के बाद से जब कांग्रेस ताश के महल की तरह दिखने लगी तब भी पटेल मजबूती से खड़े रहे और महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई और धुरविरोधी शिवसेना को भी साथ लाने मे कामयाब रहे। अब यह कोई रहस्य की बात भी नहीं रही कि अगस्त 2017 में अहमद पटेल कांग्रेस की ओर से पांचवीं बार राज्यसभा भेजे जाने (यह अपने आपमें अनोखा था, क्योंकि कांग्रेस ने इससे पहले किसी भी नेता को पांच बार राज्यसभा नहीं भेजा था) को लेकर उत्सुक नहीं थे। पर सोनिया ने उन्हें इसलिए मनाया और कहा था कि अकेले वही हैं जो अमित शाह और पूरी भाजपा की बराबरी करने में सक्षम हैं। अहमद के जाने से कांग्रेस को तो भारी क्षति हुई ही है पर तमाम विरोधी दलों को भी ऐसे चाणक्य के जाने से भारी नुकसान हुआ है। अलविदा अहमद भाई।

सुरंगों से घुसते पाकिस्तानी आतंकी

जम्मू संभाग के सांबा जिले में अंतर्राष्ट्रीय सीमा से सटे गांव रिगाल में एक सुरंग का पता लगाकर पाकिस्तानी साजिश का पर्दाफाश किया गया है। यह सुरंग 150 मीटर लंबी है। इसे बीएसएफ और जम्मू-कश्मीर पुलिस के गश्ती दल ने खोजा है। दावा किया जा रहा है कि इसी सुरंग से तीन दिन पहले नगरोटा के बन टोल प्लाजा में मारे गए जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकी आए थे। 19 नवम्बर को नगरोटा के बन टोल प्लाजा में मारे गए आतंकियों से मिले स्मार्टफोन और सैटेलाइट फोन को खंगाला गया तो इनकी लोकेशन का सही पता चला। डीजीपी दिलबाग सिंह ने कहा कि चारों आतंकी 18 नवम्बर की रात करीब 8ः30 बजे भारतीय सीमा में घुसे थे। करीब 12ः30 बजे जम्मू-पठानकोट राष्ट्रीय राजमार्ग पर जतवाल पहुंचे, जो सीमा से करीब आठ किलोमीटर दूर है, वहां से ट्रक में सवार हुए। लोकेशन से सारी तस्वीर साफ होने के बाद पुलिस ने बीएसएफ के अधिकारियों को सूचित किया। इसके बाद सरहद से सटे गांवों को खंगाला गया और दोपहर करीब 12 बजे रिगाल गांव पुलिस ने एक जवान को सुरंग के भीतर भेजा। सुरंग का एक मुहाना भारतीय क्षेत्र में है, जिसका व्यास तीन फुट है, दूसरा मुहाना पाकिस्तान की तरफ है। सामने पाकिस्तान की भूरा चक्क चौकी है। सुरंग के अंदर की गोलाई, इसके लिए सुरंग के दोनों तरफ लकड़ी के फट्टे लगाए गए हैं। ऐसा लगता है कि सुरंग का निर्माण कुशल इंजीनियरों ने किया है, ताकि हमेशा इसका इस्तेमाल घुसपैठ के लिए किया जा सके। यह सुरंग जमीनी सतह से करीब 25 फुट नीचे है। इसके अंदर फट्टों के अलावा पॉलिथीन शीट्स का भी प्रयोग किया गया है ताकि इसमें बरसात के दिनों में पानी का रिसाव न हो। यह सुरंग हाल में ही बनाई गई है। सुरंग के मुहाने पर मिट्टी व रेत से भरी बोरियां लगाई गई हैं। बोरियों पर एग्रो और सब्ज एग्रो बैग यूरिया खाद मैन्युफेक्चर्ड इन पाकिस्तान उर्दू में लिखा है। कुछ पर कासिम कराची केमिकल भी लिखा है। सूत्रों के मुताबिक बन टोल प्लाजा में मारे गए आतंकी कमांडो ट्रेनिंग ले चुके थे। वह अमावस्या की रात पैदल ही बॉर्डर से हाइवे तक पहुंचे। इनके साथ गाइड होने की बात से भी सुरक्षा अधिकारियों ने इंकार नहीं किया है। 31 जनवरी को तड़के बन टोल प्लाजा में मारे गए तीन आतंकी भी अमावस्या की रात को बॉर्डर से हाइवे पहुंचे थे। मसूद अजहर का भाई और जैश कमांडर रऊफ लाला पल-पल की जानकारी ले रहा था। उस समय उसके साथ कारी जरार और कासिम जान उनके हैंडलरों की भूमिका निभा रहे थे। बता दें कि पहले भी मिल चुकी हैं सुरंगें। 28 जुलाई 2012 नजवाल, सांबा, 23 अगस्त 2014 चौआता अखनूर, तीन मार्च 2016 आरएस पुरा। 30 सितम्बर 2017 अरनिया और 28 अगस्त 2020 वैनगलाड सांबा सेक्टर। आतंकियों की ट्रेनिंग से लेकर उनकी लांचिंग का पूरा जिम्मा पाक सेना के पास है। सुरंग को लंबे समय तक आतंकियों के इस्तेमाल के लिए बनाया गया, ताकि घुसपैठ को आसान बनाया जा सके, दिलबाग सिंह, डीजीपी। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 25 November 2020

बॉलीवुड में ड्रग्स का सेवन आम है

नारकोटिक्स कंट्रोल ब्यूरो (एनसीबी) ने शनिवार को कॉमेडियन भारती सिंह को ड्रग्स केस में गिरफ्तार कर लिया था। गिरफ्तारी से पहले उनके पति हर्ष के घर और ऑफिस में बाकायदा छापा डाला गया। पिछले महीने एनसीबी ने एक टीवी एक्ट्रेस प्रीतीका चौहान को भी ड्रग्स लेने के आरोप में गिरफ्तार किया था। सितम्बर महीने में एक्टर सनन जौहर और एबीगेल पांडे के खिलाफ भी ड्रग्स सेवन में एफआईआर दर्ज की गई थी। इनके घर पर पड़ी रेड में भी आरोप है कि वहां से ड्रग्स मिली थी। अगर पिछले कुछ सालों का इतिहास देखा जाए तो ड्रग्स को लेकर बॉलीवुड में एक मर्डर भी हो चुका है और वह है फिल्म अभिनेत्री कृतिका देसाई का। आरोप है कि उन्होंने कुछ ड्रग्स पैडलर्स का पेमेंट नहीं किया था, इसलिए उनका मर्डर कर दिया गया। यह केस बांद्रा, क्राइम ब्रांच के सीनियर इंस्पेक्टर गोपाल ने डिटेक्ट किया था। जिस दिन एनसीबी दीपिका पादुकोण से पूछताछ कर रही थी, उस दिन गोपाल ने उस्मान शेख नाम के ड्रग्स सप्लायर को गिरफ्तार किया था। उस्मान शेख ने गोपाल से पूछताछ में कुछ सनसनीखेज खुलासे किए थे कि बॉलीवुड में ड्रग्स इतनी क्यों ली जाती है? उस्मान के मुताबिक बॉलीवुड में यह मिथ्य है कि ड्रग्स के सेवन से इंसान हमेशा स्लिम यानि पतला बना रहता है। चूंकि हिट फिल्में देने या लंबे समय तक टीवी धारावाहिक व अन्य शो में अपना वजूद बनाए रखने के लिए स्लिम होना जरूरी होता है। इसलिए भी यहां ड्रग्स का सेवन बहुत होता है। फिर लाइव शो होते हैं और इन शो में परफॉर्म करने से पहले कुछ नामी-गिरामी एक्टर ड्रग्स लेकर ही शो करते हैं। क्योंकि इन शो में नाचना-कूदना पड़ता है जिसमें कुछ एनर्जी लगती है। उस्मान शेख ने पूछताछ में भी बताया था कि बॉलीवुड में एक मिथ्य और भी है कि ड्रग्स सेवन से सेक्स की इच्छा बढ़ती है। इसलिए भी यहां ड्रग्स लेते हैं। यह सारी कार्रवाई उस केस में हो रही है, जिसमें रिया और उनके भाई शौविक चक्रवर्ती को भी गिरफ्तार किया गया था। अब तक करीब 30 लोग अरेस्ट हो चुके हैं, जिसमें बस एक ही बड़ा नाम हैöफिल्म प्रोड्यूसर क्षितिज प्रसाद का। इंस्पेक्टर नंद कुमार गोपाल ने एनबीटी को बताया कि बॉलीवुड में जिसकी जितनी बड़ी हैसियत है, वह उतनी महंगी ड्रग्स लेता है। जो बड़े हीरो हैं, वह कोकेन या इसी तरह की दूसरी महंगी ड्रग्स लेते हैं। जिनकी कमाई एकदम कम है, वह गांजा, चरस वगैरह लेते हैं। कई मामलों में यह अपवाद भी होता है। अफीम एक जानलेवा लत है। लेखकों, कलाकारों ने जमकर इसका सेवन किया, लेकिन कुछेक अपवाद को छोड़ सब न तो बड़े लेखक बन पाए, न कलाकार। सुशांत सिंह राजपूत की आत्महत्या के केस के बाद बॉलीवुड में ड्रग्स केसों में मानो बाढ़-सी आ गई है। कंगना रनौत ने भी कई तरह के आरोप लगाए हैं। ड्रग्स लेना तो गलत है ही पर ड्रग्स सप्लायर की ज्यादा बड़ी भूमिका है। सारे के सारे राज धीरे-धीरे खुल रहे हैं। अभी देखो किस-किस का नाम आता है?

प्राइवेट अस्पतालों ने कोविड इलाज के लिए मनमर्जी वसूली की

एक संसदीय समिति ने शनिवार को कहा कि कोविड-19 के बढ़ते मामलों के बीच सरकारी अस्पतालों में बिस्तरों की कमी और इस महामारी के इलाज के लिए विशिष्ट दिशानिर्देशों के अभाव में निजी अस्पतालों ने काफी बढ़ाचढ़ा कर पैसे लिए। इसके साथ ही समिति ने जोर दिया कि स्थायी मूल्य निर्धारण प्रक्रिया से कई मौतों को टाला जा सकता था। स्वास्थ्य संबंधी स्थायी संसदीय समिति के अध्यक्ष रामगोपाल यादव ने राज्यसभा के सभापति एम. वेंकैया नायडू को कोविड-19 महामारी का प्रकोप और इसका प्रबंधन पर रिपोर्ट सौंपी। सरकार द्वारा कोविड-19 महामारी से निपटने के संबंध में यह किसी भी संसदीय समिति की पहली रिपोर्ट है। रिपोर्ट में कहा गया है कि निजी अस्पतालों में कोविड के इलाज के लिए विशिष्ट दिशानिर्देश के अभाव के कारण मरीजों को अत्याधिक शुल्क देना पड़ा। समिति ने जोर दिया कि सरकारी स्वास्थ्य सुविधाओं की कमी और महामारी के मद्देनजर सरकारी और निजी अस्पतालों के बीच बेहतर साझेदारी की जरूरत है। समिति ने कहा कि जिन डॉक्टरों ने महामारी के खिलाफ लड़ाई लड़ी और इसमें अपनी जान दे दी, उन्हें शहीद के रूप में मान्यता दी जानी चाहिए और उनके परिवार को पर्याप्त मुआवजा दिया जाना चाहिए। समिति ने कहा कि 1.3 अरब की आबादी वाले देश में स्वास्थ्य पर खर्च बेहद कम है और भारतीय स्वास्थ्य व्यवस्था की नाजुकता के कारण महामारी से प्रभावी तरीके से मुकाबला करने में एक बड़ी बाधा आई। रिपोर्ट में कहा गया है कि इसलिए समिति सरकार से सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणाली में अपने निवेश को बढ़ाने की अनुशंसा करती है। समिति ने सरकार से कहा कि दो साल के भीतर सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 2.5 प्रतिशत तक के खर्च के राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए निरंतर प्रयास करें क्योंकि वर्ष 2025 का निर्धारित समय अभी दूर है और उस समय तक सार्वजनिक स्वास्थ्य को जोखिम में नहीं रखा जा सकता है। राष्ट्रीय स्वास्थ्य नीति 2017 में 2025 तक जीडीपी का 2.5 प्रतिशत स्वास्थ्य सेवा पर सरकारी खर्च का लक्ष्य रखा था। समिति ने कहा कि यह महसूस किया गया कि देश के सरकारी अस्पतालों में बैड की संख्या कोविड और गैर-कोविड मरीजों की बढ़ती संख्या के लिहाज से पर्याप्त नहीं थी।

सुब्रत रॉय 62 हजार करोड़ लौटाएं वरना पैरोल रद्द करें

सिक्युरिटी एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है। सेबी ने इसमें अदालत से अपील की है कि वह सहारा ग्रुप के प्रमुख सुब्रत रॉय और उनकी दो कंपनियों को 8.4 बिलियन डॉलर यानि करीब 62 हजार करोड़ रुपए जमा करने का आदेश दे। सेबी ने कहाöअवमाननाकर्ता पैसे नहीं वापस करता है तो उनकी पैरोल रद्द कर उन्हें हिरासत में लिया जाए। सहारा अपने निवेशकों से ली गई राशि को 15 प्रतिशत ब्याज के साथ जमा करने के 2012 और 2015 के आदेश का पालन करने में विफल रहे हैं। रॉय को मार्च 2014 में अदालत की अवमानना से जुड़े मामले में गिरफ्तार किया था। वह 2016 से जमानत पर चल रहे हैं। सेबी ने कहा कि सहारा ने आदेशों का पालन करने के लिए कोई प्रयास नहीं किया है। दूसरी ओर देनदारी प्रतिदिन बढ़ रही है और वह हिरासत से बाहर रहने का आनंद ले रहे हैं। सेबी ने कोर्ट से आग्रह किया कि 30 सितम्बर के अनुसार देय 62,602.90 करोड़ रुपए की धनराशि सेबी-सहारा फंड खाते में तत्काल जमा कराने का निर्देश दिया जाए। वहीं सहारा ग्रुप का कहना है कि हमने सेबी को 22 हजार करोड़ रुपए दिए हैं, लेकिन सेबी ने निवेशकों को केवल 106.10 करोड़ रुपए ही दिए। हम सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन कर रहे हैं। उन्होंने कहा कि सुब्रत रॉय के खिलाफ केवल एक आरोप है कि वह निवेशकों को पैसा चुकाने में समय ले रहे हैं। हम इसका ब्याज भी चुका रहे हैं। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 22 November 2020

चुनाव से पहले कश्मीर में हिंसा फैलाने के खतरनाक इरादे

तमाम सख्ती, चौकसी, सघन तलाशी अभियान और नियंत्रण रेखा पर गहन गश्त के बावजूद पाकिस्तान पोषित दहशतगर्दों की घुसपैठ पर नकेल कसना हमारे सुरक्षा बलों के लिए चुनौती बना हुआ है। पहाड़ों पर बर्फबारी शुरू होते ही उनकी यह हरकतें और बढ़ जाती हैं। पुलवामा में सीआरपीएफ काफिले पर हथगोले फेंकने और फिर जम्मू-श्रीनगर राजमार्ग पर हुई मुठभेड़ इसके ताजा उदाहरण हैं। ताजा घटना में जम्मू के नगरोटा में सुरक्षा बलों ने जैश-ए-मोहम्मद के चार आतंकियों को मार गिराया है। एनकाउंटर गुरुवार तड़के 4ः50 बजे शुरू हुआ। दो घंटे में आतंकी ढेर कर दिए गए। आतंकी चावल के बोरों से भरे ट्रक में सवार थे। सभी पाकिस्तानी थे। सुरक्षा बलों ने नगरोटा स्थित बन टोल प्लाजा पर ट्रक को रोका और आतंकियों से सरेंडर करने के लिए कहा पर उन्होंने हमला कर दिया। जवाबी कार्रवाई में सेना ने ट्रक को उड़ा दिया और आतंकी मार दिए। आतंकियों के इरादे खतरनाक थे क्योंकि उनके पास से 11 एके-47 राइफल, तीन पिस्टल, 20 ग्रेनेड, छह यूबीजीएल ग्रेनेड, मोबाइल फोन, कंपास और अन्य डिवाइस और पिट्ठू बैग मिले हैं। ट्रक ड्राइवर फरार है। हैरानी की बात यह है कि आतंकियों ने हमारे सुरक्षा प्रबंधों की धज्जियां उड़ाते हुए लगातार चौथी बार जम्मू-उधमपुर हाइवे पर कई किलोमीटर का सफर करके आसानी से हमले करने में कामयाब रहे और सुरक्षा बल या तो सिर्फ सुरक्षा के प्रति दावे करते रहे या फिर एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप ही लगाते रहे। अब भी वही हुआ। बन टोल प्लाजा पर हमला करने वाले आतंकियों ने 70 किलोमीटर से ज्यादा का सफर उन मार्गों पर किया, जहां सुरक्षा नाकों की भरमार है। पहले भी तीन बार ऐसा हो चुका है जब आतंकी 80, 40 और 50 किलोमीटर का सफर आसानी से पार करते हुए हमले करने में कामयाब रहे थे। सांबा में सीमा एनएच से कहीं दो किलोमीटर तो कहीं 10 किलोमीटर दूर है। 13 सितम्बर 2018 को झज्जर कोटली में हुए हमले के लिए भी आतंकी 40 किलोमीटर का सफर तय कर वहां पहुंचे थे। 29 नवम्बर 2016 को नगरोटा में सैन्य मुख्यालय पर हमला करने वाले आतंकियों ने 50 किलोमीटर का सफर तय किया था। 31 जनवरी इसी साल बन टोल प्लाजा पर ही हमला किया था। यों तो सर्दियों के मौसम में पाकिस्तान संघर्षविराम का उल्लंघन कर आतंकियों की घुसपैठ कराने की कोशिश करता रहा है, लेकिन ऐसे समय जब जम्मू-कश्मीर में 28 नवम्बर को जिला विकास परिषद के चुनाव होने जा रहे हैं, पिछले कुछ दिनों के दौरान उसकी ओर से तेज हुई घुसपैठ की कोशिशें उसके मंसूबों को बताती हैं। आधिकारिक आंकड़ों के मुताबिक 2019 की 3168 घटनाओं की तुलना इस साल छह अक्तूबर तक पाकिस्तान की ओर से नियंत्रण रेखा तथा अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर संघर्षविराम उल्लंघन की 3589 घटनाएं हो चुकी हैं। भारत की सख्त चेतावनी के बावजूद पाकिस्तान अपनी हरकतों से बाज नहीं आता। यह संयोग मात्र नहीं है कि एक दिन पहले प्रधानमंत्री ने ब्रिक्स सम्मेलन में आतंकवाद से निपटने के लिए एकजुटता पर बल दिया। चीन को भी पाकिस्तान की इन हरकतों को गंभीरता से लेने की जरूरत है। भारत जब भी अपने यहां आतंकवादी घटनाओं से संबंधित दस्तावेज पाक को सौंपता है तो पाकिस्तान उसे सिरे से खारिज करने का प्रयास करता है। यहां तक कि अदालतें भी उन दस्तावेजों को कोई प्रमाण नहीं मानतीं। मुंबई हमले के साजिशकर्ता हाफिज सईद इसका उदाहरण है। दहशतगर्दों के खिलाफ पाकिस्तान दिखावे के लिए कार्रवाई करता है ताकि अंतर्राष्ट्रीय बिरादरी के सामने उनकी आंख में धूल झोंक सके। पाकिस्तान की नीयत तो साफ है पर हमारे सुरक्षा बलों, गुप्तचर एजेंसियां क्या कर रही हैं?

