Sunday 29 November 2020
स्थानीय निकायों के चुनाव में मोदी का सहारा
जिला विकास परिषद (डीडीसी) के पहली बार हो रहे चुनाव में भाजपा को मोदी के नाम के सहारे से अपनी सियासी मंजिल तक पहुंचने की उम्मीद है। जम्मू के पास नगरोटा में गंभीर आतंकवादी घटना ने टल कर भी, इस चुनाव को रेखांकित कर दिया है। इस प्रकरण ने इसकी याद दिलाई है कि धारा 370 के खत्म हो जाने के बाद और पूर्ववती राज्य को तोड़कर गठित दोनों केंद्रशासित क्षेत्रों में शासन सीधे केंद्र सरकार ने अपने हाथ में लेने के सवा साल बाद भी, जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद की चुनौती कोई खत्म नहीं हुई है। फिर भी प्रत्यक्ष-निर्वाचन से जिला काउंसिल के गठन के इस पहले चुनाव के लिए, सिर्फ आतंकवाद की चुनौती नहीं है। इससे भी बड़ी चुनौती इन हालात में स्वतंत्र तथा निष्पक्ष चुनाव कराने की है। इस केंद्रशासित प्रदेश का प्रशासन सवा साल तक सीधे चलाने के बाद, अगर केंद्र सरकार ने नया रूप देकर जिला काउंसिल के चुनाव कराने का फैसला किया है तो यह शासन के माध्यम के रूप में स्थानीय चुने हुए प्रतिनिधियों तथा निकायों की जरूरत, पहचाने जाने को ही दिखाता है। जिला काउंसिल के इस संक्रमण काल में निर्वाचित विधानसभा के स्थानापत्र के रूप में कारगर होने न होने की बहस अपनी जगह, जनता का प्रतिनिधित्व करने वाले निकाय के रूप में उनसे समस्याओं को सुलझाने में मददगार होने की उम्मीद की जाती है। कश्मीर के नेताओं की लंबे समय तक नजरबंदी समाप्त होने के बाद इन चुनावों का विशेष महत्व हो जाता है। डीडीसी चेयरमैन के रूप में निर्वाचित शख्स को राज्यमंत्री का दर्जा दिया जाएगा। जिस प्रकार राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद और कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष जीए मीर के बीच लंबे अरसे से चले आ रहे गहरे मनमुटाव के कारण यहां कांग्रेस संगठन मजबूत दिखाई नहीं देता है। जिसका लाभ जम्मू संभाग में भाजपा को मिल सकता है। इन चुनावों में भाजपा ने अपने प्रत्याशियों के पक्ष में बड़ी संख्या में स्टार प्रचारकों को मैदान में उतारा है। 28 नवम्बर को डीडीसी चुनाव के लिए पहले चरण का मतदान हुआ। जिसका प्रचार बृहस्पतिवार शाम को थम गया। प्रदेश के सभी 20 जिलों के 280 जिला परिषद के लिए आठ चरणों में मतदान होगा। भाजपा सूत्रों का कहना है कि पहली बार होने जा रहे यह चुनाव प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में बेहद अहम हैं। पार्टी की प्रबल कोशिश है कि भाजपा इन चुनावों में बहुमत लेकर देश व दुनिया में यह साबित कर देगी कि विशेष दर्जे वाले रहे जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 व 35ए को जनहित में खत्म किया जाना कितना जरूरी था। घाटी आधारित गुपकार गठबंधन जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा तथा पूर्ण राज्य पुन बहाल किए जाने का मुद्दा उछाल रहा है। कश्मीर घाटी में नामजदगी के पर्चे भरने के साथ ही प्राय सभी उम्मीदवारों को सुरक्षा मुहैया कराने की जरूरत से इस कसरत की मुश्किलों का अंदाजा लगाया जा सकता है। लेकिन सुरक्षित रहने के नाम पर उम्मीदवारों को व्यवहार में कैद करके रखना तो उलटा ही काम करेगा और अगर सिर्फ शासन की कृपा प्राप्त उम्मीदवारों को ही सुरक्षा के साथ चुनाव प्रचार का मौका मिलता है तो यह पूरी चुनावी प्रक्रिया को ही निरर्थक बना देगा। मुख्यधारा की क्षेत्रीय पार्टियों के गठबंधन, गुपकार ग्रुप ने खासतौर पर ऐसे आरोप लगाए हैं। इन पार्टियों का मौजूदा हालात में बहिष्कार करने के बजाय इन चुनावों में हिस्सा लेना, इस पूरे प्रयास का वजन भी बढ़ाता है।
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