Friday, 27 November 2020
तीन दशकों से कांग्रेस के चाणक्य रहे अहमद पटेल का जाना
कांग्रेस को एक हफ्ते में दो बड़े झटके लग गए। पहला तरुण गोगोई के जाने से और तुरन्त बाद व]िरष्ठ नेता अहमद पटेल के जाने से। अहमद पटेल का बुधवार को निधन हो गया। वह 71 वर्ष के थे और कुछ हफ्तों से कोरोना संक्रमित हो गए थे और मेदांता अस्पताल में भर्ती थे। पटेल के बेटे फैसल पटेल और पुत्री मुमताज सिद्दीकी ने ट्विटर पर एक बयान जारी कर बताया कि उनके पिता ने बुधवार को तड़के तीन बजकर 30 मिनट पर अंतिम सांस लिया। उन्होंने कहा कि दुख के साथ अपने पिता अहमद पटेल की दुखद और असामयिक मृत्यु की घोषणा कर रहे हैं। फैसल और मुमताज ने बताया कि लगभग एक महीने पहले उनके पिता कोरोना वायरस से संक्रमित हुए थे। इलाज के दौरान उनके कई अंगों ने काम करना बंद कर दिया। पटेल को गुरुग्राम के मेदांता अस्पताल में भर्ती कराया गया था, जहां उन्होंने अंतिम सांस ली। उनकी मृत्यु पर कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कहाöश्री अहमद पटेल के जाने से मैंने एक ऐसा सहयोगी खो दिया है जिनका पूरा जीवन कांग्रेस पार्टी को समर्पित था। उनकी निष्ठा और समर्पण, अपने कर्तव्य के प्रति उनकी प्रतिबद्धता, मदद के लिए हमेशा मौजूद रहना और उनकी शालीनता कुछ ऐसी खूबियां थीं जो उन्हें दूसरों से अलग बनाती थीं। मैंने ऐसा कॉमरेड, निष्ठावान सहयोगी और मित्र खो दिया जिनकी जगह कोई नहीं ले सकता। मैं उनके निधन पर शोक प्रकट करती हूं और उनके परिवार के प्रति गहरी संवेदना प्रकट करती हूं। अहमद पटेल सिर्फ कांग्रेस के कोषाध्यक्ष ही नहीं रहे बल्कि उन्हें पार्टी का संकटमोचक व चाणक्य भी माना जाता था। यही वजह है कि पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी से लेकर सोनिया गांधी तक का उन पर पूरा भरोसा था। पार्टी में आए बड़े संकट के समय उन्होंने खुद से इसे टालने या सुलझाने में हमेशा अहम भूमिका निभाई। मनमोहन सिंह सरकार में भी उन्हें दो बार मंत्री पद ऑफर किया गया पर उन्होंने सरकार में रहने के बजाय पार्टी के लिए काम करना बेहतर समझा। अहमद पटेल करीब तीन दशक तक कांग्रेस के लिए बड़े और अहम रणनीतिकार बने रहे। मई 1991 में पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी के निधन के बाद पीवी नरसिंह राव सरकार के दौरान भी कई अहम मौकों पर पटेल की सलाह काम आई। अल्पमत सरकार के पांच साल चलाने में कई दलों के नेताओं के साथ नरसिंह राव के निजी संबंध काम आए थे। लेकिन पटेल ने हमेशा नाजुक मौकों पर परदे के पीछे से काम करना बेहतर समझा। वह पहली बार चर्चा में तब आए थे जब 1985 में राजीव गांधी ने उन्हें ऑस्कर फर्नांडीस और अरुण सिंह के साथ अपना संसदीय सचिव बनाया था। तब इन तीनों को अनौपचारिक चर्चाओं में अमर-अकबर-एंथोनी गैंग कहा जाता था। अहमद पटेल के दोस्त, विरोधी और सहकर्मी उन्हें अहमद भाई कहकर पुकारते रहे, लेकिन वह हमेशा सत्ता और प्रचार से खुद को दूर रखना ही पसंद करते थे। सोनिया गांधी, मनमोहन सिंह और संभवत प्रणब मुखर्जी के बाद यूपीए के 2004 से 2014 के शासनकाल में अहमद पटेल सबसे ताकतवर नेता थे। 2014 के बाद से जब कांग्रेस ताश के महल की तरह दिखने लगी तब भी पटेल मजबूती से खड़े रहे और महाराष्ट्र में महाविकास अघाड़ी के निर्माण में अहम भूमिका निभाई और धुरविरोधी शिवसेना को भी साथ लाने मे कामयाब रहे। अब यह कोई रहस्य की बात भी नहीं रही कि अगस्त 2017 में अहमद पटेल कांग्रेस की ओर से पांचवीं बार राज्यसभा भेजे जाने (यह अपने आपमें अनोखा था, क्योंकि कांग्रेस ने इससे पहले किसी भी नेता को पांच बार राज्यसभा नहीं भेजा था) को लेकर उत्सुक नहीं थे। पर सोनिया ने उन्हें इसलिए मनाया और कहा था कि अकेले वही हैं जो अमित शाह और पूरी भाजपा की बराबरी करने में सक्षम हैं। अहमद के जाने से कांग्रेस को तो भारी क्षति हुई ही है पर तमाम विरोधी दलों को भी ऐसे चाणक्य के जाने से भारी नुकसान हुआ है। अलविदा अहमद भाई।
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