चीन की धमकी, आंखें निकाल दी जाएंगी

चीन के हांगकांग में नए नियम के खिलाफ इस महीने लोकतंत्र समर्थक 15 सांसदों ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया था। अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्टेलिया, न्यूजीलैंड और कनाडा ने चीन पर आरोप लगाया है कि वो हांगकांग में अपने आलोचकों को खामोश कराने, उनकी आवाज दबाने के लिए दमन का रास्ता अपना रहा है। इनका आरोप है कि चीन ने हांगकांग में चुने गए सांसदों को अयोग्य ठहराने के लिए नए नियम बनाए हैं। पश्चिमी देशों के इन आरोपों के बाद बौखलाए चीन ने इस पर तीखी प्रक्रिया दी है। चीन के विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता ने इन देशों को चीन के मामलों में दखल न देने की चेतावनी देते हुए कहाöवे सावधान रहें वरना उनकी आंखें निकाल ली जाएंगी। फर्क नहीं पड़ता कि पांच हों या दस हों। प्रवक्ता झालो लिजिआन ने कहाöचीनी लोग न परेशानी खड़ी करते हैं और न किसी से डरते हैं। पिछले हफ्ते चीन ने एक प्रस्ताव पास किया जिसके तहत हांगकांग की सरकार उन नेताओं को बर्खास्त कर सकती है जो उनके अनुसार राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा हैं। हांगकांग में एक कानून के खिलाफ भारी विरोध प्रदर्शन के बाद हांगकांग ने चार लोकतंत्र समर्थकों (सांसदों) को बर्खास्त कर दिया। इसके जवाब में हांगकांग के सभी लोकतंत्र समर्थक सांसदों ने अपने इस्तीफे की घोषणा कर दी। 1997 के बाद जब से ब्रिटेन ने हांगकांग को चीन को सौंपा है, तब से यह पहली बार है कि संसद में कोई विरोधी स्वर नहीं बचा है। इन चारों सांसदों को बर्खास्त करने की कार्रवाई को हांगकांग की आजादी को सीमित करने के तौर पर देखा जा रहा है। हालांकि चीन इस आरोप को खारिज करता है। इन पांच देशों के विदेश मंत्रियों ने अपील की है कि वो इन सांसदों को वापस बहाल करे। उनका कहना है कि यह कदम हांगकांग की स्वायत्तता और आजादी की रक्षा करने की चीन की कानूनी प्रतिबद्धता का उल्लंघन है। उन्होंने चीन पर आरोप लगाया कि वो हांगकांग के लोगों को अपने प्रतिनिधि चुनने के अधिकार का हनन कर रहे हैं। इन पांच देशों के समूह को फाइव आइज भी कहा जाता है कि आपस में खुफिया जानकारी साझा करते हैं। इसका गठन शीतयुद्ध के वक्त किया गया था और शुरू में इसकी मंशा सोवियत संघ और उसके सहयोगियों पर नजर रखने की थी। इससे पहले हांगकांग में चीन के विदेश मंत्रालय ने कहा कि दूसरे देशों को चीन को डराने या दबाव बनाने की कोशिशें नाकाम ही होंगी। हांगकांग ने एक देश-दो सिस्टम के सिद्धांत के अंतर्गत चीन के साथ आने का फैसला किया था। इस सिद्धांत के तहत 2047 तक हांगकांग को वो सब अधिकार और स्वतंत्रता होगी जो फिलहाल चीन में नहीं है। एक विशेष प्रशासित क्षेत्र के तौर पर हांगकांग के पास अपनी कानून प्रणाली होगी, विभिन्न राजनीतिक पार्टियां होंगी, अभिव्यक्ति और एक जगह जमा होने की आजादी होगी। चीन का कहना है कि इस कानून से स्थिरता आएगी लेकिन पश्चिमी देशों की सरकारें और मानवाधिकार समूहों का कहना है कि यह कानून अभिव्यक्ति की आजादी छीनने और विरोध को रोकने के लिए बनाया गया है। इस सुरक्षा कानून के जवाब में ब्रिटेन ने हांगकांग के उन लोगों को नागरिकता देने का प्रस्ताव दिया है जिनके पास ब्रिटिश नेशनल ओवरसीज (बीएनओ) पासपोर्ट है। यानि जो लोग 1997 से पहले पैदा हुए हैं, सिर्फ उन्हीं को यह पासपोर्ट रखने का अधिकार है। करीब तीन लाख लोगों के पास बीएनओ पासपोर्ट है और 1997 से पहले पैदा हुए 29 लाख इसके योग्य हैं।

क्या असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों की पहली पसंद हैं?

बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद इस वक्त महागठबंधन की हार से भी ज्यादा किसी चीज की चर्चा है तो वह है असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन जिसे आमतौर पर एआईएमआईएम कहा जाता है। बिहार चुनाव में उसे पांच सीटों पर कामयाबी मिली है। कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी ने भी अपनी हार के लिए एआईएमआईएम को निशाने पर लिया है। कहा जा रहा है कि एआईएमआईएम ने बिहार चुनाव के पूरे समीकरण ही बदल दिए। एआईएमआईएम नेतृत्व इस बात से खुश है कि अगर वह सारे दावे खुद करती तो लोग यकीन नहीं करते लेकिन अगर दावा कोई विरोधी कर रहा है तो उसका काम तो अपने आप हुआ जा रहा है। वैसे राजनीति की सच्चाई यह होती है कि यहां अपनी हार की वजह कोई खुद मानने को तैयार नहीं होता। फिलहाल बिहार में महागठबंधन को अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मिल गई है। कहा जा रहा है कि बिहार की मुस्लिम बहुल 20 सीटों पर एआईएमआईएम ने अपने उम्मीदवार उतारे, जिसकी वजह से वहां मुसलमानों के वोटों का बंटवारा हुआ। मुसलमानों की पसंद ओवैसी बन गए, जिसकी वह से भाजपा जीत गई। इस आरोप को अगर तथ्यों पर कसा जाए तो गलत साबित होगा। जिन 20 मुस्लिम बहुल सीटों पर एआईएमआईएम ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। उन सीटों पर मुसलमानों की पहली पसंद महागठबंधन ही रहा। अगर मुसलमानों की पहली पसंद एआईएमआईएम होती तो सबसे ज्यादा सीट एआईएमआईएम को जीतनी चाहिए थी लेकिन इन 20 सीटों में सबसे ज्यादा नौ सीटें महागठबंधन ने जीतीं और एआईएमआईएम ने महज पांच सीटों पर जीत हासिल की। एआईएमआईएम ने अगर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया तो सीधा फायदा एनडीए को पहुंचाया। मुस्लिम मतदाता बंट गए और अगर वह एकमुश्त वोट महागठबंधन को देते तो एनडीए इन सीटों पर नहीं जीतता। क्या अंदरखाते भाजपा और ओवैसी की कोई अंडरस्टैंडिंग हुई थी? बहरहाल अब ओवैसी मुसलमानों के लीडर एक तरह से स्थापित हो गए हैं। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 21 November 2020

दिल्ली वालों ने खुद पैदा किए यह गंभीर हालात

राजधानी में कोरोना संक्रमण के रिकॉर्ड टूट रहे हैं। दिल्ली में कोरोना संक्रमण से पहली बार एक दिन में 131 लोगों की मौत दर्ज हुई है। जबकि 7486 नए मरीज मिले हैं। दिल्ली में यह कोरोना का तीसरा पीक है। इससे पहले जून में पहला और सितम्बर में दूसरा पीक आया था। पहले पीक के दौरान दिल्ली में सबसे ज्यादा मौतें दर्ज की गई थीं। उस दौरान पुराना रिकॉर्ड देरी से मिलने के चलते यह आंकड़ा ज्यादा मिल रहा था, लेकिन तीसरा पीक आते-आते रोजाना होने वाली मौतों से पिछले एक दिन का आंकड़ा सबसे ज्यादा है। आंकड़ों के अनुसार देश में सबसे ज्यादा मौतें दिल्ली में दर्ज की जा रही हैं। स्थिति यह है कि पिछले 10 दिनों में कोरोना मरीजों की मौत के चलते मृत्युदर 1.48 प्रतिशत दर्ज की गई, जो बाकी राज्यों की तुलना में सर्वाधिक है। राजधानी में कोरोना वायरस के बिगड़ते हालात को लेकर डॉक्टरों ने इसे काफी दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति बताई है। उनका कहना है कि दिल्ली ने खुद ऐसे हालात पैदा किए हैं। इसके जिम्मेदार लोग, सरकार और प्रशासन सभी हैं। इन हालात से बचने के लिए लॉकडाउन का विकल्प नहीं चुनना चाहिए। नई दिल्ली स्थित अपोलो अस्पताल के वरिष्ठ डॉ. एस. चटर्जी का कहना है कि दिल्ली में कोरोना के गंभीर हालात स्वयं पैदा हुए हैं। वह लॉकडाउन के पक्षधर नहीं हैं, लेकिन मानते हैं कि इस स्थिति को बेहतर रणनीति के साथ सुधारा जा सकता है। भविष्य को लेकर पहले ही सतर्क रहना जरूरी है। आईएलबीसी अस्पताल के निदेशक डॉ. एसके सरीन का कहना है कि इन हालात के लिए दिल्ली के लोग जिम्मेदार हैं। स्थिति सामान्य होने के बावजूद लोगों ने सतर्कता का पालन नहीं किया है। लॉकडाउन हटने के बाद लोगों को बेशक कभी कोरोना संक्रमण का अहसास नहीं हुआ। दुर्भाग्य से कहना पड़ता है कि लोग कोरोना के प्रति कतई गंभीर नहीं हैं। दिल्ली में इस वक्त 33 से अधिक बड़े प्राइवेट अस्पताल हैं, जो कोरोना महामारी से लड़ रहे हैं। इन अस्पतालों में भी आईसीयू बिस्तरों की अब किल्लत होने लगी है। अब हेल्थ एक्सपर्ट्स सलाह दे रहे हैं कि कोरोना से बचाव में सरकार से ज्यादा पब्लिक की जिम्मेदारी महत्वपूर्ण है। सरकार अपनी तरफ से प्रयास कर रही है, लेकिन लोग बेखौफ बाहर घूम रहे हैं, न तो मास्क पहन रहे हैं और न ही सोशल डिस्टेंसिंग का ही पालन कर रहे हैं। फेस्टिव सीजन से पहले तक लोग सावधानी बरत रहे थे लेकिन फेस्टिव सीजन आने पर काफी लापरवाही देखी गई जिसके चलते अब केस बढ़ रहे हैं। सरकार इलाज दे सकती है। बेड-आईसीयू की व्यवस्था कर सकती है लेकिन इन चीजों की जरूरत ही न पड़े, इस बात का ख्याल तो लोगों को रखना पड़ेगा। लोगों को भी अपनी जिम्मेदारी निभाने की जरूरत है। सावधानी बरतनी जरूरी है। मास्क से काफी हद तक कोरोना से बचा जा सकता है इसलिए मास्क लगाना बेहद जरूरी है। मार्केटों में भीड़ है और फिर जब केस बढ़ते हैं तो यही लोग कहते हैं कि सरकार कोरोना को कम करने के लिए कुछ नहीं कर रही। पहले हमें खुद की जिम्मेदारी समझनी होगी, उसके बाद ही कोरोना कम करने के लिए सरकार को कोसें। जब तक वैक्सीन नहीं आती, तब तक गलती से भी बिना मास्क बाहर न निकलें। भीड़भाड़ में न जाएं और समय-समय पर हाथ सैनिटाइज करें। सरकार सब कुछ नहीं कर सकती।

कोमा की स्थिति में कांग्रेस पार्टी

बिहार चुनाव व देश के 11 राज्यों में हुए उपचुनाव में कांग्रेस की दुर्गति के बाद पार्टी में घमासान मचा हुआ है और यह तो होना भी था। एक बार फिर पार्टी बगावत की राह पर है, जिस तरह पार्टी के अंदर राहुल गांधी की कार्यशैली को लेकर सवाल उठ रहे हैं उससे आने वाले दिनों में कांग्रेस में संकट काफी गहरा सकता है। पार्टी के सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों लेटर बम फोड़ने वाले नेताओं में से कुछ नेता इस बार भी हमलावर हैं और इस बार निर्णायक लड़ाई के मूड में हैं। सूत्रों के अनुसार कपिल सिब्बल ने जो आवाज उठाई है अंदरखाते कई और वरिष्ठ नेता उसका न केवल समर्थन कर रहे हैं बल्कि इस बार पार्टी आलाकमान से स्पष्ट निर्णय की उपेक्षा रख रहे हैं। कांग्रेस नेता मानते हैं कि पार्टी में असंतुष्ट नेताओं की नाराजगी अभी भी बरकरार है। ऐसे में इसका सीधा असर पार्टी अध्यक्ष पद के लिए होने वाले चुनाव पर पड़ेगा। अध्यक्ष पद के लिए दिसम्बर के आखिर में चुनाव होने की संभावना है। पार्टी के एक नेता ने कहा कि अगर राहुल गांधी वापसी की तैयारी कर रहे हैं तो असंतुष्ट नेताओं के स्वर कुछ धीमे जरूर हो सकते हैं, पर आवाज उठती रहेगी। पार्टी के अंदर कई नेताओं का मानना है कि कांग्रेस अध्यक्ष को 23 असंतुष्ट नेताओं ने पत्र लिखा था। इनमें सिर्फ कपिल सिब्बल बने रहे हैं। सिब्बल सीधे तौर पर संगठन से जुड़े नहीं रहे हैं। ऐसे में उनकी बात की बहुत गंभीरता नहीं है, पर वह मानते हैं कि इस तरह के स्वर न उठें तो बेहतर है। क्योंकि पार्टी मुश्किल दौर से गुजर रही है। पार्टी को एकजुट रहना चाहिए। कांग्रेस के नए अध्यक्ष पद के चुनाव की प्रक्रिया चल रही है। कांग्रेस कार्यसमिति जल्द चुनाव कार्यक्रम का ऐलान कर सकती है। पार्टी के अंदर सीडब्ल्यूसी के लिए चुनाव कराने की मांग जोर पकड़ सकती है। सिब्बल और दूसरे असंतुष्ट नेता कांग्रेस अध्यक्ष को लिखे पत्र में इस मांग को दोहरा चुके हैं। पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल के पार्टी के शीर्ष नेतृत्व पर सवाल उठाने के बाद पार्टी का एक बड़ा तबका हमलावर है। राजस्थान के मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और तारिक अनवर की नसीहत के बाद पार्टी के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने बहादुर शाह जफर के एक शेर के जरिये सिब्बल पर पलटवार किया है। सलमान खुर्शीद ने फेसबुक पोस्ट के जरिये कांग्रेस नेतृत्व की आलोचना करने वाले नेताओं को अपने गिरेबान में झांकने की सलाह दी है। इसके लिए उन्होंने आखिरी मुगल शासक बहादुर शाह जफर के इस शेर का हवाला दियाöखुर्शीद ने लिखा न थी हाल की जब हमें खबर, रहे देखते औरों के ऐबो हुनर, पड़ी अपनी बुराइयों पर जो नजर तो निगाह में कोई बुरा न रहा। उन्होंने कहा कि बहादुर शाह के शब्द हमारी पार्टी के कई सहयोगियों के लिए एक उपयोगी साथी हो सकते हैं, जो समय-समय पर चिन्ता का दर्द झेलते हैं। कार्ति चिदम्बरम ने कांग्रेस आलाकमान पर सवाल दागने के अंदाज में कहा कि कांग्रेsस ने हार को ही नियति मान लिया है। पार्टी चिन्तन करने से बचती है। अगर इन सबके बयान को देखें तो एक बात तो साफ है कि पार्टी थकी-सी प्रतीत होती है, जो जिन्दा तो है पर उसकी कोमा की स्थिति है। कोमा में एक प्रकार से मनुष्य के वर्षों तक कभी-कभी अंगुली हिलने से जीवित होने का प्रमाण तो मिलते हैं, लेकिन मस्तिष्क की जड़ता से जीवन क्रियात्मक नहीं होता। देखना यह होगा कि कांग्रेस पार्टी इस कोमा की स्थिति से कब उभरती है, अगर उभरती है तो?

