Friday, 13 November 2020
बिहार नतीजे अन्य राज्यों में भी असर डालेंगे
बिहार के उतार-चढ़ाव भरे नतीजों के बाद भाजपा का राहत भरा सांस लेना स्वाभाविक ही है। इन चुनावों पर पार्टी की भावी रणनीति टिकी हुई थी, क्योंकि यह चुनाव उसकी गठबंधन राजनीति के साथ अपने विस्तार व विपक्ष के मुकाबले की तैयारी के भी थे। इससे उसकी पश्चिम बंगाल, असम समेत अगले साल होने वाले विभिन्न विधानसभा चुनावों के लिए उसका मनोबल बढ़ेगा। भाजपा के लिए इन नतीजों का अहम निष्कर्ष यह है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लेकर लोगों की आशाएं और उम्मीदें कम नहीं हुई हैं। नीतीश कुमार के खिलाफ उभरी नाराजगी के बाद आए इस तरह के नतीजों का तात्कालिक निष्कर्ष यही निकाला जा रहा है। भाजपा ने लोजपा के अलग होने के बाद अपने गठबंधन को बेहतर किया और सामायिक समीकरण साधे। लोजपा अगर विपक्षी खेमे में जाती तो दिक्कत बढ़ती, लेकिन यह अलग रही। इससे राजग को कुछ नुकसान तो हुआ लेकिन विरोधी खेमे को ज्यादा लाभ नहीं हुआ। बिहार विधानसभा चुनाव के नतीजे अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की दिशा तय करने में काफी अहम साबित होंगे। भाजपा का प्रदर्शन खासतौर पर पश्चिम बंगाल के लिए बड़ा टॉनिक साबित होगा। बंगाल बिहार से सटा राज्य है। चुनाव के दौरान यह चर्चा जोरों पर थी कि अगर विपक्ष भाजपा को बिहार में चोट पहुंचाने में सफल रहता है तो पश्चिम बंगाल में भाजपा की रणनीति को बड़ा झटका लग सकता है। नतीजों से इसका उलट भी हो सकता है। जानकारों का कहना है कि नीतीश के खिलाफ माहौल की चर्चा के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और केंद्र सरकार की कल्याणकारी योजनाएंöमुफ्त गैस, आवास, स्वास्थ्य, कोरोना काल में मुफ्त अनाज आदि बिहार में अगर कारगर रहीं तो अन्य राज्यों में भी भाजपा के लिए यह फार्मूला काम कर सकता है। बिहार के नतीजों के बाद पश्चिम बंगाल में विपक्ष की रणनीति में काफी उठापटक देखने को मिल सकती है। बड़ा सवाल यह होगा कि क्या ममता के साथ लेफ्ट औ कांग्रेस आ सकते हैं? सवाल यह भी होगा कि क्या बिहार के टॉनिक के आधार पर भजापा ध्रुवीकरण व कल्याणकारी योजनाओं के कॉकटेल के सहारे बंगाल में ममता का किला ध्वस्त कर पाएगी? जानकार मानते हैं कि संकेत साफ है, बंगाल का मुकाबला बेहद कड़ा होने वाला है। असम में भाजपा की सरकार है। बिहार के नतीजों का यहां भी सबसे ज्यादा विपक्ष की रणनीति को प्रभावित करेंगे। केरल में भाजपा बड़ी प्लेयर नहीं है, लेकिन अगर ध्रुवीकरण का फार्मूला कारगर होता है तो इसका असर बंगाल से लेकर केरल तक देखने को मिलेगा। तमिलनाडु में डीएमके और एआईडीएमके दोनों पुरानी मजबूत स्थिति में नहीं हैं। ऐसे में यहां भी नए विकल्पों की सियासत से इंकार नहीं किया जा सकता। विपक्ष के कुनबे में कांग्रेस का कमजोर हाथ अन्य दलों के लिए मुश्किल खड़ा कर सकता है।
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