Sunday, 22 November 2020
क्या असदुद्दीन ओवैसी मुसलमानों की पहली पसंद हैं?
बिहार चुनाव के नतीजे आने के बाद इस वक्त महागठबंधन की हार से भी ज्यादा किसी चीज की चर्चा है तो वह है असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन जिसे आमतौर पर एआईएमआईएम कहा जाता है। बिहार चुनाव में उसे पांच सीटों पर कामयाबी मिली है। कांग्रेस जैसी राष्ट्रीय पार्टी ने भी अपनी हार के लिए एआईएमआईएम को निशाने पर लिया है। कहा जा रहा है कि एआईएमआईएम ने बिहार चुनाव के पूरे समीकरण ही बदल दिए। एआईएमआईएम नेतृत्व इस बात से खुश है कि अगर वह सारे दावे खुद करती तो लोग यकीन नहीं करते लेकिन अगर दावा कोई विरोधी कर रहा है तो उसका काम तो अपने आप हुआ जा रहा है। वैसे राजनीति की सच्चाई यह होती है कि यहां अपनी हार की वजह कोई खुद मानने को तैयार नहीं होता। फिलहाल बिहार में महागठबंधन को अपनी हार का ठीकरा फोड़ने के लिए असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी मिल गई है। कहा जा रहा है कि बिहार की मुस्लिम बहुल 20 सीटों पर एआईएमआईएम ने अपने उम्मीदवार उतारे, जिसकी वजह से वहां मुसलमानों के वोटों का बंटवारा हुआ। मुसलमानों की पसंद ओवैसी बन गए, जिसकी वह से भाजपा जीत गई। इस आरोप को अगर तथ्यों पर कसा जाए तो गलत साबित होगा। जिन 20 मुस्लिम बहुल सीटों पर एआईएमआईएम ने अपने उम्मीदवार उतारे थे। उन सीटों पर मुसलमानों की पहली पसंद महागठबंधन ही रहा। अगर मुसलमानों की पहली पसंद एआईएमआईएम होती तो सबसे ज्यादा सीट एआईएमआईएम को जीतनी चाहिए थी लेकिन इन 20 सीटों में सबसे ज्यादा नौ सीटें महागठबंधन ने जीतीं और एआईएमआईएम ने महज पांच सीटों पर जीत हासिल की। एआईएमआईएम ने अगर महागठबंधन को नुकसान पहुंचाया तो सीधा फायदा एनडीए को पहुंचाया। मुस्लिम मतदाता बंट गए और अगर वह एकमुश्त वोट महागठबंधन को देते तो एनडीए इन सीटों पर नहीं जीतता। क्या अंदरखाते भाजपा और ओवैसी की कोई अंडरस्टैंडिंग हुई थी? बहरहाल अब ओवैसी मुसलमानों के लीडर एक तरह से स्थापित हो गए हैं।
-अनिल नरेन्द्र
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