Thursday 19 November 2020

सार्वजनिक बहस का ऐसा स्तर पहले कभी नहीं रहा

टीवी कवरेज के दौरान सांप्रदायिक घृणा फैलाने के आरोप का मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। चीफ जस्टिस एसए बोबड़े ने fिरिपब्लिक टीवी के चीफ एडिटर अर्नब गोस्वामी की रिपोर्टिंग शैली पर सख्त टिप्पणी की। कहा-आप अपनी रिपोर्टिंग के साथ थोड़े पुराने जमाने के हो सकते हैं। सच कहूं तो मैं इस स्तर की बहस को कभी स्वीकार नहीं कर सकता। बहस का स्तर सार्वजनिक रूप से ऐसा कभी नहीं रहा। कोर्ट प्रेस की स्वतंत्रता के महत्व को मानती है। इसका मतलब यह नहीं है कि मीडिया के व्यक्ति से सवाल पूछा नहीं जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट महाराष्ट्र सरकार द्वारा बाम्बे हाई कोर्ट के 30 जून के आदेश के खिलाफ अर्नब के विरोध में दायर विशेष अनुमति याचिका पर सुनवाई कर रही थी। अर्नब पर आरोप है कि उन्होंने पालघर लिंचिंग और अप्रैल में बांद्रा रेलवे स्टेशन पर प्रवासी श्रमिकों के इकट्ठा होने का जो कवरेज किया था, वह सांप्रदायिक घृणा फैलाने वाला था। सीजेआई ने अर्नब गोस्वामी के वकील हरीश साल्वे से कहा-रिपोर्टिंग में जिम्मेदारी निभानी होगी। कुछ क्षेत्रों में सावधानी के साथ चलना होता है। बतौर कोर्ट, हमारी सबसे महत्वपूर्ण चिंता शांति और सद्भाव है। सीजेआई ने कहा कि कोर्ट उनके मुवक्किल से जिम्मेदारी का आश्वासन चाहती है। जवाब में साल्वे ने कहा कि वह कोर्ट के विचारों से सहमत हैं लेकिन उन्होंने कहा कि यह एफआईआर सही नहीं है और इसे व्यक्ति विशेष के तौर पर नहीं लिया जाना चाहिए। यहां तक कि पिछले हफ्ते रिपब्लिक टीवी की पूरी संपादकीय टीम के खिलाफ एक और एफआईआर दर्ज की गई है। कोर्ट ने दो हफ्ते के लिए सुनवाई स्थगित करते हुए अर्नब गोस्वामी को एक हलफनामे को दायर करने को कहा है। इसमें उन्हें यह बताना है कि उन्होंने क्या करने का प्रस्ताव दिया है। महाराष्ट्र सरकार को भी गोस्वामी के खिलाफ बनी एफआईआर की एक सूची देने को कहा गया है। महाराष्ट्र सरकार की ओर से अभिषेक मनु सिंघवी ने बोम्बे हाई कोर्ट की जांच को रोकने के फैसले का विरोध किया। उन्होंने कहा कि पुलिस अर्नब को गिरफ्तार नहीं करेगी, भले ही जांच को फिर से शुरू किया जाए। पूछताछ के लिए भी मौजूद रहने के लिए उन्हें 48 घंटे पूर्व सूचना दी जाएगी। इधर सिंघवी ने जब कहा कुछ लोगों को कानून से ऊपर नहीं माना जा सकता तो चीफ जस्टिस ने तंज कसा, कुछ लोगों को ऊपरी दबाव के साथ निशाना बनाया जाता है। यह इन दिनों की संस्कृति है। कुछ लोगें को आज सुरक्षा की जरूरत है। सीजेआई ने कहा कि हम मानते हैं कि प्रेस की स्वतंत्रता जरूरी है, लेकिन हम इस दलील से सहमत नहीं हैं कि आपका क्लाइंट अगर मीडिया कर्मी है तो उससे पूछताछ नहीं हो सकती है। बतौर कोर्ट हमारे लिए समाज में शांति कायम रखना सबसे महत्वपूर्ण है। किसी को भी सवाल पूछने व जानने की छूट नहीं है। अभिषेक मनु सिंघवी ने कई जजमेंट का हवाला पेश किया और कहा कि छानबीन पर रोक नहीं लगाई जा सकती है। इस पर चीफ जस्टिस ने कहा कि समस्या छानबीन के तरीके को लेकर है।

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