Tuesday 10 November 2020

बाज नहीं आता पाकिस्तान अपनी चालबाजियों से

भारत में उपद्रव फैलाने की हर कोशिश में नाकाम रहे पाकिस्तान ने अब एक बार फिर धार्मिक भावना से खिलवाड़ कर भड़काने की कुटिल चाल चली है। पड़ोसी देश ने सिखों की महान आस्था के केंद्र ऐतिहासिक गुरुद्वारा करतारपुर साहिब का प्रबंधन और देखभाल व रखरखाव पाकिस्तान सिख गुरुद्वारा प्रबंधक कमेटी (पीएसजीपीसी) से छीनकर सरकारी संस्था इवेक्टयू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड (ईटीपीबी) को सौंप दिया है। करतारपुर गलियारा खुले अभी एक साल पूरा भी नहीं हुआ कि पाकिस्तान ने फिर ऐसा कदम उठाया है जो सिख समुदाय की भावनाओं को आहत और भारत को चिढ़ाने वाला है। पाकिस्तान ने करतारपुर साहिब की बाहरी जमीन की देखभाल का जिम्मा एक परियोजना प्रबंधन इकाई (पीएमयू) करेगी और यह इवेक्टयू ट्रस्ट प्रॉपर्टी बोर्ड के आधीन काम करेगी। जाहिर है कि इस सारी कवायद का मकसद बाहरी जमीन की देखभाल की आड़ में गुरुद्वारे के प्रबंधन में देखभाल में दखल देना और किसी बहाने उस पर नियंत्रण रखना है। सवाल है कि आखिर पाकिस्तान को इस तरह का विवादास्पद कदम उठाने की आखिर जरूरत क्यों पड़ी? क्या वह इस हकीकत से अनजान है कि करतारपुर साहिब सिखों का एक पवित्र धार्मिक स्थल है और उसे लेकर उठाया गया कोई भी विवादास्पद कदम सिख समुदाय को बर्दाश्त नहीं होगा? और वह भी ऐसे मौके पर जब करतारपुर गलियारा खुलने को एक साल होने जा रहा है। गुरु नानक देव की जन्मस्थली गुरदासपुर स्थित डेरा बाबा साहिब और उनके पुण्य स्थल गुरुद्वारा दरबार साहिब करतारपुर को जोड़ने वाला गलियारा पिछले साल नौ नवम्बर को दोनों देशों के बीच बनी सहमति के बाद सिख श्रद्धालुओं के लिए खोला गया था। हालांकि इस साल मार्च में कोरोना वायरस महामारी फैलने के बाद इसे बंद कर दिया गया था, लेकिन आगामी गुरु नानक देव जयंती को देखते हुए इसे दोबारा खोलने पर विचार हो रहा था कि पाकिस्तान ने यह कदम उठाकर नया विवाद पैदा कर दिया है। यह नहीं भूलना चाहिए कि गलियारे को खोलने के समय भी पाकिस्तान ने वीजा शुल्क और यात्रियों की संख्या इत्यादि को लेकर अड़ंगा तो लगाया ही था, उद्घाटन के कार्यक्रम में एक खालिस्तान समर्थक की उपस्थिति ने भी संदेह पैदा किया था। पाकिस्तान ने अब जो फैसला किया है वह एक ऐसी संस्था को चुना है जिसमें एक भी सिख मैंबर नहीं है। इसने जिस प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट को करतारपुर गुरुद्वारा के प्रबंधन का जिम्मा सौंपा है, उसके नौ सदस्यों में से एक भी सिख नहीं है। दरअसल करतारपुर गलियारे के निर्माण से लेकर उसे खोलने तक के दौरान पाकिस्तान सरकार कई ऐसे फैसले करती रही जिनसे विवाद खड़े होते रहे। मसलन पाकिस्तान सरकार ने करतारपुर जाने वाले हर श्रद्धालु से डेढ़ हजार रुपए का सेवा शुल्क लेने का फैसला अचानक कर डाला। इसी तरह श्रद्धालुओं के पासपोर्ट के मुद्दे पर विवाद खड़ा हो गया था। तब प्रधानमंत्री इमरान खान ने कहा था कि करतारपुर आने वालों को पासपोर्ट की जरूरत नहीं होगी, लेकिन अगले ही दिन पाकिस्तानी सेना ने कह दिया कि पासपोर्ट जरूरी होगा। इस तरह के विवाद खटास और तनाव ही पैदा करते हैं। लेकिन भारत को लेकर इसी पड़ोसी देश का जो रुख है, उसमें उससे उम्मीद भी क्या की जा सकती है।

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