Thursday 12 November 2020

इससे तो बेहतर दूरदर्शन युग था

लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ प्रेस की ताकत के चलते लोग इससे डरे हुए हैं। जिस तरह की भाषा का टीवी पर इस्तेमाल होता है और इसमें हिस्सा लेने वाले अभद्र शब्दों का प्रयोग करते हैं, वह बेहद चिन्ताजनक है। आखिर में अदालतों को ही दखल देना पड़ता है। लोग मीडिया से तटस्थ रहने की उम्मीद करते हैं। इससे तो बेहतर ब्लैक एंड व्हाइट दूरदर्शन का युग था। मीडिया को संयम बरतने की जरूरत है। यह टिप्पणी दिल्ली हाई कोर्ट ने रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ को लेकर दाखिल याचिकाओं की सुनवाई के दौरान की। अदालत ने रिपब्लिक टीवी और टाइम्स नाउ के कथित गैर-जिम्मेदाराना और अपमानजनक टिप्पणियां करने या प्रकाशित करने से रोकने के अनुरोध वाली बॉलीवुड के प्रमुख निर्माताओं की याचिका पर संबंधित मीडिया घरानों से जवाब तलब किया है। न्यायमूर्ति राजीव शकधर ने एआरजी आउटलांचर मीडिया और बेनेट कोलमैन समूह से यह सुनिश्चित करने को भी कहा कि उनके चैनलों या सोशल मीडिया मंचों पर कोई मानहानिकारक सामग्री अपलोड न की जाए। याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने कड़ी टिप्पणी की और पीछा कर रहे मीडिया से बचने की कोशिश के दौरान ब्रिटेन की राजकुमारी डायना की मौत का जिक्र किया और कहा कि स्वर कुछ धीमा किए जाने की आवश्यकता है क्योंकि लोग लोकतंत्र के चौथे स्तम्भ से इसकी शक्तियों की वजह से भयभीत हैं। जस्टिस राजीव शकधर की पीठ ने कहाöमीडिया रिपोर्टिंग से ऐसा लगता है कि पहले धारणा बनाई जाती है, फिर रिपोर्टिंग की जाती है। इसमें खबर कम विचार ज्यादा होते हैं। कोर्ट ने मामले में रिपब्लिक टीवी, टाइम्स नाउ, फेसबुक, गूगल व ट्विटर से जवाब भी मांगा है। अब सुनवाई 14 दिसम्बर को होगी। कोर्ट ने कहाöरिपोर्टिंग करना मीडिया का संविधानिक अधिकार है, मगर यह निष्पक्ष तरीके से होनी चाहिए। टीवी चैनल जांच कर सकते हैं, लेकिन वह किसी के खिलाफ दुर्भावनापूर्ण अभियान नहीं चला सकते। कोर्ट ने कहा कि कुछ मामलों में एफआईआर भी नहीं थी, फिर भी चैनलों ने व्यक्तियों को आरोपी कहना शुरू कर दिया। अदालत ने कहा कि इस तरह की लगातार गलत रिपोर्टिंग से प्रकाशित और शिक्षित दिमाग भी प्रभावित होते हैं। पीठ ने कहा कि केस दर्ज होने से पहले ही नामों की घोषणा कर दी जाती है। व्हाट्सएप चैट दिखाए जा रहे हैं। अदालत समझ नहीं पा रही है कि यह सब क्या हो रहा है? उन्होंने मीडिया से कहा कि आप आत्म नियंत्रण की बात करते तो हैं मगर कुछ भी नहीं करते। कोर्ट ने कहा कि यह न्यूज चैनलों को खबरों को कवर करने से नहीं रोक रहा है, लेकिन केवल उन्हें जिम्मेदार पत्रकारिता को आगे बढ़ाने के लिए कह रहा है। कोर्ट ने कहाöहम यह नहीं कह रहे हैं कि आप ऐसी खबरों को कवर नहीं कर सकते, लेकिन हम (केवल) आपको जिम्मेदार पत्रकारिता करने के लिए यह कह रहे हैं। मीडिया अगर कार्यक्रम कोड का पालन नहीं करता है तो अदालत इसे लागू कराएगी। इस पर मीडिया हाउसों की ओर से पेश वकीलों ने कहा कि हम पालन करेंगे।

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