Saturday, 28 November 2020

हम इसे हिन्दू-मुस्लिम नहीं देखते ः हाई कोर्ट

लव जिहाद शब्द का इस्तेमाल हिन्दू समूहों का एक वर्ग उन मुस्लिम पुरुषों के लिए करता है जो प्यार और शादी की आड़ में महिलाओं को कथित रूप से धर्मांतरण के लिए मजबूर करते हैं। साल 2009 में केरल और कर्नाटक के क्रमश कैथोलिक और हिन्दू समूहों ने आरोप लगाया था कि उनके समुदाय की महिलाओं का जबरन इस्लाम में धर्मांतरण किया जा रहा है। इसके बाद लव जिहाद शब्द का पहली बार इस्तेमाल किया गया। लेकिन 2014 में उत्तर प्रदेश में उपचुनाव के दौरान पहली बार प्रचलित हुआ जब भाजपा ने इसे व्यापक तौर पर उठाया। अपने धर्म से बाहर शादी करने वाले जोड़ों के लिए स्थितियां खासी मुश्किल भरी हैं। उन्हें अपने विवाह को सामाजिक तौर पर स्वीकृत कराने और खुश रहने के लिए काफी परेशानी का सामना करना पड़ता है, लेकिन ऐसे जोड़ों को लव जिहाद शब्द के बढ़ते चलन से अब बेचैनी हो रही है। कई जोड़ों ने कहा कि कई राज्य सरकारों ने लव जिहाद के खिलाफ कानून बनाने की मंशा जाहिर की है, जिससे अलग-अलग धर्म के मानने वाले (इंटरफेथ) जोड़ों के लिए चुनौतियां बढ़ रही हैं। दिल्ली में रहने वाली और हिन्दू व्यक्ति से शादी करने वाली शीना शाह उल हमीद ने कहाöलव जिहाद अपने आप में मजाक है। कोई कैसे किसी रिश्ते में जिहाद ला सकता है? वैवाहिक चीजों में धर्म के आधार पर किसी को कैसे प्रतिबंधित किया जा सकता है? अगर कानून बनाया जाता है तो हमें उम्मीद है कि उच्चतम न्यायालय इसे देखेगा और रद्द करेगा। अगर हम न्यायालय और कानून की बात करें तो इलाहाबाद हाई कोर्ट ने दो अलग-अलग धर्मों के बालिग लड़के और लड़की के प्रेम विवाह के मामले में एक अहम फैसला सुनाया है। हाई कोर्ट ने कहा है कि वो युवाओं को अपनी पसंद का जीवनसाथी चुनने का अधिकार है। कानून दो बालिग व्यक्तियों को एक साथ रहने की इजाजत देता है। चाहे वह समान या विपरीत सेक्स के ही क्यों न हों। कोर्ट ने साफ कहा कि उनके शांतिपूर्ण जीवन में कोई व्यक्ति या परिवार दखल नहीं दे सकता है। यहां तक कि राज्य भी दो बालिक लोगों के संबंध को लेकर आपत्ति नहीं कर सकता है। कुशीनगर के विष्णुपुरा के रहने वाले सलामत अंसारी और तीन अन्य की ओर से दाखिल याचिका पर जस्टिस पंकज नकवी और जस्टिस विवेक अग्रवाल की बैंच ने यह फैसला सुनाया है। प्रियंका खरवार उर्फ आलिया के पिता की ओर से कहा गया कि शादी के लिए धर्म परिवर्तन प्रतिबंधित है। ऐसी शादी कानून की नजर में वैध नहीं है। लेकिन कोर्ट ने कहा कि व्यक्ति की पसंद का तिरस्कार, पसंद की स्वतंत्रता के अधिकार के खिलाफ है। कोर्ट ने कहाöप्रियंका खरवार और सलामत को अदालत हिन्दू-मुस्लिम के रूप में नहीं देखती है बल्कि दो युवाओं के रूप में देखती है। कोर्ट ने कहा कि संविधान की अनुच्छेद-21 अपनी इच्छा से किसी व्यक्ति के साथ शांति से रहने की आजादी देता है। इसलिए इसमें हम हस्तक्षेप नहीं कर सकते। कोर्ट ने कहा कि इस मामले में पॉक्सो एक्ट भी लागू नहीं होता है। इस आधार पर कोर्ट ने याचियों के खिलाफ दर्ज प्राथमिकी को भी रद्द कर दिया है। सरकार की ओर से यह आपत्ति की गई इसके पूर्व नूरजहां और प्रियांशी उर्फ समरीन के मामले में शादी के लिए धर्म परिवर्तन करने को अवैध माना है, जिस पर कोर्ट ने असहमति जताई। वहीं यह उम्मीद जताई कि बेटी परिवार के लिए सभी उचित शिष्टाचार और सम्मान का व्यवहार करेगी।

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