Sunday, 1 November 2020

98 साल में पहली बार ऐसी कार्रवाई

दिल्ली विश्वविद्यालय के 98 साल के इतिहास में पहली बार किसी कुलपति को उनके पद से निलंबित किया गया है। प्रो. योगेश त्यागी के निलंबन के बाद डीयू के रजिस्ट्रार विकास गुप्ता ने गुरुवार को कार्यकारी परिषद की शाम चार बजे आपातकालीन बैठक बुलाई थी। ऐसा माना जा रहा है कि इसमें कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए गए हैं। दिल्ली विश्वविद्यालय के शिक्षक, कर्मचारी इस निर्णय को मंत्रालय के बड़े कदम के रूप में देख रहे हैं। डीयू में कार्यकारी परिषद के सदस्य जेएल गुप्त का कहना है कि डीयू मई 2022 में सौ साल पूरे करेगा। 98 साल के इतिहास में किसी कुलपति को निलंबित नहीं किया गया है। प्रो. योगेश त्यागी की नियुक्ति के बाद से मंत्रालय से टकराव, शिक्षक संगठन से टकराव और निर्णयों के प्रति उदासीनता के कारण त्यागी कभी लोकप्रिय कुलपति नहीं रहे। मार्च 2016 में नियुक्ति के बाद से अब तक डीयू कुलपति द्वारा लिए गए किसी भी फैसले से शिक्षक, कर्मचारी खुश नहीं थे। आज उनके पक्ष में खड़े होने वालों की संख्या नगण्य है। डीयू के कुलपति के निलंबन से अधिकतर शिक्षकों और कर्मचारियों में खुशी है। डीयू में नेशनल डेमोक्रेटिक टीचर्स फ्रंट ने कुलपति के निलंबन की कार्रवाई को उचित ठहराया है। एनडीटीएफ के अध्यक्ष एके भागी ने बताया कि प्रो. योगेश कुमार त्यागी के लगभग पांच साल के कार्यकाल में शिक्षकों-कर्मचारियों के स्थायित्व, प्रमोशन और पेंशन जैसे महत्वपूर्ण कार्यों को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और केंद्र सरकार के निर्देशों के बावजूद लंबे समय तक लटकाए रखा गया। एनडीटीएफ शुरू के विरोध को लेकर मुखर रहा है। महासचिव डॉ. वीएस नेगी ने बताया कि स्थायित्व, प्रमोशन और पेंशन के मुद्दों पर सरकार और विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के निर्देशों की अवहेलना की जाती रही। महत्वपूर्ण प्रशासनिक पदों को अस्थायी कामचलाऊ तरीके से भरा गया, जिसमें प्रशासनिक और अकादमिक कामकाज प्रभावित हुआ। महत्वपूर्ण पद लंबे समय तक खाली पड़े रहे। डीयू के कुलपति प्रो. योगेश त्यागी के कार्यकाल पर कटाक्ष करते हुए डीयू के शिक्षक संगठन एकेडमिक फॉर एक्शन एंड डेवलपमेंट (एएडी) के पदाधिकारी राजेश झा का कहना है कि अब सरकार को नए कुलपति का चयन प्रतिभा और उनकी प्रशासनिक क्षमता के आधार पर करना चाहिए, न कि किसी अन्य आधार पर। इस विश्वविद्यालय का नाम विश्व में ख्यात है, इसका ख्याल रखा जाना चाहिए। कुलपति ने शिक्षकों के खाली पदों को भरने समेत अन्य दिक्कतों को सुलझाने में कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। इसके चलते शिक्षक लगातार विरोध प्रदर्शन करते रहे। इसका असर सीधा छात्रों की पढ़ाई पर पड़ा। एड-हॉक शिक्षकों के मुद्दे को सुलझाने में भी कुलपति नाकाम रहे। -अनिल नरेन्द्र

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