16 से 18 हजार फुट एलएसी पर तैनात हमारे जवान

देश में सर्द मौसम शुरू हो चुका है। पूर्वी लद्दाख सेक्टर में पहाड़ बर्फ से ढंक गए हैं। जून में गलवान घाटी में चीन से संघर्ष के बाद भारत ने इस सर्द मौसम में भी सैनिकों को 16 हजार से 18 हजार फुट ऊंचे एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) के अग्रिम मोर्चों पर तैनात कर रखा है। असामान्य मौसम में जवान अपनी जिम्मेदारी बाखूबी निभा पाएं और फिट रहें, इसके लिए देशभर के कमांड हॉस्पिटल से चुने गए सुपर स्पैशलिस्ट, श्रेष्ठ सर्जन और पैरामैडिक भी तैनात किए गए हैं। आर्मी के आधिकारिक सूत्रों के मुताबिक डॉक्टरों को फॉरवर्ड सर्जिकल सेंटर में तैनात किया गया है। हर छह से आठ सप्ताह में नया स्टाफ तैनात किया जाता है। दुनिया के सबसे ऊंचे सैन्य क्षेत्र सियाचिन से लौटे एक डॉक्टर ने बताया कि अग्रिम मोर्चे पर तैनात सैनिक डिब्बाबंद भोजन की वजह से पेट दर्द की समस्या से भी जूझते हैं। सैनिक रक्तचाप में उतार-चढ़ाव, मस्तिष्क आघात, दिल का दौरा, अंग अंधता जैसी गंभीर बीमारियों से भी जूझते हैं। इसलिए सैनिकों को योगासन, सांस लेने के व्यायाम करने के लिए कहा जाता है। उच्च क्षेत्रों में किसी भी सैनिक को अधिकतम 120 दिन के लिए ही तैनात किया जाता है। उच्च रणक्षेत्र में ड्यूटी पर लौटे एक वरिष्ठ डॉक्टर ने बताया कि जब डॉक्टर बेस कैंप पहुंचते हैं तो उन्हें नौ हजार फुट की ऊंचाई के हिसाब से एक हफ्ते का अनुकूल प्रशिक्षण दिया जाता है, ताकि उनका शरीर कम तापमान से सामंजस्य बैठा सके। तैनाती 13 हजार फुट पर हो तो प्रशिक्षण चार दिन और 18 हजार फुट की ऊंचाई पर हो तो आठ दिन बढ़ा दिया जाता है। इस दौरान डॉक्टरों को हल्का व्यायाम, योगासन कराया जाता है। कोई फिजिकल एक्टिविटी नहीं कराई जाती है। प्रोटीनयुक्त बटर अधिक मात्रा में खिलाया जाता है, ताकि स्किन पर ड्राइनेस न रहे और उनका खून गाढ़ा न हो। हमारे सैनिक, डॉक्टर कितनी कठिन परिस्थितियों में देश की रक्षा कर रहे हैं ताकि हम रात को चैन से सो सकें। जय हिन्द। हम इन्हें सलाम करते हैं। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 19 November 2020

सार्वजनिक बहस का ऐसा स्तर पहले कभी नहीं रहा

टीवी कवरेज के दौरान सांप्रदायिक घृणा फैलाने के आरोप का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने fिरिपब्लिक टीवी के चीफ एडिटर अर्नब गोस्वामी की रिपोर्टिंग शैली पर सख्त टिप्पणी की। कहा-आप अपनी रिपोर्टिंग के साथ थोड़े पुराने जमाने के हो सकते हैं। सच कहूं तो मैं इस स्तर की बहस को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। बहस का स्तर सार्वजनिक रूप से ऐसा कभी नहीं रहा। कोर्ट प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को मानती है। इसका मतलब यह नहीं है कि मीडिया के व्यक्ति से सवाल पूछा नहीं जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र सरकार द्वारा बाम्बे हाई कोर्ट के 30 जून के आदेश के खिलाफ अर्नब के विरोध में दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अर्नब पर आरोप है कि उन्होंने पालघर लिंचिंग और अप्रैल में बांद्रा रेलवे स्टेशन पर प्रवासी श्रमिकों के इकट्ठा होने का जो कवरेज किया था, वह सांप्रदायिक घृणा फैलाने वाला था। सीजेआई ने अर्नब गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे से कहा-रिपोर्टिंग में जिम्मेदारी निभानी होगी। कुछ क्षेत्रों में सावधानी के साथ चलना होता है। बतौर कोर्ट, हमारी सबसे महत्वपूर्ण चिंता शांति और सद्भाव है। सीजेआई ने कहा कि कोर्ट उनके मुवक्किल से जिम्मेदारी का आश्वासन चाहती है। जवाब में साल्वे ने कहा कि वह कोर्ट के विचारों से सहमत हैं लेकिन उन्होंने कहा कि यह एफआईआर सही नहीं है और इसे व्यक्ति विशेष के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। यहां तक कि पिछले हफ्ते रिपब्लिक टीवी की पूरी संपादकीय टीम के खिलाफ एक और एफआईआर दर्ज की गई है। कोर्ट ने दो हफ्ते के लिए सुनवाई स्थगित करते हुए अर्नब गोस्वामी को एक हलफनामे को दायर करने को कहा है। इसमें उन्हें यह बताना है कि उन्होंने क्या करने का प्रस्ताव दिया है। महाराष्ट्र सरकार को भी गोस्वामी के खिलाफ बनी एफआईआर की एक सूची देने को कहा गया है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बोम्बे हाई कोर्ट की जांच को रोकने के फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि पुलिस अर्नब को गिरफ्तार नहीं करेगी, भले ही जांच को फिर से शुरू किया जाए। पूछताछ के लिए भी मौजूद रहने के लिए उन्हें 48 घंटे पूर्व सूचना दी जाएगी। इधर सिंघवी ने जब कहा कुछ लोगों को कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता तो चीफ जस्टिस ने तंज कसा, कुछ लोगों को ऊपरी दबाव के साथ निशाना बनाया जाता है। यह इन दिनों की संस्कृति है। कुछ लोगें को आज सुरक्षा की जरूरत है। सीजेआई ने कहा कि हम मानते हैं कि प्रेस की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन हम इस दलील से सहमत नहीं हैं कि आपका क्लाइंट अगर मीडिया कर्मी है तो उससे पूछताछ नहीं हो सकती है। बतौर कोर्ट हमारे लिए समाज में शांति कायम रखना सबसे महत्वपूर्ण है। किसी को भी सवाल पूछने व जानने की छूट नहीं है। अभिषेक मनु सिंघवी ने कई जजमेंट का हवाला पेश किया और कहा कि छानबीन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि समस्या छानबीन के तरीके को लेकर है।

आसियान देशों ने किया दुनिया का सबसे बड़ा व्यापार करार

आठ साल की लंबी बातचीत और विचार-विमर्श के बाद चीन समेत आसियान के सदस्य देशों ने रविवार को दुनिया के सबसे बड़े मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर कर दिए। एशिया के कई देशों को उम्मीद है कि इस समझौते से कोरोना महामारी की मार से तेजी से उबरने में मदद मिलेगी। क्षेत्रीय समग्र आर्थिक भागीदारी (आरसीईपी) पर दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के संगठन (आसियान) के वार्षिक शिखर सम्मेलन के इतर वर्चुअल तरीके से हस्ताक्षर किए गए। आसियान के 10 देशों के अलावा चीन, आस्ट्रेलिया, न्यूजीलैंड, जापान व दक्षिण कोfिरया शामिल हैं। समझौते में शामिल देशों की कुल आबादी 2.1 अरब है। दुनिया की कुल जीडीपी का आरसीईपी की हिस्सेदारी 30 फीसदी है जो विश्व का सबसे बड़ा व्यापार समझौता है। हालांकि इसमें चीनी का आधिपत्य है। आसियान में इंडोनेशिया, मलेशिया, फिलीपींस, सिंगापुर, थाइलैंड, ब्रुनेई, वियतनाम, लाओस, म्यांमार और कंबोडिया शामिल हैं। भारत इस समझौते में शामिल नहीं है। अधिकारियों ने कहा कि भारत के फिर से शामिल होने की संभावनाएं खुली हैं। भारत ऑब्जर्वर सदस्य के तौर पर इसमें भाग ले सकता है। भारत आईसीईपी की नींव डालने वाले 16 देशों में शामिल था, लेकिन पिछले साल भारत ने इससे खुद को अलग कर लिया। इसकी वजह भारत के बढ़ते व्यापार घाटे को बताया था और कहा था कि आरसीईपी में शामिल होने का मतलब है भारत के बाजारों में चीनी सामानों की भरमार। इससे भारत की आतंरिक अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ता। मेजबान देश वियतनाम के प्रधानमंत्री ने कहा, यह दुनिया का सबसे बड़ा मुक्त व्यापार समझौता है। इससे क्षेत्र में एक नया व्यापार ढांचा बनेगा, व्यापार सुगम हो सकेगा और कोविड-19 से प्रभावित आपूर्ति श्रृंखला को फिर से खड़ा किया जा सकेगा। इस व्यापारिक संघर्ष में अमेरिका शामिल नहीं है और चीन इसका नेतृत्व कर रहा है। इस लिहाज से अधिकांश आर्थिक विश्लेषक इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते प्रभाव के तौर पर देख रहे हैं, यदि संधि यूरोपीय संघ और अमेरिका-मैक्सिको-कनाडा व्यापार समझौते से बड़ी बताई जा रही है।

बिहार में जीत का श्रेय महिलाओं को जाता है

भाजपा की बिहार में शानदार जीत का श्रेय महिलाओं को जाता है। प्रधामंत्री नरेन्द्र मोदी ने बिहार में एनडीए की जीत पर जश्न मनाते हुए कहा कि बिहार में जीत का श्रेय महिलाओं को जाता है। वह भाजपा की साइलैंट वोटर हैं। प्रधानमंत्री ने कहा कि साइलैंट वोटर की आवाज सुनाई देने लगी है। यह साइलैंट वोटर हैं माताएं और बहनें। मायने ः बिहार में महिलाओं ने पुरुषों से 5 प्रतिशत ज्यादा वोटिंग की है। भाजपा मानती है कि महिलाओं की सक्रिय भूमिका बंगाल में भी पार्टी की ताकत बन सकती है। बिहार चुनाव में 166 सीटें ऐसी थीं जहां पुरुषों से अधिक महिलाओं का मतदान प्रतिशत रहा। यही असली चुनावी जीत साबित हुआ। भाजपा, जदयू, हम और वीआईपी का गठजोड़ 166 में से 102 सीटें जीत गया। आंकड़े स्पष्ट करते हैं कि महिलाओं के बढ़े हुए वोटों ने ही सत्ता की बाजी बरकरार रखने में भूमिका निभाई है। सरकार की पुनर्वापसी में इस वोट की ताकत इस तरह भी समझी जा सकती है कि जिन 77 सीटों पर महिलाआंs ने पुरुषों से 10 प्रतिशत से अधिक वोटिंग की उनमें 53 पर एनडीए ने जीत हासिल की है। इनमें जदयू को 21, भाजपा को 29 और वीआईपी को 3 सीटें मिली हैं। इन 77 सीटों में महागठबंधन के हिस्से सिर्फ 19 सीटें आईं। राजद 15 सीटें, कांग्रेस, माकपा, भाकपा और माले ने 1-1 सीटें जीती हैं। 5 सीटें एआईएमआईएम ने जीती हैं। बता दें कि इस बार विधानसभा चुनाव में कुल 243 में से 166 सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोटिंग की थी, जिनमें से 77 सीटें ऐसी हैं जिनमें पुरुषों और महिलाओं की बीच वोटिंग का अंतर 10 प्रतिशत से अधिक रहा। जिन सीटों पर महिलाओं और पुरुषों के बीच वोटिंग का अंतर 5 प्रतिशत से कम है उनमें महागठबंधन के खाते में सिर्फ 13 सीटे आई हैं जिनमें 11 अकेले राजद के पास हैं, जबकि माकपा को 1 और कांग्रेस को एक सीटें ही मिली हैं।

3 नवम्बर के चुनाव अमेरिकी इतिहास में सबसे सुरक्षित चुनाव थे

अमेरिका के चुनाव सुरक्षा अधिकारियों ने राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के चुनाव में धोखाधड़ी के दांवों को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि इसके कोई सुबूत नहीं हैं और 2020 के राष्ट्रपति चुनाव अमेरिका के इतिहास में सबसे सुरक्षित चुनाव थे। fिरपब्लिकन राष्ट्रपति लगातार चुनावी धोखाधड़ी के निराधार दांवे कर रहे हैं और उन्होंने अभी तक अपनी हार स्वीकार नहीं की है। होमलैंड सिक्यूरिटी विभाग की दो समितियां जिन्होंने अमेरिकी मतदान प्रणाली की सुरक्षा के लिए काम किया था। उन्होंने गुरुवार को कहा, मतदान प्रणाली के माध्यम से किसी तरह की गड़बड़ी करने, मतों के बदले जाने या किसी भी तरह की छेड़छाड़ के कोई सुबूत नहीं हैं। संघीय चुनाव की रक्षा के प्रयासों की अगुवाई करने वाली समितियों के सदस्यों ने कहा, राज्यों में बड़ी टक्कर होने पर कई बार मतों की दोबारा गिनती की जाती है। 2020 राष्ट्रपति चुनाव में जहां भी कांटे की टक्कर थी वहां हरेक मत में दस्तावेज मौजूद हैं, जिसमें आवश्यकता होने पर दोबारा उनकी गिनती की जा सकती है। बयान में कहा, यह सुरक्षा और लचीलेपन का एक अतिरिक्त लाभ है। यह प्रक्रिया किसी भी गलती या त्रुटियों की पहचान कर उसमें सुधार करने का मौका देती है। मतदान प्रणाली के माध्यम से किसी तरह की गड़बड़ी करने, मतों के बदले जाने या किसी भी तरह की छेड़-छाड़ के कोई सुबूत नहीं हैं। उन्होंने कहा कि तीन नवम्बर को हुए चुनाव अमेरिका के इतिहास में सबसे सुरक्षित चुनाव थे। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 17 November 2020

जनादेश महागठबंधन के साथ, ईसी का नतीजा एनडीए के साथ

बात 2010 की है। दिल्ली में रह रहे 21 साल के तेजस्वी यादव अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेटर बनने का सपना देख रहे थे। लेकिन बिहार में होने वाले विधानसभा चुनावों में अपने पिता की पार्टी राष्ट्रीय जनता दल (राजद) की मदद के लिए पटना आ गए। पटना से दूर रहे तेजस्वी के लिए राजनीति नई नहीं थी, लेकिन वह धीरे-धीरे सही मायनों में राजनीति सीख रहे थे। 2010 विधानसभा चुनाव में राजद के खराब प्रदर्शन के बाद तेजस्वी वापस दिल्ली लौट गए। लेकिन क्रिकेट में भी उनकी दाल कुछ खास नहीं गल रही थी। क्रिकेट जानकारों के मुताबिक बिहार की खुद की कोई टीम नहीं होने के कारण तेजस्वी को खेलने का सही अवसर कभी नहीं मिला। मध्यक्रम के बल्लेबाज और ऑफ स्पिनर गेंदबाज तेजस्वी यादव का मन दिल्ली और पटना के बीच झूल रहा था। हाल ही में सम्पन्न हुए बिहार विधानसभा चुनावों में भले ही महागठबंधन बहुमत का आंकड़ा नहीं छू सका हो, लेकिन तेजस्वी यादव के नेतृत्व में राजद ने 75 सीटें जीती हैं। लोग उन्हें अब राजनीति का मंझा हुआ खिलाड़ी मान रहे हैं और उनकी कप्तानी स्वीकार कर रहे हैं। तेजस्वी ने इन चुनावों में साबित कर दिया कि वह अपने पिता की छाया से बाहर आ चुके हैं और उन्होंने अपनी लीडरशिप स्थापित कर ली है। बात करें बिहार विधानसभा चुनाव की तो तेजस्वी यादव ने बृहस्पतिवार को विपक्षी पार्टी महागठबंधन दल के नेता चुनने के बाद उन्होंने कहा कि एनडीए ने चुनावों में छल से जीत हासिल की है। प्रेसवार्ता में नीतीश कुमार का मजाक उड़ाते हुए तेजस्वी यादव ने कहा की सीएम की पार्टी जदयू तीसरे पायदान पर रही है, हैरानी होती है कि इस स्थिति के बाद भी कैसे वह सीएम की कुर्सी पर बैठने की सोच रहे हैं। कोई अपने अंतर्मन की आवाज दबाकर सत्ता के लिए इतना लालायित रह सकता है। 2017 में जब हमारा नाम मनी लांड्रिंग के एक मामले में आया था तब नीतीश कुमार की आत्मा की आवाज सुनने का हवाला देकर महागठबंधन से इस्तीफा देकर वापस एनडीए का रुख किया था। आज जब उनकी पार्टी सीटों के मामले में तीसरे स्थान पर है क्या अब उनकी आत्मा की आवाज कुछ नहीं कह रही। तेजस्वी ने कहा कि जनता का जनादेश महागठबंधन को ही मिला है। पर चुनाव आयोग का नतीजा एनडीए के पक्ष में आया है। तेजस्वी ने नीतीश पर भी तंज कसा, हम लोग रोने वाले नहीं, संघर्ष करने वाले हैं। जो पार्टी (जदयू) चेहरा बदलने की बात करती थी, वह खुद तीसरे नम्बर पर आ गई है। नीतीश कुमार में नैतिकता नहीं बची है, अगर थोड़ी-सी भी नैतिकता बची है तो उन्हें कुर्सी छोड़ देनी चाहिए। वह जोड़-तोड़, गुणा-भाग करके कुर्सी पाने की जुगत में लगे हैं। तेजस्वी ने कहा कि एनडीए चोर दरवाजे से सरकार बना रही है। भाजपा साफतौर पर समझ ले कि जनादेश बदलाव का जनादेश है। एनडीए का वोट शेयर 37.3 प्रतिशत है और महगठबंधन का वोट शेयर 37.2 प्रतिशत है, यानि प्वाइंट वन का अंतर है। इस अंतर को अगर वोटों में कनवर्ट करें तो 12 हजार 270 वोट होंगे। नीतीश ने बेरोजगारों को नौकरी देने में समर्थता जताई है। तेजस्वी ने कहा कि अगर कानूनी रूप से वोटों की गिनती होती तो महागठबंधन को 130 सीटें मिलतीं। अभी 110 सीटें मिली हैं जो जादुई आंकड़े 122 से 12 कम है। उन्होंने दो टूक कहा कि जनादेश महागठबंधन के साथ, ईसी का नतीजा एनडीए के साथ।

राहुल गांधी में योग्यता और जुनून की कमी

अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति बराक ओबामा ने राहुल गांधी को लेकर अपनी किताब में बड़ी बात कही है। ओबामा ने अपनी आत्म-कथा ए प्रामिस्ड लैंड में कांग्रेस नेता राहुल गांधी को नर्वस और कम योग्यता वाला बताया है। किताब में ओबामा ने भारत के पूर्व प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह का भी जिक्र किया है। बराक ओबामा ने अपनी किताब में लिखा हैöराहुल गांधी एक ऐसे छात्र हैं जिन्होंने कोर्सवर्क तो किया है और शिक्षक को प्रभावित करने के लिए उत्सुक भी रहे लेकिन इस विषय में महारथ हासिल करने के लिए या तो योग्यता नहीं है या जुनून की कमी है। उन्होंने राहुल गांधी को नर्वस और कम गुणवत्ता वाला भी बताया है। संस्मरण में ओबामा ने राहुल की मां और कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी का भी जिक्र किया है। समीक्षा में कहा गया है कि हमें चार्ली क्रिस्ट और रहम एमैन्युएल जैसे पुरुषों को हैंडसम होने के बारे में बताया जाता है लेकिन महिलाओं के सौंदर्य के बारे में नहीं। सिर्फ एक या दो ही अपवाद हैं जैसे सोनिया गांधी। समीक्षा में कहा गया है कि अमेरिका के पूर्व रक्षामंत्री बॉब गेट्स और भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह दोनों में बिल्कुल भावशून्य सच्चाई/ईमानदारी है। इसमें कहा गया है कि रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन ओबामा को शिकागो मशीन चलाने वाले मजबूत, चालाक बॉस की याद दिलाते हैं। पुतिन के बारे में ओबामा लिखते हैंöशारीरिक रूप से वह साधारण हैं। ओबामा का 768 पन्नों का यह संस्मरण 17 नवम्बर को बाजार में आने वाला है। अमेरिका के पहले अफ्रीकी-अमेरिकी राष्ट्रपति ओबामा ने अपने कार्यकाल में दो बार 2010 और 2015 में भारत की यात्रा की थी। बता दें कि राहुल गांधी, ओबामा के कार्यकाल के दौरान कांग्रेस के उपाध्यक्ष थे, जो दिसम्बर 2017 में ओबामा की पिछली यात्रा के दौरान उनसे मिले थे। बराक ओबामा की टिप्पणी को लेकर कांग्रेस में रोष दिख रहा है। कांग्रेस सांसद एम टैगोर ने बराक ओबामा को ट्विटर पर अनफॉलो कर दिया है। कांग्रेस नेता तारिक अनवर ने कहा कि बराक ओबामा और राहुल गांधी के बीच 8-10 साल पहले छोटी-सी मुलाकात हुई होगी। ऐसे में कुछ मिनटों में किसी को पहचानना बहुत मुश्किल होता है। तब से अब तक राहुल गांधी की शख्सियत में काफी बदलाव आ गया है। पार्टी के प्रमुख प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने कहा कि कांग्रेस किसी एक व्यक्ति की पुस्तक में प्रकट की गई राय पर टिप्पणी नहीं करती। वहीं भाजपा के विजयवर्गीय ने कहाöबराक ओबामा तो दूर से देखते हैं। हम तो यहीं से महसूस करते हैं कि राहुल गांधी एक परिपक्व राजनेता नहीं हैं। मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि किसी भी बेवकूफियों के चर्चे अंतर्राष्ट्रीय हो जाएं तो इतना ही कह सकते हैं कि आजकल उनकी बेवकूफी के चर्चे हर जुबान पर हैं और सबको मालूम है सबको खबर हो गई है।

माटी के हुनरमंदों को यादगार बनाया योगी ने

अंगुलियों के जादू से मिट्टी में जान फूंकने वाले कारीगरों पर स्नेह बरसाते हुए उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस बार उनकी दीपावली को यादगार बना दिया। हुनर के पारखी और कला का मोल पहचानने वाले योगी ने माटी कला मेले के कारीगरों की बची हुई कलाकृतियों को दाम से ज्यादा कीमत देकर हाथोंहाथ खरीद लिया। वह मेहमाननवाजी में भी नहीं चूके। हुनरमंदों का मुंह मीठा कराने और उन्हें उपहार देकर अपने आवास से विदा किया। उत्तर प्रदेश खादी ग्रामोद्योग बोर्ड ने खादी भवन में चार से 13 नवम्बर तक माटी कला मेला आयोजित किया था। मेले में बुलंदशहर, गोरखपुर, आजमगढ़, मिर्जापुर, वाराणसी, प्रयागराज, अयोध्या, बाराबंकी, अंबेडकर नगर, कानपुर नगर व कानपुर देहात सहित अन्य जिलों के माटी कला कारीगरों के करीब 30 स्टॉल लगे थे, जिनमें 500 से ज्यादा किस्म के उत्पाद सजे थे। शुक्रवार को माटी कला मेले का आखिरी दिन होने के कारण आजमगढ़ के कारीगर छुरहुराम प्रजापति, गोरखपुर के नाम मिलन प्रजापति व हीरा लाल प्रजापति सहित कुल नौ कलाकार मुख्यमंत्री से मिलने सुबह उनके निवास पहुंचे। मुख्यमंत्री को उपहार देने के लिए कारीगर मेले में बचे अपने कुछ उत्पादों को भी साथ लेकर आए थे। मुलाकात में उपहार दिखाए तो योगी ने तकरीबन समस्त कलाकृतियां 31,500 रुपए देकर खरीद ली। माटी मेला उम्मीद से 10 गुणा ज्यादा अच्छा रहा। इस बार अयोध्या में पांच लाख से ज्यादा दीयों ने त्रेता युग की याद का अनुभव करा दिया। -अनिल नरेन्द्र

Saturday, 14 November 2020

बिहार का मैनडेट किसको मिला है?

बिहार का चुनाव इस बार किसी गुत्थी की तरह रहा। दोपहर से ही एनडीए लगातार आगे रहा पर महागठबंधन भी बस दो कदम ही पीछे-पीछे दिखाई देता रहा। आखिरकार रात 12 बजे लगभग साफ हो गया कि नीतीश कुमार के नेतृत्व वाले एनडीए सरकार बनाने लायक आंकड़ा जुटा चुका है। इसी से यह भी साफ हो गया कि कोरोना काल में पलायन का सबसे ज्यादा दर्द झेलने वाले बिहार के लोगों ने एनडीए पर ही भरोसा जताया है। हालांकि नीतीश कुमार की पार्टी पिछड़कर तीसरे स्थान पर पहुंच गई। यानि यह भी साफ हो गया कि बेशक वह सीएम बनेंगे, लेकिन सरकार में भाजपा अब बिग ब्रदर की भूमिका में रहेगी। बदले हुए हालात में भाजपा के स्थानीय नेताओं ने यह भी मांग उठा दी कि अब सीएम भी भाजपा का ही होना चाहिए। हालांकि भाजपा के राष्ट्रीय नेताओं ने कहा कि बिहार में नीतीश ही एनडीए के नेता रहेंगे। नीतीश कुमार की जदयू की सीटें घटने का सबसे बड़ा फैक्टर चिराग पासवान रहे। उन्होंने 30 सीटों पर जदयू को नुकसान पहुंचाया। बिहार विधानसभा चुनाव में हालांकि लोक जनशक्ति पार्टी का चिराग रोशन होने से पहले ही बुझ गया। एनडीए से बगावत कर लोक जनशक्ति पार्टी (लोजपा) अध्यक्ष चिराग पासवान ने भले ही जनता दल (यू) को थोड़ा बहुत नुकसान पहुंचाया है लेकिन वास्तविकता यह है कि अकेले चुनाव लड़कर वह न घर के रहे न घाट के। यह परिणाम लोजपा के लिए बड़ा झटका तो साबित हुए ही साथ ही वह चिराग को बड़ी राजनीतिक सीख भी दे गए। मतगणना में कुछ सीटों पर चौंकाने वाले परिणाम भी आए। चुनाव में महागठबंधन के बैनर तले लड़ रहे वामदलों ने एक बार फिर से राज्य की राजनीति में न केवल अपनी जड़ों को जमाया है बल्कि इस बार 16 सीटें जीतकर अपनी जबरदस्त वापसी की है। पश्चिम बंगाल, केरल व तमिलनाडु में अगले साल होने वाले चुनाव में बिहार में वामदलों का प्रदर्शन उनके लिए संजीवनी का काम करेगा। वहीं कांग्रेस का प्रदर्शन अपेक्षा के अनुरूप नहीं रहा। उसे सिर्फ 19 सीटें ही प्राप्त हुईं। इसी तरह असदुद्दीन ओवैसी की एआईएमआईएम ने पांच सीटों पर कब्जा कर सभी को हैरान कर दिया, बिहार चुनाव में अगर इस बार किसी ने गेमचेंजर की भूमिका निभाई, वोट कटवा की नीति बनाई तो वह है ओवैसी की पार्टी। वह सिर्फ पांच सीट जीतने में सफल रहे लेकिन एक दर्जन सीटों पर गठबंधन का खेल बिगाड़ा। सीमांचल में इस बार मुस्लिमों की स्वाभाविक पसंद बनकर वह उभरे। पहली बार गठबंधन का माई फैक्टर बिखर गया। इस बार भी राज्य में नोटा फैक्टर ने अपनी भूमिका निभाई। पूरे राज्य में छह लाख से अधिक नोटा पर वोट पड़े। इससे लगभग दो दर्जन सीटों पर प्रभाव पड़ने का दावा किया जा रहा है। तेजस्वी यादव ने यह चुनाव बहुत मजबूती से लड़ा। वह अपने पिता लालू प्रसाद यादव की परछाईं से बहुत हद तक उभरने में कामयाब रहे। उन्होंने अपने आपको राजद का नेता स्थापित करने में बहुत हद तक कामयाबी हासिल की। लेकिन अब देखना यह होगा कि सरकार बनाने के बाद एनडीए अपने वादों जिसमें रोजगार से जुड़ा वादा है उसको कैसे पूरा करती है? नीतीश बाबू के सुशासन बाबू इस बार पूरी तरह से नकार दिए गए हैं। अगर उन्हें सीएम बनाया जाता है तो वह बिहार के मैनडेट के खिलाफ होगा।

डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी हार से 28 साल का रिकॉर्ड तोड़ा

डोनाल्ड ट्रंप ने अपनी हार में भी एक रिकॉर्ड बनाया है। उनकी हार के साथ ही अमेरिका में 28 साल पहले के उस वाकया की याद दिला दी जब सीनियर बुश चुनाव हार गए थे। अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में डोनाल्ड ट्रंप दूसरी अवधि के लिए चुनाव लड़ रहे थे। ट्रंप से पहले आखिरी बार 1992 में जॉर्ज डब्ल्यू बुश दोबारा राष्ट्रपति बनने का चुनाव हार गए थे। वहीं पिछले 100 साल की बात करें तो सिर्फ चार राष्ट्रपति ऐसे रहे हैं, जो राष्ट्रपति के तौर पर लगातार दूसरा कार्यकाल जीतने में नाकामयाब रहे हैं। अमेरिका में आमतौर पर यह बहुत कम हुआ है कि कोई राष्ट्रपति दूसरी अवधि के लिए चुनाव मैदान में उतरा और उसे हार का सामना करना पड़ा हो। यह वाकया 1992 में आखिरी बार हुआ था जब जॉर्ज बुश सीनियर, बिल क्लिंटन से पराजित हुए थे। तब भी जीतने वाला प्रत्याशी डेमोक्रेट का था और हार रिपब्लिकन उम्मीदवार की हुई थी। वर्ष 1992 के राष्ट्रपति चुनाव में रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार रहे बुश की चुनाव से पहले अप्रूवल रेटिंग 89 प्रतिशत थी और उनका दोबारा राष्ट्रपति बनना लगभग तय माना जा रहा था। डेमोक्रेट उम्मीदवार बिल क्लिंटन ने उनकी उम्मीदों को धराशायी कर दिया और 43 प्रतिशत पॉपुलर वोट के साथ 370 इलैक्टोरल वोट जीतने में कामयाब रहे। बुश के खाते में मात्र 37.7 प्रतिशत वोट और 168 इलैक्टोरल वोट आए। पिछले 100 साल में दोबारा राष्ट्रपति बनने की दौड़ में हारने वाले अन्य तीन राष्ट्रपतियों की बात करें तो बुश से पहले 1980 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार जिमी कार्टर दोबारा व्हाइट हाउस पहुंचने में नाकाम रहे थे। उन्हें रिपब्लिकन पार्टी के रोनाल्ड रीगन ने 50.7 प्रतिशत वोट लेकर राष्ट्रपति चुनाव जीता था। 69 साल के रोनाल्ड रीगन पहली बार राष्ट्रपति बनने वाले सबसे उम्रदराज शख्स थे। उनके रिकॉर्ड को डोनाल्ड ट्रंप ने तोड़ा था। 1980 में खुद रीगन के हाथों हारने से पहले कार्टर ने 1976 में रिपब्लिकन पार्टी के गैराल्ड फोर्ड को दोबारा राष्ट्रपति बनने के सपने को तोड़ा था। हालांकि फोर्ड राष्ट्रपति चुनाव पहली बार ही लड़े थे और वह पहली बार वॉटरगेट स्कैंडल में रिचर्ड निक्सन के इस्तीफे के बाद राष्ट्रपति बने थे, निक्सन ने 1974 में वॉटरगेट स्कैंडल के बाद इस्तीफा दे दिया और इसके बाद तब उपराष्ट्रपति रहे फोर्ड राष्ट्रपति बने थे। रिपब्लिकन पार्टी के हर्बर्ट हूवर पिछले 100 साल में राष्ट्रपति पद पर रहते हुए दोबारा चुनाव जीतने में असफल रहे चौथे और अंतिम राष्ट्रपति हैं। उन्हें 1932 में डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार फ्रेंकलिन डी रूजवेल्ट ने हराया था। दुनियाभर में छाई महामंदी के बीच हुए इस चुनाव में रूजवेल्ट ने रिकॉर्ड जीत दर्ज की थी। इसके बाद 1936 और 1940 में भी वह राष्ट्रपति बने थे और तीन बार राष्ट्रपति बनने वाले एकमात्र अमेरिकी हैं।

दीपावली मनाएं पर कुछ बातों का ध्यान रखें

दीपावली व रोशनी के इस त्यौहार के दिन सभी लोग दीये, मोमबत्ती व लैंप आदि जलाकर रोशनी करते हैं। यह पर्व प्रभु राम और सीता के 14 वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या में उनके आगमन पर मनाया जाता है। इस त्यौहार पर लोग अपने घरों व दुकानों आदि को साफ करते हैं। यह शरद ऋतु के आगमन का प्रतीक है। खुशियों के इस त्यौहार पर इस बार कोरोना की काली छाया रहेगी। जिस रफ्तार से कोरोना बढ़ रहा है उससे तभी बचा जा सकता है जब एहतियात बरती जाए। मास्क, सोशल डिस्टेंसिंग व सैनिटाइजर के इस्तेमाल के साथ-साथ इस दीपावली पर हमें सब प्रकार के प्रदूषण से भी बचना होगा। पटाखों, बमों से न केवल ध्वनि प्रदूषण होता है बल्कि हवा में प्रदूषण बढ़ता है। दिल्ली सहित कई भागों में प्रदूषण चरम पर है। इसलिए भी हमें इस बार विशेष ध्यान रखना होगा। आप दीपावली जरूर मनाएं पर ग्रीन दीपावली मनाएं जिससे कम से कम प्रदूषण हो। आप सबको दीपावली के इस शुभ पर्व पर बधाई देते हैं और उम्मीद करते हैं कि पर्व मनाते समय ध्यान रखें। यह नहीं भूलना चाहिए कि प्रदूषण इस कोरोना काल में घातक हो सकता है। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 13 November 2020

उपचुनावों ने साबित किया कि भाजपा की लहर बरकरार है

बिहार विधानसभा चुनाव के साथ ही कई राज्यों में हुए उपचुनावों के नतीजों ने भाजपा को बड़ी राहत दी है। पार्टी ने मध्य प्रदेश में अपने दम पर बहुमत का आंकड़ा हासिल कर चैन की सांस ली तो उत्तर प्रदेश में सीएम योगी आदित्यनाथ अपनी पकड़ साबित करने में कामयाब रहे हैं। वहीं गुजरात में भी भाजपा ने अपनी मजबूत पकड़ फिर से साबित की है। उपचुनावों में भाजपा को कई राज्यों में सीटों का लाभ मिला है। 58 सीटों पर हुए उपचुनाव में भाजपा ने 40 पर कब्जा किया है। उपचुनाव मामले में पार्टी को सबसे बड़ी चिन्ता मध्य प्रदेश की थी। सत्ता बचाने के लिए पार्टी को 28 में से हर हाल में नौ सीटों की जरूरत थी। चूंकि इनमें से अधिकांश सीटें कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई थीं। ऐसे में नतीजों को लेकर कई तरह के कयास लगाए जा रहे थे। हालांकि नतीजों ने साबित कर दिया कि राज्य में शिवराज सिंह के साथ कुछ महीने पूर्व कांग्रेस छोड़कर भाजपा में शामिल हुए ज्योतिरादित्य सिंधिया पर लोगों ने दोबारा भरोसा जताया है और इनकी मजबूत पकड़ ने पार्टी को बड़ी कामयाबी दिलाई है। भाजपा को यहां 19 सीटों पर सफलता मिली है। यहां कांग्रेस सिर्फ नौ सीटें ही हासिल कर सकी। गुजरात में आठों सीटें जीतकर भाजपा ने एक बार फिर राज्य में अपनी लोकप्रियता का लोहा मनवाया है। राज्य की उन आठ सीटों पर उपचुनाव हुए थे जो ज्यादातर कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे से खाली हुई थीं। विधानसभा चुनाव में भाजपा को मामूली बहुमत हासिल हुआ था। हालांकि इस बीच कई कांग्रेस विधायकों के भाजपा के साथ आने और अब उपचुनाव में मिली बड़ी सफलता के बाद पार्टी की सीटों की संख्या में जबरदस्त बढ़ोतरी हुई है। झारखंड में दो सीटों पर हुए उपचुनावों में झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) और कांग्रेस ने एक-एक सीट पर अपना कब्जा बरकरार रखा। मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में हुए उपचुनावों में भाजपा की जीत का जश्न हरियाणा में कमजोर पड़ गया जब हरियाणा की बरोदा विधानसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस प्रत्याशी इन्दुराज नरवाल ने भाजपा एवं जेजेपी गठबंधन के प्रत्याशी पहलवान योगेश्वर दत्त को 10 हजार 566 वोटों से हरा दिया। यह सीट कांग्रेस के श्री कृष्ण हुड्डा के निधन से खाली हुई थी। चुनाव नतीजों ने साफ किया कि भाजपा गठबंधन के विकास के नारे पर जातीय समीकरण भारी रहे। बरोदा में कांग्रेस के भूपेंद्र सिंह हुड्डा के नेतृत्व में कांग्रेस ने न केवल जीत दर्ज कर अपनी सीट को बरकरार रखा बल्कि पिछले वर्ष 2019 के विधानसभा चुनाव के समय मिले वोटों को बढ़ाया भी है। इस उपचुनाव में कांग्रेस का वोट और भाजपा की हार का अंतर बड़ा है। उत्तर प्रदेश में विधानसभा की तरह उपचुनाव में भी शानदार प्रदर्शन करते हुए परचम लहराया है। विधानसभा उपचुनाव की सात में से छह सीटों पर भजापा ने अपना कब्जा बरकरार रखा है। वहीं जौनपुर की मल्हनी सीट पर सपा ने फिर जीत दर्ज की है। उपचुनाव में भाजपा की यह शानदार जीत के साथ उम्मीदवारों को मिली बढ़त ने आगामी चुनाव की दिशा भी दिखाई है। भाजपा 2022 में भी शानदार प्रदर्शन करेगी। खुद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहाöनतीजों ने दिया 2022 का संकेत। कुल मिलाकर भाजपा ने शानदार प्रदर्शन किया है।

बिहार नतीजे अन्य राज्यों में भी असर डालेंगे

बिहार के उतार-चढ़ाव भरे नतीजों के बाद भाजपा का राहत भरा सांस लेना स्वाभाविक ही है। इन चुनावों पर पार्टी की भावी रणनीति टिकी हुई थी, क्योंकि यह चुनाव उसकी गठबंधन राजनीति के साथ अपने विस्तार व विपक्ष के मुकाबले की तैयारी के भी थे। इससे उसकी पश्चिम बंगाल, असम समेत अगले साल होने वाले विभिन्न विधानसभा चुनावों के लिए उसका मनोबल बढ़ेगा। भाजपा के लिए इन नतीजों का अहम निष्कर्ष यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर लोगों की आशाएं और उम्मीदें कम नहीं हुई हैं। नीतीश कुमार के खिलाफ उभरी नाराजगी के बाद आए इस तरह के नतीजों का तात्कालिक निष्कर्ष यही निकाला जा रहा है। भाजपा ने लोजपा के अलग होने के बाद अपने गठबंधन को बेहतर किया और सामायिक समीकरण साधे। लोजपा अगर विपक्षी खेमे में जाती तो दिक्कत बढ़ती, लेकिन यह अलग रही। इससे राजग को कुछ नुकसान तो हुआ लेकिन विरोधी खेमे को ज्यादा लाभ नहीं हुआ। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की दिशा तय करने में काफी अहम साबित होंगे। भाजपा का प्रदर्शन खासतौर पर पश्चिम बंगाल के लिए बड़ा टॉनिक साबित होगा। बंगाल बिहार से सटा राज्य है। चुनाव के दौरान यह चर्चा जोरों पर थी कि अगर विपक्ष भाजपा को बिहार में चोट पहुंचाने में सफल रहता है तो पश्चिम बंगाल में भाजपा की रणनीति को बड़ा झटका लग सकता है। नतीजों से इसका उलट भी हो सकता है। जानकारों का कहना है कि नीतीश के खिलाफ माहौल की चर्चा के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाएंöमुफ्त गैस, आवास, स्वास्थ्य, कोरोना काल में मुफ्त अनाज आदि बिहार में अगर कारगर रहीं तो अन्य राज्यों में भी भाजपा के लिए यह फार्मूला काम कर सकता है। बिहार के नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल में विपक्ष की रणनीति में काफी उठापटक देखने को मिल सकती है। बड़ा सवाल यह होगा कि क्या ममता के साथ लेफ्ट औ कांग्रेस आ सकते हैं? सवाल यह भी होगा कि क्या बिहार के टॉनिक के आधार पर भजापा ध्रुवीकरण व कल्याणकारी योजनाओं के कॉकटेल के सहारे बंगाल में ममता का किला ध्वस्त कर पाएगी? जानकार मानते हैं कि संकेत साफ है, बंगाल का मुकाबला बेहद कड़ा होने वाला है। असम में भाजपा की सरकार है। बिहार के नतीजों का यहां भी सबसे ज्यादा विपक्ष की रणनीति को प्रभावित करेंगे। केरल में भाजपा बड़ी प्लेयर नहीं है, लेकिन अगर ध्रुवीकरण का फार्मूला कारगर होता है तो इसका असर बंगाल से लेकर केरल तक देखने को मिलेगा। तमिलनाडु में डीएमके और एआईडीएमके दोनों पुरानी मजबूत स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में यहां भी नए विकल्पों की सियासत से इंकार नहीं किया जा सकता। विपक्ष के कुनबे में कांग्रेस का कमजोर हाथ अन्य दलों के लिए मुश्किल खड़ा कर सकता है।

कोरोना एक्शन प्लान पर अभी से जुट गए हैं बाइडन

अमेरिका में राष्ट्रपति पद के चुनाव के नतीजों के बाद डेमोक्रेटिक पार्टी के उम्मीदवार, प्रेजिडेंट इलैक्ट जो बाइडन की टीम ने व्हाइट हाउस के लिए तैयारियां शुरू कर दी हैं। बाइडन के करीबी टेड कौफमैन बाइडन की जीत से पहले ही सरकार गठन की कवायद में जुट गए थे। कौफमैन 2008 में ओबामा सरकार के गठन करने वाली टीम का भी हिस्सा थे। डेलावेट से पूर्व सीनेटर कौफमैन बाइडन के उपराष्ट्रपति बनने के बाद इस सीट से सीनेटर बने थे। वहीं बाइडन और कमला हैरिस अपनी जीत को लेकर पहले से ही आश्वस्त थे। दोनों ने अभी से ही सार्वजनिक स्वास्थ्य और अर्थव्यवस्था पर तवज्जो देने का काम शुरू कर दिया है। यह दोनों क्षेत्र कोरोना महामारी के कारण बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। बाइडन ने कहाöमैं चाहता हूं कि लोग जानें कि हम काम करने के लिए इंतजार नहीं कर रहे हैं। मैं चाहता हूं कि हर कोई जानें कि पहले दिन से हम इस वायरस को नियंत्रित करने के लिए अपनी योजना लागू करने जा रहे हैं। एक दिन पहले बाइडन और हैरिस ने सार्वजनिक अर्थव्यवस्था के विशेषज्ञों के एक समूह के साथ बैठक की थी। बाइडन बेरोजगारी के मुद्दे पर भी काम कर रहे हैं। उन्होंने यह भी कहाöयह आसान नहीं होगा, मगर हमें कोशिश जरूर करनी चाहिए। राष्ट्रपति के तौर पर मेरी जिम्मेदारी पूरे देश का प्रतिनिधित्व करने की होगी। मैं चाहता हूं कि आप जानें कि मैं कितनी मेहनत से उन लोगों के लिए काम करूंगा, जिन्होंने मुझे वोट दिया है। बाइडन ने एक भारतीय मूल के अमेरिकी को एंटी कोरोना टास्क फोर्स का अध्यक्ष बना दिया है। वहीं डोनाल्ड ट्रंप ने अपने दामाद को इस पद पर बिठाया था। -अनिल नरेन्द्र

Thursday, 12 November 2020

इससे तो बेहतर दूरदर्शन युग था

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प्रेस की ताकत के चलते लोग इससे डरे हुए हैं। जिस तरह की भाषा का टीवी पर इस्तेमाल होता है और इसमें हिस्सा लेने वाले अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हैं, वह बेहद चिन्ताजनक है। आखिर में अदालतों को ही दखल देना पड़ता है। लोग मीडिया से तटस्थ रहने की उम्मीद करते हैं। इससे तो बेहतर ब्लैक एंड व्हाइट दूरदर्शन का युग था। मीडिया को संयम बरतने की जरूरत है। यह टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ को लेकर दाखिल याचिकाओं की सुनवाई के दौरान की। अदालत ने रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ के कथित गैर-जिम्मेदाराना और अपमानजनक टिप्पणियां करने या प्रकाशित करने से रोकने के अनुरोध वाली बॉलीवुड के प्रमुख निर्माताओं की याचिका पर संबंधित मीडिया घरानों से जवाब तलब किया है। न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने एआरजी आउटलांचर मीडिया और बेनेट कोलमैन समूह से यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि उनके चैनलों या सोशल मीडिया मंचों पर कोई मानहानिकारक सामग्री अपलोड न की जाए। याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कड़ी टिप्पणी की और पीछा कर रहे मीडिया से बचने की कोशिश के दौरान ब्रिटेन की राजकुमारी डायना की मौत का जिक्र किया और कहा कि स्वर कुछ धीमा किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि लोग लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ से इसकी शक्तियों की वजह से भयभीत हैं। जस्टिस राजीव शकधर की पीठ ने कहाöमीडिया रिपोर्टिंग से ऐसा लगता है कि पहले धारणा बनाई जाती है, फिर रिपोर्टिंग की जाती है। इसमें खबर कम विचार ज्यादा होते हैं। कोर्ट ने मामले में रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउ, फेसबुक, गूगल व ट्विटर से जवाब भी मांगा है। अब सुनवाई 14 दिसम्बर को होगी। कोर्ट ने कहाöरिपोर्टिंग करना मीडिया का संविधानिक अधिकार है, मगर यह निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए। टीवी चैनल जांच कर सकते हैं, लेकिन वह किसी के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान नहीं चला सकते। कोर्ट ने कहा कि कुछ मामलों में एफआईआर भी नहीं थी, फिर भी चैनलों ने व्यक्तियों को आरोपी कहना शुरू कर दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह की लगातार गलत रिपोर्टिंग से प्रकाशित और शिक्षित दिमाग भी प्रभावित होते हैं। पीठ ने कहा कि केस दर्ज होने से पहले ही नामों की घोषणा कर दी जाती है। व्हाट्सएप चैट दिखाए जा रहे हैं। अदालत समझ नहीं पा रही है कि यह सब क्या हो रहा है? उन्होंने मीडिया से कहा कि आप आत्म नियंत्रण की बात करते तो हैं मगर कुछ भी नहीं करते। कोर्ट ने कहा कि यह न्यूज चैनलों को खबरों को कवर करने से नहीं रोक रहा है, लेकिन केवल उन्हें जिम्मेदार पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए कह रहा है। कोर्ट ने कहाöहम यह नहीं कह रहे हैं कि आप ऐसी खबरों को कवर नहीं कर सकते, लेकिन हम (केवल) आपको जिम्मेदार पत्रकारिता करने के लिए यह कह रहे हैं। मीडिया अगर कार्यक्रम कोड का पालन नहीं करता है तो अदालत इसे लागू कराएगी। इस पर मीडिया हाउसों की ओर से पेश वकीलों ने कहा कि हम पालन करेंगे।

गरिमा में हार नहीं मान रहे डोनाल्ड ट्रंप

अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप पर जनवरी 2021 में नए प्रशासन के कार्यकाल संभालने पर सत्ता का सहज हस्तांतरण सुनिश्चित करने के लिए देश के निर्वाचित राष्ट्रपति जो बाइडन की टीम के साथ सहयोग करने का दबाव बढ़ रहा है। जनरल सर्विसेज एडमिनिस्ट्रेशन (जीएसए) पर बाइडन को निर्वाचित राष्ट्रपति के रूप में औपचारिक रूप से मान्यता देने की जिम्मेदारी है। इसके बाद सत्ता हस्तांतरण की प्रक्रिया आरंभ होगी। एजेंसी की प्रशासक एमिली मर्फी ने अभी तक यह प्रक्रिया आरंभ नहीं की है और न ही यह बताया है कि वह कब ऐसा करेंगी? एमिली की नियुक्ति ट्रंप ने की थी। इस मामले में स्पष्टता नहीं होने के कारण प्रश्न खड़े होने लगे हैं। क्योंकि डोनाल्ड ट्रंप ने अभी तक हार स्वीकार न करने वाले और चुनाव में अनियमितताओं का आरोप लगाने वाले राष्ट्रपति ने अभी तक हार स्वीकार करने से इंकार कर दिया है। बाइडन के सत्ता हस्तांतरण सहयोगी जेन प्साकी ने रविवार को कहा कि अमेरिका की राष्ट्रीय सुरक्षा एवं आर्थिक हित इस बात पर निर्भर करते हैं कि संघीय सरकार यह स्पष्ट और त्वरित संकेत दे कि वह अमेरिकी लोगों की इच्छा का सम्मान करें। अमेरिका के निवर्तमान राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप कभी हार स्वीकार नहीं करते, लेकिन राष्ट्रपति पद के चुनाव में डेमोक्रेटिक उम्मीदवार जो बाइडन की जीत के बाद अब उनके पास बस दो ही विकल्प हैं। पहला, वह देश की खातिर गरिमापूर्ण तरीके से हार स्वीकार कर लें। नहीं तो ऐसा नहीं करने पर निकाले जाएं। चार दिन की कठिन मतगणना के बाद बाइडन की जीत के बावजूद ट्रंप अब भी यह मानने को तैयार नहीं हैं कि उनकी हार हो चुकी है। उन्होंने निराधार आरोप लगाए हैं कि चुनाव निष्पक्ष नहीं था। उन्होंने इसके खिलाफ कानूनी कार्रवाई करने की भी बात कही है। ट्रंप के कुछ निकटवर्ती सहयोगी उन्हें गरिमापूर्ण तरीके से हार स्वीकार करने के लिए राजी करने की कोशिश कर रहे हैं, कुछ रिपब्लिकन सहयोगी उनकी हार स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं। ट्रंप के निकटवर्ती लोगों का कहना है कि इसकी उम्मीद नहीं कि ट्रंप औपचारिक रूप से हार स्वीकार करेंगे, लेकिन उनके कार्यकाल के अंत में वह बेमन से व्हाइट हाउस खाली कर देंगे। अमेरिका की फर्स्ट लेडी मेलानिया ट्रंप भी पति डोनाल्ड ट्रंप के इस इनर सर्कल के अन्य सदस्यों में शामिल हो गई हैं, जो चाहती हैं कि ट्रंप अपनी हार को स्वीकार करें। सूत्र द्वारा बताया गया कि मलेनिया ने ट्रंप को राष्ट्रपति चुनाव में जो बाइडन ने हार स्वीकार करने को कहा है। सूत्र ने कहा कि हालांकि मेलानिया ने चुनाव पर सार्वजनिक रूप से कोई टिप्पणी नहीं की है, लेकिन निजी तौर पर उन्होंने ट्रंप के समक्ष अपनी राय रखी है। ट्रंप के मित्र एवं सलाहकार रोजर स्टोन से जब यह पूछा गया कि क्या निवर्तमान राष्ट्रपति हार स्वीकार करेंगे तो उन्होंने कहा कि मुझे इसे लेकर संशय है। ट्रंप के बेटों डोनाल्ड जूनियर और एरिक ने भी अपने पिता से लड़ते रहने की अपील की है और रिपब्लिकन नेताओं से उनके साथ खड़े रहने को कहा है। उम्मीद की जाए कि डोनाल्ड ट्रंप अपनी हार मान लें और सत्ता का शांतिपूर्वक, गरिमापूर्ण हस्तांतरण हो जाए।

जेलों में क्षमता से 75 हजार अधिक कैदी

देश के कारगारों की स्थिति पर राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) ने 2019 की रिपोर्ट हाल में जारी की है। नवीनतम आंकड़ों से पता चलता है कि 4.03 लाख कैदियों की वास्तविक क्षमता वाली जेलों में 4.78 लाख कैदी बंदी हैं। यानि की जेलों में क्षमता से 75 हजार कैदी अधिक हैं। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार 2019 में 4.78 लाख कैदियों में से 4.58 लाख पुरुष और 19,913 महिलाएं थीं। यही नहीं, 31 दिसम्बर 2019 तक जेलों में 60,788 कार्मिक ही थे। यानि कि जेलों के लिए स्वीकृत कुल 87,599 कार्मिक पदों के मुकाबले 26,811 कर्मचारी कम हैं। देश की जेलों की कुल संख्या क्रमश 2017, 2018 और 2019 के अंत में 1361, 1339 और 1350 थी। आंकड़ों के अनुसार इस अवधि के दौरान जेल भरने की दरें क्रमश 115.1 प्रतिशत, 117.6 प्रतिशत और 118.5 प्रतिशत बढ़ी। जेल कर्मचारियों की स्वीकृत संख्या 87,599 थी, जबकि 2019 के अंत तक वास्तविक संख्या 60,787 थी। जेलों में अधिकारियों की स्वीकृत संख्या 7,239 है लेकिन सिर्फ 4,840 पद भरे हैं। इसी प्रकार जेल काडर स्टाफ और सुधारक कर्मचारियों के लिए स्वीकृत पद क्रमश 72,273 और 1,307 थी, जबकि उनकी वास्तविक तैनाती क्रमश 51,126 और 761 थी। वहीं जेल में मेडिकल स्टाफ की संख्या 3,320 है जबकि वास्तविक तैनाती 31 दिसम्बर 2019 तक 1,962 थी। कैदियों की सबसे अधिक संख्या केंद्रीय जेलों में 2.20 लाख और उसके बाद जिला जेलों में 2.06 लाख और सब जेलों में 38,030 दर्ज की गई। महिलाओं की जेलों में कुल कैदियों की संख्या 3,652 थी। सबसे अधिक जेल भराव दर जिला जेलों में 129.7 प्रतिशत और उसके बाद केंद्रीय जेलों 123.9 प्रतिशत और उप जेलों में 84.4 प्रतिशत में थी। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 11 November 2020

कमला हर भारतवंशी के लिए प्रेरणास्रोत

अमेरिका की उपराष्ट्रपति चुनी गई कमला हैरिस की जीत कई मायनों में खास है। वह अमेरिका में इस पद पर चुनी जाने वाली पहली महिला हैं। इतना ही नहीं, इस पद पर काबिज होने वाली वह पहली भारतवंशी, अश्वेत और अफ्रीकी अमेरिकी उपराष्ट्रपति होंगी। हैरिस इससे पहले भी कई मिसालें कायम कर चुकी हैं। वह सैन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी बनने वाली पहली महिला, पहली भारतवंशी और पहली अफ्रीकी अमेरिकी महिला हैं। कमला की मां भारतीय थीं। उनकी मां श्यामला गोपालन 1960 में भारत के तमिलनाडु से युसी बर्कले पहुंची थीं। वह ब्रेस्ट कैंसर रिसर्चर थीं। उनके पिता डोनाल्ड जे हैरिस 1961 में ब्रिटिश जमैका से इकोनॉमिक्स की पढ़ाई करने युसी बर्कले आए थे। कमला का जन्म कैलिफोर्निया में 20 अक्तूबर 1964 को हुआ था। अपने कैंपेन के दौरान कमला कई बार इस बात का जिक्र कर चुकी हैं कि अपनी मां की वजह से ही आज वह इस मुकाम पर पहुंच पाई हैं। 12 साल की उम्र में कमला अपनी बहन माया और मां के साथ ऑकलैंड से वाइट मांट्रियल चली गईं। इस बीच वह लगातार भारत में आती रहीं। 1972 में कमला के माता-पिता का तलाक हो गया था। इसके बाद कमला और उनकी बहन की देखभाल मां ने की। हैरिस ने अपने एक कैंपेन के दौरान कहा थाöमेरी मां बेहद सख्त थीं। वह पांच फुट लंबी थीं लेकिन अगर आप उनसे कभी मिले होंगे तो जाना होगा वह 10 फुट लंबी थीं। अमेरिका में ही पली-बढ़ी कमला हैरिस ने 1986 में हॉर्वर्ड यूनिवर्सिटी से ग्रेजुएशन किया और कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी से कानून की पढ़ाई की। इसके बाद उन्होंने असिस्टेंट डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी के रूप में एलमेडा काउंटी प्रॉसिक्यूटर ऑफिस ज्वाइन किया। यहां से कमला का राजनीतिक सफर शुरू हुआ। वह 2003 में सैन फ्रांसिस्को की डिस्ट्रिक्ट अटॉर्नी बनीं। इसके बाद वह 2010 में कैलिफोर्निया की अटॉर्नी जनरल बनने वाली पहली अश्वेत महिला बन गईं। इस दौरान कमला हैरिस ने डेमोक्रेटिक पार्टी के उभरते सितारे के तौर पर अपनी साख बनाई और इसी का इस्तेमाल करके उन्होंने साल 2017 में कैलिफोर्निया में यूएस सीनेटर का चुनाव लड़ा था। जीतने के बाद कमला इस पद पर पहुंचने वाली वह केवल दूसरी अश्वेत महिला थीं। कमला हैरिस को चुने जाने पर भारतीय अमेरिकी सांसदों ने इसे ऐतिहासिक बदलाव की शुरुआत बताया है। अमेरिकी सांसद प्रमिला जैसवाल ने कहा है कि कमला का चुना जाना उन लाखों लोगों के भविष्य की राह बनाएगी, जो यहां रहकर बहुत सारे सपने संजोए हुए हैं। भारतीय मूल के अमेरिकी सांसद राजा कृष्णमूर्ति ने कहा कि अमेरिका के सौ साल के इतिहास का यह यादगार क्षण है। मुझे बहुत खुशी होगी, जब जो बाइडन के साथ कमला हैरिस व्हाइट हाउस के ऑफिस में प्रवेश करेंगी। भारतीय मूल के सांसद रो खन्ना ने कहा कि अमेरिका के व्हाइट हाउस में जो बाइडन और कमला हैरिस के पहुंचने पर हम एक नए युग की ओर बढ़ेंगे। भारत में पद्मभूषण से 2001 में सम्मानित स्वदेश चटर्जी ने कहा है कि कमला हैरिस का चुना जाना हमारी पीढ़ी और हमारी भावी पीढ़ियों के आगे ब़ढ़ने के लिए यह एक बेहतरीन उदाहरण है। कमला हैरिस को इस ऐतिहासिक जीत पर बधाई।

कितना कारगर रहेगा पटाखों पर बैन?

पटाखों पर दिल्ली में प्रतिबंध लग गया है, लेकिन लोगों को रोक पाना मुश्किल हो रहा है। एनसीआर के कई शहरों में पटाखों की बिक्री अब भी जारी है। अभी भी कई जगहों पर पटाखे बिकते दिखाई दिए। अनार, फुलझड़ी, पेंसिल, चकरी जैसे पटाखे तो अब परचून की दुकान पर भी आसानी से मिल रहे हैं। पश्चिमी दिल्ली में कुछ जगहों पर दुकानों के बाहर सजावटी और अन्य जरूरी सामान बिक रहे हैं। वहां कई दुकानदार अपने नियमित ग्राहकों से खुद ही पटाखों के लिए पूछ रहे हैं। ग्राहक के हां बोलने के बाद घर के अंदर से जाकर पटाखों की बिक्री हो रही है। प्रतिबंध के बाद अब पटाखों के रेट भी 30 प्रतिशत तक बढ़ चुके हैं। कई पटाखे शौकीन एनसीआर से पटाखे लेकर आ रहे हैं। हालांकि इस बार ज्यादातर ग्रीन क्रैकर्स ही बिक रहे हैं। 2018 में सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली-एनसीआर में सामान्य पटाखों की बिक्री पर रोक लगा दी थी। लोगों को सिर्फ ग्रीन पटाखों का विकल्प दिया गया था, लेकिन उस साल बाजार में ग्रीन पटाखे नहीं थे। 2019 में अनार, फुलझड़ी समेत कुछ ग्रीन पटाखे आए। इस बार ग्रीन पटाखों की 25 से 30 वैरायटी हैं। इसके बावजूद कोरोना संक्रमण को देखते हुए पटाखों पर राजधानी में 30 नवम्बर तक रोक लगा दी गई है। मंगलापुरी के एक पटाखे बिक्रेता ने बताया कि वह करीब 20 दिन पहले पटाखे ला चुके थे। ग्रीन क्रैकर्स ही लाए हैं। अब अचानक प्रतिबंध लगने की वजह से उनका माल फंस गया है। इसे बेचना उनकी मजबूरी है। पटाखे खरीदने आए विक्रांत दूबे ने कहा कि हर साल सिर्फ दीपावली को ही टारगेट किया जाता है। साल में एक दिन पटाखे चलते हैं, जबकि प्रदूषण 365 दिन रहता है। ग्रीन पटाखे जो सरकार ने बनवाए थे, दो साल में ही इस पर भी रोक लगाने की नौबत क्यों आ गई? लोगों और बच्चों को कुछ ऑप्शन तो मिलना ही चाहिए। बता दें कि एक अनार (मीडियम साइज) 30 सिगरेट के बराबर धुआं छोड़ता है। एक फुलझड़ी या पेंसिल (कलरफुल) 50 सिगरेट के बराबर धुआं देती है। 300 पटाखों की लड़ीö70 सिगरेट के बराबर धुआं। एक चकरीö30 सिगरेट के बराबर धुआं देती है। पटाखों में धुएं में सामान्य धुएं के अलावा कई खतरनाक केमिकल भी होते हैं। ग्रीन पटाखों में बेरियम और राख का इस्तेमाल नहीं होता। हरे रंग के लिए पटाखों में बेरियम और नाइट्रेट लाल और पीले रंग के लिए सोडियम नाइट्रेट, सफेद रंग के लिए मैग्नीशियम का इस्तेमाल होता है। गन पाउडर का इस्तेमाल भी किया जाता है।

विवादों में घिरा बाबा का ढाबा

बाबा का ढाबा के मालिक 80 वर्षीय कांता प्रसाद और उन्हें मशहूर करने वाला यूट्यूबर गौरव वासन के आरोप-प्रत्यारोप अब वर्चुअल दुनिया से कानूनी कागजों पर आ पहुंचा है। बाबा अब लखपति हो गए हैं। उनके खाते में 40 लाख रुपए से ज्यादा आए हैं, ऐसा कहना है गौरव वासन का। गौरव वासन ने ही बाबा का बैंक खाता भी सोशल मीडिया पर शेयर किया था। उधर बाबा शुक्रवार शाम तक कहते रहे कि उन्हें पता नहीं है कि उनके पास कितना पैसा आया। बाबा ने नया मकान ले लिया। अब बताया जा रहा है कि वह नया ढाबा खोलने जा रहे हैं। इसके लिए जगह भी देख ली गई है। बाबा का ढाबा और यूट्यूबर गौरव वासन के बीच हुए विवाद में इंटरनेट मीडिया पर चल रही खबरों का बाबा के वकील ने खंडन किया है। बाबा के वकील प्रेम जोशी का कहना है कि अलग-अलग इंटरनेट प्लेटफार्म पर बाबा के नए मकान और नया ढाबा खोलने की खबरें झूठी हैं। बाबा ने कोई भी मकान नहीं खरीदा है। हालांकि उन्होंने एक घर किराये पर लिया है जिसको दिलाने में खुद गौरव ने मदद की थी। प्रेम जोशी ने कहा कि बाबा ने ढाबा बंद नहीं किया है, बल्कि उन्होंने अपनी आंखों का ऑपरेशन कराया है जिसके चलते काम से दूरी बनाई गई है। मामले की जांच कर रहे एक वरिष्ठ पुलिस अधिकारी ने बताया कि पुलिस गौरव, उनकी पत्नी व उनके भाई के खातों की जांच कर रही है। इसके साथ ही बाबा के खाते की भी जांच की जा रही है। पुलिस ने मामले से जुड़े सभी बैंक खातों को सीज कर दिया है। वहीं वकील प्रेम जोशी का कहना है कि बाबा के खाते में कितने रुपए हैं, यह विवाद का विषय नहीं है, बल्कि दान में मिले पूरे पैसे उन तक पहुंचे या नहीं, यह विवाद का विषय जरूर है। पुलिस ने मामले में मुकदमा दर्ज किया है। आरोप प्राथमिक जांच में सही पाए गए हैं। प्रेम जोशी का कहना है कि इस मामले में पुलिस स्वतंत्र रूप से जांच कर रही है इसलिए उन्हें अब मामले पर कुछ भी नहीं कहना है। यूट्यूबर गौरव वासन से सम्पर्क करने के कई प्रयास किए गए, लेकिन उन्होंने कोई जवाब नहीं दिया। बाबा का ढाबा मामले में शुक्रवार को मालवीय नगर थाने में रिपोर्ट दर्ज की गई है। दक्षिण जिला डीएसपी अतुल कुमार ठाकुर ने बताया कि बाबा का ढाबा के मालिक बुजुर्ग कांता प्रसाद की शिकायत पर जालसाजी का मामला दर्ज किया गया है। पुलिस गौरव वासन, उनकी पत्नी व अन्य रिश्तेदारों के बैंक खातों की डिटेल खंगाल रही है। मामला कई दिन की जांच के बाद दर्ज हुआ है। उन्होंने बताया कि कांता प्रसाद ने यूट्यबूर गौरव वासन के खिलाफ 31 अक्तूबर को पैसे हड़पने की शिकायत दी थी। इसमें उन्होंने कहा था कि अक्तूबर के आखिर में गौरव वासन आए और उनका एक वीडियो बनाया। इस वीडियो में बाबा का हाल दिखाते हुए लोगों से सहायता करने की अपील की गई थी। गौरव वासन ने वीडियो अपने अकाउंट स्वाद ऑफिशियल से सोशल मीडिया पर डाला था। यह खूब वायरल हुआ। शिकायत के मुताबिक गौरव ने सोशल मीडिया पर जानबूझ कर अपने और अपने परिवार के लोगों के बैंक खाते व मोबाइल नम्बर शेयर किए थे। इन बैंक खातों में काफी पैसा डोनेशन के रूप में आया। उनका आरोप है कि गौरव वासन ने हेराफेरी की और डोनेशन का पैसा बाबा को नहीं दिया। -अनिल नरेन्द्र

Tuesday, 10 November 2020

निकिता मर्डर केस में चार्जशीट रिकॉर्ड टाइम में

निकिता मर्डर केस की चार्जशीट एसआईटी ने कोर्ट में दाखिल कर दी है। हिला देने वाले निकिता मर्डर केस ने पूरे देश को हिलाकर रख दिया था। गौरतलब है कि विगत 26 अक्तूबर को अपनी सहेली के साथ घर लौट रही छात्रा निकिता को अग्रवाल कॉलेज के गेट के बाहर मुख्य आरोपी तौसीफ ने गोली मारकर हत्या कर दी थी। इस वारदात को अंजाम देने में उसका साथी रेहान भी शामिल था। दोनों आरोपी वारदात को अंजाम देने के बाद कार से फरार हो गए थे। घटना की सूचना मिलने पर थाना शहर बल्लभगढ़ में हत्या और आर्म्स एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज किया गया था। मात्र पांच घंटे में क्राइम ब्रांच ने गोली मारने वाले मुख्य आरोपी तौसीफ को नूंह से गिरफ्तार किया। दूसरे आरोपी रेहान को भी नूंह से ही गिरफ्तार किया गया। एसआईटी ने शुक्रवार को कोर्ट में जमा की गई चार्जशीट में इस बात का उल्लेख किया गया है कि हत्यारोपी तौसीफ ने हत्याकांड से दो दिन पहले अग्रवाल कॉलेज के आसपास रेकी की थी। इस दौरान उसने यह देखा था कि निकिता परीक्षा देने कब और किसके साथ आती है। कितने बजे कॉलेज से निकलती है और उसे लेने कौन आता है। इन सब बातों को पुलिस ने हत्यारोपी तौसीफ से पूछताछ के बाद चार्जशीट में दर्ज किया। यही नहीं, घटना के बाद घायलावस्था में अस्पताल जाते समय निकिता ने मां विजयवती, भाई नवीन और चचेरे भाई तरुण को पूरी वारदात बताई थी। पुलिस ने उसके बयान को भी चार्जशीट में शामिल किया है। एसआईटी द्वारा की गई दिन-रात की मेहनत एवं उच्च अधिकारियों के मार्गदर्शन में एक रिकॉर्ड समय मात्र 11 दिन में चार्जशीट को तैयार किया गया। चार्जशीट को डिजिटल फोरेंसिक एवं मैटेरियल एविडेंस के आधार पर अनुभवी अनुसंधान अधिकारियों द्वारा तैयार किया गया है। डिजिटल एवं फोरेंसिक साइंस एविडेंस और चश्मदीद गवाह व अन्य पुख्ता सुबूतों के आधार पर आरोपियों को शीघ्र कड़ी सजा दिलवाई जाएगी। हत्याकांड में परिजनों के अलावा पुलिसकर्मियों, फोटोग्राफर, फोरेंसिक टीम, सीसीटीवी फुटेज, घटना में प्रयोग की गई कार और उसके मालिक के बयान, निकिता व आरोपियों के कपड़े, मोबाइल, निकिता के शरीर से निकली गोली, बरामद तमंचा, तौसीफ के हाथ से मिले गन पाउडर की रिपोर्ट आदि अहम साक्ष्य व गवाह होंगे। पुलिस सूत्रों की मानें तो पहली चार्जशीट में एसआईटी ने लव जिहाद एंगल को शामिल नहीं किया है। क्योंकि अभी तक तौसीफ और निकिता के मोबाइल फोन की जांच रिपोर्ट नहीं आ पाई है। पुलिस ने दोनों के मोबाइल फोन जांच के लिए लैब में भेजे हैं। पुलिस यह पता करने का प्रयास कर रही है कि वर्ष 2018 के बाद तौसीफ ने कब-कब निकिता से सम्पर्क किया और दोनों के बीच कितने समय तक बात हुई? कहा जा रहा है कि यदि जांच में लव जिहाद की कोई बात सामने आती है तो उसे पूरक चार्जशीट में शामिल कर कोर्ट में पेश किया जाएगा। हम फरीदाबाद पुलिस को इस बात की बधाई देते हैं कि उन्होंने न केवल इस केस को कुछ घंटों में सॉल्व किया बल्कि रिकॉर्ड टाइम में एफआईआर भी दर्ज कर दी।

बाज नहीं आता पाकिस्तान अपनी चालबाजियों से

भारत में उपद्रव फैलाने की हर कोशिश में नाकाम रहे पाकिस्तान ने अब एक बार फिर धार्मिक भावना से खिलवाड़ कर भड़काने की कुटिल चाल चली है। पड़ोसी देश ने सिखों की महान आस्था के केंद्र ऐतिहासिक गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का प्रबंधन और देखभाल व रखरखाव पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीएसजीपीसी) से छीनकर सरकारी संस्था इवेक्टयू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) को सौंप दिया है। करतारपुर गलियारा खुले अभी एक साल पूरा भी नहीं हुआ कि पाकिस्तान ने फिर ऐसा कदम उठाया है जो सिख समुदाय की भावनाओं को आहत और भारत को चिढ़ाने वाला है। पाकिस्तान ने करतारपुर साहिब की बाहरी जमीन की देखभाल का जिम्मा एक परियोजना प्रबंधन इकाई (पीएमयू) करेगी और यह इवेक्टयू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के आधीन काम करेगी। जाहिर है कि इस सारी कवायद का मकसद बाहरी जमीन की देखभाल की आड़ में गुरुद्वारे के प्रबंधन में देखभाल में दखल देना और किसी बहाने उस पर नियंत्रण रखना है। सवाल है कि आखिर पाकिस्तान को इस तरह का विवादास्पद कदम उठाने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी? क्या वह इस हकीकत से अनजान है कि करतारपुर साहिब सिखों का एक पवित्र धार्मिक स्थल है और उसे लेकर उठाया गया कोई भी विवादास्पद कदम सिख समुदाय को बर्दाश्त नहीं होगा? और वह भी ऐसे मौके पर जब करतारपुर गलियारा खुलने को एक साल होने जा रहा है। गुरु नानक देव की जन्मस्थली गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा साहिब और उनके पुण्य स्थल गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर को जोड़ने वाला गलियारा पिछले साल नौ नवम्बर को दोनों देशों के बीच बनी सहमति के बाद सिख श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था। हालांकि इस साल मार्च में कोरोना वायरस महामारी फैलने के बाद इसे बंद कर दिया गया था, लेकिन आगामी गुरु नानक देव जयंती को देखते हुए इसे दोबारा खोलने पर विचार हो रहा था कि पाकिस्तान ने यह कदम उठाकर नया विवाद पैदा कर दिया है। यह नहीं भूलना चाहिए कि गलियारे को खोलने के समय भी पाकिस्तान ने वीजा शुल्क और यात्रियों की संख्या इत्यादि को लेकर अड़ंगा तो लगाया ही था, उद्घाटन के कार्यक्रम में एक खालिस्तान समर्थक की उपस्थिति ने भी संदेह पैदा किया था। पाकिस्तान ने अब जो फैसला किया है वह एक ऐसी संस्था को चुना है जिसमें एक भी सिख मैंबर नहीं है। इसने जिस प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट को करतारपुर गुरुद्वारा के प्रबंधन का जिम्मा सौंपा है, उसके नौ सदस्यों में से एक भी सिख नहीं है। दरअसल करतारपुर गलियारे के निर्माण से लेकर उसे खोलने तक के दौरान पाकिस्तान सरकार कई ऐसे फैसले करती रही जिनसे विवाद खड़े होते रहे। मसलन पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर जाने वाले हर श्रद्धालु से डेढ़ हजार रुपए का सेवा शुल्क लेने का फैसला अचानक कर डाला। इसी तरह श्रद्धालुओं के पासपोर्ट के मुद्दे पर विवाद खड़ा हो गया था। तब प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि करतारपुर आने वालों को पासपोर्ट की जरूरत नहीं होगी, लेकिन अगले ही दिन पाकिस्तानी सेना ने कह दिया कि पासपोर्ट जरूरी होगा। इस तरह के विवाद खटास और तनाव ही पैदा करते हैं। लेकिन भारत को लेकर इसी पड़ोसी देश का जो रुख है, उसमें उससे उम्मीद भी क्या की जा सकती है।

लहरा रहे हैं भारतवंशी अमेरिकी महिलाओं के झंडे

अमेरिका के राष्ट्रपति चुनाव में इस बार भारतीय मूल के अमेरिकी मतदाताओं और प्रत्याशियों, दोनों ने ही अपनी ताकत और प्रभाव का बेहतरीन प्रदर्शन किया है। भारतीय महिला प्रत्याशियों की अच्छी-खासी संख्या रही। डेढ़ दर्जन से अधिक भारतीयों ने सफलता का परचम लहराया है। इनमें पांच महिलाएं भी हैं। दो महिलाओं सहित कुछ भारतीय चुनाव में दमदारी से लड़ने के बाद भी नहीं जीत सकीं। सेंटर फॉर अमेरिकन प्रोग्रेस के अनुसार देश में 20 लाख से ज्यादा भारतीय-अमेरिकन ने इस बार वोट डाले। इनमें से पांच लाख वोटर तो फ्लोरिडा, पेंसिलवेनिया और मिशिगन में हैं। ज्ञात हो कि चार महिलाओंöडॉ. एमी बेरा, प्रमिला जयपाल, रो खन्ना और राजा कृष्णमूर्ति चारों सांसदों को तो प्रतिनिधि सभा के लिए पहले ही चुने जाने की घोषणा हो चुकी है। यह सभी डेमोक्रेटिक सांसद हैं। तीन ऐसे प्रत्याशी हैं, जो अभी जीतने की स्थिति में हैं। पांच महिलाएं ऐसी हैं, जिन्हें प्रांतीय विधायिका में चुना गया है। जेनिफर राजकुमार को न्यूयॉर्क प्रांतीय विधायिका में चुने जाने की पहले घोषणा हो चुकी है। इसके साथ ही नीमा कुलकर्णी केंटकी, केशा राम बरमौर और पद्माकृष्ण को मिशिगन प्रांत की विधायिका के लिए चुना गया है। नीरज अंतानी ओहाइयों में चुनाव जीत गए हैं। उत्तरी कैरोलिना में जय चौधरी को यहां की प्रांतीय विधायिका में दोबारा चुना गया है। भारतवंशियों के जीतने का सिलसिला अन्य राज्यों में भी देखने को मिला है। अमीश शाह एरिजोना में तो निखिल सावल पेंसिलवेनिया में, राजव पुरी मिशिगन और जर्मी कोनी न्यूयॉर्क की प्रांतीय विधायिका में चुने गए हैं। आशा कालरा ऐसी भारतवंशी हैं, जिन्हें लगातार तीसरी बार कैलिफोर्निया प्रांत से चुना गया है। इस प्रकार और भी कई भारतीय मूल के अमेरिकी चुनाव में सफल रहे हैं। हां हमें कमला हैरिस को नहीं भूलना चाहिए जो पहली महिला उपराष्ट्रपति बनी हैं। सभी को तहेदिल से बधाई। -अनिल नरेन्द्र

Sunday, 8 November 2020

आखिरी वोट गिनती तक पूरी दुनिया की नजर अमेरिका पर

पोस्टल बैलेट ने अमेरिकी चुनाव में असर दिखाना शुरू कर दिया है। काउंटिंग में बचे पांच राज्यों में से चार जगहों पर जो बाइडन ने बढ़त बना ली है। जबकि ट्रंप सिर्फ एक जगह आगे हैं। ऐसे में दुनिया के सबसे शक्तिशाली देश की सत्ता डेमोक्रेटिक पार्टी के पास जाती दिख रही है। चुनाव जीतने के लिए 270 इलैक्टोरल वोट चाहिए। अमेरिका के प्रमुख टीवी नेटवर्क के अनुसार बाइडन 253 और ट्रंप 214 जीत चुके हैं। 16 वोटों वाले जॉर्जिया समेत पेंसिलवेनिया (20), नॉर्थ कैरोलाइना (15), एरिजोना (11) और नेवाडा (6) के आखिरी नतीजों का ऐलान होना बाकी है। इन पांच राज्यों के गणित को भी समझें तो बाइडन के रास्ते बहुत आसान हैं और ट्रंप के मुश्किल। वास्तव में महामारी के दौरान हुए इस चुनाव में पोस्टल बैलेटों की संख्या बहुत अधिक है जिसकी गिनती करने में कुछ दिनों का समय लग सकता है और अगर नतीजों को लेकर कुछ चुनौतियां आती हैं तो इससे परिणाम और कुछ समय के लिए लटक सकता है। राष्ट्रपति बनने के लिए ट्रंप या बाइडन को पॉपुलर वोट जीतने की आवश्यकता नहीं है बल्कि प्रत्याशियों को राष्ट्रपति बनने के लिए इलैक्टोरल कॉलेज में जीत हासिल करनी जरूरी होती है। प्रत्येक राज्य से इलैक्टर्स की संख्या मोटे तौर पर उस राज्य की आबादी के अनुपात में होती है। तो अगर आप उन राज्यों में जीते हैं तो आप उसके वोट भी जीतते हैं। कुल इलैक्टर्स की संख्या 538 है। लिहाजा इलैक्टोरल कॉलेज के 270 वोट जो जीतेगा वो ही राष्ट्रपति बनेगा। कैलिफोर्निया में सबसे ज्यादा 55 इलैक्टर्स हैं। जबकि त्योकिंग, अलास्का और नॉर्थ डेकोटा जैसे कुछ राज्यों में इन इलैक्टर्स की संख्या न्यूनतम तीन है। तो रिकॉर्ड मतदान के बावजूद केवल कुछ ही राज्य इस चुनाव में बेहद महत्वपूर्ण हैं जो नतीजे का फैसला करेंगे। इन राज्यों को स्विंग वोट या बैटल ग्राउंड स्टेट कहा जाता है। अमेरिका में कुल 50 राज्य हैं और 40 से ज्यादा राज्यों के बारे में पहले से लोगों को लगभग अंदाजा होता है कि किस राज्य में किस उम्मीदवार की जीत होगी। बाकी 8-10 राज्यों में हर चुनाव में स्थिति बदल जाती है, कभी यह डेमोक्रेट उम्मीदवार का समर्थन करते हैं तो कभी रिपब्लिकन उम्मीदवार को जिता देते हैं। अनुमान है कि बाइडन और ट्रंप उन राज्यों को जीत लेंगे जहां उनके आराम से जीतने की उम्मीद पहले से लगाई जा रही थी। कुछ राज्यों जो अत्यंत महत्वपूर्ण हैं में दोनों के बीच कांटे की टक्कर की स्थिति अब भी बरकरार है। हालांकि जिन राज्यों में दोनों के बीच नजदीकी मामला चल रहा है वहां पोस्टल बैलेटों की गिनती हो रही है। यह गिनती स्थिति को पूरी तरह बदल सकती है। डोनाल्ड ट्रंप उम्मीद से बेहतर कर रहे हैं और बाइडन उन महत्वपूर्ण राज्यों को जीतने में नाकाम रहे हैं जहां वोटों की जल्द गिनती होती है। मतलब अभी अनिश्चितता की स्थिति है क्योंकि हम कुछ प्रमुख राज्यों के नतीजों का इंतजार कर रहे हैं। जो बाइडन ने अपने समर्थकों से कहाöहम यह जीतने जा रहे हैं। साथ ही उन्होंने धैर्य बनाए रखने का आग्रह किया। कुछ ही मिनटों बाद ट्रंप ने ट्वीट कियाöहम काफी आगे हैं लेकिन चुनाव नतीजे हमसे चुराना चाहते हैं। ट्विटर में इस ट्वीट को भ्रामक बताया है। उधर ट्रंप के चुनाव प्रचार अभियान ने उसे सैंसरशिप बताया। अब सारा दारोमदार पोस्टल बैलेट पर निर्भर कर रहा है। आने वाले वक्त में इसमें वकील भी शामिल हो सकते हैं। डोनाल्ड ट्रंप पहले ही कह चुके हैं कि अगर चुनाव के नतीजे बेहद करीबी रहे तो वह सुप्रीम कोर्ट का रुख करेंगे। मतलब साफ है कि इसमें कई हफ्ते या दिन लग सकते हैं। इस दौरान अमेरिका में अनिश्चितता और अस्थिरता का माहौल बना रहेगा।

बंगाल की खाड़ी में उतरे चार यार

चीन ने अपनी विस्तारवादी महत्वाकांक्षाओं का प्रदर्शन कर क्वाड देशों (भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया) को 13 साल बाद एकजुट कर दिया। भारत, अमेरिका, जापान और ऑस्ट्रेलिया बंगाल की खाड़ी में मालाबार युद्धाभ्यास कर रहे हैं। यह युद्धाभ्यास हर साल होने वाला अभ्यास-भर नहीं है, बल्कि इसके दो चरणों में होने तथा 13 साल बाद ऑस्ट्रेलिया के इसमें शामिल होने के कारण यह खास अवसर बन गया है। समान सोच के एक और देश जर्मनी ने भी हिन्द प्रशांत क्षेत्र में पेट्रोलिंग के लिए अगले साल से एक युद्धपोत तैनात करने का ऐलान कर दिया ताकि अंतर्राष्ट्रीय नियमों पर आधारित समुद्री व्यवस्था सुनिश्चित की जा सके। क्वाड देश, चीन के प्रति अपने इरादे का स्पष्ट रणनीतिक इजहार कर रहे हैं। क्वाड के इस उच्चस्तरीय युद्धाभ्यास का महत्व इसलिए भी बढ़ जाता है कि पूर्वी लद्दाख में भारत और चीन के सैनिक पिछले सात महीनों में आमने-सामने खड़े हैं। चीन से तनातनी के बीच मंगलवार को मालाबार युद्धाभ्यास की शुरुआत हुई। विध्वंसक मिसाइलों से लैस क्वाड देशों ने महासागर में अपनी ताकत और युद्ध कौशल का प्रदर्शन करते नजर आए। यह बहुपक्षीय नौसैनिक युद्धाभ्यास है। इसमें नौसेनाएं युद्ध जैसे हालात पैदा करती हैं और आपस में संघर्ष करती नजर आती हैं। विशेषज्ञों के मुताबिक पहली बार इतने बड़े युद्धक की नौसेनाएं एक साथ, एक महासागर में एक खास उद्देश्य के साथ उतरी हैं। हिन्द महासागर में चीन की बढ़ती नापाक हरकतों पर लगाम लगाना उनका मकसद है और यही चीन की बेचैनी बढ़ने की वजह है। इस साल यह अभ्यास दो चरणों में आयोजित किया गया है। क्वाड देश अंतर्राष्ट्रीय समुद्र में सबके लिए आवाजाही बनाए रखना चाहते हैं लेकिन चीन इसमें अड़ंगे डाल रहा है। दक्षिण चीन सागर में जो भी चल रहा है, वह कहीं न कहीं अंतर्राष्ट्रीय समुद्र पर कब्जा करना और उसके जरिये अन्य देशों के मुक्त आवागमन को रोकना है। इसलिए इसका महत्व बढ़ जाता है। चीन हर साल मालाबार युद्धाभ्यास के उद्देश्यों को लेकर संशकित रहा है। मालाबार युद्धाभ्यास के बारे में पूछे सवाल पर चीन के विदेश मंत्रालय ने कड़ी प्रतिक्रिया दी है। विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता वांग वेनबिन ने कहा कि चीन उम्मीद करता है कि युद्धाभ्यास में शामिल देशों के अलावा क्षेत्र में भी शांति और स्थिरता के लिए अनुकूल होगा। क्वाड की ताकत और चीन की आपत्ति के बावजूद इस बार ऑस्ट्रेलिया के इसमें शामिल होने के कारण ही संशकित बीजिंग को उम्मीद जतानी पड़ रही है कि यह संयुक्त सैन्याभ्यास शांति और स्थायित्व के अनुकूल होगा।

रेस्तरां-किराने से सामान खरीदना हवाई सफर से ज्यादा खतरनाक

कोविड-19 महामारी के दौरान बाहर भोजन करना और किराने से सामान खरीदना, हवाई यात्रा से अधिक खतरनाक हो सकता है। हाल ही में हुए एक अध्ययन में यह दावा किया गया है। हालांकि कुछ वैज्ञानिकों का कहना है कि इस तरह की तुलना इन बातों की जानकारी के बिना नहीं की जा सकती कि क्या इन प्रत्येक परिदृश्यों में मास्क पहनने और सामाजिक दूरी बनाए रखने संबंधी मानदंडों का ठीक से पालन किया जाता है। अमेरिका के हॉर्वर्ड टीएमयान स्कूल ऑफ पब्लिक हैल्थ के वैज्ञानिकों, एयरलाइंस, हवाई अड्डों और विमान निर्माताओं द्वारा वित्त-पोषित शोध में कहा गया है कि उच्च दक्षता वाले पार्टिकुलेट एयर (एचपीए) फिल्टरों से बने विमानों में वेंटिलेशन प्रणाली के जरिये स्वच्छ और ताजा हवा की आपूर्ति करती है। जो 99 प्रतिशत से अधिक उन कणों को छानती है जो कोविड-19 का कारण बन सकते हैं। हालांकि अमेरिका में मैसाच्युसेट्स इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (एमआईटी) के अर्नोल्ड आई बार्नेट सहित शोधकर्ताओं ने कहा कि एचपीए फिल्टर विमानों में प्रभावी ढंग से काम नहीं करते जैसा कि रिपोर्ट में कहा गया है। स्वास्थ्य और सुरक्षा की समस्याओं पर केंद्रित सांख्यिकी के प्रोफेसर बार्नेट ने बताया कि एचईपीए फिल्टर बहुत अच्छे हैं, लेकिन अमेरिकी एयरलाइंसों के सुझाव के अनुसार प्रभावी नहीं हैं। वह पूरी तरह से सुरक्षित नहीं हैं और इन फिल्टरों के बावजूद संक्रमण के कई उदाहरण हैं। एमआईटी के वैज्ञानिकों ने कहाöकोविड-19 के लिए किसी भी प्रक्रिया को पूरी तरह से सक्षम नहीं समझा जा सकता। अमेरिका में हॉर्वर्ड मेडिकल स्कूल में मेडिसन विभाग के अबरार करण ने भी विमान में संक्रमण खतरे के बारे में चिन्ता व्यक्त की। करण ने ट्वीट किया कि हवाई यात्रा पर विचार करने वालों के लिए वास्तविकता यह है कि जब विमानों में वेंटिलेशन सिस्टम होता है तो हमें इस बात का अच्छा अनुमान नहीं होता कि विमान में ही कोविड-19 के कितने मामले हैं। उन्होंने कहा कि हम यह पता लगाने के लिए सही तरीके की जांच नहीं कर रहे। रेस्तरां-किराने के सामान खरीदना भी खतरे से खाली नहीं है। यहां पर दिनभर लोग आते-जाते रहते हैं। आपको यह पता नहीं कि इनमें कितने संक्रमित हैं। आपको तो छोड़िए खुद आदमी को पता नहीं होता कि वह संक्रमित हैं और सुपर प्रैडर बन रहा है? बेहतर है कि आप कम से कम इन जगहों पर जाएं। -अनिल नरेन्द्र

Friday, 6 November 2020

केन्द्र कृषि बिलों के जरिए किसानों की मौत का सामान लाई है

केन्द्राrय कृषि कानूनों को दरकिनार करने के लिए राजस्थान की अशोक गहलोत सरकार ने सोमवार को विधानसभा में तीन संशोधन विधेयक पारित किए। अब ये राज्यपाल कलराज मिश्र के पास मंजूरी के लिए भेजे जाएंगे। इससे पहले पंजाब सरकार ने केन्द्राrय कानूनों के खिलाफ संशोधन विधेयक पारित किए। संशोधन विधेयकों पर करीब छह घंटे बहस हुई जिसमें सत्तापक्ष की तरफ से चार वरिष्ठ मंत्रियों ने सरकार का पक्षा रखा। राजस्थान के केन्द्राrय कार्यमंत्री शांति धारीवाल ने सदन में कृषि उपज, व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) (राजस्थान संशोधन) विधेयक 2020 कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा कर पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (विशेष) उपबंध और राजस्थान संशोधन विधेयक 2020 सदन के पटल पर रखा। इस विधेयकों का उद्देश्य केन्द्र द्वारा हाल ही में पारित कृषि संबंधी तीन कानूनों का राज्य के किसानों पर प्रभाव निष्प्रभावी करना है। सरकार ने कहा है कि वह राज्य के कृषिकों, कृषि श्रमिकों तथा कृषि और उसके संबंधित क्रियाकलापों में लगे हुए अन्य सशक्त व्यक्तियों के भी हितों और आजीविका की सुरक्षा और संरक्षण के लिए राजस्थान कृषि उपज मंडी समिति अधिनियम 1961 के विनियामक ढांचे के माध्यम से राजस्थान राज्य के कृषिकों के fिहतों की रक्षा के लिए यह विधेयक लाई है। इस विधेयक में कृषिकों के उत्पीड़न के खिलाफ दंड का प्रावधान है। इसमें लिखा गया है कि यदि कोई व्यापारी कृषकों का उत्पीड़न करता है तो उसे तीन साल से सात साल की कैद या जुर्माने से दंडित किया जा सकता है और यह जुर्माना पांच लाख रुपए से कम नहीं होगा। संसद में पारित कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य संवर्धन और सरलीकरण अधिनियम 2020 का हवाला देते हुए विधेयक में कहा है कि क्योंकि इस केन्द्राrय अधिनियम का प्रत्यक्ष परिणाम न्यूनतम समर्थन मूल्य तंत्र को निष्प्रभावी करना होगा और इससे कृषि तथा संबंधित समुदायों के हितों की रक्षा में बाधाएं आएंगी। इससे कृषक को विभिन्न तरह के शोषण से बचाने का कोई उपाय नहीं किया गया है। मंत्री ने एक अन्य विधेयक में भी कृषिकों के उत्पीड़न की स्थिति में संबंध व्यक्ति या कंपनी का कारपोरेट घरानों की तीन से सात साल की कैद या कम से कम पांच लाख रुपए के जुर्माने से दंडित किया जा सकेगा। राजस्थान सरकार के संसदीय कार्य मंत्री शांति धारीवाल ने कहा केन्द्र कृषि बिलों के जरिए किसानों की मौत का सामान लेकर आई है। वह किसानों को दूसरों के दरवाजे पर बांधना चाहती है। राज्य सरकारों ने किसानों को खुद के उत्पादन दूसरी जगह बेचने पर कब रोक लगाई? केंद्र शांता कुमार की रिपोर्ट लागू करना चाहती है और जिसमें एमएसपी खत्म करने की बात है। केन्द्र ने एमएसपी पर जिक्र नहीं किया है। केन्द्र का रिलायंस सहित कुछ पूंजीपतियों की कृषि में एंट्री कराने का उद्देश्य है। मंडियों के सामने कारपोरेट के लोग दुकान लगाकर बैठेंगे तो मंडियों में क्या हाल होगा? कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष गोविंद सिंह ने कहा कि चुनावों में किसानों की आय दोगुनी करने की बात करने वाले प्रधानमंत्री कारपोरेट व्यापारियों के हितों के लिए काम कर रहे हैं।

कोरोना ः पूरे देश से उलटी दिल्ली की चाल

दिल्ली में ठंड और प्रदूषण में इजाफा होने के साथ चिंता का विषय यह भी है कि कोरोना संक्रमण की दर भी तेजी से बढ़ रही है। दिल्ली में बीते लगभग एक हफ्ते से कोरोना वायरस के मामले कैसे काफी तेजी से बढ़े हैं। रोजाना पांच हजार से ज्यादा नए केस सामने आ रहे हैं और अब रिकार्ड 6700 से ऊपर नए केस आ रहे हैं। अब स्थिति यह है कि कोरोना के नए केस के मामले में दिल्ली, महाराष्ट्र से भी आगे निकल चुकी है। दिल्ली के बाजारों में बढ़ती भीड़ और कोरोना से बचाव के नियमों का पालन न करने की वजह से केसों में भारी इजाफा हो रहा है। बीते तीन दिनों का रिकार्ड देखें तो दिल्ली में महाराष्ट्र से ज्यादा नए केस देखे गए हैं। एक दिन तो लगभग महाराष्ट्र के बराबर ही केस आए थे। बता दें कि कोरोना वायरस के मामले में महाराष्ट्र का देश में पहला स्थान है। यहां कोरोना के कुल 17 लाख के करीब केस हैं। पहले यहां रोजाना 10 से 15 हजार नए केस सामने आ रहे थे लेकिन बीते कई दिनों से यहां नए केस चार से छह हजार के बीच देखे जा रहे हैं। दिल्ली में भी नए केस इतने ही सामने आ रहे हैं। गत सप्ताह दिल्ली आपदा प्रबंधन विभाग की बैठक में विशेष समिति की उस रिपोर्ट पर चर्चा हुई थी, जिसमें अनुमान लगाया गया है कि इस महीने के अंत तक रोजाना 12 से 14 हजार नए मामले सामने आ सकते हैं। यह तथ्य है कि दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति बेहद खराब हो गई है। इसके लिए केवल पड़ोसी राज्य पंजाब, हरियाणा, राजस्थान और उत्तर प्रदेश के कुछ भागों में किसानों द्वारा पराली जलाने के मामलों को ही जिम्मेदार नहीं ठहराया जा सकता। दिल्ली में वायु प्रदूषण के लिए मोटर वाहनों की भारी संख्या भी बहुत हद तक जिम्मेदार है। ठंड का मौसम और वायु प्रदूषण इन दोनों के कारण कोरोना महामारी में और अधिक उछाल आ सकता है। त्यौहारों के साथ दिल्ली और देश के बड़े हिस्सों में शादी-विवाह के मौसम की भी शुरुआत हो रही है। त्यौहारों और शादी-विवाह इन दोनों समारोहों में सामाजिक दूरी के नियम व मास्क पहनने के नियम का पालन करने में शिथिलता और fिढलाई बरतने की आशंका भी बनी हुई है। अपनी सामाजिक जिम्मेदारियों का निर्वाह करते हुए सरकार ने भी शादी-विवाह और अन्य पारिवारिक समारोहों में महामारी की रोकथाम के लिए बनाए गए नियम व कानून में थोड़ी बहुत ढिलाई दी है। अब ऐसे समारोहों में 50 की बजाए 200 लोग शामिल हो सकते हैं। भारत जैसे देश में लाखों लोग रोजाना नियम कानूनों, कोरोना प्रोटोकॉल का उल्लंघन करते हैं। दिल्ली के बाजारों में आप देख सकते है कि लोग न तो सामाजिक दूरी और न ही मास्क पहनने के नियम का पालन करते हैं बल्कि वह इसकी धज्जियां उड़ाते नजर आते हैं। आखिर सरकार कितना कर सकती है। अगर जनता सरकार से कोआपरेट नहीं करेगी तो कैसे इन मनहूस कोरोना से लड़ा जाएगा। हालांकि दिल्ली सरकार महामारी के संक्रमण को और अधिक फैलने से रोकने के लिए हर जरूरी कदम उठा रही है। टेस्ट की संख्या भी बढ़ा दी गई है, लेकिन यह भी सच है कि सरकार अकेले सब कुछ नहीं कर सकती। महामारी को रोकने में सरकार के साथ-साथ नागरिकों की भी भागीदारी सबसे जरूरी है।

क्या रोजगार-विकास जाति के जंजाल पर भारी पड़ेगा?

जाति बिहार की राजनीति की सच्चाई है। पिछले विधानसभा चुनाव की तरह इस बार भी दलों के बीच जातीय समीकरण को साधने की होड़ है। दो चरणों के संपन्न हुए मतदान में भी यही लगता है कि जातीय समीकरण अब भी बड़ा मुद्दा है। हालांकि जातीय समीकरण और सुशासन बनाम जंगल राज जैसे मुद्दों के बीच राज्य की सियासत में अरसे बाद रोजगार के सवाल भी तैर रहे हैं। सभी दल जोर-शोर से रोजगार के मुद्दे उठा रहे हैं और रोजगार के वादे कर रहे हैं। अप्रैल में जब लाखों की संख्या में प्रवासी मजदूरों का महानगरों से पलायन हुआ तब पहली बार स्थानीय स्तर पर रोजगार की कमी, उद्योग-धंधों की कमी का सवाल उठा। दूसरा कारण राज्य के युवा में मतदाताआंs में 29 साल से कम उम्र के 1.17 करोड़ तो 39 साल से कम उम्र के 3.66 करोड़ मतदाता हैं। बिहार में डेढ़ दशक के बाद सभी विधानसभा और लोकसभा चुनाव में सुशासन बनाम जंगलराज मुख्य मुद्दा रहा। इस बार राजग रोजगार और विकास की बात करते हुए जंगलराज बनाम सुशासन की याद दिला रहा है। नई पीढ़ी के पास कथित जंगलराज की यादें नहीं है। यह पीढ़ी विकसित राज्यों के साथ बिहार की तुलना करती है। सहज सवाल है कि जब सियासी दलों का काम जाति की जुगलबंदी से ही चल जाता है तो विकास और रोजगार जैसे मुद्दे की जगह क्यों? दलों ने अपने-अपने हिसाब से जातिगत समीकरण की गोटी बिछाई है। राजग की निगाहें अति पिछड़ा, अगड़ा और महादलित पर तो विपक्ष महागठबंधन का यादव-मुस्लिम, दलित और कम संख्या वाली छोटी-छोटी बिरादरी पर है। राज्य में अलग-अलग जातियां, अलग-अलग दलों के साथ खड़ी जरूर दिखती हैं, मगर इस बार इनके पास रोजगार से संबंधित सवाल भी हैं। राज्य में साढ़े चार लाख सरकारी पद खाली हैं। पूर्व न्यायाधीश मार्पेण्डेय काटजू ने कहा है कि इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि बिहार में कौन-सी पार्टी जीत हासिल करेगी, राजग-कांग्रेस गठबंधन या जदयू-भाजपा गठबंधन। सच्चाई यह है कि बड़े पैमाने पर बेरोजगारी, बढ़ते कुपोषण के कारण बिहारवासी गरीब ही बने रहेंगे। स्वास्थ्य सुविधाओं का घोर अभाव और जनता के लिए अच्छी शिक्षा यहां नदारद है। -अनिल नरेन्द्र

Wednesday, 4 November 2020

अपनी-अपनी जीत के दावे कर रहे ट्रंप और बिडेन

बेशक हमारा सारा ध्यान इस समय बिहार विधानसभा चुनाव पर लगा है पर इससे भी ज्यादा महत्वपूर्ण चुनाव अमेरिका में राष्ट्रपति पद के लिए हो रहा है। बिहार परिणाम से तो देश की राजनीति पर असर पड़ेगा पर अमेरिका में राष्ट्रपति चुनाव परिणाम का असर तो सारी दुनिया की सियासत पर पड़ेगा। अमेरिकी मतदाता जब देश के 46वें राष्ट्रपति को चुनने के लिए घर से निकलेंगे तो वो अपने वोट से दुनिया की बहुत सारी नीतियां भी तय कर देंगे। दोनों ही पार्टियोंöडेमोक्रेटिक पार्टी और रिपब्लिकन पार्टी अपनी-अपनी जीत का दावा कर रही हैं, लेकिन उनकी किस्मत की चाबी अमेरिकी जनता के हाथ में है। रिपब्लिकन पार्टी की तरफ से दूसरी बार किस्मत आजमा रहे राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने चुनाव में बड़ी जीत की भविष्यवाणी की है। उन्होंने दावा किया कि अबकी बार की जीत चार वर्ष पहले मिली विजय से भी बड़ी होगी। उधर डेमोक्रेटिक पार्टी की तरफ से उम्मीदवार जो बिडेन ने ट्रंप को राष्ट्रपति पद से हटाने के लिए अमेरिकियों से वोट का आग्रह किया है। उन्होंने आरोप लगाया है कि पिछले चार वर्षों के दौरान ट्रंप ने राष्ट्र को विभाजित किया है। अमेरिका का यह राष्ट्रपति चुनाव उस समय हो रहा है, जब कोरोना वायरस से दुनिया के इस सबसे शक्तिशाली माने जाने वाले देश को बुरी तरह झकझोर दिया है। राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के बड़बोलेपन और उनकी डींगों की जितनी पोल इस दौरान खुली है, उतनी इससे पहले कभी नहीं खुली थी। शायद पूरे अमेरिकी इतिहास में किसी भी राष्ट्रपति की पोल इस तरह से नहीं खुली। इस सच को तो अमेरिका में ज्यादातर लोग स्वीकार कर रहे हैं कि ट्रंप कोरोना संक्रमण से देश को बचाने में बिल्कुल ही नाकाम रहे हैं। देश ही क्यों खुद को भी संक्रमण से नहीं बचा सके। शनिवार को कांटे के मुकाबले वाले पेंसिलवेनिया में चार अलग-अलग रैलियों को संबोधित करते हुए ट्रंप ने कहाöहमारी सरकार ने चार वर्षों के दौरान जबरदस्त उपलब्धियां हासिल की हैं। ट्रंप ने बिडेन पर भ्रष्टाचार का आरोप लगाने के साथ ही कहा कि अगर वह चुनाव जीते तो देश को समाजवाद के रास्ते पर ले जाएंगे। पेंसिलवेनिया सहित कांटे के मुकाबले वाले अन्य प्रांतों में बिडेन से पीछे चल रहे ट्रंप ने कहा कि वह इन प्रांतों में हर हाल में जीत दर्ज करेंगे। उधर मिशिगन में एक कार रैली को संबोधित करते हुए बिडेन ने कहाöतीन दिन बाद हम ऐसे व्यक्ति को हराने जा रहे हैं, जिसने देश को बांटने का काम किया है। हम ऐसे व्यक्ति को सत्ता से बेदखल करने जा रहे हैं, जिसने देश को नफरत की आग में झोंक दिया है। ओहायो में बिडेन से आगे चल रहे ट्रंप वैसे तो कई प्रांतों में पिछड़ रहे ट्रंप के लिए अच्छी खबर आई है। हाल ही में हुए एक सर्वे में ट्रंप प्रतिद्वंद्वी बिडेन से सात अंकों से आगे चल रहे हैं। अर्ली वोटिंग प्रक्रिया के तहत अब तक नौ करोड़ लोग वोट डाल चुके हैं। यह 2016 में कुल मतों का लगभग 65 प्रतिशत है। अब ट्रंप और बिडेन उन मतदाताओं को लुभाने में लगे हुए हैं, जिन्होंने अब तक वोट नहीं दिया है। विभिन्न ओपिनियन पोल में राष्ट्रीय स्तर पर ट्रंप प्रतिद्वंद्वी बिडेन से पीछे चल रहे हैं। इन चुनावी नतीजों का भारत के साथ अमेरिका के रिश्तों पर कोई बड़ा फर्क पड़ेगा, अभी तक ऐसा नहीं लगता। यह जरूर है कि अगर बिडेन जीतते हैं और कमला हैरिस उपराष्ट्रपति बनती हैं तो भारतीयों के लिए गर्व का क्षण होगा। अमेरिका में रहने वाले भारतीयों के लिए खैर यह बड़ी बात होगी। देखें कि बिडेन ट्रंप को हरा सकते हैं या नहीं?

मजहबी कट्टरता से जंग को तैयार फ्रांस

दो हफ्ते के भीतर दो आतंकी हमलों का सामना करने वाले फ्रांस ने मजहबी कट्टरता के खिलाफ जंग का ऐलान कर दिया है। फ्रांस की एक पत्रिका में प्रकाशित पैगंबर के कार्टून से शुरू हुआ विवाद और बढ़ता जा रहा है। दुनिया के कई देशों में कट्टरता को हवा देने के लिए फ्रांस के खिलाफ विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। वहीं कई देशों ने फ्रांस का खुलकर समर्थन किया है। दुनियाभर के इस्लामी देशों में विरोध झेल रहे फ्रांस के राष्ट्रपति ऐमेनुएल मैक्रों ने नीस में हुए आतंकी हमले जिसमें एक संदिग्ध हमलावर ने कई लोगों पर चाकू से हमला किया, उस पर कहा कि उनका देश इस्लामी जगत के साथ विवाद में दब्बू नहीं बनेगा। फ्रांस के राष्ट्रपति ने देश के तटवर्ती नगर के नोत्रादाम चर्च के सामने खड़े होकर यह बात कही। इसी चर्च में हुए हमले में कम से कम तीन लोगों की मौत हुई है और इसमें एक महिला का सिर काट दिया गया। बताया कि संदिग्ध हमलावर बार-बार अल्लाह-हू-अकबर चिल्ला रहा था। हमलावर को गिरफ्तार कर लिया गया है। कुछ ही दिन पहले एक शिक्षक का सिर काटा गया था। हाल के कुछ वर्षों में फ्रांस का नीस शहर खतरनाक हमलों का शिकार हुआ है। साल 2016 में यहां एक ट्यूनीशियन ड्राइवर ने लोगों को ट्रक से कुचल दिया था। इस घटना में 86 लोगों की मौत हो गई थी। इससे कुछ ही दिन पहले फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक हमलावर ने एक शिक्षक का सिर काट दिया था। अगली सुबह चर्च में सामूहिक प्रार्थना के दौरान एक पादरी का गला काट दिया गया था। अभी कुछ ही दिन पहले फ्रांस की राजधानी पेरिस में एक हमलावर ने सैमुअल नाम के एक शिक्षक का सिर काट दिया था। सैमुअल एक स्कूल में इतिहास और भूगोल पढ़ाते थे। फ्रांस के राष्ट्रपति ऐमेनुएल मैक्रों ने इस अपराध को इस्लामिक आतंकवाद का नतीजा बताया था। उनके इस बयान पर तुर्की के राष्ट्रपति रजब तैयब एर्दोगान ने यहां तक कह दिया था कि मैक्रों का दिमाग खराब हो गया है। इसके अलावा अरब देशों में फ्रांसीसी उत्पादों का बहिष्कार करने की अपील की गई है और कई दुकानों में फ्रांस में बने सामान हटा दिए गए हैं। इसी बीच फ्रांसीसी व्यंग्य पत्रिका शार्ली एब्दो ने एर्दोगान का मजाक उड़ाते हुए एक कार्टून प्रकाशित किया और इस कार्टून में टी-शर्ट और अंडर पैंट में दिख रहे एर्दोगान कुर्सी पर बैठे हैं। उनके दाएं हाथ में बीयर है जबकि बाएं हाथ में वो हिजाब पहने एक महिला की स्कर्ट को पीछे से उठाते हुए दिखाए गए हैं। राष्ट्रपति मैक्रों ने कहाöबिल्कुल साफ है कि फ्रांस हमले के निशान पर है। सारे कैथालिको के साथ फ्रांस खड़ा है ताकि वे हमारे देश में पूरी आजादी के साथ हर धर्म का पालन कर सकें और देश में हर धर्म का पालन हो सके। राष्ट्रपति ने घोषणा की कि उनका देश इस्लामी जगत के साथ विवाद में दब्बू नहीं बनेगा। पाकिस्तान, सऊदी अरब और तुर्की जैसे इस्लामी देशों के निशाने पर आए फ्रांस के राष्ट्रपति मैक्रों के समर्थन में भारत खुलकर आ गया है। भारतीय विदेश मंत्रालय ने कहा है कि न सिर्फ मैक्रों पर किए जा रहे व्यक्तिगत हमलों की हम कड़े शब्दों में निंदा करते हैं, बल्कि कुछ देश जिस तरह से फ्रांस के शिक्षक की हत्या को जायज ठहरा रहे हैं, उसे भी भारत खारिज करता है। हम फ्रांस के लोगों के प्रति संवेदना व्यक्त करते हैं। आतंकवाद के समर्थन का कोई औचित्य नहीं